इंटरव्यू देने आया था पति। ऑफिस में बॉस बनकर बैठी थी तलाकशुदा पत्नी। फिर जो हुआ इंसानियत रो पड़ी क्योंकि 4 साल पहले जो रिश्ता टूट कर बिखर गया था। आज वही दो चेहरे फिर आमने-सामने थे। एक तरफ थी वक्त से जीती हुई वह पत्नी जो आज बॉस थी। और दूसरी तरफ वक्त से टूटा हुआ वह पति जो हालात का मारा था। पर इस बार कहानी प्यार की नहीं इम्तिहान की थी। दोस्तों सुबह के 8:00 बजे थे। दिल्ली के नेहरू प्लेस की सड़कों पर ऑफिस जाने वालों की भीड़ लगी थी। कई लोग मेट्रो की तरफ भाग रहे थे। कई सड़क किनारे चाय के ठेले पर भीड़ थी। सर्दी का मौसम था। हवा में हल्की धुंध थी।
और सूरज की रोशनी अब भी शहर की ऊंची इमारतों के पीछे अटकी हुई थी। फुटपाथ के किनारे एक आदमी खड़ा था। राहुल शर्मा, हाथ में नीली फाइल, कंधे पर बैग और चेहरे पर बेचैनी का साया। वो बार-बार घड़ी देख रहा था। अगर देर हो गई तो शायद मौका निकल जाएगा। उसने खुद से बुदबुदाया और सामने से आते ऑटो को हाथ दिखाया। ऑटो। रुको भैया। ऑटो रुक गया। ड्राइवर ने पीछे मुड़कर कहा। कहां चलना है भाई साहब? राहुल ने जल्दी से जवाब दिया। साकेत सिल्वरटेक कंपनी बैठ जाइए। उसने कहा और ऑटो धीरे-धीरे भीड़ में घुल गया। सड़क पर गाड़ियों की लंबी कतार थी। हर कोई अपने वक्त से लड़ रहा था। पर
राहुल की लड़ाई कुछ और थी। वह अपने अतीत से, अपनी तकदीर से और अपने डर से लड़ रहा था। 6 महीने से बेरोजगार था वो। हर इंटरव्यू हर कॉल बस उम्मीद बनकर रह जाती थी। आज फिर एक मौका था। नया इंटरव्यू, नई कंपनी, नई शुरुआत। लेकिन दिल के किसी कोने में वही डर छिपा था। कहीं यह भी बाकी मौकों जैसा ना हो जाए। ऑटो सिग्नल पर रुका। बगल में छोले भटूरे का ठेला था। राहुल ने देखा। वह वही ठेला था जहां वह कॉलेज के दिनों में अपने दोस्तों के साथ खाया करता था। चेहरे पर एक पल को मुस्कान आई। फिर खुद ही मिट गई। अब पुरानी बातें सोचने का वक्त नहीं है। उसने धीरे से कहा
और सिर झुका लिया। सिग्नल हरा हुआ। ऑटो आगे बढ़ा। राहुल ने शीशे में अपना चेहरा देखा। थोड़ा पाउडर ठीक किया। फाइल सीने से लगाई। और खुद से कहा सब ठीक होगा राहुल सब ठीक होगा कुछ देर बाद ऑटो एक कांच की ऊंची बिल्डिंग के सामने रुका सिल्वटेक पीवीटी लिमिटेड लोग लैपटॉप बैग लिए अंदर जा रहे थे किसी को इंटरव्यू था किसी की मीटिंग हर चेहरा किसी नए सफर पर निकला हुआ लगता था यहीं तक था ना भाई साहब हां भैया कितना हुआ 120 राहुल ने पैसे निकाले ले रख लीजिए भैया शुभ दिन आपका भी उसने मुस्कुरा कर कहा राहुल ने गहरी सांस ली और बिल्डिंग के
