जिस बुजुर्ग पिता को सबने ठुकरा दिया। एक चाय वाले ने उसे गले से लगा लिया। और फिर जो हुआ वह इतना हैरान करने वाला था कि पूरे शहर में चर्चा का विषय बन गया। यह सिर्फ पराए रिश्तों में अपनापन की कहानी नहीं है। यह कहानी है एक टूटे हुए दिल की। एक बुजुर्ग की तरह जिंदगी की और उस इंसान की जिसने बिना किसी स्वार्थ के सिर्फ इंसानियत दिखाई। तो जरूर देखिए इस सच्ची और दिल को छू जाने वाली प्रेरणादायक कहानी को आखिरी पल तक। लेकिन उससे पहले वीडियो को लाइक करें, चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें। क्योंकि हर नाम के पीछे एक कहानी
होती है। दोस्तों, यह सच्ची कहानी कोलकाता की एक तंगली राजा बाजार की है। जहां एक छोटी सी चाय की दुकान में बैठा था आशीष। एक 25 साल का सीधा साधा मेहनती लड़का जिसकी जिंदगी सिर्फ दो लोगों के इर्दगिर्द घूमती थी। उसकी बूढ़ी नानी सरस्वती देवी और उसका छोटा सा सपना कि किसी दिन उन्हें तीर्थ यात्रा पर ले जाए। उसने बहुत कम उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया था। और उसके बाद जैसे पूरी जिंदगी बस एक कंधे पर चाय का भगोना उठाए बीतने लगी थी। दिन भर की मेहनत और शाम को वही नानी की गोद में सिर रखकर दो बातें। यही थी आशीष की पूरी दुनिया। वो गली के कोने पर अपनी
दुकान सजाता और जैसे ही पहला उबाल चाय में आता उसकी मुस्कुराहट भी पूरे मोहल्ले को गर्माहट देने लगती। सब लोग कहते थे आशीष की चाय में कोई जादू है। लगता है जैसे दिल भी साथ पिघल जाता है। वो सिर्फ चाय नहीं पिलाता था। वो अपनापन बांटता था। हर बुजुर्ग को बाबा कहकर बुलाता। हर बच्ची को बिटिया। उसकी मुस्कुराहट के पीछे बहुत कुछ छुपा था। कुछ अधूरी बातें, कुछ अधूरे सपने। लेकिन उसके व्यवहार में कभी कोई खालीपन नहीं दिखता था। एक दिन शाम के लगभग 6:00 बजे हल्की ठंडक थी और आसमान में बादल मंडरा रहे थे। उसी समय एक बुजुर्ग व्यक्ति उस गली में धीरे-धीरे चलते हुए आए। झुकी
कमर, कांपते हाथ और चेहरा ऐसा जैसे जिंदगी ने सारी खुशियां छीन ली हो। आशीष ने तुरंत अपनी नजरों से नोटिस किया और मुस्कुरा कर बोला, “आज जाइए बाबा। थक गए होंगे। आइए बैठिए। मैं चाय बनाता हूं आपके लिए।” बुजुर्ग ने धीरे से सिर हिलाया और पास पड़ी लकड़ी की बेंच पर बैठ गए। उनका नाम था विजयकांत मिश्रा। लेकिन उस वक्त वह सिर्फ एक थके हुए इंसान थे। जिनकी आंखों में नमी और मन में भारीपन था। उन्होंने कहा बेटा चाय पीने का मन है पर जेब में सिर्फ ₹4 है। शायद पूरे नहीं होंगे। आशीष मुस्कुराया और झुक कर बोला बाबा आप मेरे लिए किसी भगवान से कम नहीं। चाय पैसे से
