हॉस्पिटल में एक मरीज मौत से लड़ रहा था जिसके सिर से खून बह रहा था और सांसे हर पल जवाब दे रही थी। तभी वहां आई एक डॉक्टर तेज कदमों से शांत चेहरे के साथ। पर जैसे ही उसकी नजर उस मरीज पर पड़ी, उसका चेहरा सख्त हो गया। आंखें नम हो गई और कंधे कांप गए क्योंकि स्ट्रेचर पर पड़ा वो मरीज। कोई और नहीं। उसका अपना तलाकशुदा पति था। जिसने कभी उसे गालियां दी थी, तड़पाया था और उसके गर्भ में पलते बच्चे को छीन लिया था। वह उसे भूल चुकी थी। पर आज मौत की दहलीज पर वही सामने पड़ा था। और उस पल वो सिर्फ एक औरत नहीं थी। वो एक डॉक्टर थी।

जिसे तय करना था जान बचानी है या दर्द से हिसाब करना है। लेकिन उस दिन जो हुआ इंसानियत भी काम गई। पूरी कहानी जानने के लिए वीडियो को आखिरी सेकंड तक जरूर देखें। लेकिन उससे पहले वीडियो को लाइक करें, चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें। दोस्तों, उदयगढ़ शहर के बीचोंबीच बने एक प्रसिद्ध निजी अस्पताल। सवेरा केयर सेंटर में डॉक्टर काव्या सिंह अपने केबिन में बैठी थी। सिर्फ नाम से नहीं बल्कि अपने काम से जानी जाती थी वो। हर दिन जैसे एक मिशन होता था। एक नई जिंदगी बचाने का संकल्प और उस दिन भी वही चल रहा था। जब

अचानक दरवाजा धड़ाम से खुला। दो आदमी अंदर भागते हुए आए। पसीने में भीगे हुए आंखों में डर और बेचैनी। हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगे। डॉक्टर साहिबा बस एक बार जल्दी से हमारे मरीज को देख लीजिए। वो मर जाएगा। बहुत खून बह गया है। प्लीज बस एक नजर डाल लीजिए। डॉक्टर काव्या ने फाइल बंद की और बिना कुछ कहे अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई। कुछ तो था इन आवाजों में एक बेकल सी सच्चाई जो उन्हें खींच लाई। जैसे ही वह इमरजेंसी वार्ड की ओर मुड़ी सामने से एक स्ट्रेचर पर मरीज को लाया जा रहा था। और तभी जैसे सब कुछ थम गया। जैसे वक्त ने एक धक्का दिया। दिल की धड़कन रुक गई और आंखें

वही फ्रीज हो गई। वो चेहरा वो चेहरा जिसे उन्होंने जिंदगी से काटकर फेंक दिया था। वो चेहरा था समर वर्मा का। हां, उनका ही तलाकशुदा पति। सिर से खून बह रहा था। एक हाथ मुड़ा हुआ था। और चेहरे पर जैसे मौत की परछाई थी। काव्या की आंखों से आंसू बन निकले। लेकिन उन्होंने तुरंत खुद को संभाला। वो डॉक्टर थी। वो टूट भी जाए तो किसी को दिखने नहीं देती। आंसू पोछ कर तेजी से बोली ऑक्सीजन लगाओ। खून का ग्रुप मैच करवाओ। जितनी तेजी हो सकती है सब करो। एक कतरा खून और नहीं बहना चाहिए। इस मरीज को बचाना है। स्टाफ समझ चुका था कि मामला गंभीर है। और डॉक्टर काव्या इस बार सिर्फ

