मां जैसी सास को नई बहू ने घर का बना दिया नौकरानी। फिर भी वह सब कुछ चुपचाप सहती रही। लेकिन एक दिन जब बहू ने सास से चप्पल साफ करवाई। फिर बाप ने बेटे को सबके सामने तमाचा मार दिया। फिर जो हुआ वो पिता ने सपने में भी नहीं सोचा था। और वो तमाचा पूरे समाज को आईना दिखा गया। तो देखिए इस सच्ची झकझोर देने वाली पर उम्मीद और सम्मान से भरी कहानी को अंत तक। लेकिन उससे पहले वीडियो को लाइक करें। हमारे चैनल स्टोरी बाय आरके को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें। दोस्तों, उत्तराखंड के हरिद्वार से कुछ दूर जहां एक घर में मीना
की शादी हुए अभी 15 दिन ही बीते थे। सुबह-सुबह मीना अपने मोबाइल पर किसी का नंबर डायल कर रही थी। फोन जैसे ही उठता है, मीना झुझुलाकर बोल पड़ती है, मां आपने तो कहा था कि लड़का कमाऊ है, पढ़ा लिखा है और सबसे बड़ी बात अपनी मांबाप से दूर रहता है। कहा था उसकी मां ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है। इसलिए मैं जो कहूं वही घर में होगा। पर यहां तो सब उल्टा हो गया। ससुर जी तो शादी के बाद गांव लौट गए। लेकिन यह बुढ़िया सास मेरी छाती पर बैठी है। हर जगह उसकी चलती है और मैं मैं बस देखती रह जाती हूं। उधर से मां विमला देवी की आवाज आई। बेटी धैर्य रख और मेरी बात गांठ बांध ले।
शादी के बाद अगर ससुराल में अपना राज चाहती है तो बस एक हफ्ता अपनी सास की सेवा कर। फिर देख वह तेरे इशारों पर चलेगी। जब तक दामाद घर में रहे तब तक सास को सिर पर बिठा और जैसे ही वह ऑफिस जाए उसी सास से बर्तन भी मांझवा पोछा भी लगवाना लेकिन बेटा एक बात ध्यान रखना तेरे पति की नजर में तू हमेशा मासूम बनी रहनी चाहिए वरना यह गेम हाथ से निकल जाएगी मीना हंसते हुए बोली ठीक है मां आपकी ट्रिक अपना लूंगी पर याद रखना सिर्फ एक हफ्ता उसके बाद अगर वह बुढ़िया नहीं मानी तो मैं सामान उठाकर सीधे मायके लौट आऊंगी। विमला देवी खिलखिला कर हंसी। जैसे तेरी मर्जी बेटी और मायका
तो तेरा है ही। जब मन करे आ जाना। तभी पास में बैठकर चुपचाप सुन रहे महेश बाबू विमला देवी के पति गंभीर स्वर में बोले विमला कैसी मां हो तुम? बेटी को सिखा रही हो कि कैसे किसी और की मां को जलील किया जाए? क्या यही वह संस्कार हैं जो तुमने अपने घर में बनाए हैं? विमला बोली, अरे जी आप नहीं समझेंगे। ससुराल में औरत को अगर अपनी जगह बनानी हो तो चालाक बनना पड़ता है। मर्दों का क्या है? वो तो बाहर रहते हैं। तकरार और सहनशक्ति का बोझ तो हमें औरतों को ही उठाना पड़ता है। अब अगर मेरी बेटी उस घर की बहू है तो घर की मालकिन भी वही होनी
चाहिए। ना कि वो बुढ़िया सास। महेश बाबू मुस्कुरा कर बोले शायद अब तुम्हें भी कुर्सी छोड़ देनी चाहिए विमला क्योंकि जब पैसों की भूख लगती है तो इंसान मां-बाप को भी मोहरा बना देता है। उधर मीना अब दिखावे की मीठी मुस्कान लेकर अपनी सास सुन्यनाथ देवी के पास पहुंचती है। चाय देती है, खाना परोसती है और हर चीज ठीक समय पर देती है। जैसे एक आदर्श बहू लेकिन भीतर कहीं एक गेम खेला जा रहा होता है। सुनना देवी जो कम पढ़ी लिखी लेकिन बेहद समझदार, शांत और सहनशील महिला थी। जिन्होंने गांव में अपने पति रामकुमार जी के साथ जीवन भर ईमानदारी
