गर्मियों की तपती दोपहर थी। अदालत के बड़े से हॉल में वकीलों की भीड़ थी। हर कोई अपनी फाइलों और बहस में डूबा हुआ था। लेकिन उस भीड़ में एक महिला ऐसी भी थी जिसकी पहचान बाकी सबसे अलग थी। उसका नाम संध्या मिश्रा था। उम्र केवल 27 साल लेकिन चेहरा और चाल ढाल देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतनी कम उम्र की लड़की ने वकालत के पेशे में इतनी जल्दी इतना बड़ा नाम कमा लिया होगा। लोग कहते थे कि वह केस जीतने के लिए किसी भी हद तक चली जाती है। लेकिन सच यह था कि वह सच और न्याय के लिए हर कदम लड़ती थी। बचपन में उसने बहुत दुख देखे थे। मां-बाप का साया सिर से जल्दी उठ
गया था और रिश्तेदारों के बीच पलते हुए उसने जाना था कि अनाथ बच्चे समाज के लिए कैसे बोझ समझे जाते हैं। यही वजह थी कि उसने कानून की पढ़ाई चुनी ताकि कभी किसी के साथ अन्याय हो तो वह खुलकर लड़ सके। उस दिन अदालत में एक केस आया था। एक 14 साल के लड़के पर आरोप था कि उसने पास के ही दुकान से चोरी की है। लड़के का नाम अरुण था। चेहरा दुबला पतला, आंखों में डर और मासूमियत साफ झलक रही थी। पुलिस वाले उसे पकड़ कर लाए थे और लोग कह रहे थे कि यह लड़का जन्मजात चोर है। इसका कोई इलाज नहीं। मगर संध्या की नजरें जब उस पर पड़ी तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना छोटा
और मासूम दिखने वाला बच्चा चोर हो सकता है। उसने तुरंत उसकी तरफ से केस लड़ने का निश्चय कर लिया। अदालत में जब सुनवाई शुरू हुई तो अभियोजन पक्ष ने उसे चोर साबित करने के लिए लंबी-लंबी बातें कही। कहा कि यह लड़का पहले भी छोटी-मोटी चोरी कर चुका है और अब भी पकड़ा गया है। इसे सजा मिलनी ही चाहिए। लेकिन संध्या खड़ी हुई तो उसने साफ कहा कि केवल आरोप और अफवाहों से किसी बच्चे को अपराधी नहीं कहा जा सकता। उसने दलील दी कि अरुण का कोई परिवार ठीक से नहीं है। मां का देहांत हो चुका है और पिता दारू के नशे में डूबा रहता है। लड़का भूखा प्यासा गलियों में भटकता रहता है।
अगर उसने सचमुच रोटी का टुकड़ा उठाया भी है तो वह मजबूरी थी अपराध नहीं। संध्या की दलीलों ने जज को सोचने पर मजबूर कर दिया। आखिरकार कोर्ट ने अरुण को दोष मुक्त कर दिया और कहा कि इस बच्चे को किसी संस्था या जिम्मेदार व्यक्ति की देखरेख में रखा जाए। अदालत से निकलते समय अरुण की आंखों में आंसू थे। उसने संध्या के पैर पकड़ लिए और बोला दीदी अगर आप ना होती तो आज मैं जेल में होता। संध्या ने उसे उठाया और अपने पास बिठा लिया। वह सोचने लगी कि इस बच्चे को अब कहां भेजा जाए। संस्था में भेजने का मतलब था कि वहां वह फिर लाचार और अकेला हो जाएगा जैसा दर्द उसने खुद अपने
बचपन में महसूस किया था। अचानक उसके दिल में ख्याल आया कि क्यों ना वह खुद ही अरुण को अपने साथ रखे। अगले दिन उसने कोर्ट में अर्जी दी कि अरुण को उसकी देखरेख में रहने दिया जाए जिसे कोर्ट ने मान लिया। इस तरह अरुण संध्या के घर आ गया। शुरुआत में अरुण बहुत डरता था। उसे लगता था कि शायद यहां भी उसे डांटा जाएगा, मारा जाएगा। लेकिन संध्या ने उसे हमेशा प्यार से रखा। उसने उसे पढ़ाई में लगाया, अच्छे कपड़े दिलाए और सबसे बढ़कर उसे यह एहसास कराया कि वह अकेला नहीं है। धीरे-धीरे अरुण का जीवन बदलने लगा। उसके चेहरे पर चमक आने लगी और
