भूख तो रोटी से मिट जाती है, पर सपनों की भूख कैसे मिटे? सूरज की पहली किरणों के साथ ही छोटी सी प्रिया अपनी छोटी डलियां लेकर गुरुद्वारे के बाहर अपनी जगह बैठ जाती थी। बनारस शहर का यह इलाका धार्मिक आस्था का केंद्र था। दशाश्व मैद घाट के पास स्थित यह गुरुद्वारा हर दिन हजारों श्रद्धालुओं को अपनी तरफ खींचता था। प्रिया की उम्र मुश्किल से 9 साल थी। लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी परिपक्वता थी। जो बच्चे उसकी उम्र में खिलौनों के साथ खेलते थे, वह सुबह 4:00 बजे उठकर अपने छोटे हाथों से गेंदे, गुलाब और मोगरे की मालाएं बनाती थी। उसकी छोटी
सी डलिया में रंग बिरंगी मालाएं सजी होती थी जो सुबह की धूप में और भी खूबसूरत लगती थी। वह अपनी कमजोर सी आवाज में हर आने वाले श्रद्धालु से कहती, “अंकल जी, माला ले लीजिए ना।” गुरु जी को चढ़ा दीजिएगा। बहुत अच्छी है, ताजी है। उसकी आवाज में मासूमियत थी। लेकिन जरूरत की मजबूरी भी झलकती थी। लेकिन शहर की भागदौड़ में व्यस्त लोग अक्सर उसे अनदेखा कर देते। कुछ लोग तो उसे देखकर झुंझला जाते और कहते अरे हट यहां से। इतनी छोटी उम्र में भीख मांग रही है। इसके मां-बाप कहां है? कामचोर लोग बच्चों को भेज देते हैं। ऐसी बातें सुनकर प्रिया की आंखों में आंसू भर आते। लेकिन
वह तुरंत अपनी मुस्कान वापस लाकर फिर से आवाज लगाती। उसे पता था कि अगर वह रोने में वक्त बर्बाद करेगी तो दादी माई की दवाई और खाने का जुगाड़ कैसे होगा। प्रिया के माता-पिता रामकिशन और सुशीला दिल्ली में मजदूरी करते थे। रामकिशन एक निर्माण कंपनी में काम करता था और सुशीला घरों में सफाई का काम करती थी। वे दोनों मेहनतकश थे और अपनी छोटी सी बेटी के लिए एक बेहतर भविष्य का सपना देखते थे। एक दिन रामकिशन को अचानक अपने गांव से खबर मिली कि उसके बूढ़े पिता की तबीयत बहुत खराब है। परिवार की मजबूरी देखते हुए वे तुरंत गांव के लिए निकल पड़े। रात का समय था। बारिश हो रही
थी और सड़कें फिसलन भरी थी। वह काली रात प्रिया की जिंदगी का सबसे काला दिन साबित हुई। एक तेज रफ्तार ट्रक ने उनकी बस को टक्कर मार दी। इस भयानक दुर्घटना में प्रिया के अलावा परिवार का कोई और सदस्य नहीं बचा। छोटी सी प्रिया जो इस समय अपने मामा के घर थी एक ही रात में अनाथ हो गई। दुर्घटना की खबर मिलने पर प्रिया का छोटा सा संसार बिखर गया। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या हुआ है। जब लोगों ने उसे बताया कि उसके मम्मी पापा अब कभी वापस नहीं आएंगे तो वह बहुत देर तक चुप रही। फिर अचानक रोते-रोते बेहोश हो गई। प्रिया के मामा मामी ने शुरुआत में उसे संभाला।
लेकिन जल्द ही उनकी आर्थिक स्थिति सामने आ गई। मामा एक छोटी सी दुकान चलाते थे और उनके अपने तीन बच्चे थे। मामी ने कुछ दिन बाद ही मामा से कहा, अब हम इस लड़की की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते। हमारे अपने बच्चों का क्या होगा? परिवार के अन्य रिश्तेदारों से भी बात की गई। लेकिन सभी ने अपनी-अपनी मजबूरी बताकर इंकार कर दिया। चाचा जी ने कहा कि उनकी नौकरी छूटने का डर है। बुआ जी ने कहा कि उनकी बेटी की शादी करनी है। पैसों की जरूरत है। इस तरह छोटी सी प्रिया को एहसास हो गया कि इस दुनिया में वह बिल्कुल अकेली है। लेकिन भगवान का करना कुछ और ही था। जब सभी रिश्तेदारों ने