डॉक्टर नहीं कुछ और भी है। हर कोई अपनेपने काम में लग गया। आईसीयू तैयार किया गया। इंजेक्शन, दवाइयां, मशीनें, सब कुछ एक पल में जुटा लिया गया। और काव्या बस एक तक देखती रही उस चेहरे को जो कभी उनकी जिंदगी का हिस्सा था। जिसने उन्हें तोड़ा था, रुलाया था, अकेला छोड़ा था। लेकिन आज वही इंसान मौत से लड़ रहा था और उसके सामने खड़ी थी। एक औरत जिसने हार नहीं मानी थी। उस वक्त वो सिर्फ एक डॉक्टर नहीं थी। एक टूटा रिश्ता थी, एक अधूरी मां थी, एक मजबूत बेटी थी। और अब सवाल यह था क्या वो सिर्फ पेशेंट को बचा रही है या खुद को भी? दो दिन तक समर वर्मा बेहोश रहा। मशीनों के

बीप, दवाइयों की महक और आईसीयू की उस ठंडी दीवारों के बीच सिर्फ एक चेहरा हर पल मौजूद रहा। डॉक्टर काव्या सिंह वो वहां हर घंटे आती। उसके रिपोर्ट्स देखती लेकिन कुछ नहीं कहती। उनकी आंखों में जो दर्द था वह शब्दों से बहुत बड़ा था। और फिर तीसरी सुबह आंखें हौले से खुली। समर की पलकों ने कांपते हुए रोशनी को देखा और धुंधले से दिखते अस्पताल की छत से ज्यादा वो उस चेहरे को ढूंढने लगा। जिसे उसने बरसों पहले खो दिया था। जब उसकी निगाहें काव्या पर पड़ी जो आईसीयू के कोने में खड़ी थी तो उसकी सांस अटक गई। कुछ पल तक बस देखता रहा। फिर होठ हिले और थरथराती आवाज निकली।

काव्या तुम काव्या ने उसकी तरफ देखा। बिल्कुल शांत चेहरा। लेकिन आंखों में वह समंदर जो कभी नहीं सूखते। तुम्हें होश आ गया। यही काफी है। मैं मैं कैसे यहां? समर की आवाज धीमी थी। टूटती हुई। जैसे कोई बीती उम्र फिर से याद आने लगी हो। काव्या थोड़ा पास आई। लेकिन अभी एक दूरी बनाए रखी। दो लोग तुम्हें लेकर आए थे। सड़क हादसा हुआ था। सर से खून बह रहा था। हाथ टूटा था और धड़कने गिर रही थी। तुम्हें वक्त पर लाया गया इसलिए बच गए। समर की आंखों से आंसू बहने लगे। वो धीरे से हाथ जोड़ने लगा। मुझे माफ कर दो काव्या। मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया। उस वक्त में

मैं अंधा था। मैं टूट चुका था। लेकिन जो जहर मैंने तुम्हारे साथ किया वो किसी इंसान के साथ नहीं होना चाहिए था। काव्या चुप थी। कुछ जवाब नहीं दिया। फिर कुर्सी खींची। पास बैठी और पहली बार उसकी आंखों में सीधे देखा। जानते हो समर? जब कोई औरत किसी रिश्ते से बाहर आती है तो लोग पूछते हैं क्या हुआ? किसने छोड़ा? लेकिन कोई नहीं पूछता कितना टूटी? मैंने तुम्हारे साथ रिश्ता नहीं तोड़ा था। मैंने बस उस दर्द से खुद को अलग किया था जो मुझे अंदर ही अंदर खत्म कर रहा था। तुम्हारी शराब, तुम्हारी चीखें और फिर वो रात जब तुमने मेरे पेट पर लात मारी थी। मेरा बच्चा जिसे

मैंने सपने में झूला झुलाया था। उसे तुमने मुझसे छीन लिया था। समर फूट-फूट कर रो पड़ा। मुझे कुछ नहीं समझ आया। उस वक्त मैं बहक गया था। नशे ने मुझे अंधा कर दिया था। पर आज जब जिंदगी मेरी सांसों से फिसल रही थी तो एक ही चेहरा था जो मौत से लड़ रहा था और वो तुम थी। मेरी वही काव्या काव्या की आंखें नम थी। लेकिन चेहरा अब भी मजबूत। मैं डॉक्टर हूं समर और तुम्हारा इलाज मेरी जिम्मेदारी थी। लेकिन माफ करना तुम्हारे दिए जख्मों का इलाज आज भी अधूरा है। समर ने कांपते हाथों से काव्या की मांग की ओर देखा। फिर पूछा तुमने फिर से शादी की? काव्या ने हल्की

