डॉक्टर बहू ने सास को गमवार कहा। वहीं निकली यूनिवर्सिटी की सबसे सम्मानित प्रोफेसर फिर जो हुआ वह बहू ने सपने में भी नहीं सोचा था। लेकिन यह कहानी आज के समाज की सच्चाई है और आज की बहुओं के लिए एक आईना भी है। दोस्तों, यह कहानी है उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर की। जहां शहर के बीचोंबीच एक आलीशान कॉलोनी में शाम की हल्की ठंडक के बीच रोशनी जगमगा रही थी। दीवारों पर सुनहरी झालरें लटक रही थी और घर के आंगन में ढोलताशे की आवाजें गूंज रही थी क्योंकि आज था आर्यन मल्होत्रा की शादी का दिन। आर्यन एक सीधा साधा संस्कारी शांत स्वभाव का नौजवान जो अपनी मां मीना

देवी मल्होत्रा से बेहद लगाव रखता था। पिता के गुजर जाने के बाद उसने मां की हर कमी को अपनी मेहनत से पूरा करने की कोशिश की थी। उसने हमेशा अपनी नौकरी, अपने आराम और अपनीत्वाकांक्षा से पहले अपनी मां की खुशियों को जगह दी थी। उसकी नजर में मां का सुकून ही उसकी सबसे बड़ी सफलता थी। मीना देवी लखनऊ यूनिवर्सिटी की पूर्व प्रोफेसर रह चुकी थी। वो नाम जिसने कभी पूरे विश्वविद्यालय में सम्मान का स्थान पाया था। उनकी क्लास में बैठना बच्चों के लिए गर्व की बात होती थी। उन्होंने सैकड़ों बच्चों के भविष्य को दिशा दी थी। लेकिन पति के जाने के बाद उन्होंने अपने

करियर से ज्यादा अपने परिवार को चुना। उन्होंने अपनी किताबों को अलमारी में रख दिया। ताकि अपने दोनों बच्चों आर्यन और सिया को जीवन की सच्चाई सिखा सके। उन्होंने अपनी इच्छाओं को दबाया। अपने अरमानों को भुलाया और सिर्फ इस बात की कोशिश की कि उनके बच्चों के चेहरे पर कभी मायूसी की लकीर ना आए। आज जब आर्यन की शादी का दिन आया तो मीना देवी के चेहरे पर वही सुकून था जो एक मां के दिल में तब उतरता है जब वह अपने बेटे को नई जिंदगी की दहलीज पर खड़ा देखती है। उनके होठों पर हल्की मुस्कान थी और आंखों में कृतज्ञता। अब मेरा बेटा भी अपना घर बसाने जा रहा है।

अब मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी चिंता खत्म हुई। दुल्हन थी रिद्धिमा कपूर। एक खूबसूरत पढ़ी लिखी और आत्मविश्वासी डॉक्टर उसके चेहरे पर आधुनिकता की चमक थी और उसके हर शब्द में आत्मविश्वास की झलक वो अपने करियर पर गर्व महसूस करती थी और अपनी सोच को दूसरों से श्रेष्ठ मानती थी वो मानती थी कि जिंदगी में सफलता का असली मापदंड पैसा शिक्षा और स्वतंत्रता है। शादी की रस्में, हंसी, संगीत और रौनक से भरी हुई थी। सात फेरे पूरे हुए और जब आर्यन ने रिद्धिमा की मांग में सिंदूर भरा। मीना देवी की आंखों में आंसू छलक पड़े। वो आंसू खुशी के थे। अपने बेटे के लिए दुआओं के

थे। वो सोच रही थी। अब मेरा घर पूरा हो गया। मगर उन्हें क्या पता था? जिस बहू को उन्होंने अपने घर की लक्ष्मी समझा था वही इस घर की शांति और मर्यादा को तोड़ने वाली थी। अगले ही दिन घर में मुंह दिखाई की रस्म थी। हर कोई नई बहू को देखने को उत्सुक था। रिश्तेदारों के बीच हसीन जाग, चाय की चुस्कियां और गहनों की चमक माहौल उत्सव जैसा था। मीना देवी ने मुस्कुराते हुए कहा सिया बेटा जा अपनी भाभी को बोल दे कि तैयार होकर आ जाए। सब लोग इंतजार कर रहे हैं। सिया ने सिर हिलाया और धीरे से रिद्धिमा के कमरे की ओर चली गई। उसने दरवाजे पर हल्की दस्तक दी। भाभी मां बुला

