किसी के जूते पुराने हो सकते हैं, लेकिन उसके इरादे नहीं। कभी भी किसी को उसके पहनावे से मत आंखो। काबिलियत अक्सर सादगी के पीछे छिपी होती है। दिल्ली के एक नामी औद्योगिक इलाके में सुबह 10:00 बजे का समय था। आर्यन टेक इंडस्ट्रीज की बिल्डिंग के बाहर रोज की तरह हलचल थी। कर्मचारी अंदर बाहर जा रहे थे। गाड़ियों की कतारें और गेट पर एक सख्त चेहरे वाला सुरक्षा गार्ड तैनात था। उसी भीड़ के बीच एक दुबला पतला युवक उम्र लगभग 22 धीरे-धीरे चलते हुए गेट के पास पहुंचा। उसका नाम था शिवम। गहरे भूरे रंग की पुरानी शर्ट जिसकी कॉलर फटी हुई थी। पैंट पर एक छोटा सा पैब और
चप्पलों में धूल जमी हुई थी। लेकिन चेहरे पर डर नहीं। आशा थी। शिवम ने गेट के पास जाकर थोड़े संकोच से कहा। भैया मुझे यहां नौकरी के बारे में पूछना था। गार्ड ने पहले उसके कपड़े देखे। फिर नीचे से ऊपर तक उसे तिरस्कार से नापा। क्या बोले? नौकरी यहां। शिवम ने हिम्मत से कहा, “जी मैंने बीकॉम किया है और कंप्यूटर थोड़ी बहुत आती है। कोई छोटा काम भी हो तो। गार्ड हंस पड़ा। भाई यहां चाय बनाने की भी वैकेंसी नहीं है तेरे लिए। तू दिख क्या रहा है खुद को? भीतर से कुछ कर्मचारी बाहर निकल रहे थे। उन्होंने भी हंसते हुए एक दूसरे से फुसफुसाया। हर कोई सीईओ बनने चला आता है।
बस एक रिज्यूुमे लेकर शिवम की आंखें झुक गई। उसने जेब से एक साफ सिला हुआ फोल्डर निकाला। वो जो उसने अपने पिताजी की पुरानी प्लास्टिक फाइल को काट कर बनाया था और दिखाने की कोशिश की। साहब मेरी डिग्री है। एक बार एचआर से गार्ड ने झुंझुला कर कहा। समझ में नहीं आता क्या? जा यहां से। रोज आ जाते हैं ऐसे हजार लोग। हमने कौन सी चैरिटी खोली है? और तभी गार्ड ने उसके कंधे पर हाथ रखकर धक्का दे दिया। चल निकल। शिवम लड़खड़ा गया। कुछ कदम पीछे हट गया। उसके गले में कुछ अटक गया था। बोलना चाहता था पर बोल नहीं पाया। क्या मेरे जैसे लोगों को सिर्फ इसलिए बाहर कर दिया जाता
है क्योंकि हमारे कपड़े अच्छे नहीं है? यह सवाल उसकी आंखों में तैर रहा था। वह धीरे-धीरे मुड़कर जाने ही वाला था कि तभी एक सफेद Mercedes कार गेट के सामने आकर रुकी। ड्राइवर बाहर निकला और गार्ड को सलाम किया। कार की खिड़की नीचे हुई। अंदर बैठे व्यक्ति की आंखें तेज थी। उम्र करीब 45 सलीके का सूट लेकिन चेहरा बेहद सधा हुआ। क्या हुआ यहां? उसने धीमे लेकिन दृढ़ स्वर में पूछा। गार्ड घबरा गया। सर कुछ नहीं। यह लड़का बस ऐसे ही अंदर आने की जिद कर रहा था। शिवम ने पीछे से सुना लेकिन इस बार वह चुप नहीं रहा। सर मैं सिर्फ नौकरी मांग रहा था। किसी से कुछ नहीं छीना। बस