अंदर चला गया रिसेप्शन पर बोला हेलो मैं राहुल शर्मा इंटरव्यू के लिए आया हूं रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुरा कर कहा श्योर सर 5 मिनट रुकिए आपका इंटरव्यू हमारे सीईओ लेंगी नेहा कपूर बस इतना सुनना था कि उसके भीतर जैसे सब रुक गया। सांसे तेज हाथ कांपते हुए आंखें खाली। वो धीरे से कुर्सी पर बैठ गया। नेहा कपूर 4 साल पहले यही नाम उसके दिल की धड़कन थी। और आज वही नाम फिर उसके सामने था। बस रिश्ता बदल गया था। सर नेहा मैम बुला रही है। रिसेप्शनिस्ट की आवाज ने उसे हकीकत में खींच लिया। उसने फाइल उठाई। बैग ठीक किया और कॉन्फ्रेंस रूम की तरफ बढ़ा। दरवाजा खुला। अंदर वही
थी। नेहा सूट में साफ सुथरा लुक। चेहरे पर आत्मविश्वास और आंखों में हल्की कठोरता। वो वही थी। पर अब कोई और लग रही थी। राहुल धीरे-धीरे आगे बढ़ा और सामने की कुर्सी पर बैठ गया। नेहा ने फाइल उठाई। बिना ऊपर देखे बोली स डाउन मिस्टर राहुल शर्मा वो बैठ गया कुछ देर कमरे में सिर्फ खामोशी थी फिर नेहा ने बात शुरू की तो राहुल शर्मा आपके पास तीन साल का अनुभव है जी मैम उसने धीरे से कहा मैं एटलस टेक अमित प्रोजेक्ट असिस्टेंट था फिर कंपनी बंद हो गई अच्छा नेहा ने सिर हिलाया टीम हैंडल करने का अनुभव थोड़ा बहुत मैम अगर कोई प्रोजेक्ट
टाइम से पहले डिलीवर करना हो तो आप क्या करेंगे? टाइम मैनेजमेंट और टीम को प्रोत्साहित रखूंगा। मैम नेहा ने हल्की मुस्कान दी। फाइल बंद की और पहली बार ऊपर देखा। उनकी नजरें मिली। सिर्फ 2 सेकंड के लिए पर राहुल को लगा जैसे 4 साल वापस लौट आए। नेहा ने नजरें झुका ली। आपकी बातों में ईमानदारी है। वह बोली, ठीक है राहुल, आप यह जॉब कर सकते हैं। राहुल ने हैरानी से देखा, मैम मतलब नेहा ने उसकी बात पूरी की। हां, नौकरी आपकी है। कल से जॉइ कर सकते हैं। राहुल ने चुपचाप सिर झुका लिया। थैंक यू मैम। आवाज में वही पुराना कंपन था। वो उठा। धीरे-धीरे दरवाजे की तरफ
बढ़ा। पर दरवाजे तक पहुंचतेपहुंचते उसके कदम रुक गए। पीछे मुड़कर देखा नेहा अब फिर फाइल में खोई हुई थी। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। वो बाहर आया। लॉबी में वही भीड़ थी। वही लोग वही शोर। लेकिन उसके भीतर सब कुछ शांत था। डर भी गुस्सा भी और शायद प्यार भी। लिफ्ट में उतरते हुए उसने खुद से कहा। कभी-कभी जिंदगी इतनी बेरहम होती है कि हमें वही चेहरा दोबारा दिखाती है जिससे हम भाग रहे होते हैं। ऑफिस से सीधे राहुल घर पहुंचा। दरवाजा खोला, जूते उतारे और बिना कुछ बोले अपने कमरे में चला गया। कमरा बिल्कुल शांत था। उसने बैग नीचे रखा। बाल
ठीक किए और धीरे से लाइट बंद कर दी। अंधेरा छा गया। बस खिड़की से आती हल्की चांदनी दीवार पर फैल गई थी। वह बिस्तर पर बैठा रहा। कुछ पल तक बिल्कुल चुप। दिल अब भी तेज धड़क रहा था। चेहरे पर वही बेचैनी थी। नेहा का चेहरा बार-बार सामने आ रहा था। वही आंखें, वही आवाज। राहुल ने सिर तकिए पर रखा। आंखें बंद की। और बस सब कुछ धीरे-धीरे धुंधला होने लगा। उसके सामने जैसे अतीत के एक-एक पन्ने खुलने लगे। 4 साल पहले की वह बातें, वह जगह, वह हंसी, वो लम्हे जहां जिंदगी कुछ और ही थी। जहां नेहा बस एक नाम नहीं। उसकी पूरी दुनिया थी। 4 साल पहले की बात है। दिल्ली
