पत्नी बोली फैसला कर लो इस घर में तेरा बाप रहेगा या मैं और उस बेटे के सामने खड़ा था वह पिता जिसने अपना सब कुछ लुटाकर उसे खड़ा किया था आज वही बाप बेटे के घर के दरवाजे पर कांप रहा था और बेटा दो रिश्तों के बीच फंसा था एक और पत्नी का हुक्म दूसरी और बाप की कांपती हुई आंखें जिसे देखकर इंसानियत भी कांप गई लेकिन जो फैसला उस बेटे ने लिया उसने आज के स्वार्थी ही रिश्तों को आईना दिखा दिया। यह कहानी सिर्फ एक बेटे की नहीं है। यह उस हर इंसान की है जो रिश्तों की कीमत समझता है और आज के समाज के लिए एक आईना भी है। पूरी कहानी जानने के लिए वीडियो को आखिरी
सेकंड तक जरूर देखें। लेकिन उससे पहले वीडियो को लाइक करें। चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें। यह सच्ची कहानी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर की है। जहां आज आदित्य और रीना की शादी की पहली सालगिरह थी। घर मेहमानों से भरा था। केक काटा गया। तालियां बजी। रीना मुस्कुराई और आदित्य ने केक का टुकड़ा काट कर जैसे ही उसके होठों की तरफ बढ़ाया। तभी आदित्य का फोन बस उठा। उसने मुस्कुराते हुए जेब से फोन निकाला। लेकिन जैसे ही नजर स्क्रीन पर पड़ी, उसकी मुस्कान पल में गायब हो गई। स्क्रीन पर चमक रहा था। पापा कॉलिंग उसके हाथ का केक
वहीं रुक गया और आंखों की चमक एक पल में धुंधली हो गई। रीना ने माथा सिकोड़ते हुए पूछा क्या हुआ? आदित्य ने कुछ कहे बिना फोन रिसीव कर लिया। नमस्ते पापा। लेकिन उधर से जो आवाज आई वो सीधी उसकी रूम में उतर गई। बेटा मुझे अपने पास बुला ले। अब नहीं रहा जाता मुझसे। कांपती आवाज जैसे किसी टूटी हुई सांस से निकली हो। ऐसा लग रहा था कि एक पिता नहीं कोई गुम हो चुका इंसान बोल रहा है। पापा क्या हुआ? सब ठीक है ना? आदित्य की आवाज में बेचैनी थी। कुछ भी ठीक नहीं बेटा। तुम्हारी भाभी ने आज भी मुझे खाना नहीं दिया और तुम्हारे भाई ने मुझ पर हाथ उठाया। सुनते ही आदित्य की
सांसे थम गई। उसके हाथ से केक की प्लेट गिर गई और वह कुर्सी पर सीधा बैठ गया। पापा की आवाज अब भी जारी थी। मुझे बहुत बुरा लग रहा है बेटा। मैं अब यहां और नहीं रह सकता। मेरी तबीयत भी ठीक नहीं है। मैं तेरे पास आना चाहता हूं। आदित्य की आंखों में आंसू भरने लगे थे। तभी रीना ने देखा कि उसके चेहरे की रंगत ही उड़ गई है। वो चिंतित होकर पास आई। आदित्य क्या हुआ? चेहरा इतना उतर गया क्यों? आदित्य ने जैसे तैसे हिम्मत जुटाई और फोन को म्यूट करते हुए धीरे से बोला। पापा थे। कह रहे हैं कि भाई भाभी उन्हें तंग करते हैं और आज तो भाई ने हाथ भी उठा दिया। रीना पहले एक पल