मुंह फेर लिया तो प्रिया के मामा के मोहल्ले में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला दादी माई कमला आगे आई। वे 70 साल की बुजुर्ग विधवा थी। उनके अपने कोई संतान नहीं थी। दादी माई ने प्रिया को देखा तो उनका दिल पिघल गया। उन्होंने प्रिया के मामा से कहा, बेटा इस बच्ची को मेरे पास छोड़ दो। भगवान ने मुझे संतान नहीं दी। शायद इसीलिए कि मैं इस अनाथ बच्ची की मां बन सकूं। मामा को जैसे मुसीबत से छुटकारा मिल गया। उन्होंने तुरंत हामी भर दी। इस तरह प्रिया का जीवन एक नए मोड़ पर पहुंचा। दादी माई कमला एक सादी महिला थी। उनके पास कोई खास आमदनी नहीं थी। सिर्फ महीने में
₹800 की विधवा पेंशन मिलती थी। उसी में उन्होंने प्रिया को पालने की ठानी। शुरुआत के कुछ महीने तो किसी तरह गुजरे लेकिन जल्द ही दादी माई की तबीयत बिगड़ने लगी। उम्र का असर, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर ने उन्हें कमजोर कर दिया। दवाइयों का खर्च बढ़ने लगा और ₹800 की पेंशन में गुजारा मुश्किल हो गया। 9 साल की छोटी प्रिया ने जब यह स्थिति देखी तो उसने खुद ही जिम्मेदारी उठाने का फैसला किया। वह सोचती दादी माई ने मुझे इतना प्यार दिया है। अब मेरी बारी है उनकी देखभाल करने की। प्रिया ने पास के मोहल्ले में फूल बेचने वाली एक औरत से माला बनाना सीखा। शुरुआत में उसकी
मालाएं ठीक से नहीं बनती थी। लेकिन धीरे-धीरे उसने हुनर सीख लिया। वह रोज सुबह 4:00 बजे उठती। पास के बगीचे से फूल तोड़ती। बगीचे वाले ने इजाजत दे दी थी। फिर घंटों बैठकर मालाएं बनाती। उसकी छोटी उंगलियां शुरुआत में दुखती थी। कई बार कांटे भी चुभते थे। लेकिन वह हार नहीं मानती थी। सुबह 6:00 बजे तक वह अपनी छोटी डलिया में मालाएं सजाकर गुरुद्वारे के बाहर अपनी जगह बैठ जाती। पहले पहले तो उसे बहुत शर्म आती थी। लोगों के सामने हाथ फैलाना उसे अच्छा नहीं लगता था। लेकिन दादी माई की दवाई और खाने की जरूरत ने उसे मजबूर कर दिया था। गुरुद्वारे के बाहर
बैठना कोई आसान काम नहीं था। सुबह से शाम तक प्रिया को तरह-तरह के लोगों का सामना करना पड़ता था। कुछ लोग दयालु थे जो उसकी मालाएं खरीद लेते थे। लेकिन ज्यादातर लोग उसे अनदेखा कर देते थे। कुछ लोग तो बहुत बुरा व्यवहार करते थे। एक बार एक आदमी ने उसे धक्का देकर कहा, यहां से हट गंदगी फैला रही है। प्रिया की सारी मालाएं बिखर गई। वह रोते-रोते उन्हें वापस जमाने लगी। एक दिन बारिश हो रही थी। लेकिन प्रिया फिर भी अपनी जगह बैठी थी क्योंकि दादी माई की दवाई खत्म हो गई थी। एक महिला ने उसे देखकर कहा, “अरे पागल है क्या? इस बारिश में बैठी है। जा घर जाकर बैठ। लेकिन
प्रिया ने सिर हिलाकर मना कर दिया। उसे पता था कि अगर आज मालाएं नहीं बिकी तो दादी माई की दवाई कैसे लाएगी? सबसे ज्यादा दुख प्रिया को तब होता था जब वह स्कूल जाने वाले बच्चों को देखती। रोज सुबह 8:00 बजे के आसपास स्कूली बच्चे गुरुद्वारे के सामने से गुजरते थे। उनके रंग बिरंगे बैग, साफसथरी यूनिफार्म, किताबों से भरे हाथ यह सब देखकर प्रिया का दिल भर आता था। वह सोचती काश मैं भी इनकी तरह स्कूल जा पाती। काश मेरे पास भी यूनिफार्म होती, किताबें होती। कभी-कभी वह इन बच्चों को देखकर अपनी कल्पना में खुद को भी उनके साथ स्कूल जाते
हुए देखती। एक दिन एक छोटी लड़की ने प्रिया को अपनी किताब दिखाई। प्रिया ने उसमें रंग बिरंगी तस्वीरें देखी। लड़की ने बताया देखो यह ए फॉर एप्पल है। यह बी फॉर बॉल है। प्रिया ने बड़े ध्यान से सुना और मन में दोहराया ए फॉर एप्पल बी फॉर बॉल। उस दिन से प्रिया ने तय किया कि वह किसी ना किसी तरह पढ़ना सीखेगी। वह रोज सुबह फूल तोड़ते समय मन में अक्षरों को दोहराती रहती। किसी तरह उसने ए से झेड तक सभी अक्षर याद कर लिए थे। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, दादी माई कमला की तबीयत और बिगड़ती गई। अब वे बिस्तर से उठने में भी असमर्थ हो गई थी। डॉक्टर ने कहा था कि उन्हें
