कभी आपने सोचा है कि वही बाप जिसने तुम्हें उंगली पकड़ कर चलना सिखाया। वह बुढ़ापे में अपने ही घर के आंगन में तन्हाई से रो रहा हो। अपनों के तानों और जलील करने की आग में रोज तड़प रहा हो। और जब सहने की ताकत भी जवाब दे दे तो कांपते कदमों से इंसाफ की उम्मीद लिए थाने का दरवाजा खटखटाता हो। लेकिन वहां किस्मत उसे ऐसा मंजर दिखाए जिसे देखकर उसकी रूह तक कांप जाए। यह कहानी एक ऐसे ही टूटे हुए बाप की है जिसने अपने बेटों के लिए सब कुछ छोड़ दिया था। अपनी जवानी, अपनी खुशियां, अपने सपने तक। लेकिन वक्त ने उसे वही दिया जो शायद दुनिया के सबसे बड़े दर्द में से एक है।

अपनों का अपमान। यह सच्ची कहानी है बिहार के एक छोटे से गांव धर्मपुर की जहां रहते थे रामदयाल जी एक सच्चे भोले और मेहनती इंसान उनकी दुनिया बस उनके दो बेटों के इर्दगिर्द घूमती थी बड़ा बेटा आशीष और छोटा बेटा नीलेश रामदयाल जी ने अपनी पूरी जिंदगी मेहनत में गुजार दी खेतों में पसीना बहाया मजदूरी की ताकि उनके बेटे पढ़ लिख जाए कुछ बन जाए और जब वह बुजुर्ग हो तो बेटे उनका सहारा बने। उनकी लाठी बने। समय ने भी उनका साथ दिया। आशीष पढ़ाई में बहुत तेज था। मेहनत रंग लाई और वह पुलिस में सिपाही बन गया। नीलेश भी पढ़ा और एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी पाली। रामदयाल

जी की आंखों में खुशी के आंसू थे। उन्हें लगता था अब मेरी जिंदगी की सारी तपस्या सफल हो गई। अब बुढ़ापा आराम से कटेगा। प्यार के बीज कटेगा। लेकिन किस्मत के पास कुछ और ही लिखा था। ऐसा घाव जो सीधा आत्मा को छलनी कर जाए। जब आशीष अपनी ट्रेनिंग के लिए शहर चला गया तो घर में रह गए रामदयाल जी, छोटा बेटा नीलेश और उसकी पत्नी किरण शुरुआत में सब कुछ ठीक-ठाक चला। लेकिन धीरे-धीरे घर की हवाओं में कुछ बदलने लगा। किरण का व्यवहार बदलने लगा। उसकी आंखों में अब वह सम्मान नहीं था जो पहले था। कभी हल्की सी बात पर चिल्लाना, कभी छोटी सी गलती पर ताने मारना और कभी-कभी तो नीच

बातें बोल देना। यह सब रोज का हिस्सा बन गया था। रामदयाल जी चुप रहते थे। सोचते थे रहने दो। बहू है, नई पीढ़ी है। मैं तो बूढ़ा हूं। दो चार साल की जिंदगी बची है। सह लूंगा। लेकिन ताने अपमान वो भी रोज-रोज का जब दिल को काटने लगे तो सहना भी बोझ बन जाता है। एक दिन जब रामदयाल जी ने नीलेश से कुछ कहना चाहा तो उसने भी टाल दिया पापा आप भी ना हर बात में दुखी हो जाते हैं। छोड़िए ना बहू है घर संभालती है। यह सुनकर रामदयाल जी का दिल और भी टूट गया था। अपने बेटे की आंखों में वह ममता नहीं देख पाए जो कभी उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी न्योछावर करके बोई थी और एक दिन जब सहने

