बेटे बहू ने मां को बुढ़ापे में अकेला छोड़ा लेकिन भगवान के घर देर था अंधेर नहीं फिर जो हुआ वो आज के बेटे बहुओं के लिए एक आईना है क्योंकि मां का दिल चाहे कितना भी टूटा हो उसमें हमेशा ममता और त्याग की ज्योति जलती रहती है लेकिन जब वही ममता ठुकराई जाती है और उसका अपमान होता है तब वही मां सबको ऐसा सबक देती है जो भगवान से भी बड़ा साबित हो जाता है पूरी कहानी जानने के लिए वीडियो को आखिर तक जरूर देखें। लेकिन पहले वीडियो को लाइक करें, चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें। दोस्तों, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर

की एक तंग गली में जहां एक टूटा फूटा पुराना मकान खड़ा था। उसी मकान में अकेली जिंदगी गुजार रही थी सरला देवी। सरला देवी की उम्र 62 साल थी। चेहरे की झुर्रियों में बीते वक्त के दुख छुपे थे। लेकिन आंखों में अब भी ममता की चमक थी। पति को गुजरे कई साल हो गए थे। बेटा और बहू शहर के एक अच्छे फ्लैट में रहते थे। मगर मां को अपने साथ रखने की जगह उन्होंने अकेले छोड़ दिया था। फिर भी सरला देवी का दिल आज भी अपने पोते-पोतियों के लिए धड़कता था। हर दोपहर जैसे ही स्कूल की छुट्टी का समय होता, वह दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती। हाथ में हमेशा दो चॉकलेट होती। अपने पोता

पोतियों के लिए नजरें बार-बार उसी रास्ते की ओर जाती जिधर से बच्चों का ऑटो गुजरता था। वो ऑटो चलाता था राजेश महतो लगभग 35 साल का एक सीधा साधा इंसान। राजेश ने एक दिन देखा था कि सरला देवी बच्चों को देखने के लिए लाठी टकते-टेकते स्कूल तक चली आई थी। पसीने से भीगी थकी हुई। लेकिन आंखों में सिर्फ अपने पोते-पोतियों की झलक पाने की चाह। उस दिन राजेश का दिल पसीज गया। उसने बड़े अदब से कहा था, अम्मा, आप रोज इतनी दूर मत आया कीजिए। मुझे अपना घर बता दीजिए। मैं जब भी बच्चों को स्कूल से लाऊंगा, यहीं रोक दूंगा। उस दिन से राजेश रोज अपना ऑटो 2 कि.मी. अतिरिक्त घुमा कर

लाता। सिर्फ इसलिए ताकि सरला देवी को बच्चों से मिलने का सुख मिल सके। जब भी बच्चे अपनी दादी को देखकर दौड़कर गले लगते। सरला देवी का चेहरा खिल उठता। उनकी आंखों में जो सुकून झलकता वही देखकर राजेश की आंखें भी कई बार नम हो जाती। असल में राजेश ने अपने बचपन में मां-बाप का प्यार कभी महसूस ही नहीं किया था। माता-पिता का देहांत बहुत पहले हो गया था। अनाथ बचपन फिर संघर्ष से भरी जवानी यही उसका जीवन था। इसलिए जब वह सरला देवी को अपने पोते पोतियों पर दुलार बरसाते देखता तो अपने भीतर की कमी और गहरी चुभन बनकर उभर आती। लेकिन वक्त कभी एक जैसा नहीं रहता। एक दिन

अचानक स्कूल की गर्मियों की छुट्टियां पड़ गई। बच्चों का आना बंद हो गया। सरला देवी को इसका पता नहीं था। वो रोज की तरह दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती। चॉकलेट हाथ में लिए। आंखें बार-बार सड़क पर टिक जाती। मगर बच्चों वाला ऑटो आता ही नहीं। एक दिन जब राजेश वहां से गुजर रहा था तो उसने देखा सरला देवी दरवाजे पर खड़ी है। बेसब्री से रास्ते को ताक रही है। राजेश ने ऑटो रोका और पास आकर पूछा अम्मा आप क्यों खड़ी है? सरला देवी मासूमियत से बोली। बेटा आज तुम मेरे बच्चों को लेकर क्यों नहीं आए? बहुत देर हो गई। राजेश की आंखें भर आई। उसने गहरी सांस लेते हुए