मुस्कान के साथ सिर हिलाया। नहीं जब एक ने साथ नहीं दिया तो दूसरा क्यों देगा? सिंदूर अब भी वही है जो तुमने कभी भरा था। लेकिन उसका रंग अब मेरी पहचान नहीं। मेरी चेतावनी बन चुका है। समर चुप था। फिर एक्टक उसे देखते हुए बोला, मैं अब बदल चुका हूं। अगर मौका मिले तो खुद को साबित करना चाहता हूं। तुम्हारा विश्वास जीतना चाहता हूं। मैं बस चाहता हूं कि तुम फिर से मेरी जिंदगी में वापस आओ। अगर नहीं भी आओ तो बस एक बार माफ कर दो ताकि मैं सुकून से मर सकूं। काव्या ने गहरी सांस ली। तुम अभी नहीं मर रहे समर और मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगी। लेकिन माफ करना यह शब्द इतना

छोटा है कि मेरे दर्द को छू भी नहीं सकता। अब बस एक काम करो 15 दिन इस अस्पताल में रहो। ठीक हो जाओ और फिर सोचो कैसे जीना है। मरना तो बहुत आसान है समर। लेकिन जिंदा होकर सुधरना यही असली माफी है। अस्पताल के उस कमरे में जहां कभी सिर्फ दवाइयों की गंध होती थी। अब समर की आंखों में उम्मीद की हल्की सी लौ दिखाई देने लगी थी। डॉक्टर काव्या रोज उसके कमरे में आती थी। रिपोर्ट्स देखती, दवाइयां चेक करती। लेकिन वह अब सिर्फ एक डॉक्टर की तरह नहीं बल्कि एक पुरानी पहचान को निभाने की कोशिश कर रही थी। जो उन्होंने बरसों पहले खो दी थी। समर जो कभी एक घमंडी और नशे में डूबा

हुआ पति था। अब हर सुबह आंख खुलते ही भगवान को देखता और सबसे पहले एक ही काम करता। दोनों हाथ जोड़कर नर्सों को धन्यवाद कहता। धन्यवाद दीदी। आपने रात में दवा दी। माफ कीजिएगा। आपको बार-बार उठाना पड़ा। स्टाफ अब हैरान था। वही समर जो कभी अपनी ही पत्नी को जलील करता था। आज हर किसी को शुक्रिया कहना सीख गया है। काव्या के लिए यह देखना आसान नहीं था। कभी-कभी वह आईसीयू के बाहर से चुपचाप उसे देखती। कैसे वह किताबें पढ़ता, किसी गरीब वार्ड बॉय की मदद करता और कई बार दीवार की ओर मुंह करके चुपचाप रोता। उसकी आंखों में अब कोई दिखावा नहीं था। बस पछतावा था और शायद वह

बदलने की सच्ची कोशिश। लेकिन काव्या के अंदर कुछ और चल रहा था। एक जंग, दिल और दिमाग के बीच। क्या सच में कोई आदमी बदल सकता है? यही सवाल हर रात उसकी नींद में दस्तक देता। एक शाम जब अस्पताल की लाइट्स थोड़ी धीमी थी। समर ने काव्या को अकेले आईसीयू के कोने में देखा। वो धीरे से उठा। अपने जख्मी पैर के साथ लंगड़ाते हुए उसके पास पहुंचा। काव्या एक बात पूछूं? काव्या ने हल्की नजर उसकी ओर डाली। हां बोलो। अगर वक्त पीछे ले जा सकते तो क्या तुम मुझे फिर से चुनती? काव्या चुप हो गई। उसने कुछ देर सोचा। फिर कहा अगर वक्त पीछे जाता तो

