मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिसे मैं प्यार करती हूँ, जो मेरे बेटे का पिता है, वो मेरी आँखों में देखकर ये शक करेगा कि हमारा बच्चा उसका नहीं है। पर मैं वहीं थी — हमारे बेज रंग के सोफ़े पर बैठी, अपनी गोद में छोटे आरव को थामे हुए, जबकि मेरे पति और उनके माता–पिता मुझ पर ऐसे आरोप लगा रहे थे जैसे तीर चल रहे हों।

सब कुछ एक नज़र से शुरू हुआ था। मेरी सास, सुनीता, ने अस्पताल में आरव को पहली बार देखकर भौंहें सिकोड़ लीं।
“ये तो शर्मा जैसा नहीं लगता,” उन्होंने धीरे से मेरे पति अजय से कहा, जब उन्हें लगा कि मैं सो रही हूँ। मैंने अनसुना करने का नाटक किया, लेकिन उनके शब्द मेरे सी–सेक्शन की टाँकों से ज़्यादा चुभे।

शुरुआत में अजय ने बात टाल दी। हम हँसे कि बच्चे कितनी जल्दी बदल जाते हैं, कि आरव ने मेरी नाक और अजय की ठुड्डी पाई है। लेकिन शक का बीज बो दिया गया था, और सुनीता हर मौके पर ज़हर सी शंका उसमें सींच रही थीं।

“जानते हो, अजय के बचपन में भी आँखें हल्की थी,” वो कहतीं, जब आरव को रोशनी में उठातीं। “ये अजीब है कि आरव की आँखें इतनी गहरी हैं, है ना?”

एक रात, जब आरव तीन महीने का था, अजय देर से दफ़्तर से लौटे। मैं सोफ़े पर बैठी बच्चे को दूध पिला रही थी, बाल बिखरे हुए, थकान भारी कोट की तरह लटक रही थी। अजय ने मुझे देख कर नमस्ते तक नहीं किया। बस हाथ बाँधे खड़े रहे।

“हमें बात करनी है,” उन्होंने कहा।
उसी पल मुझे समझ आ गया कि आगे क्या आने वाला है।

“माँ–पापा सोचते हैं… कि डीएनए टेस्ट करवा लेना ही ठीक रहेगा। ताकि सब साफ़ हो जाए।”

“साफ़ हो जाए?” मैंने अविश्वास से काँपती आवाज़ में दोहराया। “क्या तुम्हें सच में लगता है कि मैंने तुम्हें धोखा दिया है?”

अजय असहज होकर हिले। “नहीं, सीमा। पर वो लोग परेशान हैं। और मैं… मैं बस चाहता हूँ कि ये सब ख़त्म हो जाए। सबके लिए।”

मेरे दिल में जैसे पत्थर गिर गया। सबके लिए। मेरे लिए नहीं। आरव के लिए नहीं। बस उनकी तसल्ली के लिए।

“ठीक है,” मैंने लंबे सन्नाटे के बाद कहा, आँसू रोकते हुए। “चाहते हो टेस्ट? होगा टेस्ट। लेकिन बदले में मुझे भी कुछ चाहिए।”

अजय ने भौंहें चढ़ाईं। “क्या मतलब?”

“अगर मैं ये — ये अपमान — स्वीकार कर रही हूँ, तो फिर तुम ये मानोगे कि जब नतीजे आएँगे, तब मैं अपनी शर्तों से हालात सँभालूँगी। और अभी, इसी वक़्त, अपने माँ–बाप के सामने ये वादा करोगे कि बाद में अगर कोई मुझ पर शक करेगा तो तुम उनका साथ नहीं दोगे, बल्कि उन्हें काट दोगे।”

अजय झिझके। मैं देख सकती थी कि उनके पीछे सुनीता खड़ी थीं, हाथ बाँधे, ठंडी नज़रों से ताक रही थीं।

“और अगर मैंने ऐसा नहीं किया?” उन्होंने पूछा।

मैंने उनकी आँखों में सीधा देखा, अपनी छाती से लगे आरव की गर्म साँसें महसूस करते हुए। “तो फिर तुम जा सकते हो। सब जा सकते हो। और कभी वापस मत आना।”

कमरे में भारी सन्नाटा था। सुनीता ने कुछ कहने को मुँह खोला, पर अजय ने उन्हें नज़र से रोक दिया। उन्हें पता था कि मैं मज़ाक नहीं कर रही। उन्हें पता था कि मैंने कभी धोखा नहीं दिया, कि आरव उन्हीं का बेटा है — हूबहू उनका अक्स, अगर वो अपनी माँ के ज़हर से आगे देख पाते।

“ठीक है,” आख़िरकार अजय ने गहरी साँस लेते हुए कहा। “हम टेस्ट करेंगे। और अगर नतीजे वैसे ही आए जैसे तुम कह रही हो, तो सब ख़त्म। कोई और बातें नहीं, कोई और आरोप नहीं।”

सुनीता का चेहरा ऐसे था जैसे उन्होंने नींबू निगल लिया हो। “ये बेतुका है,” वो फुसफुसाईं। “अगर तुम्हारे पास छिपाने को कुछ नहीं—”

“ओह, मेरे पास छिपाने को कुछ नहीं,” मैंने तीखी आवाज़ में काटा। “पर तुम्हारे पास है — मेरा प्रति–द्वेष, तुम्हारी लगातार दखलअंदाज़ी। ये सब ख़त्म होगा जब नतीजे आएँगे। वरना तुम अपने बेटे और पोते को फिर कभी नहीं देख पाओगी।”