कहा, अम्मा आप भी भोली हो। गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो गई है। अब बच्चे एक महीने तक स्कूल नहीं आएंगे। यह सुनकर सरला देवी ने माथे पर हाथ मार लिया और बोली, अरे मैं भी कैसी पगली हूं। कई दिन से परेशान हो रही थी। राजेश ने मुस्कुराकर उनके कंधे पर हाथ रखा। कोई बात नहीं अम्मा। आइए। आज मैं आपके साथ घर के अंदर बैठता हूं। और यहीं से शुरू हुआ एक ऐसा रिश्ता जो खून का नहीं था लेकिन खून से भी गहरा साबित होने वाला था। राजेश उस दिन सरला देवी के साथ घर के भीतर चला गया। छोटा सा आंगन कोने में मिट्टी के घड़े रखे थे और एक तरफ पुराने बर्तन करीने से रखे थे। घर भले ही

जजर था मगर उसमें सरला देवी की मेहनत और अपनापन झलकता था। सरला देवी ने कहा बेटा बैठो मैं चाय बनाती हूं। राजेश ने रोकना चाहा मगर सरला देवी अड़ी रही। कुछ ही देर में वह पीतल की दो प्यालियां लेकर लौटी जिनसे उबलती हुई चाय की खुशबू उठ रही थी। साथ में छोटी सी थाली में घर का बना अचार रखा था। राजेश ने एक निवाला लिया और जैसे ही अचार का स्वाद जीभ पर चढ़ा उसकी आंखें चमक उठी। अम्मा ऐसा अचार तो मैंने कभी नहीं खाया। इसमें तो सचमुच घर का प्यार बसा है। सरला देवी हल्की मुस्कान के साथ बोली, बेटा यही तो मेरी जिंदगी का सहारा है। मैं अपने हाथों से अचार बनाती हूं और

आसपोस की औरतें इसे खरीद लेती है। इन्हीं पैसों से दवाइयां और घर का खर्च चलता है। यह सुनकर राजेश का दिल और भर आया। उसने सोचा कितनी मजबूती से यह औरत अकेले सब झेल रही है। बाहर से टूटे फूटे मकान में लेकिन भीतर से पत्थर जैसी हिम्मत। थोड़ी देर तक दोनों अपने-अपने जीवन की बातें करते रहे। राजेश ने बताया कि किस तरह बचपन में ही उसके माता-पिता दुनिया छोड़ गए और उसने हर मुश्किल अकेले झेली। यह सुनकर सरला देवी की आंखें भीग गई। उन्होंने धीरे से कहा, बेटा जिसके पास मां-बाप होते हैं, वह अक्सर कदर नहीं करता और जिसके पास नहीं होते वह उम्र भर तरसता है। कमरे की खामोशी

में यह शब्द तीर की तरह चुब गए। दोनों की आंखों में नमी थी। मगर साथ ही एक अजीब सा अपनापन भी था। फिर सरला देवी ने सिर उठाकर कहा, देखो राजेश, ईश्वर ने तुम्हें मां-बाप का साया नहीं दिया। और मुझे अपने बेटे भू से दूर कर दिया। शायद इसी वजह से उसने हमें मिलाया है। राजेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “अम्मा, अब आपको कभी अकेला महसूस नहीं होने दूंगा। जब भी वक्त मिलेगा, मैं यही आकर आपके साथ बैठा करूंगा। उस दिन के बाद से यह रिश्ता और गहरा होता चला गया। राजेश की पत्नी को भी जब उसकी बातें पता चली, तो उसने कहा, “अगली बार मुझे भी ले

चलो।” मैं भी उस अम्मा से मिलना चाहती हूं। धीरे-धीरे राजेश का परिवार भी सरला देवी से जुड़ता चला गया। एक रविवार की दोपहर राजेश अपनी पत्नी रीना और दोनों बच्चों को साथ लेकर सरला देवी के घर पहुंचा। दरवाजा खोलते ही सरला देवी हैरान रह गई। उनकी आंखें खुशी से चमक उठी। अरे बेटा आज तो पूरा परिवार ले आए हो। सरला देवी ने झुककर बच्चों को गले से लगा लिया। बच्चे खिलखिला कर हंसने लगे और आंगन में दौड़ने लगे। घर जो अब तक खामोश और सुना था। अचानक बच्चों की चहक से भर गया। रीना ने सहज भाव से कहा, “अम्मा, आज हम आपके साथ पूरा दिन बिताएंगे। मैं घर के काम में भी हाथ

बंटाऊंगी। यह सुनकर सरला देवी भावुक हो गई। बहू बेटे ने जहां ताने और उपेक्षा दी थी, वहीं यह अनजान बहू उन्हें अम्मा कहकर अपनेपन का एहसास दिला रही थी। रीना ने पूरे घर की सफाई करवाई। टूटी चारपाई पर नई चादर बिछाई और दीवारों पर छोटे-छोटे सजावटी कैलेंडर टांग दिए। सरला देवी का चेहरा गर्व और कृतज्ञता से दमक उठा। उस शाम जब सब ने साथ बैठकर खाना खाया तो सरला देवी ने राजेश के बच्चों को वही खास अचार परोसा। बच्चों ने चटकारे लेते हुए खाया और बोली, दादी, आपका अचार तो बहुत स्वादिष्ट है। पापा से भी कहेंगे कि रोज लेकर आए। यह सुनकर सब हंस पड़े। मगर सरला देवी की