नहीं दिल से पिलाई जाती है। उसने प्यार से उनके सामने मिट्टी का कुल्हड़ रखा। और गर्म चाय की भाप के साथ जैसे सारा दर्द भी उस चाय में घुल गया। विजयकांत जी ने चुपचाप चाय पी। लेकिन उनके चेहरे पर हल्का सा भी सुकून नहीं था। बस जैसे कोई अपने टूटे अतीत को पी रहा हो। एक-एक चुस्की में चाय खत्म हुई तो वह चुपचाप उठे और जाने लगे। लेकिन उसी वक्त अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। लोग अपनी दुकानों के शटर गिराने लगे। बाइक वाले दौड़ पड़े। रिक्शे वाले छुप गए। आशीष तुरंत अपनी दुकान के अंदर गया और एक पुराना लेकिन सूखा छाता निकाल लाया। बोला बाबा यह ले जाइए। भीग गए तो
तबीयत खराब हो जाएगी। कल वापस दे दीजिएगा। विजयकांत जी ने थोड़ी देर उसे देखा। जैसे किसी को पहली बार अपने लिए चिंतित पाया हो। भीगे मौसम में उस छाते से ज्यादा उस लड़के की मुस्कुराहट ने उन्हें ढक लिया था। वो चले गए। लेकिन उस रात वह सो नहीं पाए। बार-बार उनके जेहन में वही चाय वाले लड़के की आवाज गूंज रही थी। बाबा आप मेरे लिए भगवान जैसे हो। विजयकांत जी की रात उस दिन बहुत लंबी हो गई थी। जिस जिंदगी में वर्षों से सिर्फ तन्हाई का सन्नाटा था। उसमें पहली बार किसी ने बिना स्वार्थ के अपनापन दिखाया था। और वह भी एक अनजान लड़का। जिसकी उम्र उस बेटे जितनी रही
होगी। जिसे उन्होंने कभी अपने कंधों पर बिठाकर झूला झुलाया था। छत पर बारिश की बूंदों की आवाज थी। लेकिन उनके कानों में बस आशीष की वो मीठी बातें गूंज रही थी। बाबा आप मेरे बाबा जैसे हो। कहते हैं जब किसी का व्यवहार दिल को छू जाए। तो इंसान के अंदर की चुप्पी भी टूटने लगती है। सुबह होते ही विजयकांत जी फिर से उसी दुकान की ओर चल पड़े। छाता हाथ में था और दिल में एक अनजाना सा सुकून। आज उनके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी। आशीष ने दूर से ही देखकर कहा, “अरे बाबा आज तो आप पहले से ज्यादा जवान लग रहे हैं।” विजयकांत जी हल्का सा हसे और पहली बार अपने मन का एक
कोना खोल बैठे। बोले बेटा तूने जो कल किया वो कोई अपनों से भी नहीं करते आजकल। मैंने अपनी जिंदगी में सब कुछ खो दिया। पर शायद अब समझ में आया कि ऊपर वाला जब एक चीज छीनता है तो किसी और रूप में वापस भी देता है। शायद तू वही है बेटा। और फिर धीरे-धीरे उन्होंने अपनी पूरी कहानी आशीष को सुना दी। विजयकांत मिश्रा कभी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक बड़ी ज्वेलरी की दुकान चलाया करते थे। एक सम्मानित प्रतिष्ठित नाम था उनका। पत्नी, बेटा, बहू और छोटी सी पोती साक्षी सब कुछ था उनके पास। लेकिन फिर जिंदगी ने धीरे-धीरे सब कुछ छीन लिया। पहले पत्नी की
अचानक तबीयत बिगड़ी और इलाज के दौरान उनका देहांत हो गया। उसके कुछ सालों बाद बेटे की शादी हुई और बहू गर्भवती हुई। विजयकांत जी ने सोचा था अब घर में फिर से रौनक आएगी। पोतेपोती की किलकारियां होंगी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। बच्चे को जन्म देते वक्त बहुत चल बसी और कुछ ही महीनों बाद उनके इकलौते बेटे ने भी गम में डूबकर दुनिया को अलविदा कह दिया। अब रह गई थी बस छोटी सी बच्ची साक्षी जो ठीक से बोल भी नहीं पाती थी। और जिसे अब सिर्फ एक दादा का ही सहारा था। उस नन्ही बच्ची के आंसू पोंछते हुए विजयकांत जी ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। ज्वेलरी की
