महिला ने अपनी हवेली में लापता पति को ढूँढा: तीन साल बाद सच्चाई

उस दोपहर, दिल्ली की सड़कों पर अचानक मूसलाधार बारिश हुई। भारी बारिश की बूँदें उसके पुराने, घिसे-पिटे हेलमेट पर गिरीं। अनन्या ने अपना फीका रेनकोट पकड़ा, अपनी पुरानी मोटरसाइकिल का हैंडल पकड़ा, और बीच-बीच में अपने फ़ोन की स्क्रीन पर नज़र दौड़ाती रही।

इस महीने साइकिल की सवारी कम ही मिल रही थी, लेकिन किराया और बेटे की स्कूल फ़ीस का बोझ उस पर भारी पड़ रहा था। चाहे बारिश हो या धूप, वह एक भी सवारी नहीं छोड़ सकती थी।

ऐप की घंटी बजी—शहर के बाहरी इलाके में एक आलीशान संपत्ति से कॉल। अनन्या ने तुरंत कॉल स्वीकार कर लिया, हालाँकि उसका दिल धड़क रहा था: “इतना अमीर कोई फिर भी साइकिल बुलाता है? या कोई नौकर, कोई कर्मचारी…”

गेट पर, लोहे का विशाल दरवाज़ा खुला। एक सुंदर महिला, सुंदर कपड़े पहने, एक डिज़ाइनर हैंडबैग लिए हुए, बाहर निकली। उसने इधर-उधर देखा, फिर अनन्या की कार के पास पहुँची।

— “मुझे लोटस मॉल ले चलो,” उसने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में गर्मजोशी थी।

अनन्या ने सिर हिलाया, कार स्टार्ट की और चल पड़ी। सफ़र ज़्यादा लंबा नहीं था, लेकिन बारिश से भीगी सड़कों और आलीशान विला से गुज़रते हुए, उसके लिए दर्दनाक यादें ताज़ा हो गईं।

तीन साल पहले, उसका अपना परिवार था। उसका पति, अर्जुन, दयालु और प्रतिभाशाली था, एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता था। उनका एक छोटा बेटा, आरव, था जो उस समय दो साल का था। लेकिन एक बदकिस्मती भरी दोपहर, अर्जुन गायब हो गया। कोई मैसेज नहीं, कोई कॉल नहीं – बस एक बंद फ़ोन।

अनन्या ने हर जगह ढूँढा, पुलिस को भी सूचना दी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तीन साल बीत गए। ऐसा लगा जैसे अर्जुन इस दुनिया से गायब हो गया हो।

आरव के साथ, अनन्या ने ज़िंदा रहने के लिए संघर्ष किया – अपनी मोटरसाइकिल पर सवारियों को ढोना, रेस्टोरेंट में टेबल पर वेटिंग करना। असहनीय दर्द आखिरकार कम हो गया था, लेकिन ज़ख्म के निशान रह गए थे, कच्चे और गहरे।

जब उसने उस खूबसूरत महिला को मॉल में छोड़ा, तो उसे लगा कि सफ़र खत्म हो गया। लेकिन तभी ऐप फिर बज उठा – उसी विला से एक और रिक्वेस्ट।

“शायद वो कुछ भूल गई है,” अनन्या ने कार घुमाते हुए बुदबुदाया…

Inside the Mansion

The iron gates closed slowly behind her as she followed the caller in. Ahead lay a manicured garden, a stone-paved walkway, and a brightly lit palatial home. Everything shimmered with wealth, making her feel small, out of place.

The man who opened the door stopped her heart.

It was Arjun.

His voice was low, trembling:
— “Come in… I owe you an explanation.”

Inside, the living room was adorned with leather sofas, priceless paintings, and a display of foreign wines. To Ananya, it felt like stepping into another world.

Her eyes brimmed as she faced him:
— “Tell me. Where have you been all these years? Why didn’t you say a word to me, to Aarav? Do you know how we’ve lived?”

Arjun lowered his gaze, fists clenched. His voice shook:
— “I know… I’m guilty. But things weren’t as simple as you think. That day… I had no choice but to leave.”

Ananya let out a bitter laugh:
— “No choice? You abandoned your wife and child to wander helplessly. Three years, Arjun. Not once did you think of us?”

Arjun’s eyes closed; he inhaled deeply.
— “Every day, I thought of you both. But if I returned too soon, not only me — you and Aarav would have been in danger.”

She froze.
— “Danger? What do you mean?”