चुप रही। फिर उसका चेहरा सख्त हो गया। जैसे किसी का मन अचानक पत्थर बन जाए। तो तुम अब क्या सोच रहे हो? उसने ठंडी लेकिन तंज से भरी आवाज में पूछा। मुझे लगता है मुझे पापा को अपने पास बुला लेना चाहिए। आदित्य ने धीमे से कहा। बस यही सुनते ही रीना ने उसकी आंखों में आंखें डालकर वह कह दिया जिसने उस रात को सालगिरह की रात से ज्यादा जिंदगी की सबसे मुश्किल रात बना दिया। अगर तुमने पापा को इस घर में लाने की कोशिश की तो मैं यह घर छोड़ दूंगी। कमरे में सन्नाटा फैल गया था। लेकिन उस सन्नाटे के बीच रीना की वो आखिरी बात मैं यह घर छोड़ दूंगी। आदित्य के कानों में
हथौड़े की तरह बज रही थी। वो जो शादी की पहली सालगिरह पर अपनी पत्नी को हंसते हुए देखना चाहता था। अब खुद को एक ऐसे दोराहे पर खड़ा महसूस कर रहा था जहां एक रास्ता फर्ज की ओर जाता था और दूसरा डर की ओर। आदित्य की आंखें पसीने से नहीं अपराध बोध से भीग गई थी। लेकिन उसने खुद को संभालते हुए मोबाइल का म्यूट मोड ऑफ करते हुए पापा से धीरे से कहा। पापा मैं अभी शहर से बाहर हूं। दो-तीन दिन में आता हूं। फिर बात करता हूं। फोन कट गया। लेकिन उसकी आत्मा जैसे वही कहीं लटकी रह गई। फोन की उस आखिरी कापती आवाज के साथ। रीना ने जैसे कुछ हुआ
ही ना हो। केक उठाया और आदित्य की ओर बढ़ाया। अब मुंह तो मीठा कराओ। यह पल तो हमारी जिंदगी का है ना? आदित्य ने मुस्कुरा कर केक का टुकड़ा खाया। लेकिन स्वाद जैसे राख हो गया हो मुंह में। उस रात उसने बिस्तर पर लेटे बार-बार करवटें बदलते हुए खिड़की की ओर देखा। शहर की लाइटें अब भी जगमगा रही थी। लेकिन उसे सिर्फ अंधेरा दिख रहा था। उधर पापा की कांपती आवाज बेटा अब और नहीं सहा जाता। जैसे उसके दिल के हर कोने में गूंज रही थी। तीन दिन बीत गए। लेकिन आदित्य ने पापा को दोबारा कॉल नहीं किया। ना वह रीना से बात कर सका और ना ही खुद से। उसे हर वक्त
बस यही डर सता रहा था कि अगर उसने रीना की मर्जी के खिलाफ कोई फैसला लिया तो सब कुछ छीन सकता है। उसकी यह आराम की जिंदगी, यह खूबसूरत घर, यह अमीरी का सपना और शायद रीना भी। पर उसी शाम जब सूरज डूब चुका था और आदित्य बालकनी में अकेले बैठा था। दरवाजे पर एक धीमी लेकिन ठहरी हुई दस्तक हुई। उसने जाकर झांका और उसकी रूह कांप गई। दरवाजे पर उसके पापा खड़े थे। मोहनलाल जी उसी हालत में जैसे उसने फोन पर सुना था। चेहरे पर थकान, आंखों में बेबसी, कपड़े भीगे हुए और होठों पर कांपते लफ्ज। बेटा दरवाजा खोल। मैं तेरे पास आ गया हूं। एक पल के लिए आदित्य का पूरा वजूद जैसे
ठहर गया। उसके सामने उसका बाप खड़ा था। जिसने उसे गोद में उठाकर चलना सिखाया। स्कूल के पहले दिन उसकी उंगलियां थाम कर ले गया और आज वह उसी बेटे के दरवाजे पर बारिश में कांपता खड़ा था। आदित्य की आंखें भर आई। उसने दरवाजा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि पीछे से रीना की कड़कती आवाज आई। रुको आदित्य। वो तेजी से आई और उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया। कौन है बाहर? पापा है। आदित्य की आवाज कांप रही थी। यहां क्यों आए हैं वो? उसकी आवाज में अब सवाल नहीं गुस्सा था। रीना वो बीमार है। कहां जाएंगे वो? जहां से आए हैं वहीं लौट जाए। रीना ने नजरें चुरा कर नहीं