यूनिवर्सिटी के लॉन में हल्की धूप फैली थी। चारों तरफ नए छात्रों की भीड़ थी। हंसी, हलचल और कॉफी की खुशबू हवा में घुली थी। यही भीड़ में एक लड़का चल रहा था। राहुल शर्मा साधारण कपड़ों में पर चेहरा ऐसा जो आत्मविश्वास से भरा था। वो पहली बार कॉलेज आया था। थोड़ा घबराया थोड़ा उत्साहित। भीड़ के बीच में से गुजरते हुए अचानक किसी से टकरा गया। फाइल नीचे गिरी। कागज जमीन पर बिखर गए। ओह सॉरी। एक लड़की झुकी। वह भी झुका। दोनों के हाथ एक ही कागज पर जा मिले। राहुल ने सिर उठाया। सामने थी नेहा कपूर। अमीर बाप की इकलौती बेटी। सफेद सलवार पर हल्का नीला दुपट्टा।
चेहरे पर सादगी और चाल में नरमी। वो बोली मेरी गलती थी। माफ कीजिए। राहुल ने मुस्कुरा कर कहा। नो प्रॉब्लम। नए हो? उसने पूछा। हां। नेहा ने जवाब दिया। पहचान लिया था। यह डर, यह फाइल और यह उलझे बाल। फ्रेशर की पहचान यही होती है। दोनों हंस पड़े। बस यहीं से एक अनकही कहानी शुरू हुई। दिन बीतने लगे। हर रोज कैंटीन में किसी ना किसी बहाने राहुल आ जाता। कभी नोट्स मांगने, कभी कॉफी ट्रेड देने, धीरे-धीरे उनकी बातें लंबी होने लगी। और साथ बिताए पल गहराते गए। नेहा के चेहरे पर जब भी मुस्कान आती राहुल का दिन बन जाता नेहा हमेशा कहती तुम बहुत अच्छे दोस्त हो
राहुल और राहुल हर बार वही मुस्कान ओढ़ लेता जो उसके दिल की बात छुपा देती थी उसे एहसास था कि वो नेहा से प्यार करता है लेकिन नेहा की दुनिया उससे बहुत अलग थी वो आलीशान बंगलों में रहती थी और राहुल किराए के छोटे से कमरे में फिर भी वो हर रोज उसकी हंसी का कारण बनने की कोशिश करता। क्लास खत्म होने के बाद दोनों लॉन में बैठते। राहुल कहता नेहा एक दिन मैं कुछ बड़ा बनूंगा। तुम गर्व करोगी मुझ पर। नेहा मुस्कुरा देती तुम्हारे सपने बहुत प्यारे हैं। राहुल बस हकीकत से थोड़ा दूर है। राहुल उस बात पर हंस देता। लेकिन अंदर कहीं वो शब्द चुभ जाते। तीन साल ऐसे ही
गुजरे। दोनों एक दूसरे की जिंदगी बन गए। बिना कहे बिना माने। राहुल के लिए वह दोस्ती से कहीं आगे था और नेहा के लिए बस एक अच्छा दोस्त। कॉलेज का आखिरी दिन आया। लॉन में सब फोटो खिंचवा रहे थे। दोस्त गले मिलकर रो रहे थे। राहुल ने नेहा को बुलाया। नेहा एक बात कहनी है। वो चुपचाप खड़ी रही। मैं तुमसे प्यार करता हूं। बहुत नेहा कुछ पल तक देखती रही। फिर हल्के से हंसी राहुल तुम अच्छे हो पर शायद बहुत बड़े सपने देख लिए तुमने। मतलब मतलब हम दोस्त थे और बस दोस्त रहेंगे। मेरे पापा कहते हैं जिंदगी में क्लास और स्टेटस बहुत मायने रखते हैं। मैं एक बिजनेसमैन की बेटी
