ठंडी सुबह थी। शहर के सबसे पौश इलाकों में से एक जहां चमचमाते बैंक, ऊंची इमारतें और सूट बूट में दौड़ते लोग दिखते हैं। उसी भीड़ में एक बुजुर्ग करीब 75 वर्ष के हल्की जजर धोती कुर्ता पहने हुए पसीने से भीगे माथे के साथ धीरे-धीरे चलते हुए बैंक के अंदर दाखिल हुए। उनके पैरों में घिसी हुई चप्पलें थी और हाथ में एक पुराना थैला। रिसेप्शन के पास खड़ी एक युवा कर्मचारी ने उन्हें ऊपर नीचे देखा और नाक सिकोड़ते हुए पूछा जी किससे मिलना है? बुजुर्ग ने शांति से कहा बेटा मुझे अपने अकाउंट की डिटेल्स चेक करनी है। उसने जरा सी मुस्कान के साथ कहा।

अकाउंट यहां बुजुर्ग ने बिना जवाब दिए चुपचाप अपना आईडी कार्ड और बैंक की पुरानी गोल्डन कार्ड स्लिप निकालकर मेज पर रख दी। वह लड़की हंसी छिपाते हुए कार्ड लेकर मैनेजर के पास गई। सर कोई बाबा आए हैं? कहते हैं अकाउंट चेक करना है। और देखिए कार्ड तो पुराने जमाने का है। मैनेजर ने चश्मा नीचे करते हुए उस कार्ड की तरफ देखा और हल्के तंज में मुस्कुराया। अरे इन लोगों को ना बस एसी में बैठना होता है। ₹5 जमा होंगे और पूछेंगे। बैलेंस क्या है? बैंक के कुछ कर्मचारियों ने धीमी हंसी में साथ दिया। बुजुर्ग अब भी चुपचाप खड़े थे। चेहरा शांत, आंखों में कोई शिकवा नहीं। लाइए

देखता हूं क्या झंझट है। मैनेजर ने कार्ड लिया और जैसे ही वह कंप्यूटर में डिटेल्स देखने के लिए मुड़ा तभी बैंक का लैंडलाइन फोन तेजी से बजा। ट्रिन ट्रिन मैनेजर ने लापरवाही से रिसीवर उठाया। हां, एसबीआई ग्रैंड ब्रांच मैनेजर स्पीकिंग। लेकिन दूसरी ओर से आवाज आई। मैं सतीश त्रिपाठी बोल रहा हूं रीजनल हेड ऑफिस से। क्या मिस्टर वसंत राम मिश्रा पहुंचे आपके ब्रांच में? मैनेजर का चेहरा पल भर में बदल गया। जी कौन? कौन मिश्रा सर? मिस्टर वसंत राम मिश्रा हमारे सबसे पुराने और टॉप टियर एचएआई क्लाइंट हैं। आज उन्होंने विजिट का जिक्र किया था। वो आए हो तो

प्लीज उन्हें पूरा रिस्पेक्ट दीजिए। मैं 5 मिनट में कॉल बैक करता हूं। फोन कट चुका था और पूरे ऑफिस का माहौल एकदम ठहर गया। मैनेजर की उंगलियां कांप रही थी। उसने कंप्यूटर पर वही कार्ड नंबर डाला और स्क्रीन पर जो डिटेल्स आई प्लैटिनम प्रायोरिटी क्लाइंट और नेट होल्डिंग्स 33 करोड़ से अधिक वाल कॉल अकाउंट सिंस 1982 गर्दन धीरे-धीरे उठी। वो अब उसी बुजुर्ग को देख रहा था। जिसे कुछ देर पहले उसने बाबा समझकर हंसी उड़ाई थी। बुजुर्ग अब भी चुपचाप खड़े थे। लेकिन इस बार नजरों में अजीब सी चमक थी। मैनेजर कुर्सी से झटके में उठा। उसकी सांसे तेज थी। अभी-अभी जिस