दुकान बेच दी। जमीन जायदाद सब धीरे-धीरे बिक गया। बस एक उम्मीद थी कि किसी तरह साक्षी को पढ़ा लिखा कर उसके जीवन को संवार सके। कई साल तक उन्होंने मेहनत की। एक पुरानी अलमारी में रखे गहनों को बेचकर बेटी को शहर भेजा और साक्षी भी मेहनती निकली। वो कोलकाता में एक ऑफिस में काम करने लगी और दादा को भी साथ ले आई। लेकिन कोलकाता जैसे बड़े शहर में जहां हर कोई अपने में गुम होता है। वहां एक बूढ़ा टूटा हुआ दिल ना कहीं जगह पा सका ना कोई काम। विजयकांत जी हर रोज सुबह-सुबह गलियों में काम ढूंढने निकलते। लेकिन हर जगह से खाली हाथ लौटते। कभी उम्र की वजह से कभी कंधे
झुक जाने की वजह से। और फिर एक दिन वही भटकते हुए वो इस चाय की दुकान पर आ पहुंचे थे। जिस दिन उन्होंने आशीष से पहली बार चाय पी थी, उस दिन उनकी जेब में सिर्फ ₹4 थे। लेकिन आज उन्हें महसूस हो रहा था कि उन्होंने वहां सिर्फ चाय नहीं पी थी। उन्होंने वहां एक रिश्ता पी लिया था। एक भरोसा, एक अपनापन। आशीष ने बड़े ध्यान से सारी बात सुनी और बिना कुछ कहे बस उनका हाथ पकड़ कर बोला, बाबा अब आप अकेले नहीं हो। जब तक मैं हूं कोई गम पास नहीं आएगा। उस एक वाक्य में जैसे हर दर्द की दवा छुपी थी। विजयकांत जी के आंखों से टपकता आंसू उस दिन की बारिश से ज्यादा साफ था। उस दिन
के बाद जैसे दोनों की जिंदगी में कोई अदृश्य डोर बंध गई थी। एक था उम्र के अंतिम पड़ाव पर खड़ा हुआ एक बुजुर्ग जिसने अपनों को खोकर जीना सीखा था। और दूसरा जवानी की दहलीज पर खड़ा एक युवा जो अपनी नानी के छोटे-छोटे सपनों को पूरा करने की कोशिश में हर दिन चाय के भगोने में उम्मीदें उबालता था। अब रोज शाम को 6:00 बजे विजयकांत जी दुकान पर आ जाते। आशीष उन्हें बेंच पर बैठा देता। उनके लिए चाय बनाता और दोनों घंटों बातें किया करते। धीरे-धीरे इस रिश्ते में एक और बात जुड़ गई। अनुभव एक शाम जब बाकी ग्राहक चले गए थे और हल्की हवा चल रही थी। विजयकांत जी
ने आशीष से कहा बेटा तुझे कुछ सिखाऊं क्या? आशीष मुस्कुराया। बाबा आप तो हर दिन कुछ ना कुछ सिखा ही देते हो। नहीं बेटा। बाबा बोले इस बार कुछ बड़ा है। मैं चाहूं तो तुझे एक ऐसा हुनर सिखा सकता हूं जिससे तू सिर्फ चाय नहीं सोने की दुकान चला सकता है। आशीष चौंक पड़ा। सोने की दुकान मतलब ज्वेलरी का काम बाबा ने सिर हिलाया। हां बेटा मैंने अपनी आधी जिंदगी इसी काम में बिता दी। सोना, चांदी, डिजाइन, गहनों का वजन, परिटी सब आता है मुझे। अगर तू मेहनत से सीखे तो मैं सब सिखा दूं। बस एक भरोसा चाहिए। आशीष कुछ देर चुप रहा। फिर बोला बाबा भरोसा तो बचपन से ही करता आया हूं।