शायद मैं तुम्हें बदलने की कोशिश ही नहीं करती। मैं बस खुद को बचा लेती। समर मुस्कुरा दिया लेकिन वो मुस्कान अंदर से टूटी हुई थी। तुम सही कहती हो। मुझे बदलना तुम्हारा काम नहीं था। वो मेरा काम था। पर अब अगर मैं खुद बदलना चाहूं तो क्या कोई उम्मीद है? काव्या की आंखें भर आई। उम्मीद हमेशा होती है समर। लेकिन भरोसा वो एक बार टूट जाए तो उसकी मरम्मत आसान नहीं होती। तुम्हारे किए गए गुनाहों की माफी सिर्फ शब्दों से नहीं मिलेगी। तुम्हें हर रोज बदल कर दिखाना होगा। खुद से लड़ना होगा और मुझे भी अपनी उस काव्या को वापस लाना होगा। जो तुमने कभी तोड़ दिया था। समर ने

सिर झुकाया। मैं तैयार हूं। अगर तुम कहो तो यहां तुम्हारे इस शहर में तुम्हारे अस्पताल के पास ही किराए पर एक कमरा ले लूंगा। नौकरी कर लूंगा और हर रोज खुद को तुम्हारे सामने साबित करूंगा। काव्या कुछ पल तक देखती रही। फिर धीरे से बोली ठीक है समर। 15 दिन और रहो यहां। फिर हम बात करेंगे। लेकिन एक बात याद रखना मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर नहीं जाऊंगी। अगर तुम साथ रहना चाहते हो तो मेरी दुनिया में आओ क्योंकि मैंने इसे खून और आंसुओं से सींचा है और अब मैं इसे फिर किसी के भरोसे नहीं छोड़ सकती। 15 दिन बीत चुके थे। समर अब लगभग पूरी तरह ठीक हो चुका था।

शरीर के घाव तो भर गए थे। लेकिन जो टूटन उसकी आत्मा में थी उसे भरने के लिए शायद कई जन लगते। अस्पताल की वो आखिरी सुबह थी। जब समर डिस्चार्ज पेपर्स हाथ में लिए अस्पताल की गैलरी में खड़ा था। कंधे पर छोटा सा बैग टांगे हुए और आंखें लगातार उसी दरवाजे को देख रही थी जिससे हर सुबह डॉक्टर काव्या आया करती थी। उसी वक्त काव्या आई। समर ने हाथ जोड़कर कहा, “आपने मेरी जान बचाई। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि आपने मुझे मेरी गलती से पहचान करवाया। अब मैं अपने बाकी जीवन में हर दिन एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करूंगा। बस एक गुजारिश है कभी-कभी देखने आ जाया करूं।

काव्या कुछ देर चुप रही। फिर बोली, समर, यह शहर सिर्फ तुम्हारी यादों से जुड़ा हुआ नहीं है। अब यह मेरी मेहनत मेरी पहचान से भी जुड़ चुका है। तुम यहां रह सकते हो। लेकिन शर्तों पर पहली शर्त शराब को हाथ नहीं लगाओगे। दूसरी शर्त अपनी जिंदगी को खुद संभालोगे मेरे भरोसे नहीं। तीसरी शर्त जो रिश्ता तुमने तोड़ा था अगर फिर से उसे जोड़ना चाहते हो तो हर दिन खुद को साबित करना होगा। मेरी नजरों में मेरी आत्मा में समर ने भावुक होकर कहा मैं तुम्हारे घर नहीं लौटूंगा। लेकिन अगर तुम चाहो तो एक किराए के छोटे से कमरे में तुम्हारे अस्पताल के पास रहूंगा। और रोज उस दरवाजे