आदमी को उसने बाबा कहकर टाल दिया था, वह अब उसकी आंखों में देश के सबसे पुराने और सम्मानित ग्राहकों में से एक बनकर खड़ा था। मी मी मिश्रा जी वो धीरे-धीरे उनके पास आया और आवाज बदली हुई सी हो गई। सर माफ कीजिए हमें पता नहीं था कि आप बुजुर्ग वसंत राम जी ने नजर उठाकर उसकी ओर देखा। पता होता तो क्या होता बेटा? व्यवहार अलग होता। बैंक स्टाफ जो कुछ देर पहले मजाक उड़ा रहे थे। अब सब अपनी-अपनी जगह स्थिर खड़े थे। जैसे किसी अपराध परंगे हाथ पकड़े गए हो। वसंत राम जी ने वह पुराना थैला खोला और उसमें से एक फाइल निकाली। उसे सामने टेबल पर रख दिया और बोले, “इसमें

मेरी एफडी, म्यूचुअल फंड और लॉकर की डिटेल्स है। एक बार मिलाकर देख लो ताकि कल से सब कुछ नई ब्रांच पर ट्रांसफर हो जाए। मैनेजर हक बका गया। सर, नई ब्रांच आप अकाउंट बंद करवा रहे हैं। नहीं, बंद नहीं। सिर्फ शाखा बदल रहा हूं। जहां सम्मान मिले वही सही। उसी वक्त बैंक का दरवाजा फिर खुला। एक सीनियर एग्जीक्यूटिव जोनल ऑपरेशन हेड भागते हुए अंदर आए। मिश्रा जी नमस्कार। वो सीधे उनके पास पहुंचे और झुक कर बोले आपका कॉल आते ही मैं निकल पड़ा था। काश हमें पहले पता होता कि स्टाफ ने आपने तकलीफ उठाई। वसंत राम जी ने हाथ जोड़ दिए। आपका स्वागत देख लिया बेटा। तकलीफ नहीं।

बस एक बात फिर समझ में आ गई। कपड़ों से पहचान मत बनाओ। पहचान वह होती है जो समय देता है। अब पूरे बैंक में सन्नाटा था। वो रिसेप्शनिस्ट जिसने उन्हें घूर कर देखा था अब नजरें झुकाए खड़ी थी। एक युवा कर्मचारी अमित आगे आया और बोला सर आपने जो किया वो हमारे लिए सीख है। माफ कीजिए। कभी आपसे मिलना हो तो कुछ जानने को मिले। वसंत राम जी ने हल्की मुस्कान दी। सीख हमेशा मिलती है बेटा। बस मन और आंख दोनों खुले होने चाहिए। अगले दिन बैंक के उसी हेल्प डेस्क पर एक बोर्ड लगा था। हर ग्राहक सम्मान के योग्य है। उसके कपड़े नहीं उसका अनुभव

देखिए। और नीचे लिखा था प्रेरित श्री वसंत राम मिश्रा प्लैटिनम क्लाइंट ट्रू जेंटलमैन। बैंक की शाखा में अब सब कुछ बदल चुका था। जहां पहले बुजुर्गों को नजरअंदाज किया जाता था। अब वही बुजुर्ग सबसे बड़े आदर के पात्र थे। लेकिन इस कहानी की जड़े कहीं और थी वसंतराम मिश्रा की अपनी कहानी में। कुछ साल पहले पूर्वांचल का एक छोटा सा गांव नरकटिया। वसंतराम मिश्रा वहीं जन्मे एक किसान परिवार में। खेतों में काम करते हुए उन्होंने अपने पिता से सिर्फ दो बातें सीखी थी। ईमानदारी और धैर्य। पढ़ाई का शौक था। लेकिन हालात नहीं थे। दसवीं पास करने के बाद मजबूरी में गांव के एक

साहूकार के यहां नौकरी करनी पड़ी। वहीं से बैंकिंग और पैसों के मूल सिद्धांत सीखे। पहला निवेश सिर्फ ₹500 की एफडी साल था 1982। शहर की एसबीआई ब्रांच में जाकर एफडी खुलवाई और वहीं से उन्होंने निवेश की दुनिया में पहला कदम रखा। धीरे-धीरे शेयर बाजार, सरकारी योजनाएं, बचत और म्यूच्यूल फंड की समझ बढ़ती गई। अपनी जरूरतें सीमित रखी और जो कमाया उसे सहेज लिया। शादी हुई, बच्चे बड़े हुए और शहर में बस गए। लेकिन वसंत राम जी का रहन-सहन वही सादा रहा। मैंने सीखा है बेटा। पैसे से जीवन चलता है लेकिन आचरण से इज्जत मिलती है। यह उनके जीवन का मूल मंत्र था। उनकी निवेश समझ