हूं। और तुम तुम एक मिडिल क्लास लड़के हो। राहुल का चेहरा उतर गया। वह कुछ बोलना चाहता था। पर शब्द गले में अटक गए। नेहा ने बस इतना कहा। तुम्हारी जगह मेरे दिल में हमेशा दोस्त की रहेगी। प्यार की नहीं। वो चली गई। राहुल वहीं खड़ा रह गया। हाथ जेब में आंखों में नमी और होठों पर वही मुस्कान जो अब सिर्फ दर्द छुपाने के लिए थी। उस दिन के बाद दोनों कभी नहीं मिले। राहुल ने अपनी जिंदगी को काम में झोंक दिया। और नेहा ने अपने परिवार की इच्छा के अनुसार कॉर्पोरेट दुनिया में कदम रखा। राहुल ने धीरे से आंखें खोली। कमरे की लाइट अब भी बंद थी। पर दिल के भीतर का
अंधेरा बहुत बढ़ गया था। वो बिस्तर से उठा। आईने में खुद को देखा। अब मैं वो राहुल नहीं हूं। उसने कहा जो किसी की बातों से टूट जाए। अगली सुबह सर्द हवाओं के बीच। राहुल फिर उसी बिल्डिंग सिल्वटेक पीवीटी लिमिटेड के बाहर खड़ा था। इस बार उसके कदमों में झिझक नहीं थी बल्कि दृढ़ता थी। रिसेप्शन पर मुस्कुराया गुड मॉर्निंग। रिसेप्शनिस्ट बोली गुड मॉर्निंग सर। राहुल ने कहा आज से मैं जॉइ कर रहा हूं। वो लिफ्ट में चढ़ा और मन ही मन एक बात दोहराई। अब अतीत नहीं। बस काम और खुद की पहचान। लिफ्ट धीरे-धीरे ऊपर जा रही थी। हर मंजिल के साथ उसके भीतर कुछ न कुछ उतरता
जा रहा था। घबराहट, डर और वो यादें जो उसे कमजोर बनाती थी। अब बस राहुल था। प्रोफेशनल, आत्मविश्वासी और नई शुरुआत के लिए तैयार। लिफ्ट खुली, उसने कदम बढ़ाया और अपने केबिन की ओर चला गया। टेबल पर उसका नाम लिखा था राहुल शर्मा प्रोजेक्ट लीड क्लाइंट कम्युनिकेशन वह कुछ पल खड़ा रहा फिर मुस्कुराया हां अब यही मेरी दुनिया है सुबह की मीटिंग शुरू हुई टीम के कुछ लोग उसे ज्वाइन कराने आए राहुल ने सबको विनम्रता से नमस्कार किया वह अब हर शब्द सोच समझ कर बोल रहा था ना ज्यादा ना कम कॉन्फ्रेंस रूम में नेहा पहले से मौजूद थी। उसकी नजरें सीधी थी। लेकिन उनमें अब
वह पुराना कंपन नहीं था। बस एक सीईओ की स्थिरता थी। लेट स्टार्ट। नेहा ने कहा। राहुल ने स्लाइड्स खोली। आवाज में आत्मविश्वास था। पर दिल के किसी कोने में अतीत का कोई सिरा अब भी झिलमिला रहा था। प्रेजेंटेशन खत्म हुआ। नेहा ने कहा गुड जॉब। मिस्टर शर्मा। बस इतना ही। पर राहुल के लिए यह शब्द किसी पुरानी पहचान के पुनर्जन्म जैसे थे। दिन धीरे-धीरे बीतने लगे। ऑफिस का रूटीन, रिपोर्ट्स, मीटिंग्स सब एक लय में चल रहा था। नेहा और राहुल के बीच बात अब सिर्फ काम तक सीमित थी। पर उनकी चुप्पी में भी एक इतिहास बसा था। कभी किसी प्रोजेक्ट के दौरान जब दोनों की राय
