दिल्ली के व्यस्ततम रेलवे स्टेशन, नई दिल्ली, रेलवे स्टेशन पर हर रोज हजारों यात्री आते-जाते रहते हैं। ट्रेनों की सीटी, कुलियों की आवाजें, चाय वालों का शोर, और यात्रियों की भागदौड़, यहां हमेशा जीवन की एक अलग ही धुन बजती रहती है। इसी शोरगुल के बीच प्लेटफार्म नंबर सात पर एक छोटी सी लड़की रोजाना अपनी जगह बना लेती थी। उसका नाम था प्रिया। करीब 12 से 13 साल की यह बच्ची हर सुबह अपने छोटे से हाथों में जूता पॉलिश का डिब्बा और पुराने ब्रश लेकर आती थी। उसके कपड़े फटे पुराने थे। बाल बिखरे हुए और चेहरा धूल से सना रहता था। पैरों में टूटी-फूटी चप्पलें थी।
लेकिन फिर भी उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। जीने की चाह, कुछ कर गुजारने का जुनून। प्रिया हर आने जाने वाले यात्री से विनम्रता से कहती, “साहब, जूते पॉलिश करा लीजिए। बस ₹10 लगेंगे। कुछ लोग उसे देखकर दया से दो-चार सिक्के फेंक देते। कुछ उसे डांट डपट कर भगा देते और ज्यादातर लोग तो उसे देखते ही नहीं थे। जैसे वो हवा हो, कोई इंसान ही ना हो। लेकिन प्रिया हार नहीं मानती थी। हर ठुकराने के बाद, हर अपमान के बाद भी वह मुस्कुराने की कोशिश करती। उसका मानना था कि अगर मेहनत से काम करूंगी तो जरूर कुछ ना कुछ मिलेगा। वह भीख नहीं मांगती थी बल्कि अपने काम के बदले
में पैसे लेती थी। प्रिया को अपना अतीत बिल्कुल याद नहीं था। उसे सिर्फ इतना पता था कि जब से होश संभाला है तब से वह इसी स्टेशन पर रह रही है। कुछ साल पहले रेलवे स्टेशन के पास रहने वाले एक गरीब परिवार ने उसे अपने पास रख लिया था। वो लोग बहुत गरीब थे और प्रिया से छोटे-मोटे काम करवाकर पैसे कमाते थे। उस परिवार में काका जी, रामलाल और काकी जी सुमित्रा रहते थे। उनके अपने तीन बच्चे भी थे। रामलाल रिक्शा चलाता था और सुमित्रा लोगों के घरों में काम करती थी। जब प्रिया 8 से 9 साल की हुई तो उन्होंने उसे जूता पॉलिश का काम सिखाया
और कहा कि अब तू भी कुछ कमा सकती है। प्रिया शुरू में इस काम से घबराती थी। इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी। लेकिन धीरे-धीरे उसने सीख लिया कि कैसे लोगों से बात करनी है, कैसे जूते साफ करने हैं और कैसे मुश्किल हालात में भी हिम्मत नहीं हारनी है। रामलाल और सुमित्रा प्रिया से बहुत प्यार करते थे। लेकिन उनकी अपनी गरीबी और मजबूरियां थी। वो चाहते थे कि प्रिया पढ़े लिखे लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने प्रिया को बुनियादी अक्षर ज्ञान सिखाया और कहा कि जब वो बड़ी हो जाएगी तो जरूर पढ़ाई करेगी। प्रिया रोजाना सुबह 6:00 बजे उठकर स्टेशन
आ जाती और रात के 9:00 से 10:00 बजे तक काम करती। पूरे दिन में उसे कभी ₹50 मिलते, कभी 30, कभी सिर्फ 20। अच्छे दिन में ₹100 भी मिल जाते थे। इन पैसों में से आधे वह रामलाल काका को दे देती। बाकी से अपना खाना पीना चलाती। स्टेशन पर काम करते-करते प्रिया ने बहुत कुछ सीखा था। उसने देखा था कि दुनिया में कैसे-कैसे लोग होते हैं। कुछ लोग बहुत अमीर होते हैं। महंगे कपड़े पहनते हैं। लेकिन उनके दिल में गरीबों के लिए जगह नहीं होती। कुछ लोग गरीब होते हैं। लेकिन दूसरों की मदद करने को तैयार रहते हैं। एक बार की बात है प्रिया बहुत बीमार हो गई थी। तेज बुखार और
