Rami Reddy की ज़िंदगी की बात करने से पहले थोड़ी सी बात नब्बे के दशक के बॉलीवुड के बारे में करते हैं। नब्बे का दशक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए बेहद स्पेशल रहा है। इस दशक में बॉलीवुड ने भारत के सिने प्रेमियों को एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में दी। कोई फिल्म ज़बरदस्त म्यूज़िकल हिट थी तो कोई फिल्म कॉमेडी के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुई।

नब्बे के दशक में कई धमाकेदार एक्शन फिल्में भी आई थी। और इन एक्शन फिल्मों से बॉलीवुड को कई सारे नए कलाकार भी मिले थे।
इनमें से ढेरों कलाकार तो वक्त के साथ गुमनामी के अंधेरों में खो गए, लेकिन एक कलाकार ऐसा था जिसका जलवा 21वीं सदी के पहले दस सालों तक कायम रहा।
हम बात कर रहे हैं नब्बे के दशक के धाकड़ Villain Colonel Chikara यानि Rami Reddy के बारे में। Meerut Manthan की आज की पेशकश में, हम आपको Rami Reddy की ज़िंदगी से रूबरू कराएंगे।
रामी रेड्डी का जन्म हुआ था 1 जनवरी 1959 को आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले के वाल्मीकीपुरम गांव में। फिल्में देखना तो इन्हें शुरू से ही पसंद था, लेकिन इन्होंने ये कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ये फिल्म स्टार ही बन जाएंगे।
रामी रेड्डी जब बड़े हुए तो इन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ज़िंदगी में इन्हें करना क्या है। एक दिन अचानक इनके दिमाग में खयाल आया कि क्यों ना जर्नलिस्ट बना जाए। सो इन्होंने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की पढ़ाई की।
जब रातों-रात सुपरस्टार बन गए Rami Reddy
पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने कुछ दिन मुंसिफ डेली नाम के एक लोकल उर्दू न्यूज़पेपर में काम भी किया। लेकिन इसी दौरान इनकी पर्सनैलिटी ने एक फिल्ममेकर का ध्यान इनकी तरफ खींचा।
उस फिल्ममेकर ने इन्हें अपनी फिल्म अंकुसम में स्पॉट नागा का किरदार ऑफर किया। फिल्मों के शौकीन रहे रामी ने भी तुरंत हां कर दी।
और फिर उसके बाद तो रामी स्पॉट नागा के किरदार में ऐसे उतरे, कि करियर की पहली ही फिल्म ने इन्हें रातों-रात सुपरस्टार बना दिया। इनकी एक्टिंग को लोगों ने खूब पसंद किया।
और फिर छा गए Rami Reddy
इसी साल इन्हें अभिमन्यू नाम की एक कन्नड़ फिल्म में काम करने का मौका भी मिला। हालांकि ये फिल्म एकदम फ्लॉप साबित हुई और रामी रेड्डी का रोल भी इस फिल्म में कुछ खास नहीं था।
लेकिन इसी साल इनकी एक और फिल्म आई जिसका नाम था जागाडेका विरूदू अथिलेका सुंदरी। इस फिल्म में एक बार फिर से रामी रेड्डी विलेन बने और एक बार फिर से इन्होंने धमाल मचा दिया।
इस फिल्म में ही अमरीश पुरी और श्रीदेवी जैसे बड़े सितारे भी थे, जो कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा नाम थे। साथ ही इस वक्त तक चिरंजीवी को भी हिंदी दर्शक पहचानने लगे थे।
सो इस फिल्म के मेकर्स ने इस फिल्म को हिंदी में डब करके आदमी और अप्सरा नाम से रिलीज़ किया। हिंदी भाषी सिने प्रेमियों को भी रामी रेड्डी का काम बेहद पसंद आया।
कदम-कदम पर साथ दे रही थी किस्मत
