साउथ दिल्ली का पौश इलाका, ग्रीन एवन्यू मार्केट, जहां बड़े-बड़े ब्रांडेड शोरूम, चमचमाते शीशे, और पार्क की हुई महंगी गाड़ियां, लोगों की हैसियत का चेहरा थी। दोपहर के करीब 1:00 बजे एक बुजुर्ग महिला धीमी चाल से एक ज्वेलरी शोरूम के सामने रुकी। उम्र लगभग 68 साल, चेहरे पर झुर्रियाओं, सिर पर सफेद दुपट्टा और हाथ में एक पुराना बैग। वो पहनावे से बेहद साधारण लग रही थी। हल्का फीका गुलाबी सलवार सूट, घिसी हुई चप्पलें और आंखों में एक शांत सी चमक। वह दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुई। शोरूम की फर्श संगमरमर की थी। एसी की ठंडक और चमकदार रोशनी से चारों तरफ
रईसी झलक रही थी। अंदर खड़े दो सेल्समैन और एक रिसेप्शनिस्ट ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। जैसे उसकी मौजूदगी से उनका माहौल गंदा हो गया हो। ये आप कहां आ गई आप? एक सेल्समैन ने व्यंग से कहा। यहां चाय नहीं मिलती अम्मा जी। यह ज्वेलरी स्टोर है। महिला ने बेहद शांत स्वर में जवाब दिया। मुझे एक तोहफा लेना है। तीनों कर्मचारियों की आंखों में हंसी तैर गई। आपको रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने चबाते हुए चिंगम बोला मैम यहां के रेट आपकी पेंशन से ज्यादा है। हमारी कस्टमर क्लास थोड़ी अलग होती है। दूसरा सेल्समैन हंसते हुए बोला आप चाहे तो पास वाली सड़क पर हार्ट बाजार है।
वहां ₹50 वाले लॉकेट भी मिलते हैं। बुजुर्ग महिला कुछ पल खड़ी रही। उसकी आंखों में कोई गुस्सा नहीं था। सिर्फ एक गहराई थी जैसे उसने ऐसे चेहरे पहले भी देखे हो। मैंने कहा मुझे एक तोहफा खरीदना है। उसने दोहराया मैडम ज्यादा ड्रामा मत कीजिए। अब रिसेप्शनिस्ट रूखी हो गई। या तो खरीदिए या बाहर जाइए। हमारे पास टाइम नहीं है। एक सेल्समैन आगे आया और उसका हाथ पकड़ कर दरवाजे की ओर इशारा किया। प्लीज बाहर जाइए। यह कोई देखभाल केंद्र नहीं है। और उन्होंने उस बुजुर्ग महिला को शोरूम से बाहर धक्का दे दिया। वह नीचे नहीं गिरी लेकिन थोड़ा लड़खड़ाई। फिर बिना कुछ कहे
अपना दुपट्टा ठीक किया और शांति से चली गई। भीतर तीनों कर्मचारी अब हंस रहे थे। आजकल तो भिखारी भी एसी में आ जाते हैं। अरे मैं तो सोच रहा था कहीं सीसीटीवी में आकर हमारे प्रीमियम कस्टमर ना डर जाए। किसी को नहीं पता था वो औरत कौन थी और कुछ घंटों में वह किस शक्ल में लौटेगी। शाम के करीब 5:00 बजे वही ज्वेलरी शोरूम अब पहले से भी ज्यादा ग्राहकों से भरा हुआ था। काउंटर पर गहनों की चमक और कर्मचारियों की बनावटी मुस्कानें माहौल को और भी रॉयल बना रही थी। तभी दरवाजा फिर से खुला। लेकिन इस बार वो बुजुर्ग महिला अकेली नहीं थी। उनके साथ एक सलीके से सूट
बूट में व्यक्ति था। उम्र करीब 50 साल। गाड़ी की चाबी हाथ में घुमा रहा था और उसके पीछे दो बॉडीगार्ड्स भी खड़े थे। महिला अब भी साधारण कपड़ों में थी। वही गुलाबी सलवार सूट, वही फटा हुआ बैग। लेकिन इस बार उसकी चाल में ठहराव से ज्यादा साहस था। शोरूम का स्टाफ एकदम सतर्क हो गया। सर वेलकम सर। प्लीज अंदर आइए। मैडम आप भी आइए। अब वही लोग झुककर स्वागत कर रहे थे जो कुछ घंटे पहले तिरस्कार कर रहे थे। महिला ने मुस्कुराकर कहा, अचानक बहुत सम्मान मिल रहा है। सुबह तो आप सबको मेरी शक्ल भी बुरी लग रही थी। तीनों कर्मचारियों का चेहरा सफेद पड़ गया।
सूटबूट वाला आदमी सामने आया और बोला, “मैं राहुल महाजन इस शोरूम ब्रांच का रीजनल डायरेक्टर हूं। यह मेरी मां है। श्रीमती शांति महाजन। सन्नाटा उस रिसेप्शनिस्ट के हाथ से रजिस्टर गिर गया। वह सेल्समैन जो उन्हें बाहर धक्का दे रहा था, अब नजरें भी नहीं मिला पा रहा था। राहुल ने कैमरे की ओर इशारा किया। मैं अपनी मां के साथ आज शोरूम विजिट पर आया था। यह टेस्ट था। देखना चाहता था कि आम इंसान को आप लोग कैसे ट्रीट करते हैं। शांति देवी ने उनकी ओर देखकर कहा। मैंने अपने बेटे से कहा था कि आज किसी को बिना बताए परखा जाए कि कितनी इज्जत सिर्फ कपड़े देखकर दी जाती है। पास