रही है। सब बैठे हैं। आप जल्दी आइए ना। कुछ ही पल बाद कमरे का दरवाजा जोर से खुला और रिद्धिमा तेज कदमों से बाहर आई। उसकी चाल में आत्मविश्वास और चेहरे पर अजीब सा घमंड था। कमरे में बैठे सभी रिश्तेदार अचानक चुप हो गए। जहां सबको उम्मीद थी कि नई बहू साड़ी में सजी सिर झुकाए गहनों से दमकती हुई आएगी। वहां सामने खड़ी थी रिद्धिमा, जींस और टॉप में खुले बाल, आधुनिक अंदाज और आंखों में ऐसा भाव जैसे उसने इस घर के सारे नियम तोड़ दिए हो। रिश्तेदारों के बीच खुसरपुसर शुरू हो गई। किसी ने कान में कहा, नई बहू तो बहुत मॉडर्न है। मीना देवी ने थोड़ी देर तक

रिद्धिमा को देखा। फिर मुस्कुरा कर कहा बेटा आज रस्म है। अगर साड़ी पहन लेती तो अच्छा लगता। रिद्धिमा ने तीखे स्वर में जवाब दिया मां जी मैं डॉक्टर हूं। कोई आपकी तरह गांव की औरत नहीं जो 5 मीटर की साड़ी लपेट कर घूमूं। इतनी गर्मी में कौन यह सब पहनता है? मुझे ऐसे कपड़े पसंद नहीं। उसकी आवाज में उपेक्षा थी। और उस एक वाक्य ने मीना देवी के दिल में जैसे किसी ने पत्थर रख दिया। पूरा हॉल खामोश हो गया। कोई कुछ नहीं बोला। बस हर निगाह अब मीना देवी की ओर थी। किसी ने फुसफुसाकर कहा अरे कैसी बहू मिली है मीना को। मीना देवी ने अपने भीतर उठे तूफान को दबाया और

मुस्कुराते हुए कहा, कोई बात नहीं। हर जमाने का अपना तरीका होता है। जो तुम्हें अच्छा लगे वही ठीक है। उन्होंने अपने शब्दों से अपना दर्द छिपा लिया क्योंकि उन्हें अपनी परवरिश की मर्यादा निभानी थी। शाम तक रिद्धि मां अपने दोस्तों से वीडियो कॉल पर हंसती रही। उसने कैमरे के सामने हंसते हुए कहा यार मेरी सास तो एकदम पुराने जमाने की है। हर बात में संस्कार सभ्यता का लेक्चर देती रहती है। मैं डॉक्टर हूं। मुझे यह सब नाटक पसंद नहीं। फोन के दूसरी तरफ दोस्तों की हंसी गूंजी। अरे छोड़ ना अब तेरी चलेगी। रिद्धिमा को क्या पता था कि जिस औरत को वह पुराने

जमाने की कह रही थी वही कभी उस जमाने की सबसे प्रख्यात प्रोफेसर रह चुकी थी। जिनके एक शब्द पर छात्र खड़े होकर तालियां बजाते थे। जिन्होंने हजारों जिंदगियां संवारी थी। रात के सन्नाटे में मीना देवी आंगन में अकेली बैठी थी। आसमान में चांद शांत था। मगर उनके दिल में तूफान था। सिया धीरे से आई। पास बैठी और पूछा, मां आप परेशान है? मीना देवी ने धीमी आवाज में कहा, नहीं बेटा बस सोच रही हूं। कभी-कभी जिस घर में हम अपनी पूरी जिंदगी लगा देते हैं। वहीं हमें अपनेपन की तलाश करनी पड़ती है। उनकी आंखों में आंसू थे। लेकिन आवाज में अजीब

सी स्थिरता। मैंने हमेशा सिखाया है कि दूसरों का सम्मान करो। शायद वक्त अब मुझे वही सबक फिर से याद दिलाने आया है। वो मुस्कुराई मगर वो मुस्कान उनके दिल की चुपीड़ा को छिपा नहीं पाई। उन्हें नहीं पता था कि अब वक्त सिर्फ सबक नहीं देगा बल्कि इस घर में एक ऐसा मोड़ लाने वाला है। जो सबकी सोच बदल देगा। अगले दिन की सुबह की धूप ने लखनऊ की हवेली के आंगन को सुनहरी चादर की तरह ढक दिया। दीवारों पर परछाइयां नाच रही थी। लेकिन घर का माहौल भारी था। आज घर में रिद्धिमा की पहली रसोई थी। वह रस्म जिसे हर सास अपने जीवन का सबसे प्यारा पल मानती है। जहां नई बहू

