कभी सोचा है जिसने तुझे चलना सिखाया उसी के लिए तू आज दो कदम चलने को भी तैयार नहीं है। जिसने तुझसे बिना कुछ मांगे पूरी जिंदगी तुझे दे दी। आज तू उसी के प्यार की कीमत लगा रहा है। और यह कहानी है ऐसी ही एक मां श्यामा देवी की। श्यामा देवी उम्र 75 साल। झोरियों में लिपटी ममता की जीवित मूर्ति। एक छोटे से गांव नवगामपुर की मिट्टी में सादी साड़ी पहने वह मां अकेली रहती थी। उनका बेटा राघव जो अब दिल्ली में बड़ी मल्टीीनेशनल कंपनी में अफसर था। करोड़ों की संपत्ति थी। बड़ी कोठी, चमचमाती गाड़ी, नौकर चाकर लेकिन उस सबके बीच उसकी मां, वह जैसे उसकी दुनिया से
गायब हो चुकी थी। पति के गुजर जाने के बाद श्यामा देवी ने अकेले अपने बेटे को पाला। खुद दूसरों के कपड़े सी सीकर धूप बारिश में खेतों में काम करके हर एक पैसा जोड़कर राघव को पढ़ाया। उसे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि उसके सिर से पिता का साया उठ चुका है। लेकिन अफसोस वही राघव आज उस मां के लिए वक्त तक नहीं निकाल पाता। आज राघव का जन्मदिन था। मां सुबह से ही फोन हाथ में लिए बैठी थी। आंखें बार-बार दरवाजे की तरफ उठ जाती। जैसे इंतजार हो कि बेटा खुद कॉल करेगा। शायद आज याद करेगा। लेकिन दिन बीत गया। फोन नहीं आया। तब कांपते हाथों
से श्यामा देवी ने खुद फोन लगाया। राघव उस वक्त दोस्तों के साथ क्लब में पार्टी कर रहा था। फोन बजा लेकिन उसने देखा और नजरअंदाज कर दिया। मां फिर कॉल करती रही। फिर फिर लेकिन कोई जवाब नहीं। जब रात के सन्नाटे में वह क्लब से लौटा, आंखें भारी थी शराब और थकान से। तभी फिर फोन बजा। गुस्से में भरकर उसने उठाया और कहा, “मां बार-बार फोन क्यों कर रही हो? रात हो गई है। थका हुआ हूं। सोने दो ना मुझे। सुबह नहीं कॉल कर सकती थी। मां की आवाज कांपी। लेकिन उसमें ममता की मिठास बरकरार थी। बेटा आज तेरा जन्मदिन है। तुझे दुआ देने का मन किया इसलिए कॉल किया। बहुत दिन हो
गए तुझे देखे हुए। बस एक बार आजा मैं तुझे देखना चाहती हूं। राघव ने जैसे जबरदस्ती कह दिया। ठीक है मां कल आता हूं। बस इतना सुनना था कि श्यामा देवी के चेहरे पर उजाला लौट आया। पूरी रात खिड़की के पास बैठकर वो इंतजार करती रही। सुबह-सुबह बेटा आएगा। यही सोचती रही। अगले दिन राघव जैसे ही गांव पहुंचा, मां उसे देख लिपट गई। बेटा तू आ गया। कितने दिनों बाद तुझे देखा है। लेकिन राघव का चेहरा ठंडा था। वो मां की ममता नहीं। अपने महंगे कपड़े और स्टेटस की धूल झाड़ रहा था। मां ने जब उसे छूकर आशीर्वाद देना चाहा तो वह बोला मां तू हमेशा कहती थी कि मां का कर्ज कोई नहीं
चुका सकता लेकिन मैं तेरा कर्ज जरूर चुकाऊंगा बता क्या चाहिए तुझे बंगला गाड़ी पैसा सब दूंगा श्यामा देवी मुस्कुराई धीर से बोली बेटा तेरा प्यार चाहिए वो एहसास चाहिए जो तू भूल गया है लेकिन अगर तुझे सच में मेरा कर्ज चुकाना तो तीन काम करने होंगे। तब मानूंगी कि तूने कर्ज चुकाया। राघव ने झट से कहा, ठीक है मां मैं हर काम करूंगा। बस तू खुश रह और यहीं से शुरू होती है राघव की सबसे बड़ी परीक्षा। एक बेटे का इम्तिहान। मां की ममता के सामने बेटे का घमंड का सफर। श्यामा देवी ने बेटे राघव की ओर देखकर कहा, पहला काम यह है बेटा, तुझे एक 5 किलो का पत्थर लेना होगा।