नियमित जांच और दवाइयों की जरूरत है। प्रिया ने देखा कि दादी माई अक्सर दर्द से करा रहती हैं। एक रात उसने दादी माई को रोते हुए देखा। उसने पूछा दादी माई आप क्यों रो रही हैं? दादी माई ने कहा बेटी मैं अपने लिए नहीं रो रही। मैं इस बात से दुखी हूं कि तेरी इतनी छोटी उम्र में तुझे इतनी जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। तू पढ़ना लिखना चाहती है लेकिन मेरी वजह से तुझे माला बेचनी पड़ रही है। प्रिया ने दादी माई के आंसू पोंछे और कहा दादी माई आप मेरी असली दादी हैं। जब सबने मुझे छोड़ दिया था तो आपने मुझे अपनाया। अब मेरी बारी है आपकी सेवा करने की। पढ़ाई लिखाई
बाद में भी हो सकती है। लेकिन अंदर ही अंदर प्रिया का दिल रोता रहता था। वह रात को छत पर लेट कर तारों को देखती और सोचती हे भगवान क्या मैं कभी पढ़ नहीं पाऊंगी क्या मेरे सपने हमेशा सपने ही रह जाएंगे एक सुबह की बात है अक्टूबर महीने की थी हल्की ठंड शुरू हो गई थी और प्रिया ने अपनी पुरानी शॉल ओढ़ रखी थी वह हमेशा की तरह अपनी मालाओं के साथ गुरुद्वारे के बाहर बैठी थी। सुबह का वक्त था और श्रद्धालुओं की भीड़ अभी कम थी। तभी एक चमकदार काली Mercedes गाड़ी गुरुद्वारे के सामने आकर रुकी। गाड़ी इतनी चमकदार और महंगी थी कि आसपास के लोग उसे देखने लगे।
गाड़ी से एक व्यक्ति उतरा राजेश मल्होत्रा। राजेश मल्होत्रा बनारस के सबसे सफल व्यापारी में से एक था। उसकी कंपनी मल्होत्रा इंडस्ट्रीज का नाम पूरे उत्तर प्रदेश में जाना जाता था। टेक्सटाइल, रियलस्टेट और निर्यात का व्यापार। वह अरबों रुपए का मालिक था। आज राजेश अपने परिवार के साथ गुरुद्वारे में विशेष पूजा के लिए आया था। उसका बेटा अमेरिका से एमबीए करके वापस आया था और बिजनेस में शामिल हो रहा था। यह खुशी मनाने के लिए वे भगवान का आशीर्वाद लेने आए थे। राजेश ने महंगा इतालवी सूट पहना हुआ था। हाथ में रोलेक्स की घड़ी और iPhone था। उसकी पत्नी
सुनीता और बेटा अमित भी उसके साथ थे। वे सभी गुरुद्वारे की तरफ बढ़ रहे थे। प्रिया ने देखा कि एक अमीर परिवार गुरुद्वारे की तरफ जा रहा है। उसने हिम्मत जुटाकर धीरे से आवाज लगाई। साहब जी माला ले लीजिए। राजेश ने पहले तो उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। अमीर लोगों के साथ अक्सर ऐसा ही होता था। वे इन छोटी चीजों पर ध्यान नहीं देते थे। लेकिन जब प्रिया ने दोबारा आवाज लगाई साहब जी बहुत अच्छी माला है। तो राजेश की नजर उस पर पड़ी। राजेश ने देखा कि एक छोटी सी लड़की उसकी तरफ देख रही है। उसके कपड़े पुराने थे लेकिन साफ थे। उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। यह वो चमक
नहीं थी जो भीख मांगने वाले बच्चों की आंखों में होती है। यह कुछ और ही थी। राजेश ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा, “तुम लोग अंदर जाओ। मैं अभी आता हूं।” फिर वह प्रिया की तरफ गया। तू यहां अकेली बैठती है?” राजेश ने पूछा। प्रिया ने सिर हिलाकर हां में जवाब दिया। फिर उसने कहा, साहब जी माला ले लीजिए ना गुरु जी को चढ़ाइएगा राजेश ने उसकी मालाएं देखी वे बहुत सुंदर बनी हुई थी छोटे हाथों से इतनी बारीकी से बनी मालाएं देखकर वह हैरान रह गया यह मालाएं किसने बनाई हैं उसने पूछा मैंने बनाई है साहब जी प्रिया ने गर्व से कहा राजेश को यकीन नहीं हुआ इतनी छोटी बच्ची