से झांका करूंगा जहां एक दिन तुम मुझे फिर से बुला सको। काव्या की आंखें भर आई लेकिन उसने खुद को संभाला। ठीक है आज से तुम्हारा इम्तिहान शुरू। लेकिन याद रखना मैं अब वो काव्या नहीं हूं। जो दिल से हार जाती थी। अब मैं सिर ऊंचा करके जिंदगी से लड़ती हूं। कुछ हफ्ते बीते। समर अब अस्पताल के पास ही एक दवा दुकान में काम करने लगा था। रोज सुबह जल्दी उठता, योग करता, मंदिर जाता और फिर पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाता। वो दिन में कई बार अस्पताल के बाहर से गुजरता लेकिन कभी भी अंदर जाने की कोशिश नहीं करता। बस एक उम्मीद लिए। फिर एक शाम जब बारिश हो रही

थी और अस्पताल के बाहर ठंडी हवा चल रही थी। काव्या अपने केबिन में अकेली बैठी थी। हाथ में वही पुरानी तस्वीर थी जिसमें वह और समर शादी के दिन मुस्कुरा रहे थे। कुछ देर बाद उसने एक नंबर डायल किया। समर हां काव्या कल सुबह 9:00 बजे अस्पताल आ जाना। बात करनी है। अगले दिन समर अस्पताल पहुंचा। काव्या ने उसे अपने ऑफिस में बुलाया। कमरे में गहराई थी। सन्नाटा था और एक अलग तरह की भावुकता थी। काव्या ने धीरे से कहा मैंने बहुत सोचा समर क्या कोई रिश्ता दोबारा जिया जा सकता है क्या किसी को एक और मौका देना कमजोरी होती है या हिम्मत और फिर मैंने अपने आप से पूछा क्या

मैं अब भी उस इंसान को जानती हूं जो मेरे सामने खड़ा है और जवाब मिला नहीं वो समर जो मुझे छोड़ गया था वो मर चुका है और जो अब है वो शायद वही है जो मुझे मिलना चाहिए था इसलिए अगर तुम अभी यही चाहते हो तो एक शर्त पर। समर ध्यान से सुन रहा था। सांसे थमी हुई थी। तुम मेरे साथ रह सकते हो। लेकिन मेरे घर में मेरी शर्तों पर जहां मैं डॉक्टर भी हूं और एक औरत भी। मैं तुम्हारे साथ चलूंगी। तुम्हारे पीछे नहीं। तुम्हारे बराबर बनकर तुम्हारी परछाई बनकर नहीं। समर ने बिना एक पल की देर किए हाथ जोड़े और आंखों से मोटे-मोटे आंसू बहते हुए बोला, “मैं सिर्फ तुम्हारा साथ चाहता

हूं। तुम्हारी बराबरी बनकर, ना तुम्हारा बोझ, ना तुम्हारा मालिक।” फिर दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखा। कुछ नहीं कहा। लेकिन उस खामोशी में जो कहा गया, वह शायद हजारों शब्दों से ज्यादा ताकतवर था। और अगले ही पल दोनों के हाथ जुड़ गए। एक टूटा रिश्ता फिर जुड़ गया। लेकिन अब प्यार से नहीं, समझ से, दर्द से नहीं, इज्जत से। जिंदगी जब दूसरी बार मौका देती है तो वह पहले से कहीं ज्यादा गंभीर, कहीं ज्यादा गहराई से भरी होती है। काव्या सिंह और समर वर्मा अब साथ थे। लेकिन इस बार उनका साथ पतिप की किसी फिल्मी परिभाषा जैसा नहीं था। यह साथ एक साझा संघर्ष का था। एक ऐसा