उसे एक कपड़े में लपेटकर अपने पेट से कसकर बांधना होगा। बिल्कुल वैसे जैसे कोई मां अपने गर्भ में बच्चा रखती है और उसे 24 घंटे तक ऐसे ही बांधे रखना होगा। बिना उतारे बिना रोए, बिना रुके, चाहे खाना खा, चाहे बिस्तर पर जा, चाहे कुछ भी कर, हर काम उस पत्थर के साथ ही करना होगा। तभी तुझे एहसास होगा कि एक मां क्या महसूस करती है। राघव थोड़ी देर तक मां को घूरता रहा। फिर कहता है, अरे मां, बस इतना ही। यह तो बहुत आसान है। मां हल्की मुस्कान के साथ चुप हो गई जैसे जानती हो कि असली समझ तभी आएगी जब बेटा खुद उस बोझ को महसूस करेगा। राघव ने वही किया। एक बड़ा सा
पत्थर उठाया। कपड़े में लपेटा और मां के सामने अपने पेट से कसकर बांध लिया। शुरू के एकद घंटे तो उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। वो इधर-उधर टहलता रहा। फोन चलाता रहा और सोचता रहा कि मां ने इतनी सी बात को कर्ज क्यों बना दिया। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता उसके शरीर में बेचैनी शुरू हो गई। 3 घंटे फिर 4 घंटे अब उसका पेट दर्द करने लगा। कमर अकड़ने लगी। हर बार झुकते समय वो करहाने लगता। मां चुपचाप रसोई में सब्जी काट रही थी। लेकिन उसका ध्यान पूरी तरह बेटे पर था। राघव ने कहा मां यह तो बहुत अजीब हो रहा है। बैठना मुश्किल लेटना मुश्किल चलना फिरना भी बोझ लग रहा है। मां
बोली तूने तो अभी सिर्फ एक दोपहर बिताई है राघव और वो भी नकली बोझ के साथ और मैं मैंने तुझे पूरे 9 महीने अपने अंदर संभाला। फिर भी खेतों में काम किया। चूल्हे पर खाना बनाया। तेरा बाप जब चला गया तब भी तुझे सीने से लगाए रखा। एक भी शिकायत नहीं की। राघव की आंखें थोड़ा नम हुई। लेकिन उसने अपनी जुबिश को छुपा लिया। फिर शाम हुई, रात हुई और जब आधी रात तक भी वह पत्थर उसके पेट पर बंधा रहा तो आखिरकार वो झुझला गया। मां अब और नहीं हो रहा मुझसे। यह पत्थर बहुत भारी हो गया है। मैं इसे उतार रहा हूं। और जैसे ही उसने वह कपड़ा खोला, मां ने धीरे से कहा, पहली
परीक्षा में तू फेल हो गया बेटा। राघव चौंक गया। मां मैं फेल हो गया। श्यामा देवी ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा, हां बेटा तू 9 घंटे भी यह बोझ नहीं सह सका और मैं तुझे 9 महीने पेट में लेकर जीती रही। चलती रही, झुकती रही, मुस्कुराती रही। और तू कहता है तू मां का कर्ज चुकाएगा। यह सुनकर राघव चुप हो गया। अब उसके चेहरे पर शर्म की हल्की रेखाएं दिखने लगी। पर फिर भी वो बोला, “ठीक है मां।” मां मैं फेल हुआ सही लेकिन मुझे दूसरा काम दे मैं उसे पूरा करूंगा। कसम है मां अब कोई शिकायत नहीं करूंगा। मां ने धीरे से सिर हिलाया और कहा ठीक है बेटा। अब अगली
परीक्षा आज रात ही है। तैयार रह। रात का समय था। गांव की हवाएं कुछ ठंडी हो चली थी। चारों तरफ सन्नाटा छा चुका था। घर के कोने में एक पुरानी सी खाट बिछी थी। जिस पर श्यामा देवी ने अपने बेटे राघव के लिए चादर बिछा दी थी। मां बोली बेटा आज तू मेरे कमरे में ही सो जा। यही अगली परीक्षा है। राघव ने सिर हिलाया और बिस्तर पर लेट गया। उसकी आंखें अभी भी दिन भर के थकान से भरी थी। जैसे ही वह थोड़ा सा उघने लगा। तभी मां की आवाज आई। बेटा प्यास लगी है। जरा एक गिलास पानी पिला दे। राघव ने आंखें मलते हुए उठकर पानी लाकर दिया। मां ने गिलास लिया। दो घूंट पिए और फिर जैसे हाथ