बस अब आपके कहने से थोड़ा डर लग रहा है। यह सब करने के लिए पैसे कहां से लाऊंगा? बाबा ने आशीष की आंखों में देखा और बोले, पैसा नहीं है तो क्या हुआ? ज्ञान है ना? मैं तुम्हें अपने पुराने कुछ सप्लायर से जुड़वा दूंगा। वो मेरी इज्जत करते हैं। माल उधार देंगे। बस तुझे मेहनत करनी होगी और ईमानदारी निभानी होगी। आशीष की आंखों में अब एक चमक थी। जैसे किसी ने सपनों को फिर से जिंदा कर दिया हो। उस रात जब वो घर पहुंचा तो नानी ने देखा कि उसका चेहरा पहले से कुछ ज्यादा शांत और सोच में डूबा हुआ है। नानी ने कहा बोल बेटा आज मन इतना गुम क्यों है? आशीष ने धीमे से जवाब दिया।
नानी बाबा ने कहा है कि वह मुझे ज्वेलरी का काम सिखाएंगे पर मुझे डर है कि कहीं मैं असफल हुआ तो आप मायूस हो जाएंगी। नानी ने उसका हाथ थामा और बोली बेटा कोई भी बड़ा काम डर से नहीं। विश्वास से शुरू होता है। तू कर मैं तेरे साथ हूं। और बाबा तेरे साथ है। इससे बड़ी पूंजी और क्या होगी? उस रात आशीष ने अपने पुराने गुल्लक में से कुछ पैसे निकाले जो उसने नानी को तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए जमा किए थे। सुबह होते ही वो बाबा के साथ जाकर एक छोटी सी दुकान किराए पर ले आया। एक कोना चाय बनाने के लिए बचा लिया क्योंकि उसने बाबा से साफ कहा था। बाबा चाय मेरे लिए
सिर्फ रोज ही नहीं मेरी पहचान है। जब तक यह दुकान चलेगी उसमें मेरी चाय भी चलेगी और आपकी सीख भी। बाबा मुस्कुराए और बोले तू एक दिन इस दुकान को शोरूम बना देगा बेटा। लेकिन तेरे दिल का यह चाय वाला हमेशा जिंदा रहना चाहिए। यहीं से शुरुआत हुई। एक चाय वाले की ज्वेलरी शॉप की कहानी जहां लोग गहनों से ज्यादा मुस्कान लेने आते थे। जहां गहनों के साथ एक कप चाय मिलती थी। और वह भी प्यार के साथ। कहते हैं ना जब मेहनत के साथ नेक नियत और किसी बुजुर्ग का आशीर्वाद जुड़ जाए तो किस्मत को भी झुकना पड़ता है। राजा बाजार की उस संकरी गली में अब एक छोटी सी दुकान थी
जिसके बाहर सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक एहसास लटका था। सच्चाई ज्वेलर्स चाय और भरोसे के साथ इस अनोखी दुकान में आते ही लोग चौंक जाते थे। जहां गहनों के शोकेस के बगल में चूल्हा जलता था। जहां गहनों की चमक से पहले चाय की खुशबू मन को छू जाती थी और सबसे ज्यादा हैरानी उन्हें तब होती जब दुकान का मालिक यानी आशीष खुद अपने हाथों से चाय बनाकर उन्हें देता और फिर बड़े अदब से पूछता अब बताइए बाबा किस गहने को देखने का मन है? धीरे-धीरे इस दुकान की चर्चा पूरे शहर में फैलने लगी। वो जो जवान लड़का है ना जो अपने बाबा के साथ दुकान चलाता है। उसकी मुस्कान ही सबसे कीमती
