एक पिता जिसने अपना सब कुछ बेटे पर न्योछावर कर दिया। लेकिन जब बुढ़ापा आया तो उसी बेटे बहू ने उसे बोझ समझ कर साजिश रच डाली। झूठे इल्जाम लगाए और पुलिस के हवाले कर दिया। लेकिन फिर जो हुआ उसने पूरे परिवार को अंदर तक झकझोर दिया और वो आज के समाज की कड़वी सच्चाई भी है जिसे आजकल के झूठी दिखावे की जिंदगी में लोग भूलते जा रहे हैं। कहानी की पूरी सच्चाई जानने के लिए वीडियो को आखिर तक जरूर देखें। लेकिन कहानी में आगे बढ़ने से पहले वीडियो को लाइक करें, चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें ताकि आपका आशीर्वाद मिलता

रहे और हमारा हौसला बढ़ता रहे। दोस्तों, यह सच्ची कहानी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की है। जहां के रहने वाले राजन बाबू की जिंदगी पत्नी के गुजर जाने के बाद कुछ ऐसी हो चली थी। जैसे घर का सारा उजाला चला गया हो और अकेलापन उनके जीवन का स्थाई हिस्सा बन चुका हो। एक वक्त था जब उनके घर की दीवारें भी हंसती थी और अब वही दीवारें जैसे हर रोज उनकी तन्हाई पर रोती थी। इसी तन्हाई से बचने के लिए वह हर साल कुछ महीने अपने बेटे प्रभात के पास लंदन चले जाया करते थे। प्रभात एक बड़ी कंपनी में काम करता था और वही अपनी पत्नी प्रिया और दो बच्चों एना और नील के साथ रहता था।

राजन बाबू को बेटे से बहुत प्यार था। लेकिन बहू और पोते पोतियों की आदतें, बोलचाल, पहनावा सब कुछ उन्हें अजनबी सा लगता था। उन्हें लगता जैसे इस घर में रहते हुए भी वो किसी और ही देश में नहीं किसी और ही दुनिया में जी रहे हैं। बच्चे सुबह-सुबह स्कूल निकल जाते, प्रभात और प्रिया भी ऑफिस। और फिर पूरा दिन राजन बाबू घर की खामोश दीवारों को घूरते रहते। वह सोचते क्या यह वही जिंदगी है जिसके लिए मैंने सब कुछ छोड़ा था। यह कैसा देश है जहां अपने लोग भी अजंबी हो जाते हैं। कितनी बार उन्होंने प्रभात से कहा था बेटा चलो गांव चले अपने घर चलें। जहां रिश्तों

में गर्मी है, बातों में मिठास है और हर चेहरे पर अपनापन। चार दिन में सब सुधर जाएगा। मगर प्रभात हमेशा बात टाल देता। उस दिन भी राजन बाबू मन ही मन बड़बड़ाते हुए कुर्सी पर बैठे थे। तभी दरवाजे की घंटी बजी। जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला सामने सावित्री खड़ी थी। घर की सफाई और खाना बनाने वाली। उम्र कोई 55 से 56 की रही होगी। एक सीधी साधी भारतीय महिला जिसने बीते कुछ सालों में लंदन को ही अपना घर बना लिया था। राजन बाबू ने मुस्कुराकर दरवाजा खोला। आओ सावित्री बहन कैसे हो? सावित्री ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, ठीक हूं साहब। आप कैसे हो? जब भी सावित्री

घर आती थी, राजन बाबू को थोड़ा सुकून मिलता था। उससे बातें करते-करते समय कट जाता था। उस दिन अचानक उन्होंने पूछा, सावित्री बहन, तुम्हारा बेटा तो अब नहीं रहा। फिर वापस भारत क्यों नहीं गई? सावित्री एक पल को चुप हो गई। फिर गहरी सांस लेकर बोली, क्या करती साहब? जो थोड़ी बहुत जमीन जायदाद थी। वह बेटा बेचकर मुझे अपने साथ ले आया था। अब वहां मेरा कोई नहीं और यहां मेरी बहू जो विदेशी थी बेटे की मौत के बाद मुझे घर से निकाल दिया। तब से यही काम कर रही हूं। प्रभात साहब का बेटा मेरे बेटे का दोस्त था। उसी ने मुझे यहां रखा। लेकिन बोझ नहीं बनना चाहती थी