अपने हाथ से मिठाई बनाती है और उस मिठास से घर की नई शुरुआत होती है। पर आज उस मिठास में अहंकार की कड़वाहट घुलने वाली थी। मीना देवी सुबह-सुबह उठ चुकी थी। सूरज की हल्की किरणें खिड़की से होकर रसोई में उतर रही थी और वह अपनी साड़ी का पल्लू सिर पर रखे धीरेधीरे सफाई कर रही थी। उन्होंने सावधानी से रसोई का हर कोना सवारा। थाली में दूध, चावल और गुट सजाया और मन ही मन भगवान से प्रार्थना की। आज मेरी बहू अपने हाथों से खीर बनाएगी। भगवान करे उसके हाथों में हमेशा मिठास रहे। उनकी आवाज में आशा थी। चेहरे पर खुशी और दिल में एक अजीब

सी ममता। सिया ने पास आकर मुस्कुराते हुए कहा, “मां मैं भाभी को बुला लाती हूं।” मीना देवी ने सिर हिलाया। उनकी आंखों में एक मां की नम्र खुशी थी। सिया हल्के कदमों से रिद्धिमा के कमरे की ओर गई। कमरे में मोबाइल की रिंगटोन बज रही थी। रिद्धिमा आईने के सामने बैठी थी। चेहरे पर क्रीम लगाकर मोबाइल से वीडियो बना रही थी। गाइस आज मेरी पहली रसोई है। लेकिन मैं तो बस रस्म निभाने जा रही हूं। मुझे कुकिंग से ज्यादा सर्जरी पसंद है। उसके हावभाव में हल्का घमंड था जैसे उसे अपनी बातों पर फक्र हो। सिया दरवाजे तक आ गई और धीरे से बोली भाभी मां बुला रही है। सब लोग इंतजार

कर रहे हैं। रिद्धिमा ने ऊपर देखे बिना कहा। तुम्हें बोलने की जरूरत नहीं। मैं आ जाऊंगी। सिया चुपचाप वापस मुड़ गई। कुछ मिनट बाद रिद्धिमा आई। पर चेहरे पर ना मुस्कान थी ना उत्साह बल्कि एक अजीब सी झुंझलाहट थी। मां जी बताइए क्या बनाना है? उसके लहजे में सम्मान से ज्यादा औपचारिकता थी। मीना देवी ने प्यार से कहा बेटा बस खीर बना लो। परंपरा है। बाकी मैं सब देख लूंगी। रिद्धिमा ने आईने में खुद को देखते हुए कहा, “आता है मैं सिर्फ खीर बना सकती हूं?” मैं डॉक्टर हूं। दिन भर ऑपरेशन करती हूं। यह सब पुरानी बातें हैं। मुझे ऐसे टाइम वेस्ट करना अच्छा नहीं लगता। मीना

देवी एक पल के लिए चुप रही। फिर धीरे से बोली, बेटा, यह कोई काम नहीं। यह भावना है। जैसे मंदिर में दिया जलाते हैं। वैसे ही रसोई में बहू की पहली मिठाई शुभ मानी जाती है। उनकी आवाज में प्यार था। पर रिद्धिमा के चेहरे पर बेचैनी था। वो हल्का हंस पड़ी। ओ प्लीज मां जी इन बातों में मुझे यकीन नहीं। यह सब पुराने जमाने की अंधविश्वास बातें हैं। मैं तो बस रस्म निभाने आ गई हूं। उसने किचन के कोने में पड़ी तैयार खीर का बर्तन उठाया। थोड़ी चीनी डाली। ऊपर से दो काजू रखे और बोली हो गया। सिया हैरान हो गई। भाभी आपने खुद नहीं बनाई? रिद्धिमा ने बिना देखे कहा