अलग होती तो कमरा ठहर जाता था। जैसे हवा को भी पता हो कि यह दो लोग एक समय में एक दूसरे की धड़कन थे। एक शाम राहुल देर तक ऑफिस में बैठा रहा। सारे लोग जा चुके थे। वो अपनी रिपोर्ट टाइप कर रहा था। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। नेहा थी। अभी तक यहीं जी मैम। रिपोर्ट अधूरी थी। इतनी मेहनत क्यों? क्योंकि अब कोई गलती की गुंजाइश नहीं है। नेहा ने कुछ पल तक उसे देखा। फिर हल्के स्वर में कहा, “तुम बहुत बदल गए हो।” राहुल ने मुस्कुरा कर कहा, वक्त सबको बदल देता है। मैम, नेहा चुप रही। वो चली गई पर उसके शब्द राहुल के दिल में रह गए। तुम बहुत बदल गए हो। रात को घर
लौटते वक्त राहुल ने खुद से कहा, हां, बदला तो हूं। कभी किसी की वजह से टूटा था। अब खुद अपनी वजह से बना हूं। अगली सुबह राहुल को एक नया असाइनमेंट मिला। क्लाइंट मीटिंग का प्रेजेंटेशन उसे ही लीड करना था। यह वही प्रोजेक्ट था जिस पर कंपनी की प्रतिष्ठा टिकी थी। नेहा ने खुद उसे बुलाकर कहा। इस बार तुम बोलोगे। मुझे भरोसा है तुम इसे संभाल लोगे। राहुल ने हल्की मुस्कान दी। मैं पूरी कोशिश करूंगा। मैम अगले दिन कॉन्फ्रेंस हॉल में मीटिंग शुरू हुई। क्लाइंट्स सामने बैठे थे। राहुल ने स्लाइड्स खोली। आवाज में सधेपन के साथ आत्मविश्वास था। उसने पूरे प्रोजेक्ट की
प्रस्तुति इस तरह दी कि हर लाइन में मेहनत और ईमानदारी झलक रही थी। सबके चेहरों पर संतोष था। नेहा ने सिर्फ सिर हिलाया। वो मुस्कुराई नहीं। पर राहुल समझ गया कि उसने मंजूरी दे दी है। मीटिंग खत्म हुई तो तालियां बजी। लोग उसे बधाई देने लगे। पर राहुल की निगाह बस एक चेहरे पर टिक गई। वो चेहरा अब भी शांत था। पर शायद उसकी आंखों में कोई अनकहा गर्व था। उस शाम जब सब जा चुके थे। राहुल फाइल समेट रहा था। तभी पीछे से आवाज आई। कॉफी लोगे? वो पलट कर देखा। नेहा थी। पहली बार उसने उसे यूं सहज स्वर में कुछ कहते सुना था। जी मीटिंग के बाद आमतौर पर लोग थोड़ा रिलैक्स करते हैं।
तुम तो सीधे काम में लग गए। राहुल ने धीरे से कहा अब आदत हो गई है। मैम काम ही मेरा सुकून है। नेहा ने सिर झुकाया। सुकून काम में मिलता है या खुद से भागने में? वो सवाल राहुल के दिल में उतर गया। वह कुछ पल चुप रहा। फिर बोला शायद दोनों में थोड़ा-थोड़ा मैम नेहा मुस्कुराई कल सुबह तक फाइनल रिपोर्ट दे देना वो चली गई पर पहली बार उसकी मुस्कान में राहुल को वही पुरानी गर्मी महसूस हुई जो 4 साल पहले उसके हर गुड लक में होती थी। रात को राहुल देर तक नींद में नहीं जा पाया। वो छत की तरफ देखता रहा। सोचता रहा कि क्या वक्त वाकई सब कुछ बदल देता है या फिर सिर्फ
