जिंदगी कभी-कभी तुम्हें ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां इंसानियत और इज्जत का असली इम्तिहान होता है। ऐसी ही एक सर्द रात थी। दिसंबर की कटीली हवा, गलियों में सन्नाटा और आसमान में धुंधली चांदनी। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे, नंदनगर में हर कोई अपने घरों में दुबका पड़ा था। लेकिन एक शख्स अब भी काम पर था। मनोज एक मेहनती और नेक दिल रिक्शा चालक। मनोज की उम्र कोई 35 के करीब होगी। लेकिन जिम्मेदारियों ने उसके चेहरे पर वक्त से पहले लकीरें खींच दी थी। दिन भर की कमाई बस इतनी होती कि घर का चूल्हा जल सके। बीवी की दवा आ जाए और बेटे की कॉपी किताबें ले सके। उस रात काम
खत्म कर वह घर लौटने ही वाला था कि उसकी नजर सड़क के किनारे एक बुजुर्ग पर पड़ी। सफेद धोती कुर्ता, कांपता शरीर और फटी हुई चप्पलें। लग रहा था जैसे वक्त ने इस आदमी को भुला दिया हो। मनोज ने ब्रेक दबाया। बाबा सब ठीक है। बुजुर्ग ने कांपती आवाज में कहा, बेटा क्या तुम मुझे घर छोड़ सकते हो? पैसे नहीं है लेकिन सर्दी बहुत है। मनोज बिना कुछ पूछे नीचे उतरा। अपना पुराना ऊनी शॉल निकाला और बुजुर्ग के कंधों पर डालते हुए बोला, “चलिए बाबा, बैठिए। यह सर्दी से बड़ी कोई मजबूरी नहीं होती। रिक्शा धीमे-धीमे गलियों से निकल पड़ा। रास्ते में बुजुर्ग को खांसी होने लगी।
मनोज ने एक चाय की दुकान पर रुक कर दो कुल्हड़ चाय मंगाई। बाबा चाय पी लीजिए। यह आपको राहत देगी। बुजुर्ग ने आंखें नम करते हुए कहा, तू फरिश्ता है क्या बेटा? मनोज बस मुस्कुराया और चुपचाप बैठा रहा। करीब आधे घंटे बाद वे एक पुराने मोहल्ले में पहुंचे। एक टूटा फूटा सा घर था। मनोज ने बुजुर्ग को सहारा दिया। दरवाजा खोला और उन्हें अंदर पहुंचाया। आपका घर तो यहां है। बुजुर्ग ने सिर हिलाया। हां बेटा। और आज तूने जो किया है उसका मोल पैसे से नहीं चुकाया जा सकता। भगवान तुझे बहुत देगा। मनोज कुछ जवाब देने ही वाला था कि बुजुर्ग ने दरवाजा बंद कर लिया। मनोज ने हल्के मन
से अपना रिक्शा मोड़ा और घर की ओर चल पड़ा। उसे नहीं पता था कि आज की यह रात उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ साबित होगी। अगली सुबह सूरज की पहली किरण अभी जमीन तक नहीं पहुंची थी कि मनोज के मोबाइल की घंटी बज उठी। वो अभी सोकर उठा ही था। आंखें मलते हुए कॉल उठाया। हेलो। दूसरी तरफ एक सख्त मगर शांत आवाज आई। क्या आप मनोज कुमार हैं? आप कल रात एक बुजुर्ग को सेक्टर सात में छोड़कर आए थे? मनोज का दिल तेजी से धड़कने लगा। जी हां पर क्या हुआ साहब? फोन की दूसरी तरफ पुलिस इंस्पेक्टर था। उसने कहा आपको तुरंत थाने बुलाया गया है। कुछ जरूरी बात करनी है। मनोज के हाथ
पैर ठंडे पड़ गए। वो घबराया नहीं। पर दिल में कई सवाल थे। क्या वो बुजुर्ग ठीक है? क्या कुछ गलत हो गया? कहीं उसने कोई गलती तो नहीं कर दी? 15 मिनट बाद मनोज थाने पहुंचा। अंदर घुसते ही तीन अफसर खड़े हो गए। आप वही हैं जिसने कल रात सेक्टर सात में एक बुजुर्ग को उनके घर छोड़ा। जी साहब लेकिन गलती क्या हो गई? मनोज डरते हुए बोला एक अफसर आगे आया और हाथ जोड़ते हुए कहा गलती आप तो देश के लिए मिसाल बन गए हैं। मनोज चौका। इंस्पेक्टर ने कहा जिस बुजुर्ग को आपने रात में छोड़ा वह कोई मामूली इंसान नहीं है। वह रिटायर्ड इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर रह चुके
हैं। श्री शेखरनाथ वर्मा दिल्ली से अचानक लापता हो गए थे। पिछले तीन दिन से उनकी तलाश हो रही थी। मनोज की आंखें फटी की फटी रह गई। वो उन्होंने तो कुछ बताया ही नहीं। और आपसे ही क्यों बात करते? एक वरिष्ठ अधिकारी मुस्कुराया। शायद वह इंसान पहचान लेते हैं कि किस में अब भी इंसानियत बची है। इसी बीच थाने के बाहर एक काली एसआई हुई रुकी। दो कमांडो जैसे जवान बाहर निकले और बोले मनोज जी साहब आपसे मिलना चाहते हैं? मनोज हक्का बक्का था। कार में बैठते ही वह उसी घर के बाहर पहुंचे जहां पिछली रात मनोज ने उन्हें छोड़ा था। शेखरनाथ वर्मा दरवाजे पर खड़े थे। वही मुस्कान,