मुझे हॉस्पिटल जाना है। तुम लोगों को मीठा चाहिए था तो ले लो। मैं डॉक्टर हूं कुक नहीं। वो इतना कहकर कमरे से चली गई। मीना देवी चुपचाप खड़ी रही। उनकी आंखों के नीचे थकान और मन में कड़वाहट थी। उन्होंने धीरे से वह खीर थाली में डाली और हॉल की ओर गई। जहां रिश्तेदार इंतजार कर रहे थे। किसी ने कहा नई बहू की खीर तो बहुत मीठी होगी। मीना देवी ने मुस्कुरा दिया पर उनके दिल में उस मिठास से ज्यादा कड़वाहट थी। जब मेहमानों ने कहा बहू आशीर्वाद लो तो रिद्धिमा ने बिना संकोच कहा, मां जी मैं किसी के पैर नहीं छूती। इतने लोगों के पैरों तक झुकना मेरे लिए मुश्किल है। कमरे

में सन्नाटा छा गया। हर नजर मीना देवी की ओर थी। वह थोड़ी देर खड़ी रही। फिर धीरे से बोली, कोई बात नहीं। रस्म दिल से होनी चाहिए। शरीर से नहीं। उनके शब्दों में विनम्रता थी। पर आवाज थोड़ी कांप गई। उन्होंने अपने आंसुओं को अंदर ही रोक लिया। रात हो गई थी। सारा घर सो गया। पर मीना देवी के कमरे की लाइट अब भी जल रही थी। वो कुर्सी पर बैठी आसमान की ओर देख रही थी। उनकी आंखों से धीरे-धीरे आंसू बह रहे थे। वह धीरे से बोली, शायद अब वक्त बदल गया है। अब लोग संस्कार को पुराना फैशन समझने लगे हैं। उनके चेहरे पर थकान थी। पर आंखों में एक पुराना दर्द जाग उठा

था। अचानक उनके मन में अतीत का एक दरवाजा खुल गया। उन्हें याद आया वह दिन जब वह लखनऊ यूनिवर्सिटी की सबसे सम्मानित प्रोफेसर थी। उनके लेक्चर पर छात्र खड़े होकर तालियां बजाते थे। उन्होंने सैकड़ों गरीब बच्चों की फीस भरी थी। उनके लिए स्कॉलरशिप दिलाई थी। लेकिन पति की अचानक मौत के बाद उन्हें वह दुनिया छोड़नी पड़ी। घर की जिम्मेदारियों ने किताबों को पीछे छोड़ दिया। उन्होंने आ भरी। कभी जो दूसरों के सपनों में रोशनी भरती थी। आज उसी को अपने घर में अंधेरे से लड़ना पड़ रहा है। दूसरे कमरे में सिया भी जाग रही थी। उसने मां के कमरे की हल्की रोशनी देखी और धीरे

से दरवाजा खोला। मां आप अब तक जाग रही है? मीना देवी ने मुस्कुराकर कहा। नींद तो आती है बिटिया पर दिल में कुछ सवाल है जो चैन नहीं देते। सिया उनके पास बैठ गई और धीरे से बोली मां आप रिद्धि मां भाभी की बातों को दिल पर मत लीजिए वह समझ जाएंगी एक दिन मीना देवी ने उसकी आंखों में देखा हां बेटा वक्त सब कुछ सिखा देता है लेकिन कभी-कभी सबक आने तक दिल बहुत घायल हो जाता है। उनकी आवाज धीरे-धीरे भर आई। उनकी नजरें आसमान की ओर थी और मन में एक चुप दर्द। वह नहीं जानती थी कि अब किस्मत ने उनके लिए ऐसा मोड़ लिखा है जो उनकी पहचान को फिर से जगाएगा। और वही रिद्धिमा जिसने

आज उन्हें गमवार कहा था। कल उन्हीं के पैरों में सिर झुकाकर माफी मांगेगी। धीरे-धीरे रात गहराती जा रही थी। हवेली के आंगन में चांदनी चुपचाप बिखर रही थी। और उस उजाले में मीना देवी की खामोशी किसी अनकही वेदना की तरह चमक रही थी। हवा में एक अजीब सी ठंडक थी। जैसे दीवारें भी इस घर के बदलते रिश्तों की साक्षी बन गई हो। रात ने जैसे एक सवाल छोड़ा था हवेली की चौखट पर। क्या सास और बहू के बीच का यह अहंकार कभी खत्म होगा। यह वक्त ही इस घर को सिखाएगा कि असली इस्त डिग्री से नहीं संस्कार से होती है। अगली सुबह की हल्की किरणें पर्दों से झांक रही थी। पर हवेली

