कहते हैं ना जिंदगी कभी-कभी आईना ऐसे दिखाती है कि इंसान का चेहरा ही नहीं उसका असली किरदार भी सामने आ जाता है। उस दिन एक बुजुर्ग आदमी पुराने कपड़े पहनकर एक बड़ी कंपनी के गेट पर पहुंचा। हाथ में सिर्फ एक पुराना बैग था और आंखों में सालों की मेहनत की चमक। मगर गार्ड ने उसे देखा और कहा यहां भिखारियों की जगह नहीं है। लोग हंसते रहे ताने मारते रहे और वह बुजुर्ग चुपचाप धक्के खाकर बाहर निकल गया। उन्हें नहीं पता था कि अगले कुछ घंटों में यही आदमी उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा सच उजागर करने वाला सुबह का वक्त था। शहर के सबसे बड़े कॉर्पोरेट ऑफिस की इमारत के

बाहर गाड़ियां आ जा रही थी। चमचमाती कांच की इमारत, सुरक्षा गार्डों के कड़े नियम और अंदर बाहर आते-जाते सूटबूट पहने कर्मचारी। हर किसी के चेहरे पर रफ्तार और अहंकार साफ छलक रहा था। इसी माहौल में एक बुजुर्ग आदमी धीरे-धीरे ऑफिस गेट की ओर बढ़ा। उम्र लगभग 70 साल। चेहरे पर झुर्रियां, बाल सफेद और बिखरे हुए। कपड़े साधारण, हल्का सा ढीला कुर्ता पायजामा और पैरों में घिसी हुई चप्पलें। कंधे पर एक पुराना चमड़े का बैग लटका हुआ जिसमें से जगह-जगह धागे निकले हुए थे। जैसे ही वह गेट तक पहुंचे गार्ड ने उन्हें रोक लिया। अरे ओ बुजुर्ग कहां चले जा रहे हो? यह कोई

धर्मशाला नहीं है। यह कॉर्पोरेट ऑफिस है। बुजुर्ग ने विनम्र स्वर में कहा, बेटा मुझे अंदर जाना है। मैं मैनेजर साहब से मिलना चाहता हूं। गार्ड हंस पड़ा। मैनेजर साहब और आप जरा शीशे में अपना चेहरा देखा है। अंदर सूट बूट वाले लोग बैठते हैं। आपके जैसे लोगों का यहां कोई काम नहीं। पास खड़े दो-तीन कर्मचारी भी हंसने लगे। क्या गजब है यह तो सीधे मैनेजर से मिलने आया है। लगता है कोई पेंशन वाला चक्कर होगा। बुजुर्ग शांत खड़े रहे। चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं। बस आंखों में एक अजीब सी गहराई थी। लेकिन गार्ड यहीं नहीं रुका। उसने बुजुर्ग को धक्का सा देकर पीछे

कर दिया। चलो हटो यहां से। टाइम बर्बाद मत करो। बुजुर्ग लड़खड़ाए लेकिन गिरे नहीं। उन्होंने अपना पुराना बैग कसकर पकड़ा और चुपचाप पास के फुटपाथ पर बैठ गए। इसी बीच रिसेप्शन से एक युवती बाहर आई। उम्र करीब 28 साल। मॉडर्न ड्रेस, ऊंची हील्स और हाथ में टेबलेट। उसने बुजुर्ग को देखा और ताना कसते हुए बोली बाबा यह कोई सरकारी दफ्तर नहीं है जहां आप ऐसे ही चले आएंगे यहां अपॉइंटमेंट चाहिए समझे अब जाइए यहां से बुजुर्ग ने सिर झुका कर धीरे से कहा बेटी मुझे अंदर काम है किसी से मिलना है लड़की ने आंखें घुमाई और हंसते हुए बोली ओह गॉड यह आदमी तो सीधा अंदर बैठकर मीटिंग