आंखों में आंख डालकर कहा वो मेरे पापा है रीना। आदित्य ने कहा जैसे आखिरी उम्मीद हो। और मैं तुम्हारी बीवी हूं। और इस घर में मैं कोई बूढ़ा बोझ नहीं चाहती। रीना ने ठंडे लेकिन ताने से भरे लहजे में जवाब दिया। उस वक्त आदित्य के पास शब्द नहीं बचे थे। उसका बाप दरवाजे के बाहर बारिश में खड़ा था और उसकी पत्नी दरवाजे के अंदर दीवार बन चुकी थी। आदित्य का हाथ अब भी दरवाजे के हैंडल पर था। लेकिन उस पर रीना का कसता हुआ हाथ जैसे एक लोहे की जजीर बन गया था। जो उसके इरादों को जकड़े खड़ा था। उसकी आंखें अब भी दरवाजे की होल से झांक रही थी और सामने उसके पापा मोहनलाल जी
भीगते हुए कांपते हुए दरवाजा खुलने की आस में दीवार के सहारे खड़े थे। एक झुर्रियों भरा चेहरा जिसमें अब तक कितनी बार धूप और धुले लगी होंगी। अब वो चेहरा उसी बेटे के दरवाजे पर यूं भीग रहा था। जिसकी खातिर उसने अपनी जवानी खपा दी थी। बेटा दरवाजा खोल। मुझे ठंड लग रही है। वो धीमी सी आवाज अब भी कानों में पड़ रही थी। लेकिन दरवाजा अब भी बंद था। आदित्य की आंखों से आंसू ब निकले। उसने रीना की ओर देखा और बोला कम से कम इतनी इजाजत दे दो कि उन्हें अंदर आने दूं। अभी तो बस रात के लिए ही। नहीं आदित्य यह घर तुम्हारे पापा के लिए नहीं
है। समझ लो यह बात हमेशा के लिए। रीना का लहजा अब तानों से नहीं हुक्म से भरा हुआ था। अगर तुमने दरवाजा खोला तो मैं अभी इसी वक्त इस घर को छोड़ दूंगी। यह कहते हुए वह मुड़ी और कमरे में चली गई। लेकिन जाने से पहले उसने दरवाजा अंदर से लॉक कर दिया। आदित्य वही ठहरा रह गया। वो कुछ नहीं बोल पाया। वो बस दीवार के सहारे बैठ गया। जैसे किसी ने उसका वजूद भी उसी बारिश में भीगा दिया हो। रात हुई। बिजली की आवाें गूंजने लगी। और आसमान फट पड़ा। उसने खिड़की का पर्दा हटाकर देखा और वह दृश्य देखकर उसका कलेजा फट गया। मोहन लाल जी उस दीवार के
पास सिकुड़ कर बैठे थे। दोनों हाथ सीने पर टिके हुए और आंखें बंद थी। शायद नींद में नहीं। बेहोशी में आदित्य का धैर्य अब जवाब दे चुका था। वो उठा दौड़कर कमरे में गया और रीना को झकझोरते हुए बोला चाबी दो रीना। अभी इसी वक्त क्या मसला है आदित्य सोने दो यार रीना ने करवट बदलते हुए कहा चाबी दो पापा मर जाएंगे बाहर उसकी आवाज अब कांप रही थी तुम ज्यादा ड्रामा मत करो आदित्य वो सुबह तक चले जाएंगे वैसे भी यह घर तुम्हारे बाप के लिए नहीं बना रीना अब पूरी तरह बेशर्मी पर उतर आई थी आदित्य ने उसके तकिए के नीचे हाथ डाला जहां से चाबी