की सारी हदें टूट गई तो कांपते हुए हाथों से उन्होंने अपने पुराने कुर्ता पायजामा पहना पैरों में घिसे हुए जूते डाले और आंखों में बस एक आस लिए इंसाफ की तलाश में थाने की तरफ चल पड़े तेज धूप थी जैसे आसमान भी उनकी तकलीफ पर अपनी तपिश बरसा रहा हो। रामदयाल जी के पैर कांप रहे थे। लेकिन उनका दिल एक आखरी उम्मीद से भरा था। कहीं तो मेरी सुनवाई होगी। कहीं तो कोई मेरी तकलीफ को समझेगा। थाने के बड़े से फाटक तक पहुंचे तो एक पल को ठिठक गए। भीतर जाने की हिम्मत जैसे घुटनों में थम गई थी। सोचा क्या सच में पुलिस मेरी सुनवाई करेगी? या कहीं यहां भी अपमान का ही सामना

करना पड़ेगा। पर फिर खुद को संभाला। अपने कमजोर हाथों से फाटक को धक्का दिया और कांपते कदमों से अंदर चले गए। भीतर एक हवलदार बैठा था। रामदयाल जी ने धीमी आवाज में अपनी बात शुरू की। अपना दर्द, अपनी कहानी, अपने टूटे सपने सब बयां कर दिए। लेकिन हवलदार ने उनकी बात सुनते ही बेसब्री से कहा, बाबा सामने के केबिन में जाइए। वहां साहब बैठे हैं। वही आपकी सुनवाई होगी। रामदयाल जी थके हुए कदमों से उस केबिन की तरफ बढ़े। हर कदम भारी था। हर सांस एक बोर जैसी थी। लेकिन जैसे ही उन्होंने उस केबिन का दरवाजा खोला। उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। कुर्सी पर जो

इंस्पेक्टर बैठा था वो कोई और नहीं। उनका अपना बेटा आशीष था। एक पल के लिए रामदयाल जी को लगा कि जैसे उनके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। आंखों के सामने सब कुछ धुंधला पड़ गया। जिस बेटे के लिए उन्होंने सारी खुशियां छोड़ दी थी। आज उसी के सामने एक फरियादी बनकर खड़े थे। आशीष भी अपने पापा को देखकर चौंक गया था। कुर्सी छोड़ दौड़कर उनके पास आया। हाथ पकड़ कर सहारा दिया। पापा आप यहां क्या हुआ पापा? लेकिन रामदयाल जी की जुबान जैसे पत्थर बन गई थी। आंखों से बस आंसू बह रहे थे। हृदय में इतना दर्द था कि शब्द भी बाहर नहीं आ रहे थे। आशीष ने तुरंत पानी का गिलास लाकर

सामने रखा और बहुत नरमी से उनका हाथ पकड़ा। पापा आप मुझसे कुछ भी कहिए। मैं आपका बेटा हूं। अगर मैंने आपकी तकलीफ नहीं सुनी तो फिर यह वर्दी किस काम की? यह सुनकर रामदयाल जी का दिल भर आया। सालों का घुटा हुआ दर्द जैसे बेटे के सामने बहने लगा। कापती आवाज में बोले, बेटा मैंने तुझे हमेशा भगवान का रूप माना। तेरे लिए सब कुछ किया पर आज हालात ऐसे बन गए हैं कि अपने ही घर में बेगाना हो गया हूं बेटा। आशीष का चेहरा गंभीर हो गया था। उसने पापा का हाथ कसकर थामा और कहा पापा अब कुछ नहीं छुपाना है। जो भी दर्द है जो भी तकलीफ है सब बताइए। आपका बेटा अब आपके साथ है।

रामदयाल जी ने डबल बाई आंखों से धीरे-धीरे अपनी पूरी कहानी सुनानी शुरू की। उनका हर शब्द आशीष के सीने को चीरता जा रहा था। जिस बेटे ने सोचा था कि उसके बूढ़े पापा खुश होंगे। वही बेटा आज जान रहा था कि उनकी चुप्पी के पीछे कितना बड़ा दर्द छुपा था। रामदयाल जी की कांपती आवाज आशीष के दिल में आग सी भर रही थी। जिस बाप ने अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ बच्चों के लिए जिया। आज वही बाप अपने ही घर में पराया बना दिया गया था। रामदयाल जी ने थरथराते शब्दों में कहा बेटा बहू किरण अब मुझसे ऐसे बात करती है जैसे मैं कोई बोझ हूं। हर छोटी बात पर

