सुबह का वक्त दिल्ली के एक व्यस्त अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर चहल-पहल थी। टर्मिनल तीन में हर तरफ लोग भागदौड़ में थे। कोई बोर्डिंग के लिए दौड़ रहा था। कोई लाइन में खड़ा था। कोई सेल्फी ले रहा था और कोई फोंस पर बिजनेस डील्स फाइनल कर रहा था। एयरपोर्ट की उस चमकती दमकती दुनिया में एक चेहरा बाकी सबसे अलग था। एक बुजुर्ग आदमी फटी हुई कमीज चप्पल घिसी हुई हाथ में एक पॉलिथीन बैग और जेब में एक पुराना टिकट चेहरे पर हल्की दाढ़ी आंखों में घबराहट लेकिन साथ में एक उम्मीद वो किसी से कुछ नहीं मांग रहा था बस लाइन में खड़ा था चुपचाप बार-बार अपना टिकट देखता
फिर काउंटर की तरफ नजर उठाता जैसे पहली बार किसी ऐसे सफर पर निकला हो जहां पहुंचने का सपना उसने बरसों से देखा था नाम था उसका रामदीन। पेशे से एक बेलदार उम्र 60 के करीब और आज पहली बार हवाई सफर करने आया था। कारण अपने बेटे के पास कनाडा जाना जिसे उसने मजदूरी करके पढ़ाया और आज जो वहां नौकरी करता है। दृश्य बदलता है। एयरपोर्ट का मैनेजर तरुण माथुर कड़क सूट में रप से चलता हुआ आ रहा था। उसे भीड़ में रामदीन दिखा। तरुण की भौहें सिकुड़ गई। अरे यह क्या मजाक है? ए तू यहां क्या कर रहा है? रामदीन ने सिर झुकाकर कहा, बाबूजी टिकट है मेरे पास। बेटा भेजा है।
कनाडा जाना है। तरुण हंसते हुए टिकट तू हवाई जहाज में देखो भाई नौटंकी करने का नया तरीका मिल गया है भिखारियों को। लोग चुपचाप तमाशा देखने लगे। कोई कुछ नहीं बोला। रामदीन अब भी कोशिश कर रहा था कि अपना टिकट दिखा दे। कुछ समझा सके। लेकिन तरुण ने उसका हाथ झटक दिया। चल बाहर और दोबारा इस इमारत के अंदर मत दिखना। यह जगह तुम्हारे जैसे लोगों के लिए नहीं है। फिर उसने सिक्योरिटी को बुलाया। रामदीन को खींच कर बाहर फेंक दिया गया। भीड़ खामोश थी। किसी ने एक शब्द नहीं कहा। बस सबने देखा कैसे एक आदमी को सिर्फ उसके कपड़ों की वजह से इज्जत से बाहर फेंक दिया गया।
लेकिन तभी भीड़ में से एक शख्स आगे आया। सीधा खड़ा शांत चेहरा सादा कुर्ता पायजामा ना कोई दिखावा ना कोई बड़ा लाभ लश्कर उसने कुछ नहीं कहा बस मोबाइल निकाला और एक कॉल किया उसका लहजा सदा हुआ था कोड इंडिगो टर्मिनल थ्री इमीडिएट एक्शन भीड़ अभी भी सन्न थी सब सोच रहे थे यह आदमी है कौन एयरपोर्ट की वो भीड़ अब खामोश नहीं थी सबके चेहरों पर सवाल थे कौन है यह आदमी क्या हुआ था उस कॉल में क्या वाकई कुछ बदलने वाला है? उधर रामदीन अब एयरपोर्ट के बाहर बैठा था। सिर झुका हुआ था। आंखों में बेइज्जती का दर्द और दिल में टूटी उम्मीदें। वो टिकट बार-बार देख रहा था।
जैसे सोच रहा हो क्या मैं वाकई इस लायक नहीं था? भीतर उस साधारण से दिखने वाले व्यक्ति ने एक और कॉल किया। उस बुजुर्ग को फिर से अंदर लाओ। और मैनेजर तरुण माथुर उसे रोक लो। अब एक और कदम भी नहीं आगे बढ़ना चाहिए। लोगों ने देखा कुछ ही पलों में सिक्योरिटी दो भागों में बटंट गई। एक टीम रामदीन को अंदर वापस ले आई और दूसरी टीम एयरपोर्ट मैनेजर तरुण को रोक चुकी थी। तरुण हैरान। क्या मजाक है यह? मैं इस एयरपोर्ट का मैनेजर हूं। मुझे कौन रोक सकता है? तभी वह शख्स उसके सामने आया। अब भी शांत। पर उसकी आंखों में एक तेज था जैसे उसके शब्दों से
