कभी-कभी जिंदगी इंसान को वहां पहुंचा देती है, जहां उसके पास सिर्फ सांसे होती है, लेकिन कोई ठिकाना नहीं। शहर की एक सुनसान सड़क रात के 12:00 बज रहे थे। चारों तरफ अंधेरा पसरा था। बस स्ट्रीट लाइट की हल्की पीली रोशनी फुटपाथ पर झिलमिला रही थी। उसी फुटपाथ के एक कोने में एक बुजुर्ग आदमी लेटा हुआ था। उम्र रही होगी लगभग 75 से 78 साल। चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ, शरीर हड्डियों सा कमजोर, पैरों में टूटी फटी चप्पलें। उसके सिर के नीचे तकिया नहीं था। बस एक फटा हुआ पुराना शॉल था। जिसे वह तकिए जैसा मोड़कर इस्तेमाल कर रहा था। उसकी आंखों में गहरी थकान थी। लेकिन उनमें
अब भी एक अजीब सी शांति और गरिमा झलक रही थी। ऐसा लग रहा था मानो उसने जीवन के सारे तूफान देख लिए हो और अब उसके पास शिकायत करने को कुछ नहीं बचा। रात ठंडी थी। लोग जल्दी-जल्दी अपनी कारों में निकल रहे थे। कोई उसे देखता भी नहीं जैसे वह वहां है ही नहीं। तभी पास की बिल्डिंग का सिक्योरिटी गार्ड जिसकी ड्यूटी गेट के बाहर थी उसे देख लेता है। उसके हाथ में डंडा था और चेहरे पर अहंकार। वो बुजुर्ग के पास आता है और झुंझुलाकर कहता है, अरे ओ बूढ़े, यह होटल का गेट है। धर्मशाला नहीं उठो यहां से। जाओ कहीं और जाकर सो। भिखारी लग रहे
हो। मेरी ड्यूटी मत खराब करो। बुजुर्ग धीरे से उठने की कोशिश करता है। उसके साथ रखा छोटा सा पोटलीन नुमा थैला जिसमें शायद उसके कपड़े और कुछ पुराने कागज थे। वो गिर जाता है। गार्ड नफरत से उसे पैर से ठोकर मारता है। पोटली खुल जाती है और उसमें से कुछ पुराने कागज, एक टूटी हुई ऐनक और एक डायरी सड़क पर बिखर जाते। चारों तरफ से लोग गुजर रहे थे। किसी ने रुक कर देखा किसी ने निगाह फेर ली। कुछ ने तो धीरे से हंसते हुए कहा, आजकल हर जगह भिखारी आ जाते हैं। लेकिन उस बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा। ना उसने गार्ड को गाली दी, ना झगड़ा किया।
बस धीरे-धीरे अपने कांपते हाथों से जमीन पर गिरे कागज और डायरी समेटने लगा। उसकी आंखों में आंसू थे। मगर उसने किसी को सुनने नहीं दिया। आंसुओं को पछा और बिना कुछ बोले फिर उसी फटे शॉल पर लेट गया। गार्ड फिर झल्ला कर बोला, सुबह तक दिखे तो पुलिस को बुला लूंगा। निकल जाओ यहां से। लेकिन बुजुर्ग ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी चुप्पी उस गार्ड के शब्दों से कहीं ज्यादा भारी थी। रात धीरे-धीरे गुजर गई। आसमान में चांद बादलों में छुपा था। वो फुटपाथ जहां हजारों लोग दिन भर गुजरते हैं। उस रात इंसानियत के लिए गवाही देता रहा। कि कैसे एक सम्मानित बुजुर्ग को
सिर्फ उसके कपड़ों और हालात देखकर ठुकरा दिया गया। सुबह होने लगी। पंछियों की चहचहाट गूंजने लगी। सड़क पर चहल-पहल बढ़ गई। लेकिन उस फुटपाथ पर बैठा बुजुर्ग अब भी उतना ही शांत था। उसके चेहरे की झुर्रियों में रात की ठंडक थी। लेकिन आंखों में कुछ और था। जैसे कोई इंतजार जैसे आने वाले दिन में कुछ ऐसा होगा जो सबको हैरान कर देगा। कौन है यह आदमी? क्यों इसने चुपचाप सब कुछ सह लिया? और क्यों इसके पास एक पुरानी डायरी और कुछ कागज ऐसे थे जिन्हें उसने अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखा। यह राज अभी किसी को नहीं पता था। लेकिन बहुत जल्द इसी फुटपाथ