He began to recount. Three years ago, the company he worked for was entangled in a massive money-laundering scheme. Arjun discovered it by accident, but before he could report it, he was tracked, threatened, and kidnapped. They forced him to sign false documents, then ordered him to disappear, or his family would suffer.

Months later, a powerful businessman intervened, saving Arjun and sending him abroad for his safety. That was why he was alive today.

Ananya trembled. His words felt both truthful and unfathomable.

— “You lived abroad… all this time?”

Arjun nodded.
— “Yes. I returned only six months ago. I started working for the man who saved me. This mansion… belongs to him. He lent it to me until I rebuilt my life.”

Tears streamed down Ananya’s face. Relief warred with anguish.
— “But why… why didn’t you find us the moment you were free?”

Arjun’s voice cracked:
— “I tried. But I realized the syndicate still lurked. If I showed myself, they’d target you. I thought… I thought I had to wait until everything was safe.”

Ananya shook her head, crying:
— “You don’t understand… For three years I lived in despair. Aarav grew up without a father. I told him you were away for work, but every night he asked me when you would return. Do you know what it’s like to hear that?”

Arjun covered his face, silent tears rolling down.
— “I’m sorry… Ananya. I’ve wronged you both so deeply.”


The Other Woman

Just then, the sharp clack of heels echoed. The elegant woman from earlier descended the staircase, her eyes widening at the sight of Ananya.

— “Arjun, who is she?” she asked, her voice tinged with suspicion.

Ananya’s chest constricted. She turned to her husband, then back at the woman — regal, poised, with an unmistakable air of possession.

उसकी आवाज़ काँप रही थी:
— “और वो कौन है… तुम्हारी कहानी में, अर्जुन?”

कमरे में तनाव गहरा गया।

उस महिला ने लापरवाही से अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा:
— “तुम मेरा परिचय नहीं करवाओगे?”

अनन्या की साँस अटक गई; क्रोध और दिल टूटने की भावनाएँ उसके अंदर उमड़ पड़ीं।

अर्जुन ने धीरे से हाथ हटा दिया।
— “अनन्या, ये प्रिया है— उस आदमी की बेटी जिसने मेरी जान बचाई। उसने मेरी बहुत मदद की है… लेकिन हमारे बीच, जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है।”

प्रिया के होंठों पर एक गहरी मुस्कान आ गई:
— “कुछ नहीं? अर्जुन, तीन साल तक मैंने तुम्हें पनाह दी, तुम्हें काम दिया, तुम्हें सुरक्षित रखा। मेरे बिना, तुम यहाँ खड़े भी नहीं होते। इसे कुछ भी न समझो।”

अनन्या की दुनिया घूम गई। उसने आँसुओं के बीच फुसफुसाते हुए कहा:
— “जब मैंने अपने बेटे को अकेले पाला, तब तुम्हारी रक्षा के लिए… तुम्हारे साथ खड़ी रहने के लिए वो तुम्हारे पास थी।”

अर्जुन आगे बढ़ा और उसका हाथ कसकर पकड़ लिया:
— “नहीं अनन्या। मैं प्रिया के परिवार का कर्ज़दार हूँ, लेकिन मेरा दिल कभी भटका नहीं। दिन-रात मुझे बस तुम और आरव की ही याद आती थी।”

उसकी आँखें ईमानदारी से जल रही थीं, लेकिन प्रिया की आवाज़ ठंडी थी:
— “अर्जुन, चाहो तो अपनी भावनाओं को नकार दो, लेकिन याद रखो: मेरे पिता के बिना, तुम्हारे पास कुछ भी नहीं होता। और तुम्हें लगता है कि अब तुम उनकी रक्षा कर सकते हो? क्या तुम्हें लगता है कि उन लोगों ने तुम्हारा पीछा करना बंद कर दिया है?”

उसके शब्द बिजली की तरह कड़क गए। ख़तरा अभी भी ज़िंदा था।

अर्जुन ने अपने कंधे सीधे किए, अनन्या पर उसकी पकड़ मज़बूत थी:
— “इसीलिए मैं अब और नहीं भाग सकता। मैंने इतने सालों में सबूत इकट्ठा किए हैं। जल्द ही, मैं ये सब अधिकारियों को सौंप दूँगा। मैं डर को हम पर हावी नहीं होने दूँगा। तुम्हारे लिए, अनन्या। आरव के लिए। मैं इसे खत्म कर दूँगा।”

अनन्या ने उसकी आँखों में देखा, दर्द और उम्मीद के बीच फँसी हुई। और उस पल, उसने न केवल अपराधबोध, बल्कि प्रबल दृढ़ संकल्प भी देखा।