के भीतर का माहौल अब भी ठंडा था। वह ठंडक जो तब फैलती है जब शब्द सखम बन जाते हैं और खामोशियां संवादों को निगल जाती है। रिद्धिमा अब भी अपने रवय पर गर्व महसूस कर रही थी। उसे लगता था कि वह इस घर की सबसे आधुनिक, सबसे सफल और सबसे सही इंसान है। उसे अपने ज्ञान पर इतना घमन था कि वह दूसरों के अनुभवों को महत्व देना भूल चुकी थी। उसे ना मां की चुप्पी दिखी ना सिया की आंखों की नमी। वह बस अपने अहंकार की दीवारों में बंद थी। शाम को जब आर्यन ऑफिस से लौटा तो उसने देखा कि मां बहुत शांत है। उनके चेहरे की मुस्कान कहीं खो गई थी। मां तबीयत ठीक है? उसने चिंता से पूछा।

मीना देवी ने धीरे से मुस्कुराकर कहा, ठीक हूं बेटा। बस थोड़ी थकान है। पर आर्यन समझ गया कि यह थकान शरीर की नहीं दिल की थी। उसने रिद्धिमा की ओर देखा और कहा रिया मां बहुत थकी है। थोड़ा मदद कर दो। रिद्धिमा ने मोबाइल से नजर उठाए बिना कहा मां जी तो खुद ही सब कुछ कर लेती है। अब मुझे बीच में पढ़ने की क्या जरूरत? उसके शब्दों में उपेक्षा थी और लहजे में अहंकार। आर्यन ने गहरी सांस ली। लेकिन कुछ कहा नहीं। क्योंकि पति का सबसे बड़ा दर्द यही होता है कि वह मां और पत्नी के बीच खड़ा रहकर भी किसी एक का पक्ष नहीं ले पाता। सिया सब

कुछ देख रही थी। मां की आंखों में जो दर्द था वो उसके दिल में उतर गया। रात को जब घर सो गया सिया मां के पास आई। उनका हाथ थामते हुए बोली मां अब वक्त आ गया है कि भाभी को आपके असली रूप के बारे में पता चले। मीना देवी ने धीमे स्वर में कहा नहीं बेटा मैं किसी को अपनी पहचान से नहीं अपने व्यवहार से जीतना चाहती हूं। अगर वक्त आया तो खुद वक्त बोलेगा। सिया चुप हो गई पर उसकी आंखों में उम्मीद की चमक थी। और वह वक्त अब दूर नहीं था। कुछ दिन बाद रिद्धिमा के ममेरे भाई अंकुर खन्ना दुबई से आने वाले थे। सुबह से ही रिद्धिमा घर की तैयारी में लगी थी। पर उस तैयारी में

अपनापन नहीं दिखावा था। वह गर्व से कह रही थी मां जी मेरे भाई अंकुर आ रहे हैं। वह दुबई में डॉक्टर हैं। बहुत बड़े हॉस्पिटल में काम करते हैं। आप उनसे मिलिएगा तो समझ जाएंगी कि हमारे घराने का स्तर क्या है। उसके हर शब्द में तुलना थी। हर वाक्य में अपनेपन की कमी। शाम को डोरबेल बजी। सिया ने दरवाजा खोला। सामने एक हैंडसम नौजवान खड़ा था। सूटबूट में आत्मविश्वास से भरा चेहरा। उसने मुस्कुराकर कहा, “जी मैं अंकुर खन्ना। रिद्धिमा का भाई। सिया ने नम्रता से मुस्कुराया। आइए अंदर आइए।” तभी मीना देवी रसोई से बाहर आई। उनके हाथ में स्टील की थाली थी। चेहरा सादगी से भरा और

जैसे ही अंकुर की नजर उन पर पड़ी, वो ठिठक गया। उसके चेहरे का रंग बदल गया। आंखें नम हो गई। वह एक पल के लिए बोला नहीं। फिर अचानक आगे बढ़ा और मीना देवी के पैरों में झुक गया। सब लोग हैरान रह गए। रिद्धिमा की आंखें फैल गई। भाई यह क्या कर रहे हो? अंकुर की आवाज कांप रही थी। मैम मैं आपको ढूंढ रहा था सालों से। आपने मुझे पढ़ाया था लखनऊ यूनिवर्सिटी में सेकंड ईयर में। आपने मेरी फीस अपनी जेब से भरी थी। अगर आप ना होती तो मैं आज डॉक्टर नहीं बन पाता। पूरा कमरा खामोश हो गया। हवा तक थम गई। रिद्धिमा के चेहरे से घमंड का रंग उड़ गया। वो लड़खड़ाती आवाज में बोली क्या? ये