रिश्तों के नाम बदलते हैं। एहसास वही रह जाते हैं। अगली सुबह ऑफिस में जब वह पहुंचा तो दरवाजे के पास नेहा खड़ी थी। गुड मॉर्निंग मिस्टर शर्मा। उसने कहा गुड मॉर्निंग मैम। राहुल ने उत्तर दिया। आज मीटिंग जल्दी है। वो बोली और उसके बाद लंच मेरी तरफ से। राहुल ने चौंक कर देखा। मैम नेहा ने बस मुस्कुराया। एक सीईओ कभी किसी स्टाफ को लंच पर नहीं बुलाती। लेकिन एक पुरानी दोस्त शायद बुला सकती है। राहुल चुप रहा। दिल में कुछ हल्का सा कापा। वक्त ने दोनों को अलग रास्तों पर भेजा था। पर शायद अब जिंदगी फिर किसी मोड़ पर उन्हें आमने-सामने ला रही थी। जहां सवाल वही थे।
बस जवाब नए होने वाले थे। राहुल की उंगलियां टेबल पर रखी फाइल पर टिकी थी। पर दिमाग कहीं और भटक रहा था। नेहा का लंच मेरी तरफ से कहना उसके कानों में जैसे बार-बार गूंज रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था। यह एक सीईओ का औपचारिक निमंत्रण था। या 4 साल पुराने किसी अधूरे रिश्ते की दस्तक लंच ब्रेक में जब दोनों कैफे पहुंचे। नेहा ने खिड़की के पास वाली सीट चुनी। दोनों के बीच वही पुरानी खामोशी थी जो कभी बहुत कुछ कहती थी। अब भी बस कहे जाने का इंतजार कर रही थी। कैसे हो राहुल? नेहा ने आखिर पूछा। राहुल मुस्कुराया। ठीक हूं। काम अच्छा चल रहा है और दिल राहुल ने
उसकी आंखों में देखा। वो सवाल किसी इंटरव्यू जैसा नहीं था। बल्कि किसी अधूरे इजहार जैसा लगा। उसने नजरें झुका ली। अब उस पर काम बाकी है। नेहा हल्के से मुस्कुराई। तुम आज भी वही राहुल हो। साफ सच्चे और थोड़े जिद्दी। राहुल ने पहली बार खुलकर उसकी तरफ देखा और तुम आज भी वही नेहा हो। जो अपनी बात मुस्कान में छुपा लेती है। दोनों की हंसी टकराई और बीच में फैली खामोशी जैसे गलने लगी। कुछ पल बाद नेहा ने कहा राहुल जिंदगी ने हम दोनों को बहुत दूर घुमा दिया पर शायद अब वक्त हमें एक ही रास्ते पर लाना चाहता है। राहुल ने धीरे से पूछा और अगर वह रास्ता दोबारा
दर्द तक ले जाए तो नेहा ने जवाब दिया तो इस बार साथ चलेंगे अकेले नहीं। वो लंच जैसे किसी नई शुरुआत की मीठी झलक थी। दोनों बाहर निकले तो मौसम ठंडा हो चला था। दिल्ली की सर्द हवा में हल्की धूप घुली थी। नेहा ने कहा, मैं तुम्हें ड्रॉप कर दूं। राहुल ने इंकार किया। नहीं, मैं खुद चला जाऊंगा। पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। कुछ ही देर बाद राहुल की कार रिंग रोड पर मुड़ी ही थी। कि सामने अचानक एक ट्रक ने ब्रेक मारा। कार ने नियंत्रण खो दिया और जोरदार आवाज के साथ डिवाइडर से टकराई। लोग दौड़ पड़े। शहर की भीड़ में अफरातफरी मच गई। उसी वक्त नेहा को फोन
आया। मैम राहुल सर का एक्सीडेंट हो गया है। नेहा के हाथ से मोबाइल गिर गया। वो बिना कुछ सोचे गाड़ी घुमा दी। जब पहुंची तो सड़क पर वही चेहरा था। खून में लथपथ, आंखें बंद, होठों पर हल्की लकीरें। नेहा ने झुककर उसे बाहों में उठा लिया। राहुल, कुछ मत बोलो। मैं हूं यहां। वह दौड़ती हुई हॉस्पिटल पहुंची। डॉक्टरों ने आईसीयू में लिया। नेहा बाहर खड़ी कांपती रही। डॉक्टर बोले, हेड इंजरी है। अगला 24 घंटा बहुत क्रिटिकल है। नेहा ने सिर झुका लिया। बस इसे बचा लीजिए। बाकी सब मुझसे ले लीजिए। रात भर वह वहीं बैठी रही। आईसीयू के बाहर की बेंच पर। हाथों में राहुल की स्कार्फ,