पढ़ाई में भी वह अच्छा करने लगा। मोहल्ले वाले हैरान थे कि जो बच्चा कल तक चोर कहलाता था आज संध्या जैसी नामी वकील का साथ पाकर एकदम बदल गया है। लेकिन इस बीच समाज की निगाहें भी बदलने लगी। लोग कानफूसी करने लगे कि एक जवान अविवाहित औरत अपने घर में 14 साल के लड़के को रख रही है। न जाने इसका अंजाम क्या होगा। संध्या ऐसे तानों को नजरअंदाज करती थी, लेकिन अंदर ही अंदर वह भी परेशान रहने लगी थी। अरुण की मासूमियत उसे बहुत भाती थी। कभी-कभी वह सोच में पड़ जाती कि जैसे बचपन का अकेलापन उसने झेला था वैसे ही अरुण ने भी झेला है। शायद यही वजह थी कि वह उसकी
तरफ खिसती चली जा रही थी। अरुण भी धीरे-धीरे संध्या को सिर्फ दीदी नहीं समझने लगा था बल्कि उसके दिल में एक अजीब सा लगावपन अपने लगा था जिसे वह खुद समझ नहीं पाता था। एक दिन स्कूल में बच्चों ने अरुण का मजाक उड़ाया। कहा कि तू तो किसी दीदी के घर पल रहा है। तेरे मां-बाप तो है ही नहीं। अरुण रोता हुआ घर आया और संध्या से लिपट गया। संध्या ने उसके आंसू पोंछे और कहा अरुण अब मैं ही तेरे लिए सब कुछ हूं। तुझे किसी की कमी महसूस नहीं होने दूंगी। उस पल दोनों के बीच एक ऐसा रिश्ता जन्म ले रहा था जिसे नाम देना आसान नहीं था। समाज की दीवारें जरूर ऊंची थी लेकिन
दिल की भावनाएं उन दीवारों को तोड़ रही थी। आने वाले दिनों में वही भावनाएं एक ऐसे मोड़ पर पहुंचेंगी जहां संध्या और अरुण दोनों को एक ऐसा फैसला लेना पड़ेगा जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। अरुण अब संध्या के साथ रहते हुए धीरे-धीरे बदल चुका था। वह पहले जैसा डरपोक और सहमा हुआ लड़का नहीं रहा बल्कि आत्मविश्वास से भरा हुआ बच्चा बन चुका था। लेकिन उम्र के इस मोड़ पर उसका मन बार-बार विचलित हो जाता था। कभी वह अपने को बहुत छोटा महसूस करता तो कभी लगता कि संध्या ही उसकी पूरी दुनिया है। संध्या का जीवन भी अब अरुढ़ के बिना अधूरा लगने लगा था। वो सुबह उठते ही
उसके लिए नाश्ता बनाती। स्कूल भेजती, लौटने पर होमवर्क कराती और रात को उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहती, तू बिल्कुल अकेला नहीं है। मैं हूं तेरे साथ। धीरे-धीरे दोनों के बीच का रिश्ता गहरा था गया। लेकिन यह रिश्ता ऐसा था जिसे समाज ना समझ सकता था ना स्वीकार। मोहल्ले में चर्चा होने लगी कि एक अविवाहित महिला वकील अपने से 13 साल छोटे लड़के को पाल रही है। लोग फुसफुसाते कि आगे चलकर ना जाने क्या होगा। संध्या इन बातों की परवाह नहीं करती थी। पर कभी-कभी रात को अकेले में सोचती कि क्या सचमुच वह अरुण को अपनाकर कोई गलती कर रही है। लेकिन जैसे ही अरुण उसकी गोद में