इतनी सुंदर मालाएं कैसे बना सकती हैं उसने पूछा सच कह रही है तूने बनाई है प्रिया ने अपने छोटे हाथ दिखाए जिनमें फूलों के रंग और कांटों के निशान थे। हां साहब जी मैं रोज सुबह 4:00 बजे उठकर बनाती हूं। राजेश को लगा कि इस बच्ची के पीछे कोई बड़ी कहानी है। उसने पूछा तेरे मां-बाप कहां हैं? प्रिया की आंखों में एक पल के लिए उदासी छा गई। फिर उसने कहा साहब जी मेरे मम्मी पापा भगवान जी के पास चले गए हैं। अब मैं दादी माई के साथ रहती हूं। दादी माई कौन है? राजेश ने पूछा वो मेरी असली दादी नहीं है लेकिन जब सबने मुझे छोड़ दिया था तो उन्होंने मुझे अपनाया अब वह
बीमार रहती हैं इसलिए मुझे माला बेचनी पड़ती है प्रिया ने सादगी से बताया राजेश के दिल में कुछ हिला उसने पूछा स्कूल नहीं जाती प्रिया की आंखों में तुरंत चमक आ गई जैसे किसी ने उसके सबसे प्रिय विषय के बारे में पूछा हो वह उत्साहित होकर बोली साहब जी मैं बहुत पढ़ना चाहती हूं टीचर बनना चाहती हूं लेकिन स्कूल स्कूल जाने के लिए पैसे चाहिए ना, फीस चाहिए, किताबें चाहिए, कॉपी पेंसिल चाहिए। मेरे पास तो सिर्फ माला बेचने के पैसे हैं। राजेश को अपना बचपन याद आ गया। वह भी एक गरीब परिवार से था। उसके पिता राम प्रकाश मल्होत्रा एक छोटी सी फल की दुकान चलाते
थे। राजेश ने भी संघर्ष देखा था। उसे याद आया कि कैसे उसके स्कूल के प्रिंसिपल श्री गुप्ता जी ने उसकी फीस माफ कर दी थी और कहा था बेटा पढ़ो, लिखो और बड़े बनो। जब तुम कामयाब हो जाओगे तो किसी और की मदद करना। राजेश को याद आया कि कैसे उसके बचपन में घर की हालत खराब थी। पिताजी की छोटी सी आमदनी से बड़ी मुश्किल से घर चलता था। कई बार तो स्कूल की फीस के लिए घर से चीजें बेचनी पड़ती थी। एक बार दसवीं क्लास में राजेश की परीक्षा फीस नहीं भर पाए थे। उसे लगा था कि अब वह परीक्षा नहीं दे पाएगा। तब प्रिंसिपल श्री गुप्ता जी ने ना सिर्फ उसकी फीस माफ की थी बल्कि किताबें
भी दिलवाई थी। श्री गुप्ता जी ने उससे कहा था राजेश तुम्हारे अंदर कुछ खास बात है। मैं देख सकता हूं कि तुम आगे जाकर बहुत बड़ा आदमी बनोगे। लेकिन जब तुम सफल हो जाओगे तो इस एहसान को आगे बढ़ाना। किसी और गरीब बच्चे की मदद करना। आज 25 साल बाद राजेश के पास करोड़ों रुपए थे। बड़ी कंपनी थी। लेकिन उसने श्री गुप्ता जी के उस एहसान को कभी नहीं भुलाया था। आज प्रिया को देखकर उसे लगा जैसे भगवान ने उसे वह मौका दिया है जिसका वह इंतजार कर रहा था। राजेश ने प्रिया की सारी मालाएं खरीद ली। प्रिया खुशी से नाच उठी। साहब जी आज तो दादी माई की दवाई और खाना दोनों आ जाएगा।
भगवान आपका भला करे। लेकिन राजेश यहीं नहीं रुका। वह गुरुद्वारे में गया। माथा टेका। लेकिन उसका मन प्रिया की बातों में लगा हुआ था। पूजा के दौरान वह प्रार्थना कर रहा था। हे वाहेगुरु आपने मुझे इतना दिया है। अब मैं किसी और की मदद करना चाहता हूं। इस बच्ची की मदद करने में मेरा मार्गदर्शन करें। पूजा के बाद जब वह बाहर निकला तो उसने अपने ड्राइवर रमेश से कहा आज हमने सिर्फ माला नहीं खरीदी है। आज हमने एक इंसान की उम्मीद खरीदी है। अब हमें इस उम्मीद को सच करना है। उसकी पत्नी सुनीता ने पूछा, “क्या बात है? आप कुछ परेशान लग रहे हैं।” राजेश ने पूरी बात