एक मौका मांगा था। कार में बैठे शख्स की आंखें अब शिवम पर टिकी थी। कुछ तो था उसकी आवाज में। कोई डर नहीं, कोई दिखावा नहीं। सिर्फ सच्चाई और विनम्रता। उसने खिड़की और नीचे की। तुम्हारा नाम? शिवम वर्मा सर। अंदर आओ। गार्ड ने चौंक कर देखा। सर मैंने कहा उसे अंदर भेजो और हां तुम्हें बाद में मिलना है मुझसे। गार्ड का मुंह सूख गया। शिवम अभी भी अचंभे में था लेकिन कदमों में फिर से आत्मविश्वास लौट आया था। वो फोल्डर संभालते हुए अंदर की ओर बढ़ गया। उसे क्या पता था कि यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं बल्कि उसकी किस्मत का दरवाजा खुलने जा रहा है।
आर्यन टेक की बिल्डिंग के भीतर कदम रखते ही शिवम को एक अजीब सी ठंडक महसूस हुई। शायद ऐसी की नहीं बल्कि उस दुनिया की जो अब तक उसके लिए केवल सपनों जैसी थी। चमकदार मार्बल फ्लोर, शीशे की दीवारें और रिसेप्शन पर बैठे स्टाफ जो एकदम प्रोफेशनल लग रहे थे। सर बुला रहे हैं आपको ऊपर बोर्ड रूम में। रिसेप्शनिस्ट ने कहा शिवम ने धीमे से सिर हिलाया। वह अभी भी समझ नहीं पा रहा था कि यह सब हो क्या रहा है। बोर्डरूम में आर्यनटेक के मालिक अर्जुन खन्ना अब अपनी कुर्सी से उठकर खिड़की के पास खड़े थे। सामने शहर का नजारा था। ऊंची इमारतें, भागती गाड़ियां और कहीं नीचे वह
गेट जहां अभी कुछ मिनट पहले एक इंसान को उसके कपड़ों के कारण धक्का दिया गया था। बैठो। उन्होंने बिना देखे कहा, शिवम चुपचाप बैठ गया। तुम्हें पता है मैं कौन हूं? जी। शायद कंपनी के मालिक। सही पकड़ा। अर्जुन मुस्कुराए। फिर उन्होंने पहली बार शिवम की आंखों में देखा। तुम यहां क्यों आए थे? अगर तुम जानते हो कि तुम्हारे पास अनुभव नहीं है फिर भी क्यों लगा कि इस कंपनी में आना चाहिए। शिवम ने कुछ सेकंड सोचा फिर बोला क्योंकि मुझे खुद पर भरोसा है सर और मैंने सुना था कि इस कंपनी में सिर्फ डिग्री नहीं मेहनत देखी जाती है। कमरे में कुछ पल के लिए शांति छा गई।
अर्जुन अब अपने डेस्क पर लौटे। उन्होंने इंटरकॉम उठाया। एचआर को बोर्ड रूम में भेजो। शिवम चौका सर तुम्हारा इंटरव्यू यहीं होगा और अगर मैं संतुष्ट हुआ तो तुम्हें नौकरी नहीं सीधा टीम लीडर की पोस्ट मिलेगी। अब शिवम पूरी तरह से स्तब्ध था। टीम लीडर हां क्योंकि तुम में जो आत्मविश्वास है वो किताबों में नहीं मिलता। तुम्हारी आंखों में डर नहीं, ईमानदारी है। और सबसे जरूरी बात तुम्हारी विनम्रता ने आज मुझे सिखाया कि टैलेंट कभी कपड़ों में नहीं दिखता। उसी वक्त एचआर हेड अनीता शर्मा कमरे में आई। मैम अर्जुन बोले शिवम वर्मा अब हमारी कंपनी का नया टीम लीडर है। आज से