सिर रखकर सो जाता सारे सवाल धुंधले हो जाते और उसे बस यही लगता कि वह सही कर रही है। अरुण की पढ़ाई में रुचि बढ़ती गई। उसने अच्छे अंक लाने शुरू कर दिए। स्कूल के अध्यापक भी अब उसकी तारीफ करने लगे थे। लेकिन बच्चे फिर भी उसे ताने देते। तेरी मां नहीं तेरे पास वकील दीदी है। यह बातें अरुण को चुभती और वह संध्या से कहता दीदी अब मुझे मां क्यों नहीं कहने देती? अगर मैं आपको मां कह दूं तो सबकी बातें खत्म हो जाएंगी। संध्या उसके भोलेपन पर मुस्कुरा देती लेकिन मन ही मन वो सोचती कि सच तो यह है कि वह मां से ज्यादा उसके लिए कुछ बन चुकी है। एक दिन अदालत में संध्या
एक बड़ा केस लड़कर लौटी। बहुत थकी हुई थी। अरुण भाग कर आया और बोला आप जीत गई ना दीदी? संध्या ने उसे गले लगाया और कहा हां तेरे विश्वास ने मुझे जिताया। उसी पल अरुण के दिल में यह बात पक्की हो गई कि वह संध्या के बिना जी ही नहीं सकता। समय बीतता गया। अरुण अब 15 साल का होने वाला था। उसकी ऊंचाई और शरीर का ढांचा तेजी से बढ़ रहा था। मोहल्ले के लोग अब और ज्यादा ताने देने लगे थे। कुछ लोग तो सीधे संध्या से कह देते। आपने इसे गोद लिया है तो कागज दिखाइए। वरना कल को मुसीबत होगी। संध्या इन सब से थक चुकी थी। एक रात वह अरुण को लेकर छत पर बैठी थी। ठंडी हवा चल रही थी।
अरुण ने संकोच भरे स्वर में कहा। दीदी अगर मैं हमेशा आपके साथ रहना चाहूं तो संध्या चौंक गई। उसने कहा तू हमेशा रहेगा मेरे साथ। इसमें क्या सवाल है? अरुण ने धीरे से कहा नहीं मतलब हमेशा जैसे पतिपत्नी रहते हैं। यह सुनकर संध्या सन्न रह गई। वह अरुण के चेहरे को देखती रही। वहां मासूमियत भी थी और दृढ़ता भी। उसने तुरंत कुछ नहीं कहा। बस उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा तू अभी बच्चा है अरुण तुझे इन सब बातों की समझ नहीं है लेकिन उस रात संध्या भी करवटें बदलती रही उसे बार-बार अरुण के शब्द याद आते रहे अगले दिन अदालत में केस लड़ते हुए भी उसका मन वहीं अटका रहा लौटकर
जब उसने अरुण को पढ़ाई करते देखा तो मन में अजीब सी शांति आई जैसे वह खुद को मान चुकी हो कि यह रिश्ता अब साधारण नहीं रहा। दिन गुजरते गए और समाज का दबाव बढ़ता गया। एक दिन स्कूल से खबर आई कि कुछ बच्चों ने अरुण को बहुत मारा है। सिर्फ इसलिए कि वह संध्या के घर रहता है। अरुण रोते हुए घर आया और बोला अगर हमारा रिश्ता दुनिया के सामने साफ नहीं हुआ तो लोग मुझे यूं ही सताते रहेंगे। संध्या अब टूट चुकी थी। वो नहीं चाहती थी कि अरुण वही दुख सहे जो उसने बचपन में सहा था। उसी रात दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि वे समाज से लड़ेंगे। चाहे जो भी हो। कुछ दिन बाद
उन्होंने एक ऐसा कदम उठाने का फैसला किया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। वह था शादी का फैसला। संध्या जानती थी कि यह कानूनी और सामाजिक दृष्टि से असंभव सा है। लेकिन उसके दिल ने मान लिया था कि अगर वह अरुण को सच्ची सुरक्षा देना चाहती है तो यह एकमात्र रास्ता है। अरुण ने भी जिद पकड़ ली थी कि वह शादी करेगा तो सिर्फ संध्या से वरना कभी नहीं। यह फैसला आसान नहीं था। रास्ते में कांटे ही काटे थे। लेकिन दोनों ने तय कर लिया था कि अब वह पीछे नहीं हटेंगे। अब सवाल यह था कि शादी कैसे होगी, कहां होगी और समाज के सामने कैसे टिक पाएगी? संध्या ने कानून की