बताई। सुनीता भी एक दयालु महिला थी। उसने कहा, “अगर आप चाहते हैं, तो हम इस बच्ची की मदद कर सकते हैं।” राजेश के बेटे अमित ने कहा, पापा, यह अच्छी बात है। हमें ऐसे बच्चों की मदद करनी चाहिए। शाम को राजेश अकेले प्रिया के घर गया। उसने पता पूछकर वह इलाका ढूंढा जहां प्रिया रहती थी। यह शहर का बहुत गरीब इलाका था। कच्ची सड़कें, छोटे-छोटे घर, गंदे नाले। यह सब देखकर राजेश को अपना बचपन याद आ गया। प्रिया का घर एक छोटी सी झोपड़ी थी। टिन की छत, मिट्टी की दीवारें और एक छोटा सा दरवाजा। राजेश ने दरवाजा खटखटाया। प्रिया ने दरवाजा खोला तो राजेश को देखकर हैरान रह
गई। साहब जी आप यहां कैसे? मैं तुमसे मिलने आया हूं। राजेश ने कहा। प्रिया ने उसे अंदर बुलाया। झोपड़ी के अंदर दादी माई कमला खाट पर लेटी हुई थी। उनकी हालत देखकर राजेश का दिल भर आया। 70 साल की बुजुर्ग महिला कमजोर शरीर पैरों में सूजन, सांस लेने में तकलीफ। दादी माई ने राजेश को देखकर बैठने की कोशिश की। राजेश ने हाथ जोड़कर कहा, माता जी आप लेटे रहिए। मैं राजेश मल्होत्रा हूं। आज प्रिया से मिला था। दादी माई ने कहा, बेटा तूने प्रिया की मालाएं खरीदी थी ना। प्रिया बता रही थी। भगवान तेरा भला करे। राजेश ने आसपास देखा। एक छोटा सा चूल्हा, कुछ बर्तन, दो छोटी
खांटें। बस यही था उनकी पूरी दुनिया। दीवार पर एक फ्रेम में प्रिया के मां-बाप की तस्वीर लगी हुई थी। राजेश ने दादी माई से कहा, माताजी, मैं प्रिया की पढ़ाई का खर्च उठाना चाहता हूं। अब इसे माला नहीं बेचनी पड़ेगी। यह स्कूल जाएगी, पढ़ेगी, लिखेगी। दादी माई की आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने कहा, बेटा, तू कौन है? तू प्रिया के लिए इतना क्यों करना चाहता है? हम तो तुझे जानते भी नहीं। राजेश ने अपनी पूरी कहानी बताई। कैसे वह भी एक गरीब परिवार से था? कैसे उसके प्रिंसिपल ने उसकी मदद की थी और कैसे आज वह उस एहसान को आगे बढ़ाना चाहता था। प्रिया हक बका कर
सुन रही थी। वह बोली अंकल जी आप मेरे लिए इतना क्यों करना चाहते हैं? मैं तो सिर्फ माला बनाती हूं। राजेश ने प्रिया के सिर पर हाथ रखा। बेटी तू सिर्फ माला नहीं बनाती। तू उम्मीद बनाती है। आज तूने मुझे दिखाया कि कैसे एक छोटा बच्चा भी अपनी जिम्मेदारी उठा सकता है। तूने मुझे याद दिलाया कि असली अमीरी पैसों में नहीं दिल की अच्छाई में होती है। अगले दिन ही राजेश का काम शुरू हो गया। उसने सबसे पहले दादी माई को अच्छे डॉक्टर के पास ले जाने की व्यवस्था की। डॉक्टर शर्मा जो शहर के जानेमाने हृदय रोग विशेषज्ञ थे। उन्होंने दादी माई की पूरी जांच की। डॉक्टर ने
बताया कि दादी माई को डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी है। नियमित दवाई और सही खान-पान से वे बेहतर हो सकती हैं। राजेश ने तुरंत सारी दवाइयों का इंतजाम कराया। राजेश ने समझा कि उस छोटी सी झोपड़ी में रहना दादी माई की सेहत के लिए ठीक नहीं है। उसने शहर के बेहतर इलाके में एक छोटा सा मकान किराए पर लिया। दो कमरे, एक रसोई, एक छोटा सा आंगन बिल्कुल सही उनके लिए। जब प्रिया ने नया घर देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। अंकल जी यह घर कितना सुंदर है। दादी माई को यहां बहुत अच्छा लगेगा। राजेश ने घर में जरूरी सामान भी दिलवाया। एक अच्छा बिस्तर, दादी माई के
