सुबह का समय था, सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे शहर के ऊँचे-ऊँचे भवनों पर पड़ रही थीं। सुबिता दास, जो हाई कोर्ट की एक प्रसिद्ध और ईमानदार वकील थीं, अपने घर से स्कूटर लेकर ऑफिस के लिए निकल रही थीं। उन्होंने लाल रंग की साड़ी पहनी थी, जो उनकी सादगी और गरिमा को दर्शा रही थी। उनके चेहरे पर शांति और आत्मविश्वास की झलक थी, जो किसी भी सामान्य महिला से अलग थी।

सुबह की हल्की ठंडक में सुबिता ने बाजार पार किया। जैसे ही वे आगे बढ़ीं, उनकी नजर एक पुलिस नाके पर पड़ी। वहां कुछ पुलिसकर्मी गाड़ियों की चेकिंग कर रहे थे। नाके पर इंस्पेक्टर अर्नव सेन खड़े थे, जो अपने कड़क और सख्त अंदाज के लिए जाने जाते थे। जैसे ही सुबिता नाके के पास पहुंचीं, अर्नव ने लाठी उठाकर उन्हें रोक लिया।

“अरे मैडम, कहां जा रही हो? हेलमेट भी नहीं पहना और स्कूटर इतनी तेज चला रही हो। अब तो चालान कटेगा,” अर्नव ने सख्त आवाज़ में कहा।

सुबीता ने शांत स्वर में जवाब दिया, “सर, मैंने कोई नियम तोड़ा नहीं है। मैं केवल 20 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से चल रही थी। हेलमेट पहनना मैं भूल गई, यह मेरी गलती है, लेकिन इतना बड़ा मुद्दा नहीं होना चाहिए।”

अर्नव का गुस्सा बढ़ गया। बिना किसी चेतावनी के उसने सुबिता के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। सुबिता थोड़ी देर के लिए लड़खड़ा गईं, लेकिन उन्होंने खुद को संभाल लिया। अर्नव ने तीखे शब्दों में कहा, “सड़क क्या तेरे बाप की है? हेलमेट नहीं पहना और मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही हो? ज्यादा नाटक करोगी तो अभी तुझे अंदर ठूंस दूंगा।”

सुबीता ने गहरी सांस ली और कहा, “सर, मैं मानती हूं कि हेलमेट नहीं पहनना मेरी गलती है, लेकिन कृपया मुझे जाने दें, मेरे ऑफिस में बहुत जरूरी काम है।”

अर्नव ने ताने भरे स्वर में कहा, “ऑफिस? तुझे देखकर तो लगता है कि तू किसी के घर काम करने जा रही है। ज्यादा बोलती रही तो दो चार थप्पड़ और मारकर थाने में बंद कर दूंगा।”

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सुबीता ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने कहा, “सर, हेलमेट का चालान तो ₹1000 का होता है, आप ₹5000 कैसे मांग रहे हैं? कानून मत तोड़िए। मैं भी कानून जानती हूं।”

इस पर अर्नव का गुस्सा और बढ़ गया। उसने कहा, “तू मुझे कानून सिखाएगी? चुपचाप वही कर जो मैं कह रहा हूं, वरना तेरी जान मुश्किल में पड़ जाएगी।”

मजबूरी में सुबिता ने ₹5000 दे दिए और वहां से चली गईं। लेकिन उनके मन में एक ही बात थी कि इस भ्रष्ट इंस्पेक्टर को सस्पेंड कराना होगा। अगले दिन उन्होंने काला बुर्का पहनकर और अपनी स्कूटर पर छिपा कैमरा लगाकर फिर उसी नाके पर जाना तय किया।

जैसे ही वे नाके पर पहुंचीं, अर्नव ने फिर हाथ उठाकर उन्हें रोक लिया। “इतनी स्पीड से कहां जा रही हो? ट्रैफिक नियम तोड़े हो। अब ₹2000 दो, चालान काट रहा हूं।”

सुबिता ने कागजात दिखाते हुए कहा, “सर, मैं नियमों का पालन कर रही हूं। हेलमेट पहना है और कागजात भी पूरे हैं।”

अर्नव ने फिर थप्पड़ मारा और धमकाया, “₹2000 दो, नहीं तो जेल जाना पड़ेगा।”

सुबीता ने मन ही मन सोचा, अब सबूत तो मेरे पास हैं, इसे बेनकाब करना आसान होगा।

वे तुरंत एएसपी देवबाशीष चट्टोपाध्याय के ऑफिस पहुंचीं और सारी रिकॉर्डिंग दिखाई। एएसपी ने वीडियो देखकर कहा, “यह इंस्पेक्टर भ्रष्ट है, इसे सस्पेंड करना होगा।”

सुबिता ने फिर थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाने की कोशिश की, लेकिन अर्नव ने ₹5000 रिश्वत मांगी। जब सुबिता ने इसका विरोध किया, तो अर्नव ने फिर थप्पड़ मार दिया। सुबिता ने संयम बनाए रखा और कहा, “आपका काम नागरिकों को न्याय देना है, डराना नहीं।”

अर्नव ने गुस्से में कहा, “तू मुझे कानून सिखाएगी? अभी तुझे बाहर निकाल दूंगा।”

सुबिता ने कहा, “मैं आपके खिलाफ कार्रवाई करूंगी।”

अगले दिन अदालत में मामला शुरू हुआ। सुबिता ने अदालत में तीन वीडियो प्रस्तुत किए: एक सड़क पर बिना वजह चालान काटने और थप्पड़ मारने का, दूसरा हेलमेट सही होने पर भी ₹2000 मांगने और थप्पड़ मारने का, और तीसरा थाने के अंदर रिश्वत मांगने और मारपीट करने का।

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एसपी देवबाशीष ने गवाही दी कि अर्नव ने पद का दुरुपयोग किया है और उसे सस्पेंड किया जाना चाहिए। स्थानीय लोग भी गवाही देने आए, जिनमें एक ऑटो रिक्शा चालक और एक दुकानदार शामिल थे, जिन्होंने अर्नव की भ्रष्ट गतिविधियों का खुलासा किया।

अर्नव ने सफाई दी कि यह सब उसके खिलाफ साजिश है, लेकिन जज ने कहा कि सबूत इतने मजबूत हैं कि उसे तुरंत सस्पेंड किया जाए और एंटी करप्शन ब्यूरो में मामला दर्ज हो।

फैसला सुनाते ही अदालत तालियों से गूंज उठी। मीडिया ने इसे ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया। सुबिता के चेहरे पर संतोष और खुशी की मुस्कान थी। एक बुजुर्ग महिला ने उनका हाथ पकड़कर आशीर्वाद दिया।

सुबिता ने मन ही मन संकल्प लिया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी। इंस्पेक्टर अर्नव सेन का सस्पेंशन सिर्फ एक भ्रष्ट अधिकारी की हार नहीं, बल्कि जनता के अधिकार और न्याय की बड़ी जीत थी। सुबिता दास सत्य और न्याय की प्रतीक बन चुकी थीं, और उनकी यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा थी जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना चाहता है।