किसी पर। राजन बाबू की आंखें भर आई। दिल ही दिल में सोचने लगे। मैं भी तो यही गलती करने जा रहा हूं। बेटा कहता है सब बेच दो यही बस जाओ लेकिन अगर कभी कुछ हो गया तो अचानक उनकी सोच में रुकावट आई जब सावित्री ने कहा साहब खाना बन गया है आज आपकी पसंद की कढ़ी बनाई है आइए खा लीजिए बच्चे भी आते ही होंगे राजन बाबू ने जैसे ही डाइनिंग टेबल की तरफ रुख किया तभी पोती एना और पोता नील भी स्कूल से लौट आए लेकिन राजन बाबू का मन कभी उनके साथ खाने बैठने का नहीं करता था। वह चुपचाप अपनी थाली में खाना लगाकर एक कोने में बैठ गए। थोड़ी देर

बाद उन्होंने कहा, “सावित्री, मेरा चश्मा नहीं मिल रहा। देखो जरा कहीं रखा है क्या?” सावित्री ने जवाब दिया, साहब, मैंने तो एना के कमरे में देखा था। राजन बाबू जैसे ही कमरे में दाखिल हुए, एना जोर से चिल्ला पड़ी। हाउ डेयर यू? डोंट यू नो हाउ टू नॉक? यू आर इन माय रूम। राजन बाबू हकबका गए। बेटा माफ कर मुझे ध्यान नहीं रहा। बस चश्मा लेने आया था। लेकिन एना का गुस्सा जैसे थमता ही नहीं था। राजन बाबू थरथराते हुए बाहर निकल गए। आंखों से आंसू बहने लगे। बाहर आकर सावित्री ने उनका चश्मा लाकर दिया। साहब यह लंदन है। यहां ना तो कोई रिश्तों की गर्मी समझता है ना

ही किसी का दर्द। आप इतना परेशान मत होइए। बच्ची है। कुछ भी कह गई होगी। राजन बाबू ने कहा नहीं सावित्री अब मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगा। अपना सामान पैक कर लिया है। चलो तुम्हारे घर चलता हूं। कहीं तो होटल मिल ही जाएगा। जब प्रभात आएगा तब देखूंगा। सावित्री ने घबरा कर कहा अरे साहब कहां जाएंगे आप इस उम्र में? आप तो हमारे रूम पर चलो। जब प्रभात आएगा तब बात करेंगे। राजन बाबू ने हामी भरी और दोनों घर से निकल गए। एना और नील खिड़की से उन्हें जाते देख रहे थे और फिर एक दूसरे को देखकर हंसते हुए बोले वाओ व्हाट ए लव स्टोरी दादू मेड के घर रहने चले गए और

दोनों जोर-जोर से हंस पड़े। राजन बाबू सावित्री के छोटे से घर में पहुंच चुके थे। छोटा जरूर था वो घर मगर उस घर में एक अपनापन था। एक शांति थी जो राजन बाबू को अपने आलीशान बेटे के घर में भी महसूस नहीं होती थी। सावित्री ने बड़ी आत्मीयता से उन्हें अपने घर में जगह दी। वही एक पुरानी सी कुर्सी पर बैठते हुए राजन बाबू बोले तुम्हें यहां क्या मिल रहा है सावित्री जो इतनी दूर सात समंदर पार बिना किसी अपने के अकेली जी रही हो चलो मेरे साथ मेरे गांव चलो मुझे भी बहन का साथ मिल जाएगा और तुम्हें भाई का सहारा सावित्री कुछ देर चुप रही फिर आंखें पोंछते हुए बोली भैया

जब तक मैं यहां हूं मुझे लगता है मेरा बेटा मेरे आसपास है अगर आपके साथ चली जाऊंगी ंगी तो मुझे डर है उसकी यादें यहां ही दफन हो जाएंगी। मैं उसे खो चुकी हूं। पर उसकी मौजूदगी अब इसी शहर में है। इसी घर में है। राजन बाबू कुछ नहीं बोले। बस सिर झुका लिया। कहीं ना कहीं वह उसकी बात को समझ रहे थे। उधर जब शाम को प्रभात और प्रिया घर लौटे तो एना ने आते ही शिकायतों की झड़ी लगा दी। डैडी दादू मेरे कमरे में बिना नौक किए घुस आए थे। जानबूझकर और इससे पहले कि प्रभात कुछ कहता नील भी बोल पड़ा दादू तो मेड के साथ चले गए हैं। उनका अफेयर चल रहा है शायद।