लिए प्रिया के लिए एक छोटा बिस्तर, रसोई के बर्तन, कपड़े धोने का सामान और एक छोटा टीवी भी। दादी माई रो पड़ी। बेटा तूने इतना कुछ कर दिया। अब मैं कैसे तेरा एहसान चुकाऊंगी? राजेश ने कहा, माता जी, यह कोई एहसान नहीं है। यह तो मेरा फर्ज है। भगवान ने मुझे इतना दिया है। अब मेरी बारी है किसी की मदद करने की। अब सबसे बड़ा काम था प्रिया का स्कूल में दाखिला। राजेश ने शहर के सबसे अच्छे स्कूल होली चाइल्ड एकेडमी का चुनाव किया। यह एक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल था जहां अच्छी शिक्षा दी जाती थी। लेकिन समस्या यह थी कि प्रिया ने अभी तक
कभी स्कूल नहीं देखा था। उसे एबीसी भी ध्यान से नहीं आते थे। स्कूल के प्रिंसिपल श्रीमती वर्मा ने कहा, “यह बच्ची बहुत पीछे है। इसे पहले तैयारी करनी होगी।” राजेश ने तुरंत प्रिया के लिए एक टटर रखा। सुमित्रा जी जो रिटायर्ड टीचर थी, वे प्रिया को घर पर पढ़ाने आने लगी। पहले वे प्रिया को हिंदी और अंग्रेजी के अक्षर सिखाने लगी। प्रिया की सीखने की भूख देखकर सुमित्रा जी हैरान रह गई। वह कहती, मैंने अपनी 30 साल की टीचिंग में ऐसा जोश किसी बच्चे में नहीं देखा। यह लड़की सुबह 5:00 बजे से पढ़ाई करने को तैयार हो जाती है। 2 महीने की तैयारी के बाद प्रिया का दाखिला
दूसरी क्लास में हो गया। पहले दिन स्कूल जाने से एक रात पहले प्रिया को नींद नहीं आई। वह बार-बार अपनी नई यूनिफार्म, नए जूते और नया बैग देख रही थी। सुबह उठकर उसने जल्दी-जल्दी तैयारी की। दादी माई ने उसे नाश्ता दिया और आशीर्वाद दिया। बेटी मेहनत से पढ़ना। राजेश बेटे ने तेरे लिए इतना कुछ किया है। राजेश खुद प्रिया को स्कूल छोड़ने आया था। जब प्रिया ने स्कूल की बिल्डिंग देखी तो उसकी आंखें चमक उठी। अंकल जी यह तो बहुत बड़ा स्कूल है। क्लास रूम में दाखिल होते समय प्रिया के हाथ कांप रहे थे। टीचर श्रीमती शर्मा ने उसका स्वागत किया। बच्चों यह प्रिया है। इससे
अच्छे से मिलना। शुरुआत में दूसरे बच्चे प्रिया को थोड़ा अजीब लगे। वे सब अच्छी अंग्रेजी बोलते थे। महंगे लंच बॉक्स लाते थे। लेकिन जल्द ही कुछ बच्चों ने प्रिया से दोस्ती कर ली। आर्यन, राहुल और प्रियंका यह तीनों प्रिया के पहले दोस्त बने। उन्होंने प्रिया की पढ़ाई में मदद की। प्रिया भी बहुत मेहनत कर रही थी। 3 महीने बाद प्रिया की पहली परीक्षा थी। वो बहुत घबराई हुई थी। सुमित्रा जी ने उसे समझाया। बेटी तूने बहुत मेहनत की है। घबराने की जरूरत नहीं। परीक्षा के दिन प्रिया सुबह 4:00 बजे उठ गई। उसने दोहराया, प्रार्थना की और तैयार होकर
स्कूल गई। परीक्षा हॉल में बैठकर जब उसने पेपर देखा तो उसे लगा कि सारे सवाल वह कर सकती है। रिजल्ट के दिन जब टीचर ने नाम पुकारे तो प्रिया का नाम पांचवें नंबर पर आया। पूरी क्लास में पांचवा स्थान श्रीमती शर्मा ने सबके सामने कहा। प्रिया ने अपनी मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है। इससे सीखो। प्रिया की खुशी का ठिकाना नहीं था। वह घर आकर दादी माई को रिपोर्ट कार्ड दिखाने लगी। दादी माई देखिए मैं पांचवें नंबर पर आई हूं। राजेश को जब यह खबर मिली तो वह तुरंत प्रिया के घर पहुंचा। उसने प्रिया को गले लगाया। शाबाश बेटी तूने कमाल कर दिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया
प्रिया की पढ़ाई में और भी सुधार होता गया। वह अब क्लास में हमेशा टॉप तीन में आती थी। टीचर्स उसकी मेहनत की तारीफ करते थे। लेकिन कुछ चुनौतियां भी थी। स्कूल में कुछ बच्चे प्रिया के पिछले जीवन के बारे में जान गए थे। कुछ बच्चों के माता-पिता कहते थे, “यह लड़की तो माला बेचती थी। इसे इस अच्छे स्कूल में दाखिला कैसे मिल गया? एक दिन क्लास में अनुज नाम के एक लड़के ने प्रिया से कहा, तू तो गरीब है ना? तेरे पास पहले कुछ नहीं था। यह सुनकर प्रिया को बहुत दुख हुआ। प्रिया ने घर आकर दादी माई से यह बात कही। दादी माई ने उसे समझाया।