किताबें पलटनी शुरू कर दी। अरुण ने भी मन में ठान लिया कि चाहे उसे कितना भी बड़ा विरोध क्यों ना झेलना पड़े वह पीछे नहीं हटेगा। अब इसी संघर्ष की शुरुआत होने वाली थी जो उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देगा। शादी का फैसला आसान नहीं था। संध्या यह बात भलीभांत जानती थी। उसने कानून की किताबें कई बार पलट कर देखी। उसमें साफ लिखा था कि शादी के लिए लड़के और लड़की दोनों की उम्र तय है। लड़के के लिए 18 और लड़की के लिए 21 से अधिक होना आवश्यक है। लेकिन अरुण तो अभी 15 का भी पूरा नहीं हुआ था। ऐसे में यह कदम कानूनन गुनाह माना जाएगा। फिर भी उसके दिल का दर्द उसे
लगातार झकझोर रहा था। उसने सोचा अगर वह कानून की पक्की वकील होते हुए भी अरुण के साथ खड़ी नहीं हो सकती तो फिर उसकी सारी पढ़ाई और सारी लड़ाईयां बेकार हैं। अरुण दिनरा इसी सोच में डूबा रहता कि आखिर कब वह समाज और स्कूल वालों के तानों से मुक्त होगा। उसका मन पढ़ाई से हटने लगा था। हर वक्त उसे डर सताता कि कहीं संध्या समाज के डर से उसे छोड़ ना दे। इसीलिए वह बार-बार संध्या से कहता दीदी आप अगर मुझसे शादी कर लेंगी तो सबकी जुबान बंद हो जाएगी। संध्या पहले तो उसे समझाने की कोशिश करती। कहती कि अभी वह बच्चा है। लेकिन धीरे-धीरे वह
भी समझने लगी कि अरुण का बच्चा होना केवल शरीर की दृष्टि से है। दिल और दिमाग से वह बहुत परिपक्व हो चुका है। जो दर्द उसने सहा है, उसने उसकी उम्र से बहुत आगे बढ़ा दिया है। इस बीच मोहल्ले के लोगों की बातें जहरीली होती जा रही थी। कोई कहता कि यह रिश्ता गलत है। कोई कहता कि संध्या अपने अकेलेपन को मिटाने के लिए लड़के का सहारा ले रही है। अदालत के कुछ साथी वकील भी ताने कसते कि दूसरों के केस लड़ते-लड़ते अपने जीवन में गड़बड़ कर रही हो। यह सब सुनकर संध्या टूटने लगी थी। लेकिन जब भी अरुण रोता हुआ उसके पास आता और उसका हाथ पकड़ कर कहता कि मुझे मत
छोड़ना दीदी। आप ही मेरी दुनिया हो तब संध्या को लगता कि चाहे जो हो जाए उसे अरुण का साथ नहीं छोड़ना है। एक दिन अरुण स्कूल से वापस आया तो उसके चेहरे पर चोट के निशान थे। कुछ बच्चों ने फिर उसे मारा था और कहा था कि तेरी वकील दीदी तुझे गोद लेकर बैठी है। कल को तुझे सड़क पर फेंक देगी। अरुण का धैर्य टूट गया। वह जोर-जोर से रोने लगा और बोला, “मुझे अब जीना नहीं है। अगर आप मेरे साथ नहीं रही, तो मैं सब खत्म कर दूंगा।” यह सुनकर संध्या का दिल दहल गया। उसे महसूस हुआ कि अब अगर उसने कोई ठोस कदम ना उठाया, तो अरुण कहीं खुद को नुकसान ना पहुंचा ले। उसी रात उसने