वही सादगी। जैसे ही मनोज सामने आया उन्होंने बिना कुछ कहे उसे गले से लगा लिया। बेटा मैंने जिंदगी में बहुत कुछ देखा है लेकिन तुम्हारे जैसा दिल बहुत कम देखा है। तुमने बिना नाम बिना शक्ल सिर्फ इंसानियत की वजह से मेरी मदद की। इसलिए आज मैं चाहता हूं कि तुम्हें पूरे देश के सामने सलाम किया जाए। मनोज की आंखों से आंसू बह निकले। वो बस इतना ही कह पाया। साहब मैंने तो सिर्फ एक इंसान की मदद की। सुबह के 10:00 बजे का वक्त था। दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित सरकारी गेस्ट हाउस के प्रांगण में सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे। बाहर मीडिया की भीड़, अंदर अफसरों की हलचल
लेकिन सबका ध्यान एक ही व्यक्ति पर था। मनोज कुमार। जी हां, वही सादा मेहनती रिक्शा वाला जिसने एक बुजुर्ग को सर्द रात में निस्वार्थ भाव से घर पहुंचाया था। और अब उसी इंसान की इंसानियत को सलाम करने के लिए देश के बड़े-बड़े लोग जमा थे। मनोज को मंच पर बुलाया गया। वो कांपते कदमों से आगे बढ़ा। उसके पास ना महंगी पगड़ी थी, ना कोई सूटबूट सिर्फ एक साधारण धोती कुर्ता और नम आंखें। सामने खड़े थे। केंद्र सरकार के गृह मंत्री रक्षा सचिव और स्वयं श्री शेखरनाथ वर्मा। वर्मा साहब ने मंच पर माइक संभाला और कहा मैंने देश को बाहर से भी बचाया है और अंदर से भी। लेकिन
कल रात पहली बार मुझे लगा कि असली सुरक्षा किसी हथियार से नहीं बल्कि देश के आम नागरिक की संवेदना से आती है। उन्होंने अपनी जेब से एक तमगा निकाला। आज मैं अपना एक व्यक्तिगत सम्मान राष्ट्रीय सेवा प्रतीक इस व्यक्ति को समर्पित करता हूं क्योंकि इसने याद दिलाया कि भारत आज भी जिंदा है अपने छोटे-छोटे बेटों में। मनोज का सिर झुक गया पर आंखें भर आई। मंच पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंजी और तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे देश का दिल छू लिया। गृह मंत्री ने मंच पर माइक लेकर कहा। सरकार की तरफ से यह घोषणा करता हूं कि मनोज कुमार को जन कल्याण मिशन का दिल्ली
प्रतिनिधि नियुक्त किया जाता है। इन्हें अब देश भर में यात्रा करके लोगों को जागरूक करने का अवसर मिलेगा ताकि हम सब सीख सके कि सच्ची सेवा क्या होती है। मनोज स्तब्ध था। वह जो कल तक खुद अपनी बीमार मां के इलाज के लिए पैसे जोड़ रहा था। आज उसे खुद राष्ट्र सेवा का अवसर दिया जा रहा था। फोटोग्राफर लगातार तस्वीरें खींच रहे थे। चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी। रिक्शा चालक ने बचाया देश की आत्मा। पूर्व खुफिया प्रमुख की खोज ने दिलाया आम आदमी को राष्ट्रीय सम्मान। लेकिन इस सबके बीच मंच के एक कोने में खड़ी एक बूढ़ी औरत सबसे ज्यादा मुस्कुरा रही थी। मनोज की मां
वो फुसफुसाई। आज तू वाकई बड़ा बन गया बेटा। लेकिन जो तुझे बनाया वह तेरा सीधा दिल था। कोई ओहदा नहीं। मनोज के लिए अब हर सुबह पहले जैसी नहीं रही। गली मोहल्ले के लोग जो कभी उसे मामूली रिक्शा वाला समझते थे। अब सिर झुकाकर सलाम करते। टीवी चैनल, अखबार, YouTube हर जगह उसका नाम था। पर मनोज के चेहरे पर कोई घमंड नहीं था। उसकी आंखों में अब भी वही सादगी थी और उसकी दिनचर्या भी लगभग वैसी ही। बस अब रिक्शे की जगह उसके पास देश भर के सरकारी कार्यक्रमों में जाने का निमंत्रण था। एक दिन जब वह दिल्ली की ही एक स्कूल में बच्चों को संवेदना और सेवा पर भाषण देने
गया तो एक बच्चे ने पूछा सर आपने वह बुजुर्ग को क्यों मदद की? वो तो भिखारी भी हो सकते थे। मनोज थोड़ी देर चुप रहा। फिर धीमे से बोला बेटा भिखारी होने से कोई छोटा नहीं होता लेकिन हम मदद करने से बड़े बनते हैं। और किसी के कपड़े देखकर इंसान की इज्जत नहीं नापनी चाहिए। बच्चों ने तालियां बजाई। लेकिन उस जवाब ने वहां मौजूद हर टीचर को सोच में डाल