प्रभात को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उससे भी ज्यादा वह भीतर से टूट गया। उसने जैसे ही एना की उलजुलूल बातें सुनी, उसका हाथ उठ गया। मगर तभी प्रिया बीच में आ गई। हाउ डेयर यू? अपने बच्चों पर हाथ उठाने जा रहे हो। पहले अपने पिता को तो कंट्रोल करो। प्रभात स्तब्ध खड़ा रहा। वह कुछ कह नहीं सका। उसकी पत्नी और बच्चे अब उसके ही खिलाफ खड़े थे। अगली सुबह जब सावित्री अपने रोजाना के काम पर जाने लगी तो राजन बाबू ने रोकते हुए कहा, आज से तुम कहीं नहीं जाओगी। अब तुम्हें घर-घर जाकर काम करने की कोई जरूरत नहीं। माना कि तुम मेरे गांव नहीं चल सकती। लेकिन मैं तो तुम्हारे

घर में रह सकता हूं ना। अब जब तक मैं हूं, तुम मेरी बहन हो। और तुम्हारा भाई जिंदा है तो तू अकेली नहीं है। सावित्री की आंखें भर आई। मेरे तो कोई भाई नहीं था भैया। लेकिन ईश्वर ने मुझे सात समंदर पार भेजकर भी एक सच्चा भाई दे दिया। इतना कहकर वो फूट-फूट कर रोने लगी और अपने भाई के गले लग गई। तभी दरवाजे पर किसी की आहट हुई। वो प्रभात था। उसे सामने देखकर सावित्री थोड़ा घबरा गई। लेकिन राजन बाबू बिल्कुल शांत खड़े थे। प्रभात कुछ देर तक उन्हें एक साथ देखता रहा। फिर बिना कुछ कहे वापस चला गया। वह रास्ते भर सोचता रहा। क्या मैं अपने बच्चों की बातों पर

भरोसा करूं या जो अभी अपनी आंखों से देखा उस पर यकीन करूं। अगले दिन सुबह का वक्त था। राजन बाबू और सावित्री चाय पी रहे थे। हल्की सी मुस्कान उनके चेहरे पर थी। लेकिन मन के भीतर एक बेचैनी भी थी। राजन बाबू को डर था कि कहीं उनके कारण सावित्री को कुछ सुनना ना पड़े और सावित्री को चिंता थी कि कहीं भैया के रिश्ते फिर से ना टूट जाए। इन्हीं बातों के बीच सावित्री का मोबाइल बजा। स्क्रीन पर नाम चमक रहा था। प्रभात कॉलिंग हां प्रभात बेटा कैसे हो? सावित्री ने सहज आवाज में कहा। लेकिन दूसरी ओर से जो आवाज आई वो ठंडी नहीं बल्कि ताने और

इल्जाम से भरी थी। मैं तो ठीक हूं आंटी लेकिन आप जो कर रही हो इस उम्र में वह ठीक नहीं है। कल जब मैं पापा को लेने आया था तो मैंने देखा आप उनके गले लगी थी। आप समझती क्या है खुद को? सावित्री के हाथ कांपने लगे। आंखों से आंसू टपकने लगे। उसने फोन स्पीकर पर कर दिया। राजन बाबू भी सब सुन रहे थे। उन्होंने गुस्से में आकर फोन अपने हाथ में लिया और गरजते हुए बोले बेटा नहीं अब मैं बोल रहा हूं तुम्हारा बाप और जो बातें तू कर रहा है ना वो सिर्फ एक नीच कमजोर और गुलाम सोच वाला इंसान ही कर सकता है तेरी बीवी ने तुझे इतना बदल दिया कि अब तुझे अपने बाप और एक बहन के

रिश्ते में भी गंदगी नजर आती है क्या तुझे मैंने यही संस्कार दिए थे प्रभात शर्म आनी चाहिए तुझे मैं मर जाऊं उससे पहले यह दिन देखूंगा कभी नहीं सोचा था। फोन पर सन्नाटा छा गया। फिर एक धीमी सी आवाज आई। पापा मैं लेकिन उससे पहले ही राजन बाबू ने फोन काट दिया। उसी दोपहर घर पर एना और नीलखाना खोजते हुए इधर-उधर घूम रहे थे। जैसे ही उन्हें एहसास हुआ कि सावित्री नहीं आई है। एना चिल्लाने लगी। मॉम आज डिनर कौन बनाएगा? उस मेड को कभी वापस मत बुलाना। उसने दादू को फंसा लिया है। मुझे भूख लगी है। प्रिया कमरे से बाहर निकली और बोली, तेरे दादू ने नौकरानी को लेकर भागने का