उसके आँसू बह निकले और उसने फुसफुसाते हुए कहा:
— “अगर तुम सचमुच हमारे पास लौट आओगी, तो आरव और मैं तुम्हारे साथ मिलकर हर मुश्किल का सामना करेंगे।”

अर्जुन ने उसे काँपते हुए गले लगा लिया। तीन साल का दुःख, तड़प और कमज़ोर विश्वास उनके आँसुओं में बह निकला। कमरे के उस पार, प्रिया स्थिर खड़ी थी, उसका चेहरा निराशा से छाया हुआ था। बिना कुछ कहे, वह मुड़ी और ऊपर चली गई, उन्हें चुपचाप छोड़कर।

बाहर, बारिश थम चुकी थी। देर से आती धूप की किरणें खिड़कियों से अंदर आ रही थीं, जो अनन्या के आँसुओं से सने चेहरे पर एक चमक बिखेर रही थीं। वह जानती थी कि आगे का रास्ता मुश्किलों से भरा होगा। लेकिन सालों में पहली बार, सच्चाई सामने आई।

और जिस आदमी को उसने हमेशा के लिए खो दिया था… वह लौट आया था।

एक नई शुरुआत का इंतज़ार था – तीन साल के नुकसान, दर्द और अटूट प्यार से जन्मी।

भाग 2: सिंडिकेट के साये

दिल्ली की हवेली पर रात का गहरा साया छा गया था। झूमर की रोशनियाँ धीमी चमक रही थीं, लेकिन अंदर की हवा रहस्यों का बोझ लिए हुए थी।

अर्जुन अपनी स्टडी डेस्क पर बैठा था, उसके सामने कागज़ और एक लैपटॉप फैला हुआ था। यूएसबी ड्राइव लगाते समय उसका हाथ थोड़ा काँप रहा था। सबूत—बैंक रिकॉर्ड, फ़र्ज़ी कंपनियों के लेन-देन, झूठे अनुबंध—वो सब कुछ जिस पर सिंडिकेट ने उसे तीन साल पहले दस्तख़त करने पर मजबूर किया था।

उसके पीछे, अनन्या ने उसके कंधों पर एक शॉल डाल दी। उसकी आवाज़ धीमी थी, चिंता से भरी हुई:
— “अर्जुन… क्या तुम्हें यकीन है कि इसे यहाँ रखना सुरक्षित है? अगर वे हमें ढूँढ़ लेंगे तो क्या होगा?”

अर्जुन ने उसका हाथ थाम लिया, उसकी आँखें दृढ़ थीं:
— “मैं अब और नहीं भाग सकता, अनन्या। उन्होंने हमारी ज़िंदगी के तीन साल बर्बाद कर दिए। अगर मैंने उन्हें अभी नहीं रोका, तो वे हमें ढूँढ़ते रहेंगे। मैं आरव को डर के साये में बड़ा नहीं होने दूँगा।”

तभी, दरवाज़ा चरमराया। प्रिया अंदर आई, उसका खूबसूरत शरीर दालान की सुनहरी रोशनी में ढल रहा था। उसके हाथ में चाय की ट्रे थी, लेकिन उसकी नज़रें अर्जुन और अनन्या के बीच घूम रही थीं – शांत भाव के पीछे छिपा एक तूफ़ान।

— “देर हो गई है,” प्रिया ने धीरे से कहा। “तुम्हें आराम करना चाहिए, अर्जुन। इन फाइलों में उलझे रहने से शांति नहीं मिलेगी।”

अनन्या ने उसकी गहरी नज़रों को भाँपते हुए उसकी तरफ़ तेज़ी से देखा।
— “शांति तभी मिलेगी जब न्याय होगा,” उसने दृढ़ता से जवाब दिया और अपने पति के पास पहुँच गई।

प्रिया के होंठ आपस में चिपक गए, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उसने चाय मेज़ पर रखी और चुपचाप चली गई, उसकी चूड़ियाँ धीरे से झंकार रही थीं।

फ़ोन कॉल

बाहर अँधेरे दालान में, प्रिया का फ़ोन वाइब्रेट हुआ। उसने फ़ोन उठाया, उसके हाथ काँप रहे थे जब उसने कॉलर आईडी देखी: “अज्ञात नंबर।”

उसने धीमी आवाज़ में जवाब दिया:
— “तुम मुझे क्यों फ़ोन कर रहे हो?”