की झंझनाहट सुनाई रीना ने झपट कर उसकी कलाई पकड़ ली। चाबी नहीं मिलेगी समझे? लेकिन आदित्य अब वो आदित्य नहीं रहा था। उसने उसकी कलाई को झटका। चाबी छीनी और दरवाजे की ओर दौड़ पड़ा। रुक जाओ आदित्य। अगर अब वह घर में आए तो मैं मैं चली जाऊंगी। रीना की चीख उसके पीछे गूंजती रही। लेकिन इस बार वह किसी आवाज की परवाह नहीं कर रहा था। उसने ताला खोला, दरवाजा खोला। और जैसे ही उसने बाहर कदम रखा उसका दिल थम गया। पापा जमीन पर बेहोश पड़े थे। चेहरे पर पानी की बूंदे। सांस बहुत धीमी। आंखें बंद। पापा आदित्य चीख पड़ा। पापा आंखें खोलिए ना
प्लीज। मैं आ गया। उसने उन्हें उठाया। लेकिन मोहनलाल जी की देव बेजान सी लग रही थी। हल्की और ठंडी। पीछे दरवाजे पर खड़ी रीना देख रही थी। लेकिन उसके चेहरे पर ना शर्म थी ना पछतावा। यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है रीना। आदित्य की चीख में अब भी सिसकियां थी। मेरी वजह से नहीं। तुम्हारी कायरता की वजह से। अगर तुम मर्द होते तो मुझसे डरते नहीं। रीना का ताना हवा में तैर गया। लेकिन आदित्य ने अब कुछ नहीं सुना। वो पापा को गोद में उठाकर तेजी से गाड़ी की ओर दौड़ा। बारिश अब भी उसी जोर से बरस रही थी। लेकिन आदित्य के सीने में तो जैसे कोई
और ही तूफान मच रहा था। वह बस बार-बार खुद से कहता जा रहा था। पापा बस कुछ नहीं होगा। मैं हूं ना पापा मैं हूं। बारिश की बूंदे अब गाड़ी की छत पर ऐसे गिर रही थी। जैसे आसमान भी उस रात इंसानियत पर रो रहा हो। आदित्य अस्पताल के गेट तक पहुंचा। गाड़ी का दरवाजा खोला और एक हाथ से पापा को संभालते हुए दूसरे हाथ से इमरजेंसी बेल बजा दी। डॉक्टर प्लीज जल्दी आइए। मेरे पापा बेहोश है। कुछ ही सेकंड में स्ट्रेचर आया। डॉक्टर्स दौड़ते हुए आए और आदित्य के हाथों से पापा को लेकर अंदर भाग गए। वो वही कॉरिडोर में बैठ गया। भीगा हुआ कांपता हुआ और खुद से नजरें चुराता हुआ। अगर एक
बेटा अपने बाप को सिर छुपाने की जगह ना दे सके तो क्या वह अमीरी का हकदार है? यह सवाल आदित्य के सीने में छुपे हर जख्म को कुरेद रहा था। थोड़ी देर बाद डॉक्टर बाहर आए। चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी थी। हमने उन्हें स्टेबल कर दिया है। लेकिन अगले 24 घंटे बहुत नाजुक है। उनकी हालत बेहद गंभीर है। कमजोर शरीर और मानसिक आघात ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया है। आदित्य की सांसे जैसे रुक गई। उसने पूछा मैं मिल सकता हूं उनसे। डॉक्टर ने सिर हिलाया। बहुत ज्यादा बात मत कीजिएगा। आदित्य कमरे में दाखिल हुआ। पापा अब भी बेसुद लेटे थे। ऑक्सीजन मास्क चेहरे पर था। शरीर पर ढेरों