काम किया है और तुझे भूख लगी है। और फिर जैसे ही सुमित यानी प्रभात ने यह सुना, उसका खून खोल उठा। स्टॉप इट। वो मेरे पिता है। रिस्पेक्ट से बात करो वरना। मगर उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि प्रिया ने उंगली दिखाकर कहा, यू सेट अप। अगर तुम्हें अपने डैडी के साथ जाना है तो जाओ। पर मेरे बच्चों से जरा भी ऊंची आवाज में बात मत करना। प्रभात कुछ कह नहीं सका। उसकी आंखों में भी अब पछतावे का सैलाब था। वो रात बहुत भारी थी। सावित्री और राजन बाबू दोनों चुपचाप बैठे थे। दोनों को यह समझ आ गया था कि कुछ रिश्तों को बचाने के लिए कभी-कभी खुद को मिटाना पड़ता है। सावित्री

ने धीरे से कहा, “भैया, सब मेरी वजह से हुआ है। अगर मैं ना होती, तो शायद यह सब ना होता। अब जब मेरी वजह से आपके बेटे की जिंदगी बिखर रही है तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। मैं नहीं चाहती कि आपके बेटे की फैमिली टूटे। मैं नहीं चाहती कि कल को आपको खुद पर अफसोस हो। राजन बाबू चुपचाप बैठे सुनते रहे। लेकिन आंखों में आंसू थे और दिल में एक तूफान। उसी रात बिना किसी को बताए राजन बाबू उठे। अपना एक छोटा बैग तैयार किया और सावित्री को सोता हुआ छोड़कर घर से निकल गए। बाहर टैक्सी ली और एक छोटे से होटल में जाकर ठहर गए। सुबह जब सावित्री उठी तो बिस्तर खाली था। राजन

बाबू का बैग और चश्मा भी गायब थे। हे भगवान वो चीख पड़ी। भैया कहां चले गए? उसने बिना समय गवाए प्रभात को कॉल किया। बेटा तेरे पापा कहीं चले गए हैं। सुबह से नहीं है। मैं डर गई हूं। प्रभात का दिल धक से रह गया। नहीं आंटी यह सब मेरी गलती है। मैं पुलिस को कॉल करता हूं। मैं उन्हें ढूंढकर ही दम लूंगा। शाम के 4:00 बज चुके थे। लंदन की सड़कों पर भीड़ अपनेपने ठिकानों की ओर लौट रही थी। लेकिन एक परिवार ऐसा था जो बेचैनी में दर-बदर भटक रहा था। पुलिस जब प्रभात के घर पहुंची और साथ में राजन बाबू को लाकर खड़ा किया तो सब एकदम सन्न रह गए। उनके कपड़े

अस्त-व्यस्त थे। बाल बिखरे हुए और माथे पर पट्टी बंधी थी। सावित्री दौड़कर उनके पास आई। भैया क्या हुआ आपको? राजन बाबू ने एक फीकी मुस्कान के साथ कहा, कुछ नहीं सावित्री। तेरी भाभी तो पहले ही चली गई थी। फिर मुझे लगा कि अपनी जान दे दूं। लेकिन किस्मत देखो। पुलिस बीच में आ गई। पुलिस ने प्रिया से पूछताछ की तो वो साफ मुकर गई। मैंने इन्हें नहीं मारा। यह खुद गिर गए होंगे। राजन बाबू ने अपने बेटे की आंखों में देखते हुए कहा, क्या तेरी बीवी ने मुझे धक्का नहीं दिया था प्रभात? क्या यह खून मेरे माथे पर खुद से आ गया? दरअसल, रात को सावित्री के घर से वापस अपने बेटे