एक गहरी, धमकी भरी आवाज़ ने जवाब दिया:
— “हमें पता है कि अर्जुन लौट आया है। उसके पास सबूत हैं। तुम उस घर में रहती हो—तुम हमें बताओगी कि वह कहाँ है। वरना, प्रिया… तुम्हारे पिता की विरासत बिखर जाएगी। उन्होंने जो कुछ भी बनाया था, वह सब खत्म हो जाएगा।”

प्रिया की साँस अटक गई। उसके पिता—वही जिसने अर्जुन को बचाया था। सिंडिकेट की धमकी उसके दिल में गहराई तक उतर गई।

— “नहीं… मेरे पिता को इसमें शामिल मत करो,” उसने फुसफुसाते हुए कहा।

— “तो जैसा कहा जाए वैसा करो,” आवाज़ ने आदेश दिया, इससे पहले कि लाइन कट जाए।

प्रिया ने धीरे से फ़ोन नीचे कर दिया। उसकी आँखों में आँसू भर आए। उसके अंदर एक जंग छिड़ी हुई थी: अपने पिता के प्रति वफ़ादारी, अर्जुन के प्रति कृतज्ञता, अनन्या से ईर्ष्या… और सिंडिकेट की निर्मम शक्ति का डर।

रात में एक चेतावनी

इस बीच, अर्जुन ने हवेली के दरवाज़े के बाहर हल्की आवाज़ें सुनीं। वह बालकनी में गया और परछाइयाँ हिलती हुई देखीं—दो आदमी परिसर की दीवार के पास खड़े होकर फुसफुसा रहे थे।

उसने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं।
— “उन्होंने मुझे ढूँढ़ लिया है।”

अनन्या भी उसके साथ आ गई, उसका चेहरा पीला पड़ गया था।
— “अर्जुन, अब क्या करें?”

उसने आँखों में आग भरी आँखों से उसे देखा:
— “हम लड़ते हैं। हम साथ रहते हैं, अनन्या। मैं तुम्हें फिर कभी नहीं छोड़ूँगा।”

तभी प्रिया उनके पीछे प्रकट हुई, उसका चेहरा समझ नहीं आ रहा था।
— “अर्जुन… मेरी बात सुनो। आज रात दिल्ली छोड़ दो। अनन्या और आरव को दूर ले जाओ। वे आ रहे हैं।”

अर्जुन घूमा:
— “तुम्हें कैसे पता?”

प्रिया हिचकिचाई, उसके हाथ काँप रहे थे:
— “क्योंकि… उन्होंने मुझे बुलाया था।”

सन्नाटा। अनन्या की आँखें सदमे से चौड़ी हो गईं।
— “तुमने उनसे बात की?”

प्रिया की आवाज़ फटी:
— “मेरे पास कोई चारा नहीं था! उन्होंने मेरे पिता के नाम, उनके पूरे कारोबार को खतरे में डाल दिया। अगर मैं उन्हें वो नहीं दूँगी जो वो चाहते हैं, तो सब बर्बाद हो जाएगा। लेकिन मैं तुमसे कसम खाता हूँ, अर्जुन, मैं तुम्हें धोखा नहीं दूँगा। तुम्हें नहीं।”

अर्जुन करीब आया, उसकी आवाज़ तीखी लेकिन दर्द भरी थी:
— “प्रिया, तुम्हें चुनना होगा। या तो हमारे साथ खड़ी हो और उनका सामना करो… या उनके साथ खड़ी हो और अपने पिता के हर उस विचार को नष्ट कर दो जिसके लिए वो खड़े थे।”

प्रिया की आँखों में आँसू भर आए। उसने अनन्या की तरफ देखा, जिसने उसकी निगाहों को समान रूप से मज़बूती और चुनौती के साथ थामे रखा। पहली बार प्रिया को एहसास हुआ—असली लड़ाई सिर्फ़ सिंडिकेट के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि उसकी अपनी आत्मा के भीतर थी।

एपिसोड का अंत

कैमरा प्रिया के काँपते हाथों पर टिका है, जब वो अपना फ़ोन पकड़े हुए है, स्क्रीन अभी भी आखिरी कॉल से चमक रही है। बाहर, सिंडिकेट के आदमियों की परछाइयाँ हवेली के पास पहुँच रही हैं। अंदर, तीन दिल अलग-अलग डर से धड़क रहे हैं, एक ही नियति से बंधे हुए।

स्क्रीन इस सवाल के साथ काली हो जाती है:
क्या प्रिया अर्जुन और अनन्या को बचाएगी… या उन्हें सिंडिकेट के हाथों में सौंप देगी?