कई सालों तक सीमा ने राजगोपाल परिवार के लिए काम किया था।
हर सुबह वह फर्नीचर को इस तरह चमकाती कि वह आईने जैसा दिखने लगे।
वह पूरे बंगले के हर कोने की सफ़ाई करती, परिवार के लिए खाना बनाती, और यह सुनिश्चित करती कि घर में हमेशा शांति और सलीका बना रहे।
वह शांत थी, विनम्र थी, और अपनी निष्ठा में अडिग।
सबके लिए वह अदृश्य थी — लेकिन उसके बिना घर का चलना असंभव था।
समय के साथ वह छोटे आरव, यानी राजेश राजगोपाल के इकलौते बेटे, के बहुत क़रीब आ गई।
आरव की माँ का निधन कई साल पहले हो चुका था, और उस खालीपन को सीमा ने अपनी ममता और देखभाल से भर दिया था।
राजेश एक गंभीर स्वभाव का आदमी था — अपने तरीके से दयालु, लेकिन अक्सर दूर और चुप।
उसकी माँ सविता देवी लोहे की तरह सख़्त और ठंडी सोच वाली थी।
वह सीमा पर पूरी तरह निर्भर थी, लेकिन कभी उस पर भरोसा नहीं करती थी।
फिर एक सुबह सब कुछ बिखर गया।
परिवार की सबसे कीमती विरासत — एक प्राचीन हीरे का ब्रोच, जो पीढ़ियों से चला आ रहा था — गायब हो गया।
सविता देवी की क्रोधित आवाज़ पूरे हवेली में गूँज उठी —
“वही थी! नौकरानी! वही तो घर में बाहर की है!”
सीमा के हाथ काँप गए। “कृपया, सविता जी, मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती…”
पर किसी ने उसकी नहीं सुनी।
सविता देवी सीधे राजेश के पास पहुँचीं और ज़ोर देकर कहा कि वह कुछ करे।
राजेश ने अनमने मन से अपनी माँ की बात मान ली।
सीमा ने गिड़गिड़ाकर कहा कि घर की तलाशी ली जाए, लेकिन उसे तुरंत निकाल दिया गया।
पुलिस आई, और पड़ोसी तमाशा देखने बाहर जमा हो गए।
सीमा की आँखों में आँसू थे — वर्षों की सेवा पलभर में मिट गई।
अकेली और भुला दी गई
कुछ दिन बाद उसे अदालत का समन मिला।
ख़बर पूरे मोहल्ले में फैल गई।
जो लोग पहले उसे सम्मान से नमस्ते करते थे, अब रास्ता बदल लेते।
“सीमा” अब एक फुसफुसाए जाने वाला नाम बन गई थी।
पर जो सबसे ज़्यादा दर्द दे रहा था, वह था आरव का न आना।
उसे उसकी हँसी याद आती, उसकी जिज्ञासाएँ, और वो पल जब वह स्कूल के बाद आकर उसकी गोद में सिर रख देता था।
फिर एक सुबह दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई।
सीमा ने खोला — सामने आरव खड़ा था।
“सीमा दीदी!” वह बोला, उसकी बाँहों में दौड़ते हुए।
“दादी कहती हैं तुम बुरी हो, पर मैं नहीं मानता। तुम्हारे बिना घर खाली लगता है।”
सीमा की आँखें भर आईं। “आरव… मैं भी तुम्हें बहुत याद करती हूँ।”
आरव ने जेब से एक छोटी सी तस्वीर निकाली — जिसमें उनकी हथेलियाँ साथ थीं।
“मैं इसे रखता हूँ… ताकि तुम मुझे भूल न जाओ।”
सीमा का टूटा हुआ दिल फिर से धड़कने लगा — उम्मीद की एक किरण लौट आई।
मुक़दमा
सुनवाई के दिन सीमा ने अपनी पुरानी नौकरानी की वर्दी पहनी — वही जो अब एकमात्र साफ़ कपड़ा था।
उसके हाथ काँप रहे थे, पर उसकी नज़रें दृढ़ थीं।