आंखें भीग गई। उन्होंने मन ही मन सोचा ईश्वर ने मुझसे मेरा परिवार छीन लिया लेकिन बदले में नया परिवार दे दिया। समय बीतने लगा। अब राजेश और रीना महीने में कई बार सरला देवी से मिलने आने लगे। रीना अक्सर कहती अम्मा चिंता मत कीजिए। आप अकेली नहीं है। हम है ना आपके अपने। एक दिन राजेश के घर कुछ मेहमान आए। खाने के साथ रीना ने सरला देवी का अचार भी परोसा। मेहमानों ने स्वाद चखा और दम रह गए। वाह, ऐसा लाजवाब अचार तो हमने कभी नहीं खाया। किसने बनाया है? राजेश मुस्कुराया। यह मेरी अम्मा ने बनाया है। सबने बार-बार तारीफ की। बातोंबातों में एक मेहमान जो

शहर के एक बड़े कारोबारी थे। बोले, “अगर यह अचार बड़े पैमाने पर बने, तो पूरे बाजार में छा जाएगा। राजेश को पहली बार लगा कि सरला देवी का हुनर सिर्फ घर तक नहीं बल्कि पूरी दुनिया तक जाना चाहिए और यहीं से एक नए सफर की शुरुआत होने वाली थी। कारोबारी मेहमान की बात राजेश के मन में घर कर गई। अगले ही हफ्ते उसने सरला देवी को अपनी योजना बताई। अम्मा क्यों ना आपके अचार को बड़े पैमाने पर बनाया जाए। मैं जानता हूं यह स्वाद हर किसी को भाएगा। यह हुनर सिर्फ इस घर की चार दीवारी में कैद क्यों रहे? सरला देवी हतप्रब रह गई। बेटा, मैं तो बस बूढ़ी औरत हूं। यह सब

बड़े काम मेरे बस के नहीं। राजेश ने धीरे से कहा, “अम्मा, आप बस अपना आशीर्वाद दीजिए। मेहनत मैं और रीना करेंगे। व्यवस्था कारोबारी लोग देख लेंगे। आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं। बस स्वाद का राज हमें समझाना होगा। सरला देवी ने कुछ देर सोचा। आंखों में पुराने ताने गूंज उठे जब बहू उन्हें बेकार और बोझ कहती थी। उसी पल उन्होंने ठान लिया कि अब अगर हुनर है तो दुनिया को दिखाना चाहिए। उन्होंने सिर हिलाकर हामी भर दी। कुछ ही महीनों में एक छोटी सी फैक्ट्री की नींव रखी गई। कारोबारी मित्र ने निवेश किया। राजेश ने अपने ऑटो की कमाई से थोड़ी बचत लगाई और

सरला देवी ने अपना अचार बनाने का नुस्खा साझा कर दिया। हर बैच में वह खुद जाकर स्वाद देखती। नमक मिर्च की मात्रा ठीक कर दी। मजदूर उन्हें अम्मा कहकर बुलाने लगे और उनके हाथ का स्वाद धीरे-धीरे सबकी जुबान पर चढ़ने लगा। पहला लॉट बाजार में पहुंचा तो शुरुआत में दुकानदार झिजचके। मगर जिसने भी एक बार चखा वही दोबारा ऑर्डर करने लगा। धीरे-धीरे मांग इतनी बढ़ी कि फैक्ट्री में काम करने वालों की संख्या भी दोगुनी करनी पड़ी। अब प्रयागराज नहीं आसपास के जिलों में भी सरला अम्मा का अचार मशहूर हो चुका था। हर डिब्बे पर उनकी मुस्कुराती तस्वीर छपती और दुकानों पर

सजती। लोग कहते इस अचार में मां के हाथों का स्वाद है। सरला देवी को पहली बार एहसास हुआ कि जिंदगी ने उन्हें कितना बड़ा तोहफा दिया है। जिस हुनर को घर में तिरस्कार मिला था। वही हुनर आज उनकी पहचान बन गया। राजेश ने अपनी गाड़ी के पीछे भी अचार का पोस्टर लगवा दिया। जब भी वह सड़क पर निकलता लोग उसे रोक कर पूछते भाई यह अचार कहां मिलता है? राजेश गर्व से कहता यह मेरी अम्मा का अचार है। हर दुकान पर मिलेगा। लेकिन किस्मत को भी अपना खेल खेलना था। एक दिन जब राजेश बच्चों को स्कूल छोड़कर लौट रहा था। उसी रास्ते से गुजर रही थी सरला देवी की बहू। उसकी नजर