बेटी लोग कुछ भी कहें तू अपनी मेहनत पर ध्यान दे। जो लोग तेरी बुराई करते हैं वे तेरी सफलता से जलते हैं। राजेश को जब इस बात का पता चला तो वह स्कूल गया और प्रिंसिपल से बात की। प्रिंसिपल श्रीमती वर्मा ने सभी बच्चों की क्लास ली और समझाया कि भेदभाव गलत बात है। इन सब बातों का प्रिया पर गहरा असर हुआ। लेकिन इससे उसका हौसला कम नहीं हुआ। बल्कि वह और भी मेहनत करने लगी। वह रोज 5 घंटे पढ़ाई करती थी। सुमित्रा जी ने देखा कि प्रिया में नेतृत्व के गुण भी थे। वह दूसरे बच्चों की मदद करती थी। जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर थे, प्रिया उन्हें समझाती थी। पांचवी
क्लास में प्रिया को मॉनिटर बनाया गया। यह बहुत बड़ी बात थी क्योंकि वह पहली ऐसी लड़की थी जो इतने कम समय में मॉनिटर बनी थी। राजेश की मदद से दादी माई की सेहत में भी काफी सुधार हुआ था। अब वे घर का काम कर सकती थी। डॉक्टर ने कहा था कि नियमित दवाई और अच्छे खानपान से वे बिल्कुल ठीक हो सकती हैं। दादी माईं अक्सर कहती प्रिया तूने मेरी जिंदगी बचाई थी लेकिन राजेश बेटे ने हम दोनों की जिंदगी बदल दी है। अब दादी माएं भी प्रिया की पढ़ाई में मदद करती थी। वे सुबह उसे उठाती थी। नाश्ता तैयार करती थी और रात को उसके साथ बैठकर पढ़ाई करती थी। राजेश के परिवार वाले भी
प्रिया से बहुत प्यार करने लगे थे। उसकी पत्नी सुनीता अक्सर प्रिया के लिए कपड़े और खिलौने लाती थी। राजेश का बेटा अमित भी प्रिया को छोटी बहन की तरह मानता था। त्योहारों के दिन प्रिया और दादी माई को राजेश के घर बुलाया जाता था। प्रिया को पहली बार इतने बड़े घर में जाने का मौका मिला था। राजेश का घर 5000 स्क्वायर फीट का था। बड़ा गार्डन, स्विमिंग पूल और तमाम सुविधाएं। लेकिन प्रिया कभी भी इन चीजों से प्रभावित नहीं हुई। वह हमेशा राजेश से कहती, “अंकल जी, आपने मुझे जो दिया है, वह काफी है। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। आठवीं क्लास में प्रिया ने अपने जिले में सबसे
ज्यादा नंबर लाए। यह खबर स्थानीय अखबारों में छपी। माला बेचने वाली लड़की ने जिले में टॉप किया। धीरे-धीरे यह खबर और भी बड़े अखबारों में छपने लगी। आज तक न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर ने प्रिया का इंटरव्यू लिया। रिपोर्टर ने पूछा, “प्रिया, तुमने इतनी कम उम्र में इतना संघर्ष देखा है? क्या कभी हार मानने का मन हुआ?” “प्रिया ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “जी नहीं।” जब मैं माला बेचती थी तब भी मैं जानती थी कि यह हमेशा के लिए नहीं है। मेरा सपना था पढ़ना लिखना और राजेश अंकल ने उस सपने को सच करने में मदद की। रिपोर्टर ने राजेश से
पूछा आपने प्रिया की मदद क्यों की? राजेश ने कहा, “मैंने कुछ खास नहीं किया। जब आपके पास कुछ हो तो उसे जरूरतमंदों के साथ बांटना चाहिए।” प्रिया ने अपनी मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है। प्रिया की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। Facebook, Twitter, Instagram पर लोग उसकी तारीफ कर रहे थे। बॉलीवुड के कुछ एक्टर्स ने भी उसकी तारीफ की। अमिताभ बच्चन ने ट्वीट किया, “प्रिया की कहानी दिखाती है कि मेहनत और हौसले के सामने कोई भी मुश्किल छोटी है। लेकिन प्रिया इन सब चीजों से प्रभावित नहीं हुई। वह कहती, “मैं सिर्फ पढ़ना चाहती हूं। मुझे फेमस नहीं बनना।”