पहले ही निर्णय सुनाया जा चुका हो। आपने इस आदमी को बाहर क्यों फेंका? उसने सीधा सवाल किया। तरुण ने चिढ़ते हुए कहा। उसकी हालत देखी है आपने? उसके जैसे लोग यहां क्यों आएंगे? तो आपने उसकी गरीबी देखी? टिकट नहीं। तरुण चुप। उसकी चप्पलें देखी? उसके चेहरे की उम्मीद नहीं देखी? भीड़ अब धीरे-धीरे पास आने लगी थी। हर कोई अब ध्यान से सुन रहा था। कैमरे निकले जा चुके थे। नाम क्या है आपका? तरुण ने गुस्से में पूछा। उस आदमी ने जेब से एक छोटा कार्ड निकाला और तरुण के मुंह पर रख दिया। तरुण के चेहरे से रंग उड़ गया। उस कार्ड पर लिखा था आर्यन मलिक फाउंडर एंड चीफ स्टेक
होल्डर स्काई ग्लाइड एयरलाइंस। उसी एयरलाइन का सबसे बड़ा मालिक जिसके टर्मिनल पर यह सब घटा था। आर्यन ने धीरे से कहा, आपको नौकरी से उसी वक्त निकाला जा चुका था जब आपने इंसान की पहचान उसके कपड़ों से की। इंसानियत से नहीं। भीड़ में एक सन्नाटा छा गया। किसी ने ताली नहीं बजाई। किसी ने सीटी नहीं मारी क्योंकि उस पल में शोर की नहीं समझ की जरूरत थी। रामदीन अब अंदर आ चुका था। उसके सामने आर्यन खड़ा था। आपका बेटा कौन है? आर्यन ने पूछा। रामदीन कांपती आवाज में मेरा बेटा हरप्रीत कनाडा में नौकरी करता है। बोला था बाबूजी इस बार आप आना। मैं टिकट भेजता हूं। पहली
बार प्लेन में बैठिएगा। आर्यन ने मुस्कुराकर कहा आज आप अकेले नहीं जा रहे। आज पूरा देश देखेगा कि सच्ची इज्जत पहनावे से नहीं आती। वो आती है उस सफर से जो इंसानियत से तय किया गया हो। तरुण को सिक्योरिटी ने ले जाया। आर्यन ने स्टाफ से कहा, इस एयरपोर्ट पर अब से एक नया नियम है। कोई भी यात्री छोटा नहीं होता। हर किसी के साथ सम्मान होगा। चाहे वह सूट में आए या धोती में। टर्मिनल तीन। अब सिर्फ एक एयरपोर्ट नहीं रह गया था। वो एक गवाह बन चुका था उस लम्हे का जहां एक बुजुर्ग की इज्जत लौटाई गई थी। और एक घमंडी मैनेजर को उसका असली आईना दिखाया गया। रामदीन अब
फर्स्ट क्लास लाउंस में बैठा था। स्टाफ उसे पानी, नाश्ता और आरामदायक कुर्सीियों कर रहे थे। पर वह अब भी थोड़ा झिचका हुआ था। थोड़ा सहमा हुआ। तभी आर्यन उसके पास आया। आर्यन चलिए रामदीन जी अब आपके प्लेन का वक्त हो रहा है। और हां बोर्डिंग आपके बेटे ने नहीं। मैंने कराई है मेरे गेस्ट के तौर पर। रामदीन धीरे से नम आंखों से। आप कौन है बाबूजी? इतना क्यों कर रहे हैं मेरे लिए? आर्यन एक पल चुप रहा। फिर कहा, आप जानते हैं जब मैं छोटा था तो मेरे पिता भी मजदूरी करते थे। सड़कों पर काम करते थे। एक दिन वह किसी काम से एक होटल में गए
जहां उन्हें भिखारी समझकर गेट से धक्के मारकर निकाल दिया गया। मैंने देखा वह चुप रहे। लेकिन उस दिन मैं टूट गया था। तभी से तय किया था। अगर कभी जिंदगी में ऊपर पहुंचा तो किसी को उसके कपड़ों से नहीं उसकी नियत और मेहनत से पहचानूंगा। आज आपने मुझे मेरा ही वादा याद दिलाया। रामदीन की आंखें भर आई। वो बस इतना कह पाया। आप भगवान है बेटा। भगवान आर्यन मुस्कुराया। नहीं बाबूजी भगवान नहीं बस इंसान हूं जो इंसानियत को नहीं भूला। कैमरा धीरे-धीरे रामदीन की बोर्डिंग की ओर बढ़ता है। वह पहली बार प्लेन की सीढ़ियां चढ़ रहा है कांपते कदमों के साथ। लेकिन दिल में गर्व
और आंखों में सपना। काउंटर से एक एयर होस्टेस उसकी ओर झुक कर कहती है वेलकम ऑनबोर्ड सर। और रामदीन के होठों पर वो मुस्कान खिलती है जिसे कोई गहना नहीं खरीद सकता जो सिर्फ इज्जत से मिलती है। इज्जत का कोई दाम नहीं होता। इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं उसके किरदार से होती है। और इंसानियत सबसे बड़ी वर्दी है जो हर किसी को पहननी चाहिए।