से जिंदगी बिताई थी। वो इस बदलाव को सिर्फ नई बहू का संकोच समझ रही थी। ना कि साजिश। रामकुमार जी गांव के सरकारी स्कूल में प्रधानाचार्य थे। बहुत वर्षों से अर्जुन उनका बेटा शहर में नौकरी कर रहा था और जब बेटे ने शादी के लिए कहा तो वह दोनों खुशी-खुशी शहर आए थे। शादी के बाद रामकुमार जी गांव लौट गए। लेकिन अर्जुन ने मां को रोक लिया। मां मीना नहीं है। रसोई और घर के कामों में उसे वक्त लगेगा। आप उसके साथ रहिए कुछ दिन। सुनना देवी ने बेटे की खुशी के लिए रुकना स्वीकार किया। सोचा बहू को बेटी समझूंगी और जो मां मैंने पाई नहीं वह इसके लिए बन जाऊंगी। लेकिन
उन्हें क्या पता था कि सास बनने का मतलब कभी-कभी किसी की मां से काम वाली बन जाने तक होता है। शादी के चंद दिन बाद अर्जुन ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया था। सुबह की भागदौड़, टिफिन, फाइलें, कॉल्स और इसी बीच मीना से एक छोटी सी उम्मीद। मीना कल से मुझे जल्दी उठना पड़ेगा। ऑफिस का प्रोजेक्ट बहुत भारी है। प्लीज रात का खाना जल्दी दे दो ताकि सुबह लेट ना हो जाऊं। मीना ने सुस्त लहजे में जवाब दिया। अर्जुन मुझे इतनी सुबह उठने की आदत नहीं है। मम्मी तो मायके में मुझे पानी तक उठकर नहीं लेने देती थी। और अभी तो मेरे हाथों की मेहंदी भी नहीं उतरी है। वो थकान
दिखाने लगी। क्यों ना किसी काम वाली को रख लें। दो घंटे सुबह दो घंटे शाम को आएगी। सारा काम करेगी और मुझे भी थोड़ा चैन मिलेगा। अर्जुन कुछ पल चुप रहा। फिर धीमे स्वर में बोला मीरा तुम्हें पता है ना कि एक काम वाली कितने पैसे मांगती है। अगर तुम्हें लगता है कि तुम खुद नहीं मैनेज कर पाओगी तो फिर जो सही लगे वो कर लो। रात को मीना तनाव से भरा चेहरा लेकर किचन से बाहर आई। अपनी सांस सुनना देवी के पास जाकर एक लंबी सांस ली। मां जी सच बताओ तो मैं बहुत थक जाती हूं। सारा दिन घर का काम फिर अर्जुन को वक्त देना और अब यह खर्चों का
हिसाब ही देखना पड़ेगा। कुछ समझ नहीं आता कि आखिर मैं किससे मदद मांगू। सुन्यना देवी जिनकी आंखों में हर वक्त मीना के लिए स्नेह छलकता था। मुस्कुरा कर बोली मैं हूं ना बहूं। तुम क्यों परेशान हो रही हो? तुम जाओ हाथ मुंह धोकर आराम करो। आज के बर्तन मैं देख लेती हूं और सुबह तुमसे पहले रसोई में पहुंच जाऊंगी। मीना ने थोड़ी झिझक दिखाते हुए या शायद दिखाने की एक्टिंग करते हुए कहा नहीं मम्मी जी ऐसा कैसे हो सकता है? अब तो आप तो मेरी मां जैसी है और उसने आगे बढ़कर सुन्यना देवी को गले लगा लिया। उस एक गले में कोई सच नहीं था। बस
एक चाल थी जो बहू ने शुरू कर दी थी। रात 11:00 बजे तक सुन्याना देवी बर्तन मांझती रही। सारे बर्तन चमका दिए। गैस की चूल्हा भी साफ कर दिया। जब वह अपने कमरे में लौटी तो उनकी हथेलियां लाल हो चुकी थी। अगली सुबह मीना गहरी नींद में थी। और सुन्याना देवी चुपचाप टिफिन तैयार कर रही थी। मीना उठी माथा सहलाया। मां जी जरा अर्जुन का टिफिन बना दीजिए। आज मुझे थोड़ा सिर दर्द है। सुनना देवी ने बिना कोई सवाल किए टिफिन तैयार किया। जब अर्जुन बाहर आया तो उसने पूछा मां आप बना रही है मीना कहां है? सुनना ना देवी मुस्कुराई। कोई बात नहीं बेटा। बहू की तबीयत थोड़ी नासाज है।