काम गया हो। उसने बाकी पानी राघव के बिस्तर पर गिरा दिया। राघव चौका। मां क्या कर रही हो? जहां मैं सो रहा हूं वहीं पानी गिरा दिया। मां बोली, बुढ़ापे में ना बेटा हाथ काम जाते हैं। समझ नहीं आया। राघव कुछ कहे बिना चुपचाप दूसरी ओर जाकर लेट गया। थोड़ी देर बाद फिर जब वह सोने ही वाला था, मां की आवाज दोबारा आई। बेटा फिर से प्यास लग रही है। एक गिलास पानी और दे दे। राघव अब थोड़ी झल्लाहट में उठा। अभी तो दिया था। इतनी जल्दी फिर भी वो बोला नहीं। और पानी लाकर दे दिया। मां ने फिर वही किया। दो घूंट पिए और इस बार भी गिलास से बचा
हुआ पानी उसी के बिस्तर पर गिरा दिया। अब राघव का गुस्सा फूट पड़ा। मां क्या हो गया है तुम्हें? पागल हो गई हो क्या? बार-बार मेरा बिस्तर गीला कर रही हो। अब मैं कहां सोऊं? श्यामा देवी ने बड़ी नरमी और ठहराव से जवाब दिया। बेटा अब आंखें कम दिखती है। हाथ कांपते हैं। समझ नहीं आता कि क्या कर रही हूं। राघव कुछ पल चुप रहा। लेकिन उसके अंदर का गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ था। जैसे ही उसने फिर लेटना चाहा। मां की आवाज तीसरी बार गूंजी। बेटा एक गिलास और पानी पिला देना। प्यास फिर लग रही है। अब राघव उफन पड़ा। मां अब बस करो। मैं अपने कमरे
में जा रहा हूं। भाड़ में जाए यह परीक्षा। इतना कहकर जैसे ही वह उठने लगा। मां ने कांपते हाथों से उसे पकड़ा और एक थप्पड़ जड़ दिया। राघव स्तब्ध रह गया। श्यामा देवी की आंखों से आंसू बह रहे थे। लेकिन उसकी आवाज बेहद स्थिर थी। जब तू छोटा था ना तब तू हर रात बिस्तर गीला कर देता था बार-बार और मैं बिना कुछ कहे तुझे सूखी जगह पर सुला देती थी और खुद गीले बिस्तर पर सो जाती थी उस बदबू उस गंदगी में सिर्फ इसलिए कि तुझे तकलीफ ना हो तू रोता था तो मैं बिना झुझलाए हर बार उठती थी हर बार तुझे गोद में उठाकर थपकी देती थी कभी तुझ पर गुस्सा नहीं किया और आज मैंने मैंने दो
बार क्या पानी मांगा? तू मुझ पर चिल्ला पड़ा। तुझे नींद खराब हो गई। इसलिए तू मुझे अपमानित करने लगा। बेटा जब तू मां का कर्ज चुकाने की बात करता है तो सिर्फ एक गिलास पानी से भी परीक्षा लेनी पड़ती है और तू आज भी फेल हो गया। राघव की आंखें झुक गई। अब उसकी जुबान बंद थी। चेहरा शर्म से झुक गया था। वो बस इतना कह पाया। मां मुझे माफ कर दो। मुझे अगला काम बता दो। मैं वादा करता हूं कि अब पूरी ईमानदारी से करूंगा। मां ने एक गहरी सांस ली और कहा, ठीक है बेटा सुबह होने दे। फिर मैं तुझे आखिरी काम दूंगी। और अगर उसमें सफल हो गया तभी तेरा प्रयास सच्चा माना जाएगा। सुबह
की पहली किरण खिड़की से भीतर आई तो श्यामा देवी पहले से ही जागी हुई थी। चेहरे पर शांति थी। लेकिन आंखों में रात भर जागे बेटे के लिए कुछ शिकवा नहीं था। बस एक मां की ममता थी जो अब भी राघव के लिए कुछ सिखाने को तैयार थी। बेटा सामने खड़ा था। नींद से बोझिल लेकिन आज उसकी आंखों में कुछ और था। घमंड नहीं बल्कि समझदारी की हल्की सी परछाई। मां ने खिड़की की ओर इशारा किया और बोली बेटा अब मैं तुझे तीसरा और अंतिम काम देने जा रही हूं। और यह काम उन दो कामों से कहीं ज्यादा आसान है। लेकिन इसका जवाब तुझे खुद में ढूंढना होगा। उसी वक्त खिड़की पर एक छोटा सा