आंखों में नमी, हर बीतता सेकंड उसके लिए सजा था। उसने खुद से फुसफुसाकर कहा, चार साल पहले मैंने तुझे खो दिया था। राहुल, इस बार खुदा भी चाहे तो नहीं खूंगी। सुबह की पहली किरण आईसीयू के शीशे से अंदर पहुंची। राहुल की उंगलियां हिली। डॉक्टर बाहर निकले। वो होश में आ रहे हैं। नेहा भागे अंदर। राहुल की आंखें धीरे-धीरे खुली। धुंधली निगाहों के बीच उसने नेहा को देखा। तुम उसकी आवाज कापी। नेहा ने मुस्कुराकर कहा, हां मैं जहां जाना नहीं चाहिए था वहीं रुकी रही। राहुल की पलकों से आंसू ब निकले। मुझे लगा तुम नफरत करती हो मुझसे। नेहा ने उसका हाथ थामा। नफरत
राहुल मैंने तो तुझे उसी वक्त माफ कर दिया था। जिस दिन तू मेरी जिंदगी से गया था। राहुल रो पड़ा। क्यों इतनी अच्छी हो तुम? नेहा ने धीरे से कहा क्योंकि तुझसे बुरा होना कभी सीख ही नहीं पाई। कमरे में सन्नाटा था। पर उस सन्नाटे में सालों का टूटा रिश्ता धीरे-धीरे जुड़ने लगा था। कुछ दिनों बाद राहुल हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुआ। नेहा ने खुद उसके घर तक छोड़ा। दरवाजे पर रुकते हुए राहुल बोला, नेहा, मैं कुछ कहना चाहता हूं। कहो क्या हम फिर से शुरुआत कर सकते हैं? नेहा ने बिना कुछ बोले बस मुस्कुरा दिया। मैं तो अब तक उसी मोड़ पर खड़ी हूं जहां तूने छोड़ा था।
राहुल की आंखों में नमी थी। वो धीमे से बोला तो चलो इस बार साथ चलते हैं और कभी पीछे नहीं मुड़ते। कुछ महीनों बाद दिल्ली के कनोट प्लेस के एक छोटे से मंदिर में फूलों की हल्की महक और शंख की आवाज के बीच नेहा ने राहुल के गले में मंगलसूत्र बांधा। उसकी आंखों में वही चमक थी जो कभी कॉलेज के लॉन में पहली बार देखी थी। राहुल ने आंसू पोंछे और बोला अब मैं किसी क्लास या स्टेटस की बेटी नहीं। बस तुम्हारे प्यार की पत्नी हूं। नेहा मुस्कुराई और मैं वही लड़का हूं जो अब हर हाल में तुम्हें संभालेगा। दोनों ने एक दूसरे को देखा। 4 साल का फासला 4 सेकंड में मिट
गया। रात को दोनों छत पर बैठे थे। ठंडी हवा चल रही थी। आसमान में वही चांद चमक रहा था। राहुल ने सिर नेहा के कंधे पर रखा और बोला वक्त ने हमें तोड़ा नहीं। बस थोड़ा घुमा दिया ताकि हम खुद को पहचान सके। नेहा ने उसका हाथ थामा। और जब दो लोग सच में एक दूसरे के लिए बने होते हैं तो जिंदगी चाहे जितनी परीक्षा ले अंत में जीत प्यार की ही होती है। चांद की रोशनी दोनों पर पड़ी। कहानी वही ठहर गई जहां उसे ठहरना था। खामोशियों में भी पूरा और अधूरापन मिटा देने वाला प्यार। कभी-कभी जिंदगी हमें गिरा कर नहीं। संभाल कर सिखाती है कि सच्चा प्यार लौट कर