अजय काँप उठे, लेकिन उन्होंने बहस नहीं की।

दो दिन बाद टेस्ट हुआ। नर्स ने आरव का स्वाब लिया, वो मेरी बाँहों में सिसक रहा था। अजय ने भी टेस्ट दिया, चेहरे पर भारी छाया थी। उस रात मैंने आरव को सीने से लगाया और धीरे–धीरे माफ़ियाँ फुसफुसाईं, जो वो समझ भी नहीं सकता था।

मैं एक पल भी नहीं सोई, लेकिन अजय सोफ़े पर गहरी नींद में थे। मुझे बर्दाश्त नहीं था कि वो मेरे बिस्तर में सोए, जब वो मुझ पर और हमारे बच्चे पर शक कर रहे थे।

जब नतीजे आए, अजय ने पहले पढ़े। उनके हाथ काँपते हुए कागज़ पकड़े, और वो मेरे सामने घुटनों पर गिर पड़े।

“सीमा। मुझे बहुत अफ़सोस है। मुझे कभी…”

“मुझसे माफ़ी मत माँगो,” मैंने ठंडेपन से कहा। आरव को पालने से उठाकर गोद में लिया। “अपने बेटे से माफ़ी माँगो। और ख़ुद से। क्योंकि तुमने अभी–अभी वो चीज़ खो दी है, जो कभी वापस नहीं पाओगे।”

लेकिन कहानी ख़त्म नहीं हुई थी। टेस्ट तो बस आधी लड़ाई थी। मेरा असली प्लान तो अब शुरू हो रहा था।

अजय चुपचाप रो रहे थे, लेकिन मेरे भीतर अब कोई दया नहीं बची थी। उन्होंने वो सीमा पार कर दी थी, जिसे आँसू या माफ़ी मिटा नहीं सकते। उन्होंने अपने माता–पिता को हमारे घर में ज़हर घोलने दिया।

उसी रात, जब आरव मेरी गोद में सो रहा था, मैंने डायरी में लिखा:
“अब कभी कोई मुझे कमतर महसूस नहीं कराएगा। अब नियम मेरे होंगे।”

अगले दिन मैंने अजय और उनके माता–पिता को बैठक में बुलाया। माहौल सर्द था। सुनीता के चेहरे पर वही अहंकारी भाव था, जैसे अब भी उन पर मेरा वर्चस्व न चले।

मैंने टेस्ट की रिपोर्ट वाला लिफ़ाफ़ा हाथ में लिया।
—“ये रही वो सच्चाई, जो आप लोग चाहते थे,” मैंने कहा और लिफ़ाफ़ा मेज़ पर गिरा दिया। “आरव, अजय का बेटा है। बात ख़त्म।”

सुनीता ने होंठ भींचे, कोई नया हमला ढूँढने की कोशिश की। लेकिन मैंने हाथ उठाकर उन्हें रोका।
—“सुन लीजिए: आज से आप मेरी ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाएँगी। मेरे बेटे का अपमान नहीं करेंगी। और अगर किया, तो ये आख़िरी बार होगा जब आपने उसे देखा।”

अजय कुछ कहने वाले थे, पर मैंने बीच में रोक दिया।
—“और तुम, अजय। माफ़ी माँगना काफ़ी नहीं है। मुझे कर्म चाहिए। मुझे ऐसा विवाह चाहिए जिसमें मेरी रक्षा हो, विश्वासघात नहीं। अगर कभी दोबारा मुझ पर शक किया, अगर किसी को मुझे अपमानित करने दोगे, तो माफ़ी माँगने की ज़रूरत नहीं होगी। बस तलाक़ के कागज़ पर दस्तख़त करने होंगे।”

कमरा सन्नाटे से भर गया। सुनीता का चेहरा सफ़ेद पड़ गया, और पहली बार उनके पास कोई शब्द नहीं थे। अजय ने सिर झुका लिया, जानते हुए कि अब कोई सौदेबाज़ी नहीं थी।

अगले दिनों में माहौल बदलने लगा। अजय कोशिश करने लगे — माँ की ज़हरीली बातों पर फ़ोन काट देते, आरव के साथ ज़्यादा वक़्त बिताते, और यहाँ तक कि मेरे साथ काउंसलिंग में भी जाने लगे। पर मैं भूल नहीं पाई। घावों को भरने में समय लगता है।

कुछ महीने बाद, जब सुनीता बिना बताए घर में दाख़िल होने आईं, तो अजय ही दरवाज़े पर खड़े हो गए।
—“माँ,” उन्होंने दृढ़ आवाज़ में कहा, “अब और नहीं। अगर आप सीमा का सम्मान नहीं कर सकतीं, तो आप हमारी ज़िंदगी में जगह नहीं पा सकतीं।”

तभी मुझे अहसास हुआ कि शायद उम्मीद अब भी बाक़ी है। इसलिए नहीं कि अतीत मिट गया, बल्कि इसलिए कि अजय ने आख़िरकार समझ लिया कि उन्होंने क्या खोया था… और क्या अब भी बचाया जा सकता है।

उस रात, जब आरव चैन से सो रहा था, मैंने अपनी डायरी में एक और पंक्ति लिखी:
“साबित मुझे कुछ नहीं करना था। उन्हें करना था। और उन्होंने साबित कर दिया कि वो असल में कौन हैं।”

और बहुत समय बाद, मैंने आँखें मूँदीं और चैन से सो गई।