अदालत में फुसफुसाहट गूँज रही थी।
सविता देवी गर्व से बैठी थीं, बगल में राजेश, और सामने उनका वकील — डॉ. मनोज वर्मा, शहर के नामी अधिवक्ता।
दूसरी तरफ़ सीमा की तरफ़ से खड़ी थी उसकी युवा वकील नीता शर्मा, जो घबराई हुई थी लेकिन निडर भी।
अभियोजन पक्ष ने सीमा को लालची और कृतघ्न बताया,
कहा कि उसने राजगोपाल परिवार की दया का गलत फायदा उठाया।
गवाह वही कह रहे थे जो सविता देवी ने सिखाया था।
राजेश चुप बैठा था — चेहरे पर अपराध का साया।
पीछे बैठा आरव, अपनी अध्यापिका के साथ, उदास नज़रों से सब देख रहा था।
जब सीमा की बारी आई, उसकी आवाज़ धीमी लेकिन अटल थी —
“मैंने कभी किसी की चीज़ नहीं ली।
यह परिवार मेरा संसार था… और उनका बेटा मेरे लिए अपने जैसा था।”
जज ध्यान से सुन रहे थे, लेकिन भीड़ ने तो पहले ही उसे दोषी मान लिया था।
एक बच्चे की सच्चाई
अचानक, कुछ अप्रत्याशित हुआ।
आरव अचानक खड़ा हो गया।
उसकी अध्यापिका ने रोकने की कोशिश की, लेकिन वह आगे दौड़ गया।
“रुको!” उसने पुकारा। “उसने ऐसा नहीं किया!”
अदालत में सन्नाटा छा गया।
सबकी नज़रें छोटे से लड़के पर टिक गईं जो सीमा के बगल में खड़ा था, आँखों में आँसू लिए।
“मैंने उस रात दादी को देखा था,” उसने कहा।
“उनके हाथ में कुछ चमकदार था। उन्होंने कहा था — ‘सीमा को फँसाना आसान होगा।’”
सविता देवी का चेहरा सफेद पड़ गया।
जज झुककर बोले, “बच्चे, जो तुमने देखा, ठीक-ठीक बताओ।”
आरव ने सब बताया — सोने का डिब्बा, स्टडी रूम की गुप्त दराज़, और अंदर रखा हुआ वही हीरे का ब्रोच।
उसका बयान इतना साफ़ था कि झूठ होना असंभव था।
नीता शर्मा ने तुरंत कहा, “मान्यवर, तत्काल तलाशी का आदेश दें।”
जज ने अनुमति दी।
कुछ ही मिनटों में पुलिस लौटी — आरव द्वारा बताए गए उसी डिब्बे के साथ।
अंदर नक़द और दस्तावेज़ भी मिले जो सविता देवी के झूठ को साबित कर रहे थे।
न्याय की जीत
सविता देवी के झूठ सबके सामने ढह गए।
राजेश काँपती आवाज़ में बोला, “सीमा… मुझे माफ़ कर दो।”
जज ने सीमा को निर्दोष घोषित किया।
सालों का बोझ जैसे हट गया — आँधी के बाद की धूप की तरह राहत छा गई।
आरव दौड़कर उसकी कमर से लिपट गया, रोते हुए बोला,
“आप ही मेरा असली दिल हो, सीमा दीदी!”
इस बार अदालत तालियों से गूँज उठी।
मीडिया ने इसे सच्चाई और प्रेम की जीत कहा।
सविता देवी पर झूठी गवाही के आरोप लगे, और घर पर उनका राज उसी दिन ख़त्म हो गया।
सीमा अदालत से बाहर निकली — आज़ाद, साफ़-सुथरे नाम के साथ।
आरव का हाथ उसके हाथ में था, और नीता शर्मा बगल में मुस्कुरा रही थीं।
आसमान में हल्की धूप थी, और वर्षों बाद सीमा ने राहत की साँस ली।
आरव ने ऊपर देखा और धीरे से कहा,
“वादा करो, अब कभी मुझे छोड़कर मत जाना।”
सीमा ने उसके बालों को सहलाया और मुस्कुराई —
“कभी नहीं, मेरे बच्चे,” उसने कहा। “अब कभी नहीं।
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