गहना है। लोग अब सिर्फ गहने खरीदने नहीं रिश्ते कमाने आते थे। बाबा यानी विजयकांत जी अब हर दिन दुकान में बैठते थे। वो गहनों की पहचान करते। पुरानी डिजाइन बताते और अपने अनुभव से आशीष को हर बार कुछ नया सिखाते। एक साल बीतते बीतते आशीष की मेहनत, ईमानदारी और व्यवहार की वजह से पूरा एरिया उसका मुरीद बन गया। कई बड़े ग्राहक आने लगे थे। और अब वह दुकान किराए की नहीं अपनी हो चुकी थी। लेकिन इस कहानी की सबसे खास बात तब हुई जब एक दिन दुकान के अंदर एक लड़की आई। सूती साड़ी में आंखों में तेज, चेहरे पर सादगी और थकान का मिलाजुला भाव। वो अंजलि थी। विजयकांत जी
की पोती आशीष ने जब पहली बार उसे देखा तो उसे ऐसा महसूस हुआ कि वह लड़की जैसे हर संघर्ष की कहानी अपने चेहरे पर लेकर आई है और फिर बाबा ने दोनों को मिलवाया बेटा आशीष यह मेरी पोती अंजलि है जो अब इस शहर में रहती है और एक दफ्तर में काम करती है। अंजलि ने शालीनता से सिर झुकाकर नमस्ते किया। नमस्ते। मैंने आपके बारे में बाबा से बहुत सुना है। आशीष ने मुस्कुराकर जवाब दिया और मैंने भी। लेकिन अब देख रहा हूं तो समझ में आ रहा है कि बाबा को गर्व क्यों है आप पर। उन दोनों की यह पहली बातचीत थी। लेकिन जैसे दो टूटे हुए लोग एक दूसरे में सुकून ढूंढने लगे हो। उसके बाद
से अंजलि कभी-कभी दुकान पर आ जाती थी। कभी दादा को लेने, कभी उनके साथ बैठने और कभी-कभी यूं ही कुछ देर खामोश बैठने। और आशीष वह हर बार जब उसे देखता तो जैसे उसके अंदर का सन्नाटा भी कुछ कहने की कोशिश करता। बाबा सब समझ रहे थे। एक दिन जब अंजलि दुकान से चली गई तो बाबा ने हंसते हुए कहा, कुछ पूछूं बेटा। आशीष थोड़ा झेम गया। क्या बाबा? बाबा मुस्कुराए। तू मेरी पोती को देखकर कुछ ज्यादा ही मुस्कुराता है। बेटा। आशीष का चेहरा लाल हो गया। नहीं बाबा ऐसी बात नहीं है। मैं बस बाबा ने उसका हाथ पकड़ लिया। बेटा मैं बूढ़ा जरूर हूं पर अंधा नहीं। अगर दिल में कोई बात है
तो उसे वक्त रहते कह देना चाहिए क्योंकि चुप रहने से कई बार जिंदगी हाथ से निकल जाती है। आशीष चुप रहा। शायद उसके दिल की बात जुबान तक नहीं आ पा रही थी। लेकिन उसकी आंखें सब कुछ कह चुकी थी। कुछ दिन बीते अब दुकान की रौनक जितनी गहनों की वजह से नहीं उतनी उस लड़की की मुस्कान से थी। जो चुपचाप बाबा के बगल में बैठती कभी-कभी आशीष की बनाई चाय पीती और फिर हौले से चली जाती। बाबा हर दिन सोचते रहे। इन दोनों को एक दूसरे का साथ क्यों ना दे दूं। जिसे उम्र के इस मोड़ पर एक पोता मिला। क्यों ना उसकी पोती को एक सच्चा जीवन साथी भी मिल जाए। और फिर एक दिन बाबा ने वह कर
दिखाया जो आज की दुनिया में बहुत कम लोग करते हैं। वह खुद आशीष को लेकर उसके घर गए जहां नानी यानी सरस्वती देवी अपने कंबल के किनारे में रफू कर रही थी। बाबा ने दरवाजा खटखटाया। आशीष ने जैसे ही कहा नानी देखो कौन आया है। सरस्वती देवी ने दरवाजा खोला और जैसे ही देखा फौरन बाबा को हाथ जोड़कर नमस्कार किया। आइए मिश्रा जी आशीष ने बहुत बार आपका जिक्र किया है। आज तो घर रोशन हो गया। बाबा मुस्कुराए और बोले आज घर नहीं रिश्ता लेकर आया हूं। नानी की आंखें चमक उठी। रिश्ता बाबा ने आशीष की ओर देखा। फिर नानी की आंखों में झांकते हुए बोले, मैं