ताना अपमान यहां तक कि कई बार तो मुझ पर हाथ भी उठाया है और तेरा भाई नीलेश वो सब देखता है बेटा पर चुपचाप आंखें फेर लेता है। कभी कुछ नहीं कहता कभी नहीं रोकता। रामदयाल जी बोलते बोलते सिसक पड़े। उनकी आंखों से आंसू बहते जा रहे थे। जैसे बरसों का जमा हुआ दर्द अब एक सैला बन गया हो। आशीष ने अपने पापा का हाथ और भी मजबूत पकड़ लिया। उसकी आंखें भी अबक भरी थी। लेकिन उसने खुद को संभाला। आहिस्ता से कहा पापा अब एक भी आंसू नहीं बहाना पड़ेगा आपको। आपका बेटा अब आपके साथ है। जिसने आपको तकलीफ दी है उसे अब जवाब मिलेगा। इंसाफ मिलेगा। आपका सम्मान लौटेगा। आशीष

ने उसी वक्त एक फैसला कर लिया था। वह अब अपने पापा को चुप नहीं रहने देगा। अब वह अपने पापा की आवाज बनेगा। क्योंकि अगर बेटा बाप की तकलीफ नहीं समझा तो फिर इस रिश्ते की कोई कीमत नहीं। उसने धीरे से पापा के कंधे पर हाथ रखा और कहा चलिए पापा अब हम वहीं चलेंगे। जहां आपकी इज्जत छीनी गई थी। आज वही इज्जत सबके सामने लौटानी है। रामदयाल जी एक पल के लिए हिचकिचाए। उनकी बूढ़ी आंखों में डर था। लेकिन बेटे की मजबूत आंखों में देखकर उन्हें भरोसा हुआ। अब वो अकेले नहीं है। आशीष ने एक जीप मंगवाई। बड़ी इज्जत से पापा को बैठाया और सीधा धर्मपुर के अपने पुराने घर की तरफ

गाड़ी मोड़ दी। रास्ते भर दोनों चुप थे। पर दोनों के दिलों में एक ही जंग चल रही थी। एक तरफ दर्द, दूसरी तरफ इंसाफ। गाड़ी जैसे ही घर के सामने रुकी, आशीष ने गहरी सांस ली। पापा का हाथ थामा और दोनों घर के अंदर चले गए। अंदर का नजारा कुछ और ही था। ड्राइंग रूम में नीलेश, किरण और उसकी मां आराम से बैठे बातें कर रहे थे। हंसी ठिठोली कर रहे थे। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। लेकिन दरवाजे पर खड़े आशीष और रामदयाल जी को देखकर। एक पल में सबका चेहरा सफेद पड़ गया। नीलेश घबरा कर उठा। किरण की आंखों में डर दौड़ गया। उसकी मां तो एकदम सन रह

गई और आशीष। आशीष आज वर्दी में नहीं था। आज वह सिर्फ एक बेटा था जो अपने बाप के लिए खड़ा था। घर के अंदर सन्नाटा फैल चुका था। जैसे किसी ने एक पल में सारी हवा खींच ली हो। सबकी आंखें दरवाजे पर खड़े रामदयाल जी और आशीष पर टिक गई थी। आशीष ने कोई जल्दी नहीं की। धीमे-धीमे कदम बढ़ाए और सीधे अपने पापा को घर के बीचोंबीच ले जाकर बिठा दिया। फिर खुद बिल्कुल उनके पीछे खड़ा हो गया। जैसे कह रहा हो। आज मेरे बाबूजी अकेले नहीं है। आज उनका बेटा उनके साथ है। नीलेश घबरा कर बोला भैया आप अचानक सब ठीक तो है ना? आशीष की आवाज में एक ठहराव था। लेकिन उस ठहराव के पीछे बेतहाशा