मैं देख लूंगी। अब यह रोज की बात हो गई थी। मीना देर से उठती, टिफिन मां बनाती, खाना मां बनाती। परोसने का क्रेडिट मीना लेती। एक दिन मीना पार्लर से बाल कटवा कर लौटी। बाल छोटे-छोटे चेहरे पर नया मेकअप। नई चमक। सुनना देवी ने देखकर हैरानी से पूछा, “बहू, यह क्या किया? तुम्हारे तो इतने सुंदर बाल थे। कटवा क्यों लिए?” तभी मीना की सहेलियां बोली क्या सास से पूछकर भी अब बाल कटवाने पड़ते हैं क्या? वाह मीना तुम्हारा तो रब ही कुछ और है। मीना ने खटाक से पलट कर कहा मम्मी जी मेरी मर्जी मैं बाल रखूं या काटूं। आप कौन होती है बोलने वाली? जाइए अब चाय बनाइए। मेहमान
आए हैं। सुनना ना देवी ने कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप रसोई में चली गई। उस रात मीना और अर्जुन एक बर्थडे पार्टी में जा रहे थे। मीना ने सैंडल पहनते हुए कहा, ओ अर्जुन मेरी सैंडल में मिट्टी लग गई। अब क्या साड़ी संभालूं या चप्पल धोऊं? अर्जुन बोला मां जरा सैंडल साफ कर दीजिए ना। देर हो रही है। मीना भी तुरंत बोली। अरे मम्मी जी कपड़ा ढूंढने का टाइम नहीं है। पल्लू से ही साफ कर दीजिए। फिर चुटकी लेते हुए और हां अब साफ कर ही दी है तो पहनाइए भी ना आखिर मैं आपकी बहू सुनिए ना देवी चुपचाप झुकी और अपने उसी पल्लू से जिससे उन्होंने कभी बेटे के चेहरे की धूल पोछी
थी आज बहू की चप्पल साफ की और उसे पहनाकर दरवाजे तक छोड़ आई। मीना जातेजाते कह गई मम्मी जी बाहर खाना खाएंगे। आप कुछ मत बनाइए। दिन का बचा हुआ खा लीजिएगा और हां मेरे कुछ कपड़े हैं। प्रेज कर दीजिएगा। फिर वह मटकती हुई निकल गई। मीना अब खुद को घर की रानी समझने लगी थी। और सुन्यना देवी जो कभी इस घर की नींव थी। अब उन्हीं की मौजूदगी सबसे कमजोर कोने में सिमट चुकी थी। हर दिन मीना अपनी सहेलियों को बुलाती। कभी पार्टी का बहाना तो कभी बस यूं ही मिलने का और हर बार सुनिए ना देवी से चाय, पकड़ी, बिस्किट, समोसे सब कुछ बनवाया जाता। लेकिन जैसे ही कुछ कम ज्यादा होता
मीना पूरे घर में तिल मिलाकर बोल पड़ती, मम्मी जी, मेहमानों के सामने यह सब थोड़ा भी ख्याल नहीं रहता। अब तो आपको कुछ भी ढंग का बनाना नहीं आता। सुन्यना देवी सब सुनकर भी चुप रहती। वह सोचती थी शायद वक्त के साथ बहू समझ जाएगी लेकिन वक्त बीत रहा था और मीना दिन-बदिन बदल रही थी। एक दिन सुनना देवी को जोर की खांसी आई। वो फिर भी रसोई में खाना बना रही थी। तभी अर्जुन बाहर आया और झुंझुलाकर बोला, मां कम से कम खाना बनाते वक्त तो खांसी रोका करो। मुझे कुछ हो गया तो ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ेगी। आपको तो घर में रहना ही है। पीछे से मीना भी जोड़कर बोली मम्मी जी मैंने
कितनी बार कहा है मुंह ढक लिया कीजिए। अब लोग कहेंगे बहू सास पर हुकुम चला रही है इसलिए मैं चुप रह जाती हूं। सुन्यना देवी के हाथ कांपने लगे। आंखें नम हुई। लेकिन आवाज में अब हल्का कंपन था। बेटा अर्जुन मुझे गांव भेज दो। बाबूजी एक महीने से अकेले हैं। मैंने बहुत दिन तुम्हारे साथ रह लिया। अब मुझे वहां जाना है। अर्जुन ने एक पल मीना की ओर देखा। मीना ने इशारे से मना कर दिया और अर्जुन बोल पड़ा। मां बाबूजी को दिक्कत होती तो वह खुद फोन करते और मीना का बर्थडे भी आ रहा है। उसके बाद देखेंगे। सुनना देवी चुप हो गई। पर अब उनकी चुप्पी में वो सुकून नहीं। एक टूटा