प्रोफेसर है। अंकुर ने उसकी ओर मुड़कर कहा, “रिया, तुम जानती भी हो यह कौन है?” यह प्रोफेसर मीना देवी मल्होत्रा है जिनके एक लेक्चर पर पूरा हॉल खड़ा होकर तालियां बजाता था। जिनकी वजह से हम जैसे सैकड़ों बच्चे अपना रास्ता पा सके। यह सिर्फ एक टीचर नहीं हम सबके लिए मां थी। रिद्धि मां वहीं खड़ी रह गई। उसके हंठ कांप रहे थे। आंखों में पानी भर आया। उसे वह पल याद आने लगे जब उसने इन्हीं पैरों के आगे झुकने से इंकार किया था। जब उसने कहा था मैं किसी के पैर नहीं छूती जब उसने इन्हीं को कमवार कहा था। आज उसी स्त्री के सामने उसकी

आत्मा झुक रही थी। आर्यन के चेहरे पर गर्व था। सिया की आंखें नम हो गई। आर्यन ने मां का हाथ थामा और कहा मां आज मेरा सिर फक्र से ऊंचा हो गया। मीना देवी कुछ नहीं बोली। बस शांत मुस्कान उनके चेहरे पर थी। वो मुस्कान जो बहुत कुछ कहती थी। अंकुर बोला मैम कल टीचर्स डे है। यूनिवर्सिटी में पुराने प्रोफेसरों का सम्मान समारोह है। अब आपको वहां का आमंत्रण मेरे तरफ से है। कृपया आइएगा। वहां सब आपको देखना चाहते हैं। मीना देवी ने बहुत विनम्रता से कहा बेटा अब वो जमाना बीत गया। मैं अब बस घर की औरत हूं। अंकुर की आंखों में आंसू थे। उसने कहा नहीं मैम आप सिर्फ घर की नहीं हम

जैसे हजारों बच्चों की मां है। कमरे में सन्नाटा था पर उस सन्नाटे में सम्मान की गूंज थी। रिद्धि मां वही खड़ी सब सुनती रही। उसके दिल की दीवारें ढहने लगी। अहंकार जैसे खुद अपनी राख में बदल रहा था। वह सोच रही थी जिस औरत को मैंने गवार समझा वो तो असल में हजारों का सहारा निकली। उस रात वह करवटें बदलती रही। नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। सुबह की पहली किरण जब खिड़की से भीतर आई तो हवेली में एक नई रोशनी उतर आई थी। सिया ने मां से कहा मां आज तो आपको चलना ही होगा। आर्यन ने भी मुस्कुराते हुए कहा, हां मां अब कोई बहाना नहीं। मीना देवी ने धीरे से अलमारी खोली।

अपनी पुरानी सफेद साड़ी निकाली। उसके साथ वह पुराना बैज निकला। प्रोफेसर एम डी मल्होत्रा डिपार्टमेंट ऑफ लिटरेचर उन्होंने आईने में खुद को देखा। उनके होठों पर हल्की मुस्कान थी और आंखों में दृढ़ता वो अब भी वही थी। ज्ञान की रोशनी संस्कार की मिसाल और उस बेटी, बहू और मां की प्रेरणा जो दुनिया बदल सकती है। वो नहीं जानती थी कि आज का दिन सिर्फ उनका नहीं बल्कि रिद्धिमा के जीवन का सबसे बड़ा सबक बनने वाला है। एक ऐसा सबक जो उसके अहंकार को हमेशा के लिए मिटा देगा। अगले दिन टीचर्स डे था। लखनऊ यूनिवर्सिटी का ऑडिटोरियम फूलों से सजा हुआ था। हर चेहरा