करना चाहता है ऐसे कपड़ों में प्लीज गार्ड इन्हें गेट पेट से दूर रखो। क्लाइंट्स देखेंगे तो कंपनी की इमेज खराब हो जाएगी। पास से गुजरते हुए कई कर्मचारी रुक कर तमाशा देखने लगे। कोई हंस रहा था। कोई वीडियो बना रहा था। एक बोला, “क्या जमाना आ गया है? अब भिखारी भी ऑफिस में घुसना चाहते हैं। बुजुर्ग की आंखों में हल्की नमी आई। लेकिन उन्होंने कोई शब्द नहीं कहा। बस एक लंबी सांस ली और अपनी जगह पर शांत बैठ गए। उनकी चुप्पी और धैर्य ने इस अपमान को और भारी बना दिया। भीड़ के हंसते चेहरे और तानों के बीच वह अकेले बैठे रहे। गरिमा के साथ लेकिन टूटते हुए दिल के साथ।

ऑफिस के गेट के बाहर भीड़ धीरे-धीरे छूट चुकी थी। गार्ड अपनी कुर्सी पर फिर से जम गया। रिसेप्शनिस्ट वापस एयर कंडीशंड लॉबी में जाकर कॉफी पीने लगी। लेकिन वो बुजुर्ग आदमी अब भी उसी फुटपाथ पर बैठे थे। धूप धीरे-धीरे तेज हो रही थी। उनके माथे पर पसीने की बूंदे चमक रही थी। पुराना बैग उन्होंने अपनी गोद में कसकर पकड़ा हुआ था। जैसे वह सिर्फ बैग नहीं उनकी इज्जत का सहारा हो। कभी कोई कर्मचारी उन्हें देखता और ताना कसता। बाबा यह दफ्तर आपके लिए नहीं है। कभी कोई कहता अब तो भिखारी भी कॉर्पोरेट में आना चाहते हैं। बुजुर्ग चुपचाप सब सुनते रहे। उनकी आंखें गहरी थी

जैसे हर अपमान को सोख कर भीतर दबा रही हो। वह बोलते नहीं थे। बस कभी आसमान की ओर देखते कभी गेट की तरफ। तभी पीछे से एक पतला दुबला लड़का आया। उम्र लगभग 22 साल। साधारण नीली शर्ट, काले पट और पैरों में सस्ते जूते। उसके हाथ में सफाई का झाड़ू था। यह ऑफिस का छोटा असिस्टेंट था। जिसे सब प्यून कहकर पुकारते थे। उसने बुजुर्ग को देखा और पास आकर बोला, बाबा आप धूप में क्यों बैठे हो? यहां से थोड़ा हट जाओ। छाव है। बुजुर्ग ने सिर उठाकर उसकी ओर देखा। लड़के की आंखों में मजाक नहीं। सच्ची चिंता थी। बुजुर्ग ने धीमे स्वर में कहा, बेटा मुझे अंदर जाना

था। लेकिन यह लोग जाने नहीं दे रहे। लड़के ने गार्ड की ओर देखा और फिर बोला, “आप चिंता मत करो। मैं आपको पानी लाता हूं। वह भागकर कैंटीन से एक गिलास ठंडा पानी लाया। बुजुर्ग ने दोनों हाथों से गिलास लिया और धीरे-धीरे पिया। उनकी आंखों में हल्की चमक आ गई। तुम्हारा नाम क्या है बेटा? उन्होंने पूछा, “राजेश, लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं यहां सफाई और छोटे-मोटे काम करता हूं।” बड़े लोग हमें नोटिस भी नहीं करते। बुजुर्ग ने धीरे से उसका सिर थपथपाया। तूने आज साबित कर दिया कि बड़ा इंसान होने के लिए कुर्सी की नहीं दिल की जरूरत होती

है। राजेश थोड़ा झेप गया। बाबा मैं तो बस इंसानियत निभा रहा हूं। आपको देखकर लगा कि मेरे अपने दादा बाहर बैठे हैं। बुजुर्ग की आंखें नम हो गई। इतने अपमान के बीच यह छोटी सी करुणा उनके लिए जैसे ठंडी हवा का झोंका थी। राजेश ने पूछा, क्या आप सच में मैनेजर से मिलने आए हो? बुजुर्ग हल्की मुस्कान के साथ बोले, हां बेटा लेकिन वक्त आने पर सब जान जाएंगे कि मैं यहां क्यों आया हूं। राजेश को समझ नहीं आया लेकिन उसने सिर हिला दिया। उसने बुजुर्ग को छांव में बैठने के लिए एक कुर्सी लाकर दी। चारों तरफ ऑफिस का माहौल वैसा ही था। लोग भागदौड़ में किसी को उनकी परवाह नहीं।