रामी की किस्मत उनका कदम-कदम पर साथ दे रही थी। 1990 में ही रामी रेड्डी की चौथी फिल्म भी आ गई जिसका नाम था प्रतिबंध।
रामी रेड्डी और चिरंजीवी की जोड़ी एक बार फिर से दर्शकों के सामने थी और एक बार फिर से इस जोड़ी को लोगों ने बहुत पसंद किया।
इस फिल्म में रामी रेड्डी के किरदार का नाम स्पॉट नाना था जो कि उनकी पहली फिल्म अंकुसम के स्पॉट नागा से काफी मिलता था।
रामी की खौफनाक आंखों और खतरनाक दिखने वाले चेहरे ने लोगों के ज़ेहन में अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी थी। इस फिल्म में जुही चावला हिरोइन थी।
कर्नल चिकारा बनकर बॉलीवुड में छा गए
प्रतिबंध की सफलता के बाद रामी रेड्डी के लिए हिंदी फिल्मों के दरवाज़े भी खुल गए। और जब रामी रेड्डी को बॉलीवुड में काम करने ऑफर आया तो ये ऑफर इन्होंने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया।
रामी को 1993 की सुपरहिट फिल्म वक्त हमारा है में मेन विलेन का किरदार मिला था। कर्नल चिकारा की अंगार जैसी आंखों और खौफनाक इरादों को आपने भी ज़रूर देखा होगा।
कर्नल चिकारा के किरदार ने रामी रेड्डी को भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा के लिए अमर कर दिया।
कॉमेडी भी करते थे रामी
फिल्म इंडस्ट्री की बैक स्ट्रीट्स में कहा जाता है कि विलेन के रोल में रामी रेड्डी इतने नैचुरल लगते थे कि अगर हकीकत में वो किसी आम इंसान के सामने इसी तरह से आ जाते और बर्ताव करते तो शायद वो आदमी डर के मारे रोने लग जाता।
लेकिन इस बात से आप शायद ही वाकिफ होंगे कि रामी रेड्डी केवल विलेन ही नहीं थे। कुछ फिल्मों में रामी रेड्डी ने कॉमेडी भी की थी। इनकी कॉमेडी को भी दर्शकों ने पसंद किया था।
रामी रेड्डी का स्वामी जी वाला रोल
फिल्म खुद्दार में रामी का किरदार बेहद चर्चाओं में रहा था। खुद्दार में रामी एक स्वामी बने थे। वो स्वामी दुनिया को दिखाने के लिए तो नेक काम करता है। लेकिन हकीकत में वो पाप की काली दुनिया का बादशाह था।
फिल्म में इनका एक डायलॉग था जो बेहद पॉप्युलर हुआ था। और वो डायलॉग था ,तुमने हमारा शहद वाला भेष देखा है। अब ज़हर वाला भेष भी देखो। और ये बोलते-बोलते स्वामी अपने असली रूप में आ जाता है।
वहीं दिलवाले में रामी एक ऐसे हत्यारे बने हैं जो पूरी फिल्म में एक भी डायलॉग नहीं बोलता। लेकिन अपने चेहरे के हाव-भाव से ही वो दर्शकों के दिल में सिहरन पैदा कर देता है।
बाबा नायक का किरदार भुलाना नामुमकिन
हिंदी फिल्मों में रामी रेड्डी के कई किरदार थे जो बेहद लोकप्रिय रहे। ऐसा ही एक किरदार था आंदोलन फिल्म के बाबा नायक का किरदार। गोविंदा और संजय दत्त स्टारर आंदोलन एक बड़ी सुपरहिट फिल्म थी।
इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता कि बाबा नायक के किरदार के बिना वो फिल्म इतनी शानदार बन ही नहीं सकती थी।
और इस बात से भी शायद ही कोई इन्कार कर पाएगा कि रामी रेड्डी के अलावा बाबा नायक का किरदार इतनी गहराई से शायद ही कोई दूसरा अभिनेता निभा पाता।
आलोचना भी खूब हुई
हिंदी फिल्मों में रामी रेड्डी के किरदार अधिकतर ऐसे होते थे जो या तो फिल्म के मेन विलेन के सबसे खास आदमी होते था। या फिर नेताओं और करप्ट बिजनेमैन द्वारा हायर किए जाने वाला किराए का गुंडा।