मुस्कुरा रहा था। हर दिल में उत्साह था। और अब सबकी निगाहें उस महिला पर टिकने वाली थी। जिसने हजारों जिंदगियों को रोशनी दी थी। प्रोफेसर मीना देवी मल्होत्रा भीड़ में रिद्धिमा भी बैठी थी। चेहरे पर हल्की घबराहट और दिल में बेचैनी थी। उसकी आंखें स्टेज की ओर टिकी थी। जहां कुछ ही क्षणों में उसकी वही सास मंच पर खड़ी होने वाली थी। जिनसे उसने कुछ दिन पहले कहा था। आप जैसी गवार औरतों को क्या पता आधुनिक सोच क्या होती है। सभागार का वातावरण शांत था। पर भीतर भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था। तभी उद्घोषक की आवाज गूंजी। अब मंच पर आमंत्रित की जा रही है लखनऊ यूनिवर्सिटी

की पूर्व प्राध्यापक और समाज में शिक्षा की मशाल जलाने वाली महान शिक्षिका प्रोफेसर मीना देवी मल्होत्रा जी। अचानक पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। सैकड़ों लोग खड़े हो गए। कोई खुशी से मुस्कुरा रहा था। कोई भावुक होकर आंसू पोंछ रहा था। मीना देवी ने मंच पर कदम रखा। उनका चेहरा शांत था। आंखों में विनम्रता थी और होठों पर एक हल्की मुस्कान थी। वो मुस्कान जो बरसों के त्याग, तपस्या और आत्मसम्मान से जन्म लेती है। संचालक ने भावुक होकर कहा, इनके बिना यूनिवर्सिटी का इतिहास अधूरा है। इन्होंने न जाने कितने विद्यार्थियों की जिंदगी बदली। कितनों के लिए उम्मीद की

किरण बनी। कई गरीब बच्चों की फीस अपनी जेब से चुकाई और आज जो कई बड़े डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर यहां बैठे हैं, वह इन्हीं की प्रेरणा है। आज हम सबके लिए यह सिर्फ एक शिक्षिका नहीं बल्कि मां जैसी है। तालियां फिर गूंज उठी ना, आवाजों की लहर पूरे हॉल में फैल गई। रिद्धिमा के दिल की धड़कने तेज हो गई। उसकी आंखें भर आई। उसके गले में जैसे शब्द अटक गए। उसे लगा जैसे उसकी हर गलती, हर कटाक्ष, हर अपमान अब गूंज बनकर उसे घेर रहा है। उसके सामने एक-एक दृश्य तैरने लगा। जब उसने अपनी सास से कहा था, इतनी गर्मी में कौन सा पहनता है? मैं किसी के पैर नहीं छूती। मैं

डॉक्टर हूं। कोई आपकी तरह गवार औरत नहीं। आज वही औरत मंच पर थी। पूरे समाज के सामने सम्मान की देवी बनकर जिनकी सादगी ही उनका सबसे बड़ा गहना थी। जिनकी चुप्पी में वह शालीनता थी जो आज के समय में दुर्लभ हो चुकी है। छात्र एक-एक कर मंच पर जा रहे थे। कोई फूलों की माला पहनाता, कोई उनके पैर छूकर कहता मैम आपने हमें सिखाया था कि इंसानियत सबसे बड़ी डिग्री है। मैम आपने कहा था कि जो दूसरों के आंसू पोंछे वही सच्चा इंसान होता है। आपकी बातों ने हमारी जिंदगी बदल दी। मैम मीना देवी की आंखें भर आई। पर उनके चेहरे पर गर्व की एक मधुर शांति थी। रिद्धिमा अब खुद को रोक नहीं

पाई। वह भीड़ को चीरते हुए धीरे-धीरे मंच की ओर बढ़ी। उसके कदम कांप रहे थे। पर दिल में पश्चाताप की गहराई थी। मंच तक पहुंचते ही वह झुकी और सबके सामने अपनी सांस के पैरों में गिर पड़ी। सभागार एक पल के लिए स्तब्ध रह गया। हर निगाह उस दृश्य पर ठहर गई। रिद्धिमा के होंठ कांप रहे थे। वो रोती हुई बोली मां जी नहीं मैम नहीं। मां मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। मैंने आपकी सादगी को कमजोरी समझ लिया। आपकी खामोशी को डर और आपके संस्कारों को पुराने जमाने की सोच। आज समझ आई। आप तो उस पेड़ जैसी है जो खुद धूप में जलकर भी दूसरों को छांव देता