इतनी गहरी थी कि बैंक ने उन्हें प्लैटिनम प्रायोरिटी क्लाइंट बना दिया। कई बार बैंक ने उन्हें पब्लिक इवेंट में सम्मानित भी किया लेकिन वह कभी मंच पर नहीं चढ़े। मेरे जैसे किसान की इज्जत उसके काम में है। तस्वीरों में नहीं। वो कहते कहानी वापस। वर्तमान में मैनेजर धीरे-धीरे वसंत राम जी की कुर्सी के पास आया। सर अगर आप अनुमति दें तो हम आपकी यह कहानी सोशल मीडिया पर भी शेयर करना चाहेंगे ताकि हमारे ग्राहक प्रेरणा ले। वसंत राम जी मुस्कुराए। कहानी तो सभी की होती है बेटा। बस इतना याद रखो जो झुककर बात करता है वही सबसे ऊंचा होता है। एक अखबार की हेडलाइन जिसे

समझा गया आम ग्राहक वह निकला करोड़ों का ज्ञान। वसंतराम मिश्रा की कहानी ने बदल दी बैंकिंग सोच। बैंक की दीवारों पर अब चुप्पी नहीं। आत्मग्लानी थी। वसंत राम जी की सादगी ने जो सबक दिया था वह किसी बैंकिंग ट्रेनिंग से कहीं बड़ा था। सुबह 10:30 वसंत राम जी बैंक से निकलने की तैयारी कर रहे थे। मैनेजर स्टाफ और कई ग्राहक उन्हें दरवाजे तक छोड़ने आए। हर कोई चाहता था कि वह एक बार फिर से मुस्कुराए कुछ कहे। लेकिन उन्होंने सिर्फ एक बात कही। कभी भी किसी को छोटा मत समझो। हो सकता है उसके भीतर वह इज्जत हो जो तुम्हारे पूरे संस्थान को भी ऊंचा कर दे। भीड़ में पीछे

खड़ा वही सिक्योरिटी गार्ड जो उन्हें एटीएम से बाहर निकालने पर अड्डा हुआ था। धीरे-धीरे सामने आया। उसके चेहरे पर पछतावे की परतें थी। बाबा माफ कर दो। मैंने गलती की। वसंत राम जी ने उसकी आंखों में देखा और फिर वही कहा जो सच्चे बड़ों का काम होता है। माफी मांगने से बड़ा कोई इंसान नहीं होता बेटा पर सीख लेना जरूरी है। कुछ दिनों बाद उसी बैंक की वॉल पर एक नई तस्वीर लगी थी। उसमें एक बुजुर्ग सफेद छबेदार दाढ़ी में सादा कुर्ता और हाथ में पुराना झोला लिए खड़े थे। नीचे लिखा था हमारे सम्माननीय ग्राहक श्री वसंतराम मिश्रा जिन्होंने हमें सिखाया कि सम्मान

सूट बूट में नहीं होता व्यवहार में होता है। वसंत राम जी अपने गांव लौट चुके थे। वही मिट्टी का घर वही तुलसी का चौरा। बाहर एक बच्चा बैठा था। उसका पोता। दादा जी आप इतने अमीर हो फिर भी यहां रहते हो। वो हंस पड़े। बेटा असली अमीरी वह नहीं जो दिखती है। असली अमीरी वह है जो दूसरों को नजरों से नहीं दिल से देखने की समझ दे दे। हर कोई बड़ा नहीं होता अपने कपड़ों से। कुछ लोग अपने सच्चे व्यवहार से बड़े होते हैं। कभी भी किसी को छोटा मत समझो क्योंकि हो सकता है वह इंसान तुम्हें वह सीख दे दे जो तुम्हारी पूरी जिंदगी बदल दे।