तार और मशीनें लगी थी। लेकिन आदित्य को दिख रही थी सिर्फ एक चीज वह कांपता चेहरा जो कभी उसके लिए ढाल बना रहता था। वो चुपचाप उनके पास जाकर बैठ गया। उनका हाथ थमा और धीरे से बोला पापा मैं यहीं हूं। कहीं नहीं जाने दूंगा आपको। सब ठीक हो जाएगा। मोहनलाल जी ने आंखें खोली। उन्हें देखा और एक फीकी सी मुस्कान आई। बेटा उन्होंने हंठ हिलाए। अब मत छोड़ना और फिर आंखें बंद कर ली। आदित्य का दिल जैसे टूट कर गिर पड़ा। वो वहीं बैठा रहा पूरी रात। ना रीना को कॉल किया ना किसी दोस्त को। सुबह सूरज उगा तो सही। लेकिन आदित्य की आंखों के आगे अब भी वही अंधेरा था। तभी
आदित्य के मोबाइल पर एक मैसेज आया रीना का। तुम अस्पताल के ही होकर रह गए हो। ऑफिस की जिम्मेदारियां भी कोई चीज होती है। आदित्य तुमने सब कुछ बर्बाद कर दिया। उस मैसेज को पढ़कर आदित्य ने फोन बंद कर दिया और खुद से कहा अगर अमीरी की कीमत यह है कि मैं अपने पिता को खो दूं तो मुझे वो अमीरी नहीं चाहिए। भगवान ने उस दिन उसका साथ दिया। अगली शाम डॉक्टर ने कहा अब खतरा टल चुका है लेकिन देखभाल की सख्त जरूरत है। आदित्य की आंखों में जो आंसू आए वो पछतावे के नहीं थे। वो राहत के थे, शुक्रिया के थे और उस प्यार के थे जो उसने जिंदगी में पहली बार इतनी गहराई से अपने
पिता के लिए महसूस किया था। कुछ दिन बाद पापा को डिस्चार्ज मिल गया। अस्पताल से लौटते समय आदित्य के कदम भारी थे। गाड़ी के शीशे से बाहर देखते हुए वह बस एक ही सवाल खुद से पूछ रहा था। क्या मैं फिर उसी घर लौट रहा हूं? जहां मेरे पापा को इंसान नहीं बोझ समझा गया था? पापा की हालत अब पहले से बेहतर थी। लेकिन उनकी आंखों में डर अभी बाकी था। वो डर की कही वही सब कुछ फिर से ना हो। घर का दरवाजा जैसे ही खोला। सामने रीना थी। चेहरा हमेशा की तरह सख्त ना गर्मज जोशी ना अपनापन। उसने बिना मुस्कुराए कहा अब इन्हें वापस क्यों लाए हो? ठीक हो गए तो भेज देते। जरूरत क्या थी
यहां रखने की? आदित्य कुछ देर तक उसे देखता रहा। पापा का थका हुआ चेहरा, कांपते हाथ और रीना की बेरुखी। उसके भीतर कुछ टूटने लगा था। लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। पापा को धीरे-धीरे लेकर अंदर आया। उन्हें सोफे पर बिठाया, कंधों पर शॉल डाल दी और पानी का गिलास पकड़ाया। पापा की आंखों में वही डर था। जैसे वह जान गए हो कि इस घर में वो अब भी मेहमान है। शायद अवांछित। तभी दरवाजे की घंटी बजी। आदित्य के बड़े भाई और भाभी आए थे। रीना ने ताने से उनका स्वागत किया। अब तो पापा ठीक है। क्यों ना आप लोग इन्हें वापस ले जाएं। भाभी भी तिलमिलाकर बोली, “हम क्यों ले? यह
तुम्हारे पति के बाप है। हमारी जिम्मेदारी क्यों बने? पल भर में घर का माहौल जहरीला हो गया। तीनों तरफ से सिर्फ बहस, ताने और नफरत के बाण चलने लगे। पापा एक कोने में चुपचाप बैठे थे। चेहरे पर वही बेबसी, वही अकेलापन और तब आदित्य उठ खड़ा हुआ। आवाज बहुत धीमी थी। लेकिन उस शांति में भी एक तूफान छिपा था। बस बहुत हो गया। सब चुप हो गए। आदित्य ने रीना की ओर देखा। उसकी आंखों में अब भी वही शक्ति थी। रीना मैंने तुम्हारी हर बात मानी। तुम्हारे हर फैसले का सम्मान किया। लेकिन आज मैं खुद से नजर नहीं मिला पा रहा। क्योंकि तुम्हारे डर और