कबूतर आकर बैठ गया। मां ने मुस्कुरा कर पूछा। बेटा यह क्या है? राघव बोला, “मां यह कबूतर है।” मां फिर से बोली, “यह क्या है?” राघव थोड़ा चौंका। लेकिन फिर भी बोला, “मां बताया ना? कबूतर है। मां ने तीसरी बार वही सवाल दोहराया। बेटा यह क्या है? अब राघव का माथा तपकने लगा। उसने आवाज ऊंची करते हुए कहा। मां तुम ठीक हो? तीन बार पूछ रही हो। कबूतर है? कबूतर? बार-बार एक ही सवाल क्यों? श्यामा देवी ने अब गहरी सांस ली और बोली, बेटा जब तू 3 साल का था। इसी तरह मेरी गोद में बैठा था और खिड़की पर एक कबूतर बैठा था। तूने मुझसे पूछा मां
यह क्या है? मैंने कहा बेटा यह कबूतर है। फिर तूने दोबारा पूछा। फिर तीसरी बार फिर चौथी बार। और उस दिन तूने यही सवाल मुझसे 24 बार पूछा था। 24 बार और मैंने हर बार तुझे प्यार से जवाब दिया। तुझे गले लगाया, तुझे चूमा, कभी नहीं झुझलाई। आज मैंने तुझसे बस तीन बार वही सवाल दोहराया और तू मुझ पर चिल्लाने लगा। सवालों की कीमत तब नहीं थी क्योंकि तू मासूम था और आज भी सवाल वही है। लेकिन तू बदल गया है बेटा। तू अब जवाब नहीं देना चाहता। तू अब सहन नहीं करना चाहता। राघव अब सुन नहीं पा रहा था। उसका चेहरा सेहर गया था। वो वही मां के पैरों में गिर पड़ा। मां मैं बहुत गलत
था। मैंने तुम्हें कभी नहीं समझा। मुझे लगा था कि पैसा दे दूंगा, बंगला दे दूंगा तो तुम्हारा कर्ज उतर जाएगा। लेकिन अब समझ में आया मां का कर्ज कभी चुकाया नहीं जा सकता। सिर्फ निभाया जा सकता है। मां ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, बेटा जब तूने मां कहा ना उसी दिन से तेरा हर कदम मेरा कर्ज बन गया। तुझे चलना सिखाया। बोलना सिखाया। गिरते हुए तुझे उठाया। बुखार में रात भर तेरा माथा सहलाया और तू कहता है कि तू कर्ज चुका देगा। बेटा इस धरती पर कोई बेटा मां का कर्ज नहीं चुका सकता। बस कोशिश कर सकता है उसे कभी दुख ना दे। यही बहुत है। राघव की आंखों से आंसू
भर रहे थे। और उसी पल उसका घमंड, उसका अहंकार, उसका स्टेटस सब कुछ जैसे बह गया। उसने मां का हाथ थामा और कहा अब मैं यहां रहूंगा मां। तेरे साथ जब तक तू जी रही है, मैं तुझे वह सब दूंगा जो तूने मुझे दिया। सम्मान, समय और ममता। मां ने मुस्कुरा कर सिर्फ इतना कहा। बस यही मेरी असली जीत है। यही मेरी सबसे बड़ी दौलत है बेटा। तो दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि जिस मां ने हमें एक शब्द बोलना सिखाया, उससे हम आज ऊंची आवाज में जवाब कैसे दे देते हैं? क्या आप भी कभी अपनी मां को वह वक्त दे पाए जो उन्होंने आपके लिए दिया? क्या आप भी कभी उस एहसान को चुकाने की कोशिश कर
पाए जो ममता के नाम पर उन्होंने बिना गिनती के आपको दिया? कमेंट में बताइए। क्या वाकई मां का कर्ज चुकाया जा सकता है या सिर्फ प्यार और समय देकर उसे महसूस किया जा सकता है और जातेजाते मां के लिए बस इतना कहूंगा तू रहे तो सब कुछ है। तू ना रहे तो कुछ भी नहीं। दोस्तों अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो इस वीडियो को लाइक करें और ऐसी ही सच्ची भावनात्मक कहानियों के लिए हमारे चैनल स्टोरी बाय बीके को सब्सक्राइब जरूर करें। मिलते हैं अगले वीडियो में नई कहानी के साथ। जय हिंद जय।
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