फैसला किया कि वह शादी करेगी। चाहे समाज क्या कहे, चाहे कानून क्या कहे। वह अरुण को अकेला नहीं छोड़ेगी। उसने सोचा कि शादी का तरीका ऐसा होना चाहिए कि लोग विरोध भी करें तो भी उसका आधार कमजोर हो। उसने इंटरनेट खंगाला, पुराने केस स्टडी पढ़े और जाना कि कहीं-कहीं ऐसे रिश्तों को विशेष परिस्थितियों में मान्यता मिल चुकी है। लेकिन खुलेआम शादी करना नामुमकिन था। तब उसने तय किया कि शादी गुपचुप होगी। केवल विश्वास पात्र लोग ही इसमें शामिल होंगे। उसने अपनी एक दोस्त राधा को अपने मन की बात बताई। राधा पहले तो चौकी बोली संध्या तुम समझ भी रही हो क्या यह समाज तुम्हें
जीने नहीं देगा लेकिन जब उसने संध्या और अरुण का दर्द सुना तो उसकी आंखें भी भर आई। उसने कहा अगर यह तुम्हारे और अरुण की जिंदगी बचाने का एकमात्र रास्ता है तो मैं तुम्हारे साथ हूं। संध्या को हिम्मत मिली। अगले कुछ हफ्तों तक उसने अरुण को मानसिक रूप से तैयार किया। समझाया कि यह कदम आसान नहीं है। लोग गालियां देंगे। शायद कानून भी सजा दे। लेकिन अगर वह उसके साथ है तो सब सह लेगी। अरुण ने दृढ़ता से कहा दीदी मैं तैयार हूं। आपके बिना मैं जी नहीं सकता। शादी का दिन तय हुआ एक छोटे से मंदिर में जहां ज्यादा लोग ना हो केवल पुजारी और राधा जैसी विश्वसनीय गवाह। उस
दिन सुबह अरुण ने पहली बार दर्पण में खुद को दूल्हे की तरह कल्पना की। संध्या ने पहली बार साड़ी पहनते हुए खुद को दुल्हन की तरह देखा। दोनों के दिल धड़क रहे थे। डर भी था और अजीब सा सुकून भी। जब मंदिर की घंटियां बजी और मंत्रों की आवाज गूंजी तो संध्या ने अरुण के साथ फेरे लिए। उस पल समाज की सारी दीवारें, कानूनी किताबों की सारी बंदिशें, मोहल्ले वालों की सारी गालियां सब फीकी पड़ गई। दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई, सिंदूर भरा गया और एक नया रिश्ता जन्म ले लिया। लेकिन यह रिश्ता जितना पवित्र उनके दिलों में था, उतना ही विवादास्पद समाज की नजरों में।
मंदिर से बाहर निकलते ही उन्हें लगा जैसे पूरी दुनिया उनका पीछा कर रही है और वास्तव में ऐसा ही हुआ। कुछ दिनों में यह खबर मोहल्ले में फैल गई। फिर अखबारों में भी सुर्खियां बनने लगी। 27 साल की महिला वकील ने 14 साल के लड़के से शादी की। लोग गालियां देने लगे। अदालत के साथी वकील अब उसे देखकर मुंह फेर लेते। अदालत में एक याचिका भी दायर कर दी गई कि संध्या ने नाबालिक से शादी कर अपराध किया है। अब जो आने वाला था वो एक तूफान था जिसमें उनका रिश्ता, उनका भविष्य और उनका जीवन सब दांव पर लगने वाला था। शादी की खबर जंगल की आग की तरह पूरे जिले में फैल गई। अखबारों के
पन्नों पर हेडलाइन बनी कि जिला अदालत की चर्चित वकील ने नाबालिग लड़के से शादी कर सब कुछ चौंकाया। टीवी चैनल भी इस पर बहस करने लगे। कोई इसे पागलपन कह रहा था तो कोई इसे महिला की अकेलेपन की बीमारी बता रहा था। कुछ लोग तो सीधे यह तक कह गए कि संध्या ने कानून की पढ़ाई करने के बावजूद कानून तोड़ा है। ऐसे व्यक्ति को वकालत का लाइसेंस छीन लेना चाहिए। अदालत में भी माहौल गर्मा गया। बार काउंसिल ने संध्या को नोटिस भेजा कि क्यों ना तुम्हारा लाइसेंस निलंबित कर दिया जाए और तो और पुलिस ने भी जांच शुरू कर दी कि नाबालिग लड़के के साथ शादी कर बाल विवाह अधिनियम