पूरा ओनर बोर्डिंग इनसे करवाइए। अनीता ने चौंक कर शिवम को देखा। लेकिन अर्जुन की आंखों में जो दृढ़ता थी उसके आगे कोई सवाल उठ ही नहीं सका। नीचे गेट पर वही गार्ड अब शिवम को अंदर आता देख अच गया। शिवम के पास जाते ही गार्ड ने कहा, भाई मुझे माफ कर देना। मैंने पहचानने में गलती कर दी। शिवम ने मुस्कुरा कर कहा, “गलती पहचानने में नहीं थी। सोच में थी।” और सोच बदले तो हर गलती माफ की जा सकती है। शिवम के पहले दिन की शुरुआत वैसी नहीं थी जैसे किसी सामान्य कर्मचारी की होती। ना कोई औपचारिक इंटरव्यू ना दस्तावेजों की लंबी प्रक्रिया। सिर्फ एक पहचान जो अर्जुन
खन्ना जैसे व्यक्ति ने देख ली थी। बाकी सब अपने आप बदलता चला गया। एचआर हेड अनीता शर्मा ने पूरे प्रोसेस को तेजी से पूरा किया। उन्होंने भी महसूस किया कि इस लड़के में कुछ खास है। कम बोलने वाला लेकिन हर सवाल का जवाब पूरे आत्मविश्वास से देने वाला। आरंभिक ट्रेनिंग रूम में कई नए कर्मचारी एक दूसरे से बातें कर रहे थे। जैसे ही शिवम वहां पहुंचा कुछ लोग उसे पहचान गए। अरे यह तो वही लड़का है ना जिसे गार्ड ने बाहर से भगाया था। हां हां। लेकिन सुना है मालिक ने खुद इसे नौकरी दी है। कुछ तो बात होगी इसमें। पहले जहां उसके कपड़े और झिझक मजाक का
विषय थे। अब वही लोग उसे नई निगाह से देखने लगे थे। दोपहर को अर्जुन खन्ना ने ऑफिस में एक छोटा सा मीटिंग रखा। विषय था बायस फ्री हायरिंग कल्चर। भेदभाव से मुक्त भर्ती नीति। अर्जुन खड़े हुए और सबकी ओर देखकर बोले आज मैं आप सभी से एक घटना साझा करना चाहता हूं। उन्होंने सबको बताया कि कैसे गेट के बाहर एक युवक सिर्फ अपने साधारण कपड़ों के कारण रिजेक्ट कर दिया गया था। लेकिन जब उन्होंने उसकी आंखों में झांका तो वहां उन्हें काबिलियत, विनम्रता और उम्मीद दिखी। अगर मैं उसे उसके पहनावे के आधार पर जज करता तो शायद हम एक बेहतरीन इंसान खो देते। इसलिए अब से आर्यनटेक में
सिर्फ एक चीज देखी जाएगी। काबिलियत पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। शिवम की असली परीक्षा शुरू हुई। अगले हफ्ते। उसे एक टीम सौंपी गई जिसमें तीन ऐसे कर्मचारी थे जो कई महीने से असफल हो रहे थे। उनके प्रोजेक्ट डेडलाइंस लगातार मिस हो रहे थे। शिवम ने किसी को दोष नहीं दिया। उसने सबको बैठाया, सुना, समझा और एक नई रणनीति बनाई जिसमें सबकी ताकत का सही इस्तेमाल हो। 7 दिन के अंदर उस टीम ने अपना पहला टास्क टाइम पर पूरा कर दिया। अर्जुन ने खुद टीम को कॉल कर बधाई दी। शिवम का नाम अब पूरे ऑफिस में फैल चुका था। वह लड़का जो गेट से लौटाया गया था आज
सबसे मुश्किल टीम को लीड कर रहा है। एक दोपहर गार्ड फिर से मिला शिवम से हाथ में पानी की बोतल ली। सर अब आप मैनेजर बन गए हो। लेकिन यकीन मानिए उस दिन के बाद मेरी सोच बदल गई है। अब जब भी कोई सादे कपड़ों में नौकरी मांगने आता है, मैं उसे बैठाकर चाय पिलाता हूं। शिवम ने मुस्कुराते हुए उसका कंधा थपथपाया। बस यही तो असली तरक्की है। सोच में बदलाव।
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