ये बात सच है कि रामी रेड्डी को एक्टिंग में कोई खास महारत हासिल नहीं थी। वो बस अपने लुक्स के चलते इतने ज़्यादा मशहूर हुए थे।
उस दौर के फिल्म एक्सपर्ट्स कई दफा उनके एक्सप्रेशन लैस चेहरे और रोबोटिक डायलॉग डिलीवरी की आलोचना भी करते थे।
लेकिन ये बात भी पूरी तरह सच है कि अपन लुक्स के चलते रामी रेड्डी अपने किरदारों में एकदम फिट नज़र आते थे। दर्शकों ने हमेशा रामी रेड्डी के किरदारों को प्यार दिया और इन्हें बेहद पसंद किया।
आखिरी फिल्म में सांई बने थे Rami Reddy
किस्सा टीवी के वो दर्शक जो रामी रेड्डी के बहुत बड़े फैंस रहे हैं, उन्हें भी इनके बारे में एक बात नहीं मालूम होगी। और वो ये कि रामी रेड्डी भले ही दो दशकों तक फिल्मों में एक खतरनाक किलर बने हों।
लेकिन अपनी ज़िंदगी की आखिरी फिल्म में रामी रेड्डी ने एक बेहद पवित्र किरदार निभाया था। ये किरदार था सांई बाबा का किरदार।
जी हां, अपनी आखिरी फिल्म गुरूवरम में रामी रेड्डी सांई बाबा के रोल में नज़र आए थे। ये फिल्म तेलुगू भाषा की फिल्म थी। तेलुगू भाषी सांई भक्तों ने रामी रेड्डी को सांई के रूप में काफी पसंद किया था।
रामी के करियर की प्रमुख फिल्में
बात अगर इनके करियर की प्रमुख फिल्मों की करें, तो इन्होंने ऐलान, दिलवाले, खुद्दार, अंगरक्षक, आंदोलन, हकीकत, लोहा, चंडाल, हत्यारा, गुंडा, गंगा की कसम, दादा, शेरा, जानवर, कुर्बानियां, क्रोध, जैसी बड़ी और सुपरहिट हिंदी फिल्मों में काम किया था।
अपनी ज़िंदगी के आखिरी सालों में ये हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से दूर होते चले गए थे। इनकी आखिरी हिंदी फिल्म थी सत्यघाट जो कि साल 2003 में रिलीज़ हुई थी। अपने पूरे करियर में इन्होंने 250 से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया था।
जब बुरी तरह बीमार पड़े रामी
इनकी निजी ज़िंदगी की बात करें तो इनके परिवार में इनकी पत्नी के अलावा दो बेटियां और एक बेटा हैं। इनके परिवार के बारे में कभी ज़्यादा जानकारी सामने नहीं आई।
आखिरी सालों में ये किडनी और लिवर की गंभीर बीमारियों का शिकार हो गए थे। बीमारी के चलते इनकी सेहत बेहद ज़्यादा गिर गई थी।
एक दौर में हट्टे-कट्टे रामी रेड्डी को बुरी हालत में देखकर इनके फैंस हक्के-बक्के रह गए थे। हैदराबाद में हुए एक फिल्मी इंवेंट के दौरान रामी रेड्डी की एक तस्वीर सामने आई थी।
उस तस्वीर में रामी रेड्डी बेहद दुबले-पतले नज़र आ रहे थे। इस इवेंट के बाद रामी रेड्डी की हालत और ज़्यादा खराब हो गई थी।
और हमेशा के लिए चले गए रामी
रामी रेड्डी को हैदराबाद के किम्स हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था। रामी रेड्डी दो हफ्तों तक इस हॉस्पिटल में इलाज कराते रहे।
लेकिन रामी की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। और आखिरकार 14 अप्रैल 2011 को बॉलीवुड का ये बेहद खूंखार विलेन इस दुनिया से विदा हो गया।
और इसी के साथ कर्नल चिकारा अपने फैंस के ज़ेहन में बस यादें बनकर रह गया। Rami Reddy को Meerut Manthan के सभी पाठकों की तरफ से नमन। शत शत नमन।
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