लेकिन उस पल बुजुर्ग का दिल भारी अपमान से नहीं। राजेश की छोटी सी इंसानियत से भरा था। वह शांत बैठे रहे मानो इंतजार कर रहे हो। और इस इंतजार के पीछे छिपा था एक ऐसा सच जो कुछ घंटों बाद पूरी कंपनी की तस्वीर बदल देगा। शाम के 5:00 बजे कंपनी का सबसे बड़ा कॉन्फ्रेंस हॉल रोशनी से चमक रहा था। लंबा चौड़ा हॉल, बीच में बड़ी गोल टेबल, चारों तरफ चमकते लैपटॉप और प्रोजेक्टर स्क्रीन। सभी डिपार्टमेंट हेड, सीनियर मैनेजर और स्टाफ अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठे थे। कंपनी का सीईओ भी मौजूद था। वह उत्साहित होकर बोला, “आज हमारे संस्थापक खुद मीटिंग में आ रहे हैं। सब लोग ध्यान

से बैठे। यह सुनकर सबके चेहरे पर अलग-अलग भाव थे। कोई उत्साहित, कोई घबराया हुआ। लेकिन रिसेप्शनिस्ट और गार्ड जो बाहर अपमान कर चुके थे, बिल्कुल बेफिक्र बैठे थे। उन्हें लगा कि यह तो कोई बड़ा अमीर और चमकदार शख्स होगा। महंगे सूट में आएगा। दरवाजा धीरे-धीरे खुला। सबकी नजरें दरवाजे की ओर मुड़ गई और अंदर प्रवेश किया वही बुजुर्ग आदमी। फटे पुराने से कपड़े, कंधे पर वही घिसा हुआ चमड़े का बैग और चेहरे पर वही शांत गंभीरता। पूरा हॉल एक पल के लिए सन्न हो गया। लोगों ने आपस में फुसफुसाना शुरू कर दिया। यह यह तो वही आदमी है जिसे गार्ड ने बाहर धक्का दिया था। यह यहां

कैसे आया? रिसेप्शनिस्ट की आंखें फैल गई। गार्ड की सांस अटक गई और हंसने वाले कर्मचारी अब कुर्सियों पर सिकुड़ गए। बुजुर्ग के साथ कंपनी के दो सीनियर डायरेक्टर थे जो पूरी गंभीरता से उनके पीछे चल रहे थे। उन्होंने आकर सीईओ से हाथ मिलाया और कहा, “सर, कृपया अपनी सीट को टेबल के सिर पर रखें।” सीईओ ने खड़े होकर हाथ जोड़ा। वेलकम सर, वी आर ऑनर्ड। अब तो सबके चेहरे उतर चुके थे। वह बुजुर्ग धीरे-धीरे कुर्सी पर बैठे और अपना पुराना बैग टेबल पर रखा। बैग से उन्होंने मोटी फाइल निकाली और सभी के सामने रख दी। फाइल पर लिखा था फाउंडर एंड

माजरिटी शेयर होल्डर रघुनाथ प्रसाद। पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। लेकिन कुछ लोगों के चेहरे पर सिर्फ शर्म और सन्नाटा था। रिसेप्शनिस्ट की आंखों से पसीना टपकने लगा। गार्ड कुर्सी से उठकर दरवाजे के पास खड़ा हो गया जैसे जमीन फट जाए और वह उसमें समा जाए। बुजुर्ग ने चारों तरफ देखा। उनकी नजर हर उस इंसान पर पड़ी जिसने सुबह उनका अपमान किया था। उनकी नजरें शब्दों से ज्यादा भारी थी। फिर उन्होंने धीमी लेकिन मजबूत आवाज में कहा। आज सुबह मैं इस ऑफिस में आया था लेकिन मुझे अंदर आने से रोका गया क्योंकि मेरे कपड़े साधारण थे और मेरा बैग पुराना था।