चाहता हूं कि आपकी दुआओं का हिस्सा बन जाऊं। मैं चाहता हूं कि मेरी पोती अंजलि और आपका नाती आशीष एक साथ जीवन की दुकान चलाएं। सिर्फ सोने की नहीं अपने रिश्तों की भी नानी की आंखें भर आई। उन्हें जैसे अपनी बहू बेटे की कमी उस पल पूरी होती लगी। कुछ पल चुप रहने के बाद वह बोली बाबा अगर आशीष तैयार है तो मुझे क्या ऐतराज हो सकता है? मैं तो हर दिन ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि कोई ऐसा रिश्ता आए जिसमें सिर्फ सोना ना हो सच्चाई भी हो। फिर दोनों की नजरें आशीष पर पड़ी जो अब तक एक कोने में चुपचाप खड़ा था। उसने धीरे से कहा अगर अंजलि जी हां कहे तो यह मेरे लिए
सौभाग्य की बात होगी। बाबा की आंखों में वह चमक थी जो शायद एक दादा को ही महसूस होती है। जब उसकी पोती के लिए उसे उसके जैसे संस्कारी, समझदार और मेहनती लड़का मिल जाए। कुछ ही दिनों बाद शहर के एक सादे से लेकिन सुंदर सामुदायिक हॉल में शादी हुई। ना ज्यादा दिखावा, ना शोर, बस दो परिवार और ढेर सारी दुआएं। आशीष और अंजलि अब पतिप थे और उनके साथ थे दो बुजुर्ग। एक दादा और एक नानी जो दोनों अब एक ही घर में रहते थे। घर में अब हर सुबह दो चाय बनती। एक बाबा के लिए एक नानी के लिए और दोनों मुस्कुराते हुए कहते बेटा अब हमारी जिंदगी की मिठास तुम्हारी चाय से नहीं तुम्हारे
साथ से है। और जो छोटी सी दुकान थी अब वह एक बड़ा शोरूम बन चुकी थी। जहां अब सच्चाई ज्वेलर्स एक ब्रांड बन चुका था। पर आज भी जब कोई नया ग्राहक आता तो आशीष पहले पूछता चाय लेंगे मेथी बनाओ या फीकी क्योंकि उसने एक बात समझ ली थी जो रिश्ता चाय से शुरू हुआ था उसमें मिठास सिर्फ चीनी से नहीं भावना से आती है वो रिश्ता आज भी जिंदा है एक चाय वाले की सादगी एक बुजुर्ग की सीख एक लड़की की सहनशक्ति और एक नानी की दुआओं के सहारे दोस्तों जिंदगी में कई बार हम अनजाने में उन लोगों को अनदेखा कर देते हैं जिन्हें उस वक्त सबसे ज्यादा हमारे
साथ की जरूरत होती है। लेकिन अब सवाल आप सभी से अगर आपके सामने कोई ऐसा टूट चुका इंसान आ जाए तो क्या आप भी बिना स्वार्थ उसका सहारा बनना चाहेंगे या फिर आप भी उसे अनदेखा करके आगे बढ़ जाएंगे। नीचे कमेंट में जरूर लिखिए। आप होते तो क्या करते और अगर यह कहानी दिल को छू गए हो तो बस एक लाइक जरूर कीजिए। और हमारे चैनल स्टोरी बाय बीके को भी सब्सक्राइब जरूर कीजिए और ऐसी ही इंसानियत से भरी कहानियों के लिए जुड़े रहिए और तब तक याद रखिए रिश्ते दिल से बनते हैं और कुछ रिश्ते बस थोड़ा सा अपनापन से जय हिंद जय भारत
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