गुस्सा छुपा था। उसने सीधे नीलेश की आंखों में देखते हुए कहा, आज सब ठीक होगा। नीलेश आज सब कुछ साफ-साफ होगा। बाबूजी बताएंगे। यहां उनके साथ क्या हुआ है और कौन उनके साथ कैसा बर्ताव कर रहा था। इतना सुनते ही किरण का चेहरा पीला पड़ गया। उसकी मां की हथेलियां अब पसीने से भीग गई। नीलेश का सिर झुक गया। रामदयाल जी चुपचाप बैठे थे। उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। लेकिन आज उनमें डर नहीं था। आज उनके पीछे उनका बेटा खड़ा था। उनकी सबसे बड़ी ताकत बनकर किरण ने कुछ कहने की कोशिश की। पापा जी हम तो बस लेकिन आशीष ने हाथ से इशारा कर चुप करा

दिया। पहले बाबूजी बोलेंगे। अब सिर्फ वही बोलेंगे। सभी चुप हो गए। पूरा घर जैसे थम गया था। रामदयाल जी ने कांपती आवाज में बोलना शुरू किया। नीलेश बेटा मैंने तुम्हें हमेशा अपना सबसे प्यारा बेटा माना। तेरी हर खुशी के लिए मैंने अपने अरमान कुर्बान कर दिए। लेकिन जब मां चली गई और घर में सिर्फ तुम और तुम्हारी पत्नी बच गए। तो मुझे लगा अब तुम ही मेरा सहारा बनोगे। उनकी आवाज भारी हो गई थी। लेकिन धीरे-धीरे किरण के ताने उसके गंदे शब्द उसका मुझे घर से बेगाना बना देना। मुझे तोड़ने लगा बेटा। मैंने सब कुछ सहा। कभी सोचा कि छोटा बेटा है समझ जाएगा। पर

तुमने भी आंखें मूंद ली। आंसू अब उनकी आवाज को बाहर ले जा रहे थे। कभी खाना फेंक दिया जाता था। कभी कमरे में ताला लगा दिया जाता था। कभी सबके सामने गंदी बातें बोल दी जाती थी। और मैं चुपचाप सहता रहा। सिर्फ इसलिए कि यह घर बिखर ना जाए। अब नीलेश की आंखें भी नम थी। किरण का चेहरा शर्म से झुका हुआ था। उसकी मां अब धीरे-धीरे पीछे हटने लगी थी। आशीष ने गहरी सांस ली और बहुत गंभीर स्वर में कहा। अब फैसला बाबूजी का होगा। जो भी सजा देंगे वही मान्य होगी। चाहे तो कानूनी कारवाई हो या जो भी बाबूजी कहें आज से उनके हर दर्द का हिसाब लिया जाएगा। इतना सुनते ही किरण

फफ पड़ी। अपने घुटनों के बल गिर पड़ी रामदयाल जी के पैरों में। पापा जी माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैंने गलत संगत में आकर आपकी इज्जत को ठेस पहुंचाई। लेकिन अब से मैं आपकी बेटी बनकर रहूंगी। कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगी। नीलेश भी आगे बढ़कर बाबूजी के पैरों में गिर गया। भैया बाबूजी मुझे माफ कर दीजिए। मैं समझ नहीं पाया। अब से हर पल आपकी सेवा करूंगा। आपकी खुशी के लिए जिऊंगा। पूरा घर आंसुओं से भीग चुका था। रामदयाल जी के कांपते हुए हाथ दोनों के सिर पर चले गए। आशीष चुपचाप खड़ा देख रहा था। उसकी आंखों में चमक थी। आज उसने अपने

बाप के लिए इंसाफ जीत लिया था। रामदयाल जी के कांपते हुए हाथ जब अपने बच्चों के सिर पर फरे तो जैसे उनके भीतर बरसों से जमा हुआ सारा दुख पिघलने लगा था। आंखों से बहते आंसू अब सिर्फ गम के नहीं थे। उनमें राहत थी। एक बाप की उस घुटी हुई खुशी थी। जो बरसों से दिल के किसी कोने में दबकर रह गई थी। उन्होंने धीरे से कहा बेटा नीलेश बेटी किरण गलती इंसान से ही होती है लेकिन जिसने अपनी गलती मान ली वो अपनेपन के सबसे बड़े हकदार होते हैं। पूरा घर अब गीला था आंसुओं से लेकिन उन आंसुओं में अब पछतावे से ज्यादा उम्मीद की चमक थी। रामदयाल जी