जरूर आता है। बस इस बार हमेशा के लिए दोस्तों प्यार कभी स्टेटस नहीं देखता। बस दिल की सच्चाई देखता है। और अगर सच्चा हो तो वक्त चाहे कितना भी बीत जाए लौट आता है। लेकिन अगर कोई पुराना प्यार आपकी जिंदगी में फिर लौट आए। तो क्या आप उसे दोबारा अपनाएंगे? कमेंट में जरूर बताइए। और अगर इस कहानी ने आपके दिल को छुआ हो तो वीडियो को लाइक शेयर करें और चैनल स्टोरी बाय बीके को सब्सक्राइब जरूर करें। मिलते हैं अगली कहानी में तब तक इंसानियत निभाइए, मोहब्बत फैलाइए और किसी की मदद करने से पीछे मत हटिए। जय हिंद जय
News
हर दिन, उसका पति कंपनी में ओवरटाइम करने की ज़िद करता था, और ऊपर से, उसने अपनी शादी की अंगूठी भी उतारकर अपनी पैंट की जेब में रख ली। यह अजीब लगने पर, पत्नी ने चुपके से जांच की और एक भयानक सच्चाई जानकर हैरान रह गई।/hi
हर दिन, मेरे पति, रोहन, ऑफिस में ओवरटाइम मांगते थे, और ऊपर से, वह अपनी शादी की अंगूठी उतारकर अपनी…
मैंने अपनी तीनों बेटियों से बहुत कहा कि वे मेरे सबसे छोटे बेटे का 3 करोड़ रुपये का कर्ज़ चुकाने में मदद करें, लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया। मैंने गुस्से में कहा, “यह सच है, आप किसी भी चीज़ के लिए लड़कियों पर भरोसा नहीं कर सकते,” फिर कमरे में गया और कुछ निकाला… उन तीनों ने मेरे प्लान के बारे में सोचा भी नहीं होगा।/hi
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मेरी शादी की रात मेरे पति अपनी एक्स-गर्लफ्रेंड के साथ सोए, लेकिन अगली सुबह मैंने खुशी-खुशी उनके लिए कॉफी बनाई,…
मेरी मेड पिछले दो महीने से मेरे घर पर काम कर रही है, और हर सुबह वह 4 बजे उठकर बाहर जाती है। जब मैं उससे पूछती हूँ कि वह इतनी सुबह कहाँ जा रही है, तो वह कहती है कि वह एक्सरसाइज़ करने जा रही है, लेकिन वह हमेशा अपने साथ एक काला प्लास्टिक बैग रखती है।/hi
मेरी हाउसकीपर दो महीने से मेरे लिए काम कर रही थी, जब वह हर सुबह 4 बजे उठकर बाहर जाने…
मुझे लगा था कि एक बड़े आदमी से शादी करना बहुत बुरा होगा, लेकिन अचानक, अपनी शादी की रात, मैंने जल्दी से नहाया और आराम करने के लिए बिस्तर पर चली गई। मुझे हैरानी हुई, उसने मुझे जगाया और पाँच ऐसे शब्द कहे जिनसे मैं काँप उठी…/hi
मुझे लगा था कि एक बड़े आदमी से शादी करना बहुत बुरा होगा, लेकिन अचानक, हमारी शादी की रात, मैंने…
वह काफी देर तक चुप रहा। फिर उसने अपना बटुआ खोला और उसमें से फटी हुई पीली पड़ी एक तस्वीर निकाली।/hi
मुंबई के मार्च के आसमान में, ऊंची इमारतों पर हल्की धुंध और बारीक धूल छाई हुई थी, हवा ऑफिस में…
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