बहू के घर राजन बाबू आए थे। लेकिन प्रिया ने उन्हें ताने मारते हुए धक्के दे दिया था। और राजन बाबू उसी वक्त घर से चुपचाप निकल गए थे। लेकिन सुबह सावित्री ने जब यह बात बताई थी कि उसके पिताजी मेरे घर पर नहीं है। प्रभात ने यह बात छुपा ली थी कि पिताजी रात को हमारे घर पर आए थे। लेकिन वह डरकर पुलिस को पिताजी को ढूंढने के लिए फोन किया था कि कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए। खैर अब प्रभात की आंखें झुकी थी। वो कभी प्रिया की ओर देखता कभी अपने पिता की ओर बोलना चाहता था। लेकिन कुछ बोल नहीं सका। तभी एना आगे आई और जैसे जहर उगल दिया

दादू और वो मेड दोनों का अफेयर चल रहा है। मम्मी को बुरा लगा तो उन्होंने बस धक्का दे दिया और वैसे भी मुझे डर लगता है इस ओल्ड मैन से। पुलिस अंकल प्लीज इन्हें अरेस्ट कर लीजिए। यह सुनकर सब जैसे पत्थर हो गए। सावित्री की आंखें भीग चुकी थी। और प्रभात वहीं खड़ा रह गया। ना बोल सका ना रोक सका। पुलिस ने राजन बाबू को गिरफ्तार कर लिया। सावित्री पीछेछे भागी। भैया रुको कुछ तो बोलो। मगर राजन बाबू ने सिर्फ एक बार पीछे देखा। फिर सिर झुका लिया। सावित्री वहीं रुक गई और प्रभात की ओर मुड़कर बोली धिक्कार है तुम पर। एक पिता अपने बेटे के घर कुछ दिन को आया था और तुम

सब ने उसे झूठे इल्जाम में जेल भिजवा दिया। एना हंसती रही। ओल्ड लेडी तू भी उसके साथ चली जा। तेरी भी सेटिंग है ना? सावित्री ने कुछ नहीं कहा। सिर्फ आंखें पछते हुए घर लौट गई। मगर उसी वक्त प्रभात के अंदर कुछ टूट चुका था। वो सावित्री के घर पहुंचा और उसके पैरों में गिर गया। आंटी मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। पापा को जेल भेजने में मैंने कुछ नहीं किया। कुछ नहीं कहा। अब मैं भी उन्हीं के साथ रहूंगा। सावित्री ने कांपते हुए हाथों से उसके सिर पर हाथ रखा। अब पछताएगा वो जब चिड़िया चू गई खेत बेटा। लेकिन चल अभी हम उन्हें छुड़ा सकते हैं।

तू साथ चल मैं भी चलूंगी। प्रभात और सावित्री पुलिस स्टेशन गए। बड़ी मशक्कत के बाद राजन बाबू की जमानत करवाई। जब वह बाहर आए तो सावित्री ने उन्हें देखकर कहा भैया चलो घर चलते हैं। लेकिन राजन बाबू ने सिर झुकाकर कहा नहीं अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा। उन्होंने प्रभात की ओर देखा और कहा तेरी मां हमेशा कहती थी कि बुढ़ापे में बेटा ही सहारा बनेगा। लेकिन देख इस विदेश में वह दिन भी देख लिया कि बेटे की बेटी ने मुझे दरिंदा कह डाला। अब क्या बचा है यहां? सावित्री रो पड़ी। भैया अगर आप समझते हैं कि मैं आपको लेकर बदनाम हो रही हूं तो मैं

तैयार हूं आपके साथ भारत लौटने के लिए। मैं बस चाहती थी कि प्रभात का घर बच जाए। राजन बाबू की आंखों में पानी आ गया। सच कहूं मुझे अब किसी का डर नहीं। बस इस डर से जी रहा हूं कि मेरी वजह से तू ना टूट जाए। तभी प्रभात बोला पापा अगर आप इंडिया जाएंगे तो मैं भी साथ चलूंगा। अब और नहीं सहूंगा मैं यह सब। मैं तलाक के पेपर तैयार करवा रहा हूं। मेरे लिए अब सिर्फ आप मायने रखते हैं। अभी यह बातें चल ही रही थी कि अचानक एना का फोन आया। डैडी जल्दी घर आइए। मम्मी गिर गई है। सर से खून बह रहा है। मैंने एंबुलेंस बुला ली है। प्लीज जल्दी आ