रिश्ता जो अब प्यार से ज्यादा समझ, भरोसे और सम्मान पर टिका था। अब समर के पास एक सुकून था, एक गर्व था कि वह बदल चुका है और अब सिर्फ एक पति नहीं, एक बेहतर इंसान बन रहा है। एक दिन काव्या ने उसे कहा, समर, मैं चाहती हूं कि हम अब अपने रिश्ते को सबके सामने स्वीकार करें। बहुत छुपा लिया। अब समाज को भी दिखा दें कि अगर इंसान सुधर जाए तो उसे फिर से सम्मान मिल सकता है। समर ने पहले तो झिझकते हुए कहा क्या लोग मानेंगे? क्या समाज हमें समझेगा? काव्या ने मुस्कुराकर कहा अगर दुनिया गलतियों को सजा दे सकती है तो पश्चाताप को माफ भी कर सकती है। बस शर्त यह है तुम खुद

को सच्चे दिल से बदल चुके हो। उसके बाद एक शाम अस्पताल के ऑडिटोरियम में एक निशुल्क स्वास्थ्य शिविर रखा गया। स्टेज पर काव्या खड़ी थी। सैकड़ों मरीज, डॉक्टर्स और शहर के लोग जमा थे। तभी उन्होंने माइक थामा और कहा आज मैं आपको एक बात बताना चाहती हूं। जिस इंसान ने कभी मेरी जिंदगी को तोड़ा था। आज वही इंसान मेरी जिंदगी में सबसे बड़ा सहारा बन चुका है क्योंकि उसने सिर्फ मुझसे नहीं खुद से भी माफी मांगी है और खुद को हर दिन बेहतर साबित किया है। मैंने उसे नहीं अपनाया। मैंने एक नए इंसान को चुना है जो उसकी ही परछाई से बना है। भीड़

में सन्नाटा छा गया और स्टेज पर समर को बुलाया गया। समर चुपचाप सिर झुकाकर स्टेज पर आया। काव्या ने उसके गले में एक फूलों की माला पहनाई और खुद उसकी तरफ देखकर कहा, “यह रिश्ता अब सिर्फ पतिप्नी का नहीं, इंसानियत और विश्वास का है। तालियों की गूंज उठी। आंसुओं के बीच कई चेहरों पर मुस्कान थी। और कई जख्मों पर मलहम लग चुका था। कहानी खत्म नहीं हुई। बस नया अध्याय शुरू हुआ। काव्या अब अपने अस्पताल की प्रमुख डॉक्टर थी और समर एक मेडिकल सोशल वर्कर। जो हर मरीज की सेवा को अपना धर्म मान चुका था। उनके पास सब कुछ नहीं था। लेकिन जो था वह सच था। संपूर्ण था और

सच्चे बदलाव की कहानी था। दोस्तों रिश्ते कभी पूरी तरह नहीं टूटते। अगर दिल में सच्चा पछतावा हो, अगर इंसान सच में बदलने को तैयार हो, तो शायद वक्त भी उसे एक और मौका देता है, लेकिन माफी मांगना जितना आसान है, माफ करना उससे कहीं ज्यादा बड़ा साहस है। अब आपसे एक सवाल अगर आपके सामने वो इंसान फिर से आ जाए जिसने आपको सबसे गहरा दर्द दिया था। लेकिन अब वह सच में बदल चुका हो तो क्या आप उसे माफ कर पाएंगे? क्या आप फिर से एक टूटा रिश्ता जोड़ने की हिम्मत दिखा पाएंगे? कमेंट में जरूर बताइए। क्योंकि हो सकता है आपका जवाब किसी की जिंदगी को बर्बाद होने से बचा दे

और एक सबक बन जाए और अगर यह कहानी दिल को छू गई हो तो वीडियो को लाइक करें, शेयर करें। मिलते हैं एक और सच्ची और दिल को छू जाने वाली कहानी में। तब तक के लिए अपने रिश्तों को समय दीजिए। क्योंकि रिश्ते जब टूटते हैं तो सिर्फ आवाज नहीं आती। एक जिंदगी चुपचाप बिखर जाती है। जय हिंद जय हिंद।