प्रिया की कहानी से प्रेरणा लेकर राजेश ने और भी गरीब बच्चों की मदद शुरू की। उसने मल्होत्रा एजुकेशन फाउंडेशन नाम की संस्था बनाई। इस संस्था के जरिए 50 गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाया जाने लगा। प्रिया भी इस काम में मदद करती थी। वह वीकेंड में झुग्गी झोपड़ियों में जाती और बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करती। एक बार एक छोटी लड़की ने प्रिया से कहा, दीदी, मैं भी आपकी तरह बनना चाहती हूं। प्रिया ने उसे गले लगाया। बेटी तुम मुझसे भी बेहतर बन सकती हो। बस मेहनत करते रहना। सपने वह नहीं होते जो हम सोते समय देखते हैं। सपने
वह होते हैं जो हमें सोने नहीं देते। इस कहानी का संदेश यह है कि चाहे आप कहीं भी हो, किसी भी परिस्थिति में हो, अगर आपके अंदर हौसला है और मेहनत करने की इच्छा है तो आप अपनी जिंदगी बदल सकते हैं और दूसरों की भी मदद कर सकते हैं। यह कहानी आपको कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और साथ ही सब्सक्राइब करें ताकि आने वाली वीडियो आप तक पहुंच सके। धन्यवाद।
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जब मैं हाई स्कूल में था, तो मेरे डेस्कमेट ने तीन बार मेरी ट्यूशन फीस भरने में मदद की। 25 साल बाद, वह व्यक्ति अचानक मेरे घर आया, घुटनों के बल बैठा, और मुझसे एक हैरान करने वाली मदद मांगी…/hi
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मेरे पति ने कहा कि उन्हें 3 दिन के लिए विदेश में बिज़नेस ट्रिप पर जाना है, लेकिन GPS दिखा रहा था कि वह मैटरनिटी हॉस्पिटल में हैं। मैंने कोई हंगामा नहीं किया, बस चुपचाप 3 ऐसे काम किए जिससे उनकी ज़िंदगी बेइज्ज़ती वाली हो गई।/hi
मेरे पति ने कहा कि उन्हें 3 दिन के लिए विदेश में बिज़नेस ट्रिप पर जाना है, लेकिन लोकेशन पर…
हर हफ़्ते मेरी सास मेरे घर 3 से 4 बार आती हैं। हर बार वह फ्रिज साफ़ करती हैं और अपनी ननद के लिए सारा खाना ऐसे इकट्ठा करती हैं जैसे वह उनका अपना घर हो। यह बहुत अजीब है कि मैं चुपचाप फ्रिज में कुछ रख देती हूँ…/hi
हर हफ़्ते, मेरी सास मेरे घर तीन-चार बार आती हैं, और हर बार वह फ्रिज साफ़ करके अपनी ननद के…
जब मेरे चाचा जेल से बाहर आए, तो पूरे परिवार ने उनसे मुंह मोड़ लिया, सिवाय मेरी मां के जिन्होंने खुले दिल से उनका स्वागत किया। जब हमारा परिवार मुश्किल में पड़ गया, तो मेरे चाचा ने बस इतना कहा: “मेरे साथ एक जगह चलो।”/hi
मेरे चाचा अभी-अभी जेल से छूटे थे, और मेरी माँ को छोड़कर सभी रिश्तेदारों ने मुझसे मुँह मोड़ लिया था।…
मेरे पति की प्रेमिका और मैं दोनों प्रेग्नेंट थीं। मेरी सास ने कहा, “जो लड़के को जन्म देगी, उसे रहने दिया जाएगा।” मैंने बिना सोचे-समझे तुरंत तलाक ले लिया। 7 महीने बाद, प्रेमिका के बच्चे ने मेरे पति के परिवार में हंगामा मचा दिया।/hi
मेरे पति की मिस्ट्रेस और मैं एक साथ प्रेग्नेंट हुईं, मेरी सास ने कहा: “जो लड़के को जन्म देगी, वही…
मेरे पति के अंतिम संस्कार के बाद, मेरा बेटा मुझे शहर के किनारे ले गया और बोला, “माँ, यहाँ से चली जाओ। हम अब आपकी देखभाल नहीं कर सकते।” लेकिन मेरे पास एक राज़ था जो मैंने इतने लंबे समय तक छुपाया था कि उसे अब उस पर पछतावा हो रहा था।/hi
मेरे पति के अंतिम संस्कार के बाद, मेरा बेटा मुझे शहर के किनारे ले गया और बोला, “माँ, यहाँ से…
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