का उल्लंघन किया गया है। संध्या के लिए यह सबसे कठिन वक्त था। लेकिन उसके सामने अरुण खड़ा था। जिसकी आंखों में यह विश्वास था कि चाहे दुनिया कुछ भी कहे वो अकेला नहीं है। अरुण हर वक्त संध्या का हाथ पकड़ कर कहता आप डरिए मत। दीदी नहीं अब आप मेरी पत्नी हैं। मैं हमेशा आपके साथ हूं। संध्या टूटना चाहती थी। लेकिन अरुण की मासूम धड़ता उसे संभाले लेती थी। समाज की भीड़ घर के बाहर इकट्ठा होकर गालियां देती। कभी पत्थर भी फेंकती। मोहल्ले वाले अब उससे बात करना तो दूर उसके घर के सामने से गुजरना भी गुनाह मानने लगे थे। लेकिन संध्या को इन सब से फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि उसने एक बार तय कर लिया था कि यह रिश्ता निभाना है। अदालत में केस दर्ज हुआ। जज ने दोनों को बुलाया। माहौल तनावपूर्ण था। अरुण को देखकर जज ने सख्त लहजे में कहा। तुम्हारी उम्र क्या है? अरुण ने आत्मविश्वास से कहा। 15 साल। जज ने गुस्से से कहा। तो क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी उम्र में शादी करना कानून के खिलाफ है? अरुण ने सीना तानकर कहा। मुझे कानून का सब पता है। लेकिन मुझे यह भी पता है कि अगर मैंने संध्या जी से शादी ना की होती तो मैं जिंदा ही नहीं रहता। मैं खुद को खत्म कर देता। उन्होंने मुझे मां-बाप की तरह पाला है। समाज मुझे ताने देता था।
कोई मेरा नहीं था। अगर यह अपराध है तो मैं स्वीकार करता हूं। जज उसकी बातें सुनकर कुछ देर चुप हो गए। फिर उन्होंने संध्या की तरफ देखा और कहा। तुम्हें कानून की जानकारी है। तुमने यह सब क्यों किया? संध्या की आंखों से आंसू बह निकले। उसने कहा, मान्यवर, मैं जानती हूं कि कानून में उम्र की सीमा तय है। लेकिन कभी-कभी कानून से भी बड़ा इंसान का जीवन और उसकी भावनाएं होती हैं। मैंने बचपन में मां-बाप खोए। अकेलापन झेला। अरुण ने भी वही झेला। जब मैंने देखा कि यह बच्चा समाज के तानों से टूट रहा है। खुद को खत्म करने की सोच रहा है। तब मुझे लगा कि अगर मैं इसे अपना नाम
दे दूं, एक सुरक्षा दे दूं, तो यह जी उठेगा। मैं मानती हूं कि मेरा कदम कानून की किताबों में गलत है। लेकिन दिल की किताब में यह सही है। अदालत में सन्नाटा छा गया। कुछ लोग उसकी बातों को भावुकता मान रहे थे। कुछ लोग उसके साहस की दाद दे रहे थे। मामला गंभीर था इसलिए जज ने तुरंत कोई फैसला नहीं दिया और सुनवाई टाल दी। इस बीच मीडिया ने इसे और तूल दे दिया। लोग बहस करने लगे कि क्या दिल के रिश्ते कानून से बड़े हैं? कई महिला संगठनों ने संध्या का समर्थन भी किया। उनका कहना था कि अगर लड़का और लड़की दोनों की सहमति है और रिश्ता मजबूरी में बना है तो इसे केवल
अपराध कहना अन्याय है। लेकिन दूसरी ओर बाल संरक्षण संस्थाएं और कानून विशेषज्ञ सख्ती से कह रहे थे कि यह बाल विवाह है और इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए। इस बीच अरुण को स्कूल से भी निकाल दिया गया। कारण बताया गया कि उसकी शादी हो चुकी है। इसलिए वह अब नाबालिक छात्र की श्रेणी में पढ़ाई जारी नहीं रख सकता। यह खबर अरुण के लिए सबसे बड़ा झटका थी। वो रोते हुए संध्या से बोला, अब मैं पढ़ भी नहीं सकता। सब खत्म हो गया। संध्या ने उसे गले लगाते हुए कहा, नहीं अरुण, यह खत्म नहीं हुआ। यह तो बस शुरुआत है। मैं लडूंगी तेरे हक के लिए जैसे हर केस में लड़ी हूं। अगले ही दिन