हुआ विश्वास था। उसी रात मीना ने फिर मां विमला देवी को फोन मिलाया। मम्मी यह बुढ़िया अब खुद जाने की बात करने लगी है। अब तो पार्टी मेरी ही चलेगी इस घर में। विमला देवी खिलखिलाई। तू अब असली मालकिन बन गई है बेटी। बस अपनी सास को काम वाली बना कर रख। और कभी-कभी दो मीठे बोल बोल दे। बस कुछ दिनों बाद सुनना देवी रसोई में सब्जियां काट रही थी। तभी लैंडलाइन की घंटी बजी। राम कुमार जी का फोन था। कैसे हो सुन्यना? मुझे भूल तो नहीं गई ना? सुन्यना देवी की आंखें भर आई। नहीं जी बिना आपके एक-एक दिन जैसे एक साल लगता है। मैंने अर्जुन से टिकट के लिए कहा था। पर
उसने कहा मीना का बर्थडे है। उसके बाद चली जाना। रामकुमार जी ने कहा तो मैं ही आ जाता हूं। तुम रहो तैयार। मैं लेकर चलूंगा तुम्हें अपने साथ। सुन्यना देवी मुस्कुराई लेकिन तभी दरवाजे पर जोर की दस्तक हुई लगता है कोई आया है जी मैं फोन रखती हूं दरवाजा खोला तो सामने मीना खड़ी थी हाथों में शॉपिंग बैग्स आंखों में तेज और जुबान में जहर इतनी देर क्यों लगाई दरवाजा खोलने में कहीं मेरी अलमारी तो नहीं खंगाल रही थी आप या फिर कोई बचा खुचा खाना छुपा रही थी सुन्यना देवी की आंखें फैल गई हे भगवान बहू यह कैसी बातें कर रही हो? मैं तो मीना हंसते हुए बोली अरे वाह
बुढ़ापे में भी रोमांस अभी फोन पर पापा से बात कर रही थी ना फिर जोर से बोली छोड़िए वो सब चाय बनाइए और बैग्स मेरे कमरे में रखिए और हां दो दिन बाद मम्मी पापा आ रहे हैं तो आप अपना सारा सामान स्टोर रूम में शिफ्ट कर लीजिए। अगर मम्मी जी को कहीं गंदगी दिख गई तो आपकी नहीं बेटी की भी बेइज्जती होगी। सुनना देवी ने कुछ नहीं कहा। बस हंसकर बोली हां बहू जैसा आप कहें और चुपचाप अपने छोटे से सूटकेस में दुनिया समेटने लगी। मीना की मां विमला देवी अब घर में थी। और अब घर का हर कोना दो औरतों की आवाज से गूंजता था। एक की जुबान में हुकुम
था। दूसरी की चुप्पी में आंसू। सुनना देवी अब स्टोर रूम में रह रही थी। वही कमरा जहां पुराने अखबार, टूटी बाल्टी और कबाड़ रखा जाता था। वहीं एक कोने में चारपाई बिछा ली थी उन्होंने और उसी को अपना संसार बना लिया था। मीना का जन्मदिन आने वाला था। घर में पार्टी की तैयारियां हो रही थी। सजावट, लाइटें, केक, मेहमानों की लिस्ट और किचन में शून्य देवी और नौकर खाना बना रहे थे। विमला देवी बीच-बीच में रसोई में आकर ताना मारती। समधन जी कुछ तो सीखिए। ऐसे खाना बनाइए कि मेहमान पूछे। यह किस होटल से आया है। मीना ने ठहाका लगाया। अरे मम्मी यह क्या जाने शाही चीजें बनाना।
गांव की रोटी छाज की आदत है इनको। दोनों मां बेटी की हंसी के बीच सुन्यना देवी ने अपनी साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछ लिए। लेकिन उसी वक्त दरवाजा खुला। रामकुमार जी खड़े थे। सिर पर हल्की सफेदी लेकिन चाल में वही गरिमा आंखें पूरे घर में घूमी और जैसे ही किचन की तरफ गई रुकी अर्जुन बेटा तुम्हारी मां कहां है अंदर होंगी पापा शायद रसोई में अर्जुन ने लापरवाही से जवाब दिया रामकुमार जी जैसे ही रसोई के पास पहुंचे उन्होंने देखा एक कोने में शून्य देवी पसीने में तर गर्म तेल के पास सब्जी पलट रही थी और सामने विमला देवी कह रही थी। समधन जी कपड़ों से इतनी बदबू आ रही है