है। मैंने आपको चोट दी मां। मगर आपने कभी जवाब नहीं दिया। बस अपने बर्ताव से सिखाया कि चुप रहकर भी सिखाया जा सकता है। पूरा हॉल शांत था। फिर धीरे-धीरे तालियों की गूंज उठी जो हर दिशा में फैल गई। मीना देवी की आंखों से आंसू ब निकले। उन्होंने रिद्धिमा को उठाया। उसे सीने से लगाया और बहुत प्यार से कहा। बेटा गलती हर इंसान से होती है। पर जो गलती मानकर सुधर जाए वही सच्चा इंसान होता है। इंसान की कीमत उसकी डिग्री या कपड़ों से नहीं उसके संस्कारों और व्यवहार से होती है। तुमने अपनी गलती मान ली। अब तुम भी वही सीख चुकी हो जो मैंने अपनी जिंदगी से सीखी थी। तालियां

फिर गूंज उठी इस बार पहले से भी ज्यादा जोरदार। कुछ लोग खड़े होकर रोने लगे। किसी के होठों से बस यही निकला। यही असली शिक्षा है। रिद्धिमा अब भी सिसक रही थी। मगर उसकी आंखों में पहली बार सुकून था। वो अपनी सास के सीने से लगी और मन ही मन कसम खाई। अब यह घर फिर कभी दर्द नहीं देखेगा। वापसी के रास्ते में कार में सन्नाटा था। लेकिन वह सन्नाटा भारी नहीं बल्कि सुकून भरा था। आर्यन ने धीरे से रिद्धि मां का हाथ थामा और मुस्कुराकर कहा मेरी मां कितनी महान है। रिद्धि मां ने सिर झुकाया और धीमी आवाज में कहा नहीं आर्यन अब वो सिर्फ तुम्हारी मां नहीं अब

वो मेरी भी मां है। मेरी गुरु है। मेरी प्रेरणा है। घर पहुंचने पर सिया दौड़ कर आई। उसने मां के गले लगते हुए कहा, मां आज तो पूरा लखनऊ गर्व से भर गया। मीना देवी ने हल्के से मुस्कुराकर कहा, नहीं बिटिया आज मेरा घर फिर से पूरा हो गया। रिद्धि मां चुपचाप किचन में गई। गैस ऑन की और अपने हाथों से चाय बनाई। सिया ने हैरान होकर पूछा भाभी आज आप खुद रिद्धि मां मुस्कुराई और बोली, आज मैं अपने हाथों से मां को चाय पिलाऊंगी। कभी सोचा भी नहीं था कि यही चूल्हा मेरे जीवन का सबसे पवित्र स्थान बन जाएगा। मीना देवी ने चाय का प्याला लिया और उसकी आंखों में वही चमक

लौटी जो बरसों पहले थी। अब हवेली की हवा बदल चुकी थी। जो दीवारें पहले ठंडी खामोशी से घिरी थी। अब वहां हंसी और अपनापन गूंज रहा था। शाम को मीना देवी बालकनी में बैठी ठंडी हवा बालों को छू रही थी। रिद्धिमा धीरे से आई। उनके पास बैठ गई और कहा मां अगर आज भी आपके अंदर वह प्रोफेसर जिंदा है तो मुझे भी सिखाइए ना। कैसे इतनी सादगी में भी इतना सम्मान पाया जाता है? मीना देवी ने मुस्कुराते हुए उसका सिर सहलाया और बोली, बेटा सम्मान पाने के लिए पढ़ना नहीं समझना सीखना पड़ता है और तुमने आज वो सीख ली है। रिद्धि मां की आंखों से आंसू

फिर छलक पड़े। लेकिन इस बार वो आंसू शर्म के नहीं बल्कि कृतज्ञता और प्यार के थे। दोस्तों इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि डिग्री, पैसा और शोहरत इंसान को ऊंचा नहीं बनाते बल्कि विनम्रता, त्याग और बड़ों का सम्मान ही सच्ची शिक्षा है। घमंड चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो, संस्कार और सच्चाई के आगे हमेशा झुक जाता है। अगर इस कहानी ने आपके दिल को छू लिया हो तो वीडियो को लाइक करें। चैनल स्टोरी बाय एसके को सब्सक्राइब करें और इस वीडियो को अपने परिवार और दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें और कमेंट में लिखें सम्मान ही असली डिग्री है ताकि यह संदेश हर घर तक पहुंचे।

जय हिंद जय