ऑटो पर लगे पोस्टर पर पड़ी। मुस्कुराती हुई सरला अम्मा की तस्वीर और नीचे लिखा था हर घर का स्वाद। सरला अम्मा का अचार। वो ठिटक गई। तस्वीर पहचानते ही उसका चेहरा स्या पड़ गया। यह यह तो अम्मा है। उस पल उसे जैसे अपने ही किए हुए शब्द याद आ गए। जब उसने कहा था, यह बुढ़िया हमारे काम की नहीं। इसे कहीं और भेज दो। अब वही बुढ़िया शहर भर की शान बन चुकी थी। कुछ दिनों तक बहुत चुप रही। मगर मन ही मन जलन उसे खाए जा रही थी। शाम को जब उसका पति घर लौटा तो उसने जल्दी से पूरी बात बता दी। पति ने भी पोस्टर देखकर सन्न रह गया। तो मां अब मशहूर हो चुकी है और हम सोचते थे वह बोझ

है। दोनों के दिल में पछतावे की चुभन उठी लेकिन साथ ही लालच भी सिर उठाने लगा। पति बोला अगर मां को वापस अपने पास ले आए तो उनकी सारी कमाई भी हमारे काम आ सकती है। अगले ही हफ्ते दोनों पति-पत्नी सरला अम्मा की फैक्ट्री पहुंच गए। वहां 200 से ज्यादा लोग काम कर रहे थे। सब उन्हें आदर से अम्मा कहकर पुकार रहे थे। मजदूरों के बीच बैठी सरला अम्मा का चेहरा गर्व से दमक रहा था। जैसे ही बेटे भू ने उन्हें देखा दोनों रोते हुए पैरों में गिर पड़े। अम्मा हमें माफ कर दीजिए। आपको हमारे घर वापस चलना होगा। हमने आपके साथ बहुत बड़ा गुनाह किया

है। सरला अम्मा ने गहरी सांस ली। चेहरे पर एक अजीब सी कड़वाहट और दर्द का साया था। उन्होंने कहा जब मैं तुम्हारे घर में थी तब तुमने मुझे बोझ समझा। आज मैं दुनिया की नजरों में सम्मान पा रही हूं तो तुम्हें याद आ गई। बेटा मां का दिल जरूर नरम होता है मगर अपमान उसे पत्थर बना देता है। अब मैं अपने इस परिवार के साथ खुश हूं। जिन्होंने मुझे अपनाया जिनके लिए मैं अम्मा हूं। उनकी आवाज सख्त थी। लेकिन आंखों में आंसू तैर रहे थे। बेटा और बहू सिर झुकाकर खामोश खड़े रह गए। इसी बीच फैक्ट्री में राजेश केक लेकर आया। सभी मजदूर जोरजोर से बोले, हैप्पी बर्थडे

अम्मा। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। बेटा भू यह नजारा देखकर और भी शर्मिंदा हो गए। क्योंकि उन्हें तो अपनी मां के जन्मदिन तक का पता नहीं था। धीरे-धीरे दोनों दबे पांव वहां से निकल गए। सरला अम्मा ने आंसू पोंछते हुए केक काटा और मजदूरों को खिलाया। पास खड़े राजेश और रीना ने उनके हाथ थाम लिए। राजेश बोला अम्मा अब हम ही आपका परिवार है। सरला अम्मा ने भावुक होकर कहा हां बेटा परिवार वही है जो मुश्किल वक्त में साथ खड़ा हो ना कि वो जो बुढ़ापे में छोड़ दे। दोस्तों यह कहानी हमें यही सिखाती है कि मांबाप को कभी बोझ मत समझो। उनके आशीर्वाद से ही

जिंदगी सवरती है। अगर उन्हें छोड़ दोगे तो ईश्वर भी साथ छोड़ देता है। अब आप बताइए अगर आप सरला अम्मा की जगह होते तो क्या बेटे बहू को माफ कर देते? अपना जवाब कमेंट में जरूर लिखिए। वीडियो अगर दिल को छू गई हो तो लाइक कीजिए। चैनल स्टोरी बाय आरके को सब्सक्राइब कीजिए और इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर कीजिए। मिलते हैं अगले वीडियो में। तब तक खुश रहिए। अपनों के साथ रहिए। और रिश्तों की कीमत समझिए। जय हिंद जय भारत।