सब चुप थे। सिर्फ उनका स्वर गूंज रहा था। किसी ने सोचा कि मैं भिखारी हूं। किसी ने मजाक बनाया। किसी ने धक्का भी दिया। लेकिन एक लड़का था राजेश जिसने मुझे पानी दिया और इंसानियत दिखाई। राजेश पीछे खड़ा था। हैरानी और डर से कांप रहा था। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि वही बुजुर्ग कंपनी के मालिक हैं। बुजुर्ग ने टेबल पर हाथ रखा और कहा याद रखो असली पहचान कपड़ों से नहीं कर्मों से होती है। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा लेकिन तालियां उन लोगों की शर्म को नहीं दबा सकी जिन्होंने सुबह इंसानियत का अपमान किया था। कॉन्फ्रेंस हॉल में सन्नाटा पसरा हुआ था। सभी कर्मचारी अब भी

अविश्वास में थे कि सुबह जिस बुजुर्ग को दरवाजे से धक्का देकर निकाला गया था, वही इस कंपनी का असली मालिक और संस्थापक है। बुजुर्ग ने धीरे-धीरे चारों तरफ देखा। उनकी नजर सबसे पहले उस सुरक्षा गार्ड पर पड़ी जिसने उन्हें अपमानित किया था। गार्ड सिर झुका कर खड़ा था। पसीने से तर-ब-बतर। बुजुर्ग ने ठंडी आवाज में कहा, ड्यूटी करना और इंसानियत निभाना दोनों अलग बातें हैं। ड्यूटी से तुम मुझे रोक सकते थे, लेकिन इंसानियत से धक्का नहीं दे सकते थे। गार्ड की आंखों से आंसू निकल आए। माफ कर दीजिए साहब। मैंने आपको पहचाना नहीं। बुजुर्ग ने सिर हिलाया। पहचान की जरूरत

नहीं थी। इंसान समझना काफी था। इसके बाद उनकी नजर उस रिसेप्शनिस्ट पर गई जिसने सबसे ज्यादा ताने मारे थे। वह कुर्सी पर सिकुड़ गई थी। हाथ कांप रहे थे। तुमने कहा था कि मेरे जैसे लोगों से कंपनी की इमेज खराब होती है। याद रखो इस कंपनी की इमेज सूटबूट से नहीं कर्मचारियों के व्यवहार से बनती है। वह और कुछ बोल भी नहीं पाई। बस सिर झुका लिया। फिर बुजुर्ग ने अपनी नजर उस मैनेजर पर डाली जिसने हमेशा कर्मचारियों के साथ अहंकार से पेश आने की आदत बना ली थी। तुम्हें कुर्सी मिली और तुमने उसे शक्ति समझ लिया। जबकि कुर्सी सिर्फ जिम्मेदारी है। आज से तुम इस पद पर

नहीं रहोगे। तुम्हें डिमोट किया जाता है। मैनेजर का चेहरा सफेद पड़ गया। वो कुछ बोलने ही वाला था कि बुजुर्ग ने हाथ उठाकर रोक दिया। बहस मत करो। इंसानियत की कीमत तुम्हें समझनी होगी। पूरा हॉल अब पूरी तरह खामोश था। लोग समझ चुके थे कि यह सिर्फ एक मीटिंग नहीं इंसाफ का दरबार है। और फिर बुजुर्ग ने उस लड़के को बुलाया। राजेश राजेश डरते-डरते आगे आया। उसकी नीली शर्ट पसीने से भीग चुकी थी। साहब मैंने तो बस पानी दिया था। बुजुर्ग मुस्कुराए। यही तो इंसानियत है। दूसरों को पानी देना, सम्मान देना। आज इस ऑफिस में सबसे बड़ा काम तुमने

किया है। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। बुजुर्ग ने घोषणा की। आज से राजेश सिर्फ एक असिस्टेंट नहीं रहेगा। उसे प्रमोशन मिलेगा और मैं चाहता हूं कि आने वाले दिनों में ऐसे लोग कंपनी का चेहरा बने। राजेश की आंखों से आंसू झरझर गिरने लगे। वह हाथ जोड़कर बोला साहब मैं तो बस आपकी तरह बनना चाहता हूं। बुजुर्ग ने खड़े होकर कहा सुन लो सब लोग इस कंपनी की नींव ईमानदारी और इंसानियत पर रखी गई थी। मैं साधारण कपड़ों में आया ताकि देख सकूं कि आज भी लोग इंसान को इंसान समझते