कि हम तो किचन में खड़े नहीं रह पा रहे। पता नहीं मीना इन्हें कैसे बर्दाश्त करती है। मीना जोर से हंसकर कहती है मम्मी मैंने तो इन्हें बस इसलिए रखा है ताकि काम वाली का खर्चा बच जाए। और तभी रामकुमार जी की भारी आवाज गूंजी। वो बदबू नहीं। उन हाथों की खुशबू है जिन्होंने इस घर को इस लायक बनाया कि आज इसमें मेहमान आ सके। मीना और विमला चौक कर पीछे मुड़ी और सुनना देवी वह कांपते हाथों से कड़ाही नीचे रखती है और धीरे-धीरे अपने पति की ओर बढ़ती है। आप आ गए वो फूट पड़ी। मुझे ले चलिए। अब एक पल भी इस घर में नहीं रहना है। रामकुमार
जी ने उन्हें गले से लगा लिया। मेरे होते हुए तुम्हारी आंखों से आंसू बहे यह मैं कभी नहीं सहूंगा। तभी विमला बोली हे भगवान जरा शर्म तो करो समधी जी बहू के सामने ही बीवी से लिपट रहे हो रामकुमार ने सीधा जवाब दिया आप अपनी बेटी के घर रह सकती हैं और मैं अपनी पत्नी को गले भी ना लगाऊं जिसने इस बेटे को जन्म दिया उसे इस घर में अपमानित देखूं तो क्या मैं मूग दर्शक बन जाऊं तभी अर्जुन बाहर निकला और झुझुला कर बोला मां समोसे खत्म हो गए हैं जल्दी लाओ अचानक रामकुमार जी का हाथ अर्जुन के गाल पर पड़ा और जोरदार तमाचे की गूंज पूरे हॉल
में फैल गई। बेशर्म तू अपनी मां को रसोई में नौकरानी समझता है। तू भूल गया यही औरत थी जिसने तुझे चलना सिखाया खाना खिलाया और तू उसी पर हुकुम चला रहा है। मीना की आंखें फटी की फटी रह गई। रामकुमार जी बोले सुनना ना अब चलो। अब इस घर में कोई रिश्ता नहीं बचा। वह स्टोर रूम में गए। सुनना देवी की छोटी सी पोटली उठाई और दरवाजे की ओर बढ़े। अर्जुन रामकुमार जी के पैरों में गिर पड़ा। पापा माफ कर दो। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। रामकुमार जी ने ठंडी आंखों से देखा। यह गलती नहीं। यह पाप है। और इस पाप की सजा यही है कि अब तुम दोनों की जिंदगी से हम चले जाएं। और हां, मेरी
जायदाद पर अब तुम्हारा कोई अधिकार नहीं होगा। मैं नहीं भी रहूं तब भी सुन्यना के लिए सब कुछ छोड़कर जाऊंगा। पर तुम जैसे बच्चों के भरोसे नहीं। मीना फफक पड़ी। विमला देवी घबराई। हे भगवान दामाद जी बेटी के बर्थडे पर इतना बड़ा अनर्थ जाइए पैर पकड़ कर मना लीजिए। तभी विमला का मोबाइल बजा। उसकी बहू का फोन था। फोन उठाया। मम्मी जी आपका सामान बरामदे में रखवा दिया है। हम 15 दिन के लिए घूमने जा रहे हैं। लौट कर मत आइएगा और फोन कट गया। रामकुमार जी ने धीरे से कहा जो बोएगी वही काटेगी। अब समझ में आई। समधन जी आज तूने एक मां को रुलाया तो ऊपर वाला तुझे भी उसी दर्द में
डुबो देगा। रामकुमार जी ने दरवाजा खोला। सुनना देवी का हाथ पकड़ा और दोनों चुपचाप निकल गए। अर्जुन और मीना बस देखते रह गए। अब उनके पास कोई बहाना, कोई आंसू और कोई भरोसा नहीं बचा था। दोस्तों, इस कहानी में सबसे बड़ा सवाल यही है। आप क्या सोचते हैं? क्या एक बहू को सिर्फ अपने हक के लिए किसी सास को नौकर बना देना चाहिए? क्या बेटा मां को भूल सकता है? जब वह खुद एक दिन बाप बनने वाला हो? अपनी राय कमेंट में जरूर दीजिए और अगर यह कहानी आपको पसंद आई है तो वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल स्टोरी बाय आर के को सब्सक्राइब करना ना भूलें क्योंकि हम लाते
हैं वह कहानियां जो आज कल के समाज की सच्चाई है। मिलते हैं अगली वीडियो में नई कहानी के साथ। जय हिंद।
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