घमंड के बीच मैं वो बेटा खो बैठा हूं जो अपने बाप को कभी तकलीफ में नहीं देख सकता था। रीना कुछ कहने ही वाली थी। लेकिन आदित्य ने हाथ उठाकर उसे रोका। तुम्हारे पास तीन महीने हैं सोचने के लिए। अगर तुम्हें रिश्तों की अहमियत, बुजुर्गों का मान और इंसानियत की समझ है तो इन तीन महीनों में उसे साबित कर दो। वरना यह रिश्ता अब सिर्फ एक समझौता रह जाएगा और मैं समझौतों के सहारे जिंदगी नहीं जी सकता। मैं आज अभी इस घर को छोड़कर जा रहा हूं। और शायद अब कभी लौटूं भी नहीं। रीना का चेहरा सफेद पड़ गया। आदित्य तुम ऐसा नहीं कर सकते। मैंने गलती की लेकिन तुम
इतनी बड़ी सजा दोगे। पापा को यही रहने दो। मैं सब ठीक कर दूंगी। प्लीज बस एक मौका। वो आदित्य के पैरों में गिर पड़ी। मैं वादा करती हूं। सब बदल दूंगी। तुम जहां कहोगे जैसे कहोगे मैं वैसे करूंगी। प्लीज मत जाओ। लेकिन इस बार आदित्य की आंखों में पानी नहीं था। बस पत्थर जैसी शांति और एक साफ फैसला। मैं थक चुका हूं। रीना मैंने सब झेला लेकिन अब नहीं। पापा को कोई और तकलीफ नहीं दूंगा। मैं उनका बेटा हूं और इस बार उन्हें बचाने जा रहा हूं। खुद से भी इस दुनिया से भी। उसने पापा का हाथ पकड़ा। धीरे से उन्हें सहारा देकर उठाया और बिना पीछे देखे दरवाजे से बाहर निकल
गया। रीना वही जमीन पर बैठ गई। सिसकती रही लेकिन आदित्य नहीं रुका। उसी दिन ही आदित्य ने एक किराया का फ्लैट ले लिया और अब उस फ्लैट में दो इंसान रहने लगे। एक पिता और एक बेटा। घर छोटा था। लेकिन उस घर में अब कोई ताना नहीं था। कोई अपमान नहीं था। सिर्फ प्यार था, सेवा था और एक बेटे का फर्ज था। आदित्य अब खुद खाना बनाता है। पापा के पैरों को दबाता है और रात को उनके बगल में बैठकर वो कहानियां सुनाता है जो कभी पापा ने उसे बचपन में सुनाई थी। पापा अब मुस्कुराते हैं क्योंकि अब वह सिर्फ जिंदा नहीं है। वो सम्मान के साथ जी रहे हैं और आदित्य अब उसे किसी पछतावे का डर
नहीं है क्योंकि उसने वह किया जो एक सच्चे बेटे को करना चाहिए। दोस्तों अगर किसी रिश्ते में सिर्फ शब्द रह जाए और आत्मा मर जाए तो उसे निभाना नहीं चाहिए। उसे छोड़ देना चाहिए। कभी-कभी इंसान को अपना सम्मान बचाने के लिए उसे सबसे करीब के रिश्तों से भी दूर जाना पड़ता है। क्योंकि जहां सम्मान नहीं वहां संबंध भी नहीं टिकते। अब एक सवाल आप सभी से अगर आप आदित्य की जगह होते। क्या आप भी वही करते या पत्नी के डर, घमंड और पैसे की वजह से अपने पिता को अपमान के बीच जीने के लिए मजबूर कर देते? कमेंट करके जरूर बताइए क्योंकि आपकी एक राय हजारों लोगों की आंख खोल सकती है और
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