संध्या ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की कि अरुण की शिक्षा का अधिकार छीना क्या है? और शादी को केवल अपराध मानना उसके जीवन के साथ अन्याय है। सुनवाई के दौरान संध्या ने तर्क दिया कि कानून का मकसद बच्चों का शोषण रोकना है। लेकिन इस मामले में कोई शोषण नहीं हुआ बल्कि जीवन बचाने के लिए कदम उठाया गया है। उसने कहा कि अगर कानून इंसान के जीवन और भावनाओं को बचाने में असमर्थ हो तो उसे मानवीय दृष्टि से देखना चाहिए। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अरुण की पढ़ाई पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया और आदेश दिया कि उसे शिक्षा जारी रखने दी जाए। यह संध्या की पहली जीत
थी। हालांकि शादी को लेकर कानूनी लड़ाई जारी रही, लेकिन इस बीच समाज का नजरिया धीरे-धीरे बदलने लगा। कुछ लोग अब कहने लगे कि शायद संध्या ने गलत नहीं किया। उसने एक अनाथ लड़के की जिंदगी बचाई। अरुण अब पढ़ाई में और तेज हो गया। वह हर वक्त यह साबित करने में जुट गया कि संध्या का फैसला गलत नहीं था। उसने स्कूल में अच्छे अंक लाने शुरू कर दिए और खेल कूद में भी नाम कमाने लगा। अखबारों ने फिर खबर छापी। नाबालिक दूल्हा अब पढ़ाई और खेल में चमका। समय बीतता गया। अरुण 18 साल का हो गया। उस दिन संध्या ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा,
अब हमारा रिश्ता कानून के हिसाब से भी वैध है। अरुण मुस्कुराया और बोला, हमारा रिश्ता तो उसी दिन वैध हो गया था जिस दिन आपने मेरा हाथ थामा था। समाज जिसने कभी उन्हें गालियां दी थी, अब धीरे-धीरे उन्हें सम्मान देने लगा। अदालत ने भी अंत में फैसला सुनाते हुए कहा कि हालांकि शादी के वक्त कानून का उल्लंघन हुआ था, लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए यह रिश्ता अब मान्य माना जाता है। संध्या ने अरुण का हाथ कसकर थाम लिया। उसकी आंखों में संतोष था कि उसने जिस बच्चे को तानों और दर्द से बचाने के लिए लड़ाई लड़ी थी, आज वह बच्चा आत्मनिर्भर और सफल बन रहा था। अरुण ने
अपनी पढ़ाई पूरी कर वकालत की डिग्री ली और संध्या के साथ अदालत में खड़े होकर कहा, “अब हम दोनों मिलकर हर उस बच्चे का केस लड़ेंगे जिसे समाज और हालात ने अकेला छोड़ दिया है। वो दिन संध्या और अरुण के लिए जीत का दिन था। ना सिर्फ कानून की नजर में बल्कि दिल की नजर में भी। उनकी कहानी यह साबित कर चुकी थी कि प्यार और अपनापन उम्र, कानून और समाज की सीमाओं से कहीं बड़ा होता है। इस तरह वह रिश्ता जो कभी समाज की नजर में अपराध था अब प्रेरणा बन गया और संध्या और अरुण की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो इस वीडियो को एक लाइक जरूर दीजिए और
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