पर ऐसा दृश्य होने वाला था जिसे देखकर पूरा शहर तंग रह जाएगा। सुबह की धूप अब तेज हो चुकी थी। शहर की सड़कें गाड़ियों के हॉर्न और लोगों की भीड़ से भरने लगी थी। लेकिन उसी फुटपाथ के कोने पर जहां बुजुर्ग पूरी रात गुजारे थे। अब भी वही चुप्पी थी। कुछ लोग आते जाते हुए उसे देखते। कोई दया से कहता बेचारा शायद भूखा है तो कोई ताने मारते हुए हंसता क्यों जी? जिंदगी में कुछ कमाया नहीं। अब सड़क पर पड़े हो। बुजुर्ग हर टिप्पणी को चुपचाप सहते रहे। उनके हाथ में अब भी वही पुरानी डायरी थी जिसे उन्होंने सीने से लगा रखा था। उनकी आंखों में उदासी थी लेकिन गुस्सा
बिल्कुल नहीं। तभी अचानक दूर से तेज सायरन की आवाज गूंज उठी। सड़क पर हलचल मच गई। लोग दाएं बाएं हटने लगे। पुलिस की गाड़ियां आकर खड़ी हो गई और फिर काली चमचमाती गाड़ियों का लंबा काफिला उसी फुटपाथ के पास आकर रुक गया। भीड़ ने फुसफुसाना शुरू किया। अरे यह तो राष्ट्रपति का काफिला है। क्या बात है? इस रास्ते पर क्यों रुक गया? सिक्योरिटी गार्ड जिसने रात को उस बुजुर्ग को अपमानित किया था। घबराकर सीधे खड़ा हो गया। उसके चेहरे पर डर साफ झलक रहा था। भीड़ की आंखों के सामने राष्ट्रपति की गाड़ी का दरवाजा खुला। कैमरों की चमक और पुलिस की
सख्ती के बीच राष्ट्रपति खुद बाहर आए। पूरा इलाका एकदम सन्नाटे में डूब गया। लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब राष्ट्रपति सीधे उसी फुटपाथ की ओर बढ़े। जहां वह बुजुर्ग आदमी अब भी बैठे थे। लोग हक्के बक्के रह गए। गार्ड की टांगे कांपने लगी। राष्ट्रपति झुके और पूरे सम्मान के साथ उस बुजुर्ग का हाथ पकड़ कर बोले गुरुदेव आप यहां इस हालत में भीड़ में सनसनी फैल गई। सबकी सांसे जैसे थम गई। गार्ड ने सिर पकड़ लिया। वही आदमी जिसे उसने रात भर भिखारी समझकर अपमानित किया था। वही इंसान आज देश के राष्ट्रपति को गुरुदेव कहलवा रहा था। भीड़ में कान्हा
फूंसी शुरू हो गई। यह कौन है? इतना सम्मान क्यों? राष्ट्रपति ने जनता की ओर मुड़कर कहा, “यह कोई आम इंसान नहीं। यह वह शख्स है जिनकी वजह से मैं आज यहां खड़ा हूं। इन्होंने मुझे बचपन में शिक्षा दी। मुझे देशभक्ति सिखाई और इंसानियत का असली अर्थ समझाया। यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम सिपाही हैं। इनका नाम है श्री हरिनारायण शर्मा। हमारे मार्गदर्शक और मेरे जीवन के सच्चे गुरु। पूरा इलाका तालियों और भावनाओं से गूंज उठा। भीड़ जिसने रात भर उस बुजुर्ग को नजरअंदाज किया। अब शर्म से झुकी हुई थी। कई लोगों की आंखें भर आई। सिक्योरिटी गार्ड कांपते
हुए आगे आया और बोला साहब मुझसे गलती हो गई। मुझे माफ कर दीजिए। बुजुर्ग ने उसकी ओर देखा। आंखों में करुणा थी। धीरे से बोले, बेटा गलती इंसान से होती है। सज्जा से डर पैदा होता है। मगर सम्मान से इंसान बदलता है। याद रखो हर इंसान का आदर करना सीखो। चाहे उसके कपड़े फटे हो या चमकदार। उनकी यह बात सुनकर वहां खड़े सैकड़ों लोग भावुक हो गए। राष्ट्रपति ने तुरंत आदेश दिया कि गार्ड पर कारवाई होगी। लेकिन बुजुर्ग ने हाथ उठाकर कहा नहीं मैं चाहता हूं कि यह अपनी ड्यूटी फिर से निभाए पर इस बार इंसानियत के साथ राष्ट्रपति ने सहमति में सिर हिलाया। उस पल ऐसा लगा मानो पूरा
शहर झकझोड़ दिया गया हो। जिन लोगों ने रात भर उस बुजुर्ग को भिखारी समझा था। वही लोग अब उन्हें नायक की तरह देख रहे थे। लेकिन असली झटका अभी बाकी था। क्योंकि यह तो बस शुरुआत थी। अगले ही दिन पूरे देश के अखबारों और न्यूज़ चैनलों पर यही खबर छाई रहने वाली थी। एक भिखारी समझे जाने वाले बुजुर्ग असल में राष्ट्र के सच्चे नायक निकले। अगली सुबह जैसे ही सूरज उगा पूरे देश में एक ही खबर गूंज रही थी। टीवी चैनल्स अखबारों और सोशल मीडिया पर हर जगह हेडलाइन चल रही थी। जिस बुजुर्ग को रात में भिखारी समझकर अपमानित किया गया। वही निकले राष्ट्रपति के गुरु और आजादी के