ने अपने कांपते हाथों से किरण का सिर सहलाया और बोले बेटी तूने अगर सच में अपनी गलती पहचान ली है तो आज से तू सिर्फ बहू नहीं मेरी बेटी है और बेटियां पिता की जान होती है। किरण फूट-फूट कर रो पड़ी। नीलेश ने भी बाबूजी के दोनों हाथ पकड़ कर कहा। बाबूजी अब आपको कभी अकेला महसूस नहीं होने देंगे। आपकी हर खुशी, हर जरूरत हमारी जिम्मेदारी है। अब इस घर में आपकी इज्जत सबसे ऊपर होगी। आशीष एक किनारे खड़ा सब देख रहा था। उसकी आंखों में भी पानी था। लेकिन उस पानी में आज संतोष था। एक बेटे का सुकून कि उसने अपने बाप का सिर फिर से गर्व से ऊंचा कर दिया था। रामदयाल जी ने

सबको पास बुलाया। अपने दोनों बेटों को गले लगाया। बहू को आशीर्वाद दिया और उस पुराने टूटे हुए घर में बरसों बाद पहली बार सच्ची मुस्कान गूंजी थी। कुछ दिन बाद आशीष ने फैसला किया कि बाबूजी कुछ दिन उसके साथ शहर में रहे ताकि थोड़ा बदलाव आए। थोड़ा सुकून मिले और फिर धीरे-धीरे पूरे परिवार ने मिलकर अपने रिश्ते के पुराने घावों पर प्यार की मरहम लगाई। अब नीलेश रोज बाबूजी के लिए चाय बनाता। किरण उनके दवाई और खाने का ध्यान रखती और बच्चे वह तो दादाजी की कहानियों में डूब जाते थे। रामदयाल जी अब जब भी घर के आंगन में बैठते तो उनकी आंखों

में संतोष की नमी होती थी। कोई शिकायत नहीं, कोई डर नहीं। बस अपनों के बीच जीने का सुकून था। और आशीष जब भी अपनी वर्दी पहनकर ड्यूटी पर जाता तो उसके दिल में बस एक ही फक्र की लहर उठती। मैं सिर्फ एक पुलिस वाला नहीं। मैं एक बेटा हूं जिसने अपने बाप के आंसू पोछे हैं। दोस्तों, यह कहानी सिर्फ रामदयाल जी की नहीं है। यह हर उस बुजुर्ग की कहानी है जो अपने बच्चों की खुशी के लिए सब कुछ कुर्बान कर देता है। लेकिन बुढ़ापे में अक्सर अपनों की बेरुखी का शिकार हो जाता है। लेकिन याद रखिए इंसान के चेहरे पर झुर्रियां आ सकती है। पर उसकी ममता, उसका प्यार कभी बूढ़ा नहीं

होता। आज आपसे दिल से एक सवाल पूछना चाहता हूं। क्या आपने कभी सोचा है कि जिन हाथों ने आपको सहारा दिया था अगर वही हाथ एक दिन सहारा मांगे तो आप उन्हें थामेंगे या नजरें चुराएंगे? अपने दिल से जुड़े इस सवाल का जवाब कमेंट में जरूर दीजिएगा। शायद आपकी एक लाइन किसी और बैटविटी के सोच को बदल दे। अगर यह कहानी आपके दिल तक पहुंची हो। तो एक छोटा सा लाइक जरूर करिए और हमारे चैनल स्टोरी बाय बीके को सब्सक्राइब करना ना भूलिएगा क्योंकि हम लाते हैं दिल से निकली कहानियां जो कहीं ना कहीं आपके भी दिल को छू जाती है। मिलते हैं अगली कहानी में।