खड़े ग्राहक अब तमाशा नहीं सबक देख रहे थे। राहुल ने एक कड़ा स्वर अपनाया। सीसीटीवी फुटेज देखी गई है। तीनों कर्मचारी तुरंत प्रभाव से सस्पेंड और कंपनी के पूरे एचआर को इस व्यवहारिक प्रशिक्षण के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। तभी शांति देवी आगे आई और उन्होंने काउंटर से एक सिंपल सोने की चैन उठाई। इसे पैक कर दीजिए। यह उसी लड़की के लिए है जो बाहर झुग्गी में फूल बेचती है। आज सुबह मैंने उसी के लिए यह गिफ्ट लेने की कोशिश की थी। फिर उन्होंने उस रिसेप्शनिस्ट की ओर देखा। उसका चेहरा भले ही धूल से सना था, लेकिन उसकी आत्मा तुमसे कहीं ज्यादा साफ थी। भीड़ तालियों से गूंज
उठी। शोरूम का माहौल अब पूरी तरह बदल चुका था। जहां कुछ घंटे पहले तक हंसी, दिखावा और घमंड की गूंज थी। अब वहां शर्म, सन्नाटा और आत्मचिंतन का वातावरण था। राहुल ने स्टाफ को पीछे हटने का इशारा किया। फिर मां की ओर देखा। मां अब आप जो चाहे बोल सकती है। अब आपकी आवाज को ना कोई रोकेगा ना टोकेगा। शांति देवी ने मुस्कुराकर सिर हिलाया। वह आगे बढ़ी और काउंटर के पास जाकर खड़ी हो गई। फिर शोरूम के अंदर खड़े ग्राहकों की ओर मुड़ी। उनका चेहरा शांत था। लेकिन उनकी आवाज में सालों की तपीश और जीवन का सच घुला हुआ था। मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ सहा है। उन्होंने
कहा गरीबी देखी। अपमान झेला। लेकिन सबसे ज्यादा दुख तब हुआ जब मैंने देखा कि आज की दुनिया इंसान को उसके कपड़ों से, उसकी चाल से, उसके स्टेटस से तोलती है। उसकी आत्मा से नहीं। भीड़ अब ध्यान से सुन रही थी। आज मैं सिर्फ एक मां नहीं, एक महिला नहीं, मैं हर उस इंसान की आवाज हूं जिसे उसके हालात देखकर नीचा दिखाया गया। जिसने शायद किसी से कुछ मांगा नहीं लेकिन फिर भी झुकाया गया। एक लड़की जो पास ही गहने देख रही थी। अब आंसू पछते हुए बोली आंटी आपने जो कहा वह हम सबके दिल तक पहुंचा है। राहुल ने जेब से एक चेक बुक निकाली और कहा मां इस शोरूम की आज की पूरी बिक्री उस
एनजीओ को डोनेट की जाएगी जहां आप बच्चों को पढ़ाने जाती हैं। क्योंकि आपने आज मुझे भी एक पार्ट सिखाया है। इज्जत खरीदी नहीं जाती। कमाई जाती है। पास खड़ी वह रिसेप्शनिस्ट जो अब तक चुपचाप सब सुन रही थी। आगे बढ़ी और शांति देवी के पैर छूने लगी। माफ कर दीजिए मैडम। हमने आपको पहचाना नहीं। शांति देवी ने उसे ऊपर उठाया। गलती पहचान की नहीं थी बेटा। नजर की थी और नजर अगर साफ हो तो किसी को छोटा नहीं देखा जाता। अगले ही दिन यह पूरी घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। बुजुर्ग महिला को शोरूम से निकाला। बाद में निकली मालिक की मां शांति का सबक। इस हेडलाइन के साथ कई
चैनलों और Facebook पेजों पर यह क्लिप्स वायरल हो गई। लाखों लोगों ने कमेंट किए। कपड़े नहीं सोच बड़ी होनी चाहिए। यह कहानी हर दुकान, हर दफ्तर, हर इंसान को सुननी चाहिए। शांति देवी फिर उसी गली में पहुंची जहां फूल बेचने वाली बच्ची बैठी थी। उन्होंने चैन का पैकेट उसके हाथ में दिया। बच्ची हैरान। मेरे लिए शांति देवी मुस्कुराई। तेरा चेहरा भले धूल से सना था लेकिन तेरा दिल सबसे चमकदार गहना है। इंसान की पहचान उसकी हैसियत से नहीं उसकी नियत से होती है। कभी किसी को उसके कपड़े, उसकी उम्र या उसकी हालत देखकर मत आकिए क्योंकि असली रॉयल्टी अक्सर सादगी में
छुपी होती