गुमनाम सिपाही। हर न्यूज़ चैनल पर वही फुटेज बार-बार दिखाया जा रहा था। गुरु जी को राष्ट्रपति का हाथ थामकर सम्मानपूक खड़ा करना और भीड़ का शर्म से सिर झुका लेना। लोग अवाक थे। कल तक जिन्हें सड़क पर पड़ा एक कमजोर बुजुर्ग लगा था। आज वे पूरे राष्ट्र के हीरो बन चुके थे। राष्ट्रपति भवन ने भी आधिकारिक बयान जारी किया। श्री हरिनारायण शर्मा जी का सम्मान करना पूरे देश का कर्तव्य है। वे सिर्फ राष्ट्रपति के गुरु ही नहीं बल्कि राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है। पूरा देश भावुक था। उधर जिस सिक्योरिटी गार्ड ने रात को उन्हें अपमानित किया था, उसे तुरंत सस्पेंड कर
दिया गया। पुलिस अधिकारियों ने उसे लाइन हाजिर कर दिया। लेकिन गार्ड का चेहरा अब भी भय से पीला था। वह बार-बार दोहराता मुझसे गलती हो गई। मैंने उन्हें नहीं पहचाना। लोगों ने कहा, यह तो तुम्हारी ड्यूटी थी। लेकिन इंसानियत कहां थी? क्या इंसानियत भी पहचान की मोहताज होती है? उसकी आंखों से आंसू बह निकले। लेकिन असली चौंकाने वाली बात तब हुई जब हरिनारायण जी ने खुद मीडिया के सामने कहा। मैं इस गार्ड को माफ करता हूं। उसकी नौकरी ना छीनी जाए। उसे मौका दीजिए कि वह सीख सके। इंसान को इंसान मानकर सम्मान देना। उनके शब्दों ने पूरे देश का दिल छू लिया। शाम को राष्ट्रपति
भवन के प्रांगण में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। हरिनारायण जी को विशेष अतिथि के रूप में बुलाया गया। कमजोर कदमों से चलते हुए वे मंच तक पहुंचे। जो कि कमर और कांपते हाथ उनके शरीर की थकान बताते थे। लेकिन उनकी आवाज अब भी गहरी और दृढ़ थी। उन्होंने माइक पकड़ा और कहा बीती रात मैंने अपमान सहा। भीड़ ने मुझे भिखारी समझा और गार्ड ने मुझे लात मारकर सड़क पर गिरा दिया। लेकिन सच यह है कि यह अपमान मेरा नहीं था। यह अपमान हर उस बुजुर्ग का था जो इस देश में अपने जीवन भर परिवार और समाज के लिए मेहनत करता है और आखिर में अकेला और बेबस समझा जाता है। भीड़ में
सन्नाटा छा गया। हर शब्द लोगों के दिल को छेद रहा था। उन्होंने आगे कहा मैंने इस देश की आजादी के लिए खून पसीना बहाया जेल की यातनाएं सही लेकिन उससे बड़ा दुख तब हुआ जब अपने ही लोगों ने मुझे कपड़ों से परखा और इंसानियत भूल गए याद रखिए कपड़े इंसान की कीमत नहीं बताते उसका चरित्र बताता है और अगर हम यह नहीं समझे तो हमारा समाज कभी भी सच्ची तरक्की नहीं कर पाएगा उनकी आवाज भर आई लेकिन उन्होंने अंत में मुस्कुराते हुए कहा मैं किसी सज्जा की मांग नहीं करता। मैं चाहता हूं कि कल से जब भी आप सड़क पर किसी बुजुर्ग को देखें उसे अपना पिता समझकर सलाम करें। यही मेरे
जीवन की सबसे बड़ी जीत होगी। उनका यह भाषण सुनते ही पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। कई लोग भावुक होकर रोने लगे। मीडिया ने इस पल को देश की आत्मा का आईना कहकर प्रसारित किया। Twitter, Facebook और WhatsApp पर एक ही हैशटग ट्रेंड करने लगा। हैशटग रिस्पेक्ट इवरी एल्डर स्कूलों में बच्चों को उनके बारे में पढ़ाया जाने लगा। कई राज्यों की सरकारों ने घोषणा की कि बुजुर्गों के सम्मान और सुरक्षा के लिए नए कानून बनाए जाएंगे। और सबसे बड़ी बात वही गार्ड जिसने अपमान किया था। अगले दिन कैमरों के सामने बुजुर्ग के पैरों पर गिर कर बोला। मैंने सिर्फ आपकी नहीं अपने ही
बाप की इज्जत खोई है। मुझे माफ कर दीजिए। हरि नारायण जी ने उसे उठाकर गले लगा लिया। उनकी आंखों से आंसू बह रहे