मेरा नाम राजीव मेहता है। मैं जयपुर में एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन फर्म में काम करता हूँ। मेरी पत्नी सीमा और मैं, शादी के आठ साल बाद भी बच्चा नहीं कर पाए। घर का माहौल धीरे-धीरे बोझिल और ठंडा हो गया।
हमारे रिश्ते में प्यार से ज़्यादा ख़ामोशी भर गई थी। तभी मेरी ज़िंदगी में नेहा शर्मा आई — दिल्ली की एक इवेंट मैनेजर, चमकदार, आत्मविश्वासी, और वही जोश वापस ले आई जो मैं सोचता था हमेशा के लिए खो चुका हूँ।
हमारी मुलाकात एक कॉन्फ़्रेंस में हुई, और कुछ ही हफ़्तों में हम दोनों एक-दूसरे की ज़िंदगी का हिस्सा बन गए। चार महीने बाद, नेहा ने मुझे बताया कि वह गर्भवती है।
मैं खुशी से पागल हो गया — वह पल था जिसकी मुझे सालों से चाहत थी, जो सीमा कभी नहीं दे सकी। मैंने तय किया कि मैं सीमा से तलाक लेकर नेहा और बच्चे के साथ नई ज़िंदगी शुरू करूँगा।
लेकिन तभी मेरे पिता को हार्ट अटैक आया। डॉक्टर ने कहा कि उन्हें कोई बड़ा झटका नहीं लगना चाहिए। मैं डर गया कि अगर उन्हें मेरे अफेयर और तलाक के बारे में पता चला तो शायद वे नहीं बचेंगे।
मैंने तलाक का फैसला कुछ महीनों के लिए टाल दिया।
इस बीच मैं पूरी तरह नेहा के साथ रहने लगा। सीमा सब जानती थी, लेकिन कुछ नहीं बोली। बस चुपचाप सब झेलती रही।
नेहा ने मुझसे कहा कि किराए के बजाय उसे गुड़गाँव में एक फ्लैट चाहिए — बड़ा, आरामदायक और बच्चे के लिए सुरक्षित। मैंने बिना सोचे एक करोड़ रुपये का अपार्टमेंट खरीद लिया। उसने कहा, “राजीव, तुम सच में मुझसे प्यार करते हो,” और मैं मुस्कुराया, बेवकूफ़ी से खुश।
वो दिन जब सबकुछ टूट गया
नेहा को लेबर पेन शुरू हुआ तो मैं पूरे दस घंटे उसके साथ अस्पताल में रहा। जब बच्चे की पहली रोने की आवाज़ आई, मैं रो पड़ा — लेकिन जब नर्स ने बच्चे को मेरे हाथों में दिया, मेरी साँस थम गई।
वो बच्चा मेरे जैसा बिल्कुल नहीं था। उसकी शक्ल हूबहू मेरे दोस्त अमित मल्होत्रा से मिलती थी — वही आँखें, वही चेहरा।
नेहा ने मेरी शक्ल देखकर पूछा,
“क्या हुआ राजीव?”
मैंने बस कहा, “कुछ नहीं…” लेकिन भीतर कुछ मर चुका था।
अगले दिन मैंने किसी तरह अमित के बालों का सैंपल लिया और डीएनए टेस्ट करवाया।
रिपोर्ट आई — बच्चा अमित का था।
मैंने नेहा का सामना किया। पहले उसने झूठ बोला, फिर सब कुछ कबूल कर लिया।
वो बोली, “मैं दोनों के साथ थी… मुझे नहीं पता था कि बच्चा किसका है… पर तुम अमीर थे, और तुम्हें बच्चा चाहिए था, तो मैंने सोचा किस्मत दोनों की बन जाएगी।”
मैंने उसे देखा — उस औरत को जिसके लिए मैंने सब कुछ खोया था — और भीतर सिर्फ़ खालीपन बचा था।
सज़ा जो मुझे मिली
मैं घर लौटा। सीमा दरवाज़े पर खड़ी थी, थकी हुई लेकिन शांत।
मैंने सब सच बता दिया। उसने बहुत देर तक कुछ नहीं कहा, फिर बस इतना बोली:
“अब शायद तुम्हें पता चला कि किसे भगवान ने बाँझ बनाया था।”
वो वाक्य मेरे अंदर गूँजता रहा।
कुछ हफ़्तों बाद, हमने डॉक्टर से टेस्ट करवाया।
रिपोर्ट में लिखा था — Azoospermia: मेरे वीर्य में स्पर्म ही नहीं हैं।
मतलब… मैं कभी पिता बन ही नहीं सकता था।
नेहा का बच्चा, अमित का बच्चा था। और मेरे सारे “सपने”, बस झूठ थे जो मैंने खुद को सुनाए थे।
कर्मा का पूरा हिसाब
अब मैं हर दिन सीमा के लिए कुछ अच्छा करने की कोशिश करता हूँ। उसने मुझे माफ़ कर दिया, लेकिन मैं जानता हूँ कि कुछ घाव कभी नहीं भरते।
कभी-कभी जब मैं मंदिर जाता हूँ, तो बस इतना कहता हूँ —
“हे भगवान, तूने देर से, पर सटीक न्याय दिया।”
नेहा अब उस अपार्टमेंट में अकेली रहती है। मैंने उसे सब कुछ छोड़ दिया।
और मैं?
मैं अब भी इलाज करवा रहा हूँ, शायद चमत्कार हो जाए…
पर दिल के किसी कोने में जानता हूँ —
जिस दिन मैंने अपनी पत्नी को धोखा दिया, उसी दिन मेरा कर्मा तय हो गया था।
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