खांसी से वो बिल्कुल परेशान थी। उस दिन वो स्टेशन नहीं जा पाई। रामलाल काका ने डॉक्टर को दिखाया दवाई खरीदी लेकिन प्रिया को लगा था कि कहीं वो उन पर बोझ तो नहीं बन रही। उसी दिन प्रिया ने तय किया था कि वह मेहनत करके अपने पैरों पर खड़ी होगी। वो किसी पर बोझ नहीं बनेगी। उसका सपना था कि एक दिन वह पढ़ लिखकर कुछ बड़ा काम करेगी। स्टेशन पर काम करते समय प्रिया ने कई तरह के लोगों को देखा था। कुछ लोग उससे बहुत प्यार से बात करते, कुछ उसे अपनी बेटी की तरह समझते। लेकिन कुछ लोग बहुत बुरे भी थे जो उसे गलत काम के लिए फुसलाने की कोशिश करते थे। रामलाल काका ने उसे
समझाया था कि कैसे अजनबियों से सावधान रहना है। हर रात जब प्रिया घर वापस आती तो सुमित्रा काकी उसके लिए खाना बनाकर रखती। खाना खाते समय वह अपने दिन भर के अनुभव बताती। कभी कोई अच्छा आदमी मिला, कभी किसी ने बुरा बर्ताव किया। काकी सुनती और समझाती कि दुनिया में सभी तरह के लोग होते हैं। प्रिया अक्सर रात को आसमान की तरफ देखकर सोचती थी कि उसके असली माता-पिता कहां होंगे? क्या वो उसे याद करते होंगे? क्या वो उसे ढूंढ रहे होंगे? या फिर वो उसे भूल चुके होंगे। कभी-कभी प्रिया के सपने में एक धुंधली सी तस्वीर आती थी। एक बड़ा सा घर, खूबसूरत कपड़े और किसी की
प्यार भरी आवाज। लेकिन जैसे ही वह उन सपनों को याद करने की कोशिश करती वो हवा की तरह गायब हो जाते। प्रिया के पैर में एक चांदी की पायल थी जो उसे बचपन से पहनी हुई थी। रामलाल काका ने बताया था कि जब वो उसे मिली थी तो यह पायल उसके पैर में थी। प्रिया इस पायल को अपना सबसे कीमती खजाना मानती थी। वो कभी इसे उतारती नहीं थी। स्टेशन पर और भी बहुत से बच्चे काम करते थे। कुछ खाना बेचते, कुछ सामान ढोते, कुछ भीख मांगते। प्रिया का उन सबसे दोस्ती थी। वह सभी एक दूसरे का ख्याल रखते थे। अगर कोई बीमार होता तो बाकी उसकी मदद करते। दिल्ली के सबसे महंगे इलाके गुड़गांव में
एक शानदार बंगला था। यह बंगला शहर के मशहूर व्यापारी राजेश अग्रवाल का था। राजेश अग्रवाल का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में पैसे, शोहरत और सफलता की तस्वीर आ जाती थी। उनकी कंपनी अग्रवाल Indstries देश भर में फैली हुई थी और वह करोड़ों रुपए के मालिक थे। लेकिन इतनी दौलत और शान शौकत के बावजूद राजेश अग्रवाल का दिल हमेशा खाली रहता था। हर रात वो अपने कमरे में अकेले बैठकर एक पुरानी फोटो देखते रहते हैं। अपनी खोई हुई बेटी तान्या की तस्वीर। तान्या की उम्र जब सिर्फ 5 साल थी तब वो हमेशा के लिए उनकी जिंदगी से गायब हो गई थी। आज 8 साल हो गए थे उस हादसे को।
लेकिन राजेश को लगता था जैसे कल की ही बात हो। राजेश की पत्नी का नाम मीरा था। मीरा एक बहुत ही सुंदर और समझदार महिला थी। शादी के बाद के शुरुआती साल बहुत खुशियों से भरे थे। राजेश उस समय अपना कारोबार बढ़ा रहे थे और मीरा घर परिवार संभालती थी। जब तान्या का जन्म हुआ तो लगा जैसे उनके घर में खुशियों का खजाना आ गया हो। तान्या बिल्कुल अपनी मां पर गई थी। बड़ी-बड़ी आंखें, मासूम मुस्कान और बेहद प्यारी आवाज। राजेश अपनी बेटी से इतना प्यार करते थे कि ऑफिस के काम भी भूल जाते थे। तान्या को वह प्यार से सोनू बुलाते थे। यह नाम इसलिए रखा था क्योंकि तान्या
का रंग सोने की तरह चमकता