जाइए। प्रभात हड़बड़ा कर खड़ा हो गया। सावित्री ने कहा, “क्या देख रहे हो? चलो। और तीनों अस्पताल की तरफ भाग निकले। अस्पताल की आपातकालीन वार्ड के बाहर तीनों लोग राजन बाबू, प्रभात और सावित्री चुपचाप खड़े थे। सामने ऑपरेशन थिएटर की लाल बत्ती जल रही थी। प्रिया की हालत गंभीर थी। सर में गहरी चोट आई थी। डॉक्टर कह चुके थे अगले कुछ घंटे बहुत अहम है। राजन बाबू ने कांपते हुए हाथ जोड़े और आंखें मूंदकर भगवान से प्रार्थना करने लगे। हे प्रभु मेरे बच्चे की पत्नी है वह। मेरे बेटे की जिंदगी की शादी मेरी पोती की जनी उसे कुछ मत होने देना। उनकी आंखों से लगातार आंसू

बह रहे थे। बिल्कुल बगल में एना बैठी थी। वही एना जिसने अपने दादू पर झूठा इल्जाम लगाया था। आज वह भी आंखें मूंदकर भगवान से मन्नत मांग रही थी। भगवान मेरी मम्मी को ठीक कर दो और और मुझको माफ कर दो। मैंने बहुत बुरा किया है दादू के साथ। प्लीज कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आए। ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा। अब खतरे से बाहर है। आप थोड़ी देर में मिल सकते हैं। सभी ने राहत की सांस ली। एना दौड़कर अपने दादू के पैरों में गिर पड़ी। दादू प्लीज माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी। राजन बाबू ने उसके आंसुओं से भीगी हथेली अपने हाथों में

लेकर कहा। चल उठ बिटिया। अब सब ठीक है। तेरी मम्मी भी ठीक हो जाएगी। और हमारा परिवार भी। थोड़ी ही देर में नील भी आया और अपने दादू से लिपट गया। फिर वह पल आया जब प्रिया को स्ट्रेचर पर बाहर लाया गया। आंखें हल्की खुली थी। उसने जैसे ही राजन बाबू को देखा दोनों हाथ जोड़ दिए। पिताजी मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपको नहीं समझा। लेकिन अब समझ गई हूं। आप अगर वापस भारत जाना चाहे तो हम सब आपके साथ चलेंगे। राजन बाबू की आंखें एक बार फिर छलक उठी। उन्होंने कहा, बेटी माफी शब्द से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता। अगर तुमने यह महसूस कर लिया कि रिश्ते भावनाओं से बनते हैं तो

समझ लो कि हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत हो गई। अगले दो दिन अस्पताल में बीते। राजन बाबू, सावित्री, प्रभात और दोनों बच्चे सब साथ थे। जब प्रिया की छुट्टी हुई तो सबने एक साथ घर वापसी की। घर की हवा में पहली बार अपनापन था, गर्माहट थी और वह भारतीयपन जिसे राजन बाबू हर साल ढूंढते थे। अब सावित्री भी उसी घर में रहने लगी। लेकिन अब वह सिर्फ मेड नहीं थी। वो परिवार की इज्जत थी। उस घर की बड़ी बहन और दादू की छाया। एक शाम चाय की चुस्कियों के बीच एना ने पूछा, दादू, अगर मैं फिर से कभी गलती करूं तो क्या आप मुझे फिर माफ कर देंगे? राजन बाबू ने हंसते हुए कहा, गलती

इंसान करता है बेटा और माफ करना भगवान का काम है। मगर हम भारतीय हैं। हम इंसान बनकर भगवान की तरह माफ करना सीखते हैं। फिर उन्होंने सावित्री की ओर देखा और बोले अगर सावित्री बहन ना होती तो शायद आज यह घर टूट चुका होता। सावित्री मुस्कुराई नहीं भैया घर जोड़ने के लिए प्यार चाहिए और वह आपके पास हमेशा था। बस लोगों को उसकी अहमियत अब समझ आई है। दोस्तों, कभी-कभी रिश्ते हमें तोड़ते नहीं। हमें तोड़कर फिर से जोड़ते हैं। इस कहानी में किसी ने बहन बनकर सहारा दिया। किसी ने बाप बनकर डांटा और किसी ने बच्चों की तरह गलती की। लेकिन अंत में सबने सीखा कि माफी से बड़ी कोई

ताकत नहीं। आपके घर में भी क्या कभी ऐसा हुआ है जब किसी की एक बात ने पूरे परिवार को फिर से जोड़ दिया हो? कमेंट में जरूर बताएं और अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल स्टोरी बाय बीके को सब्सक्राइब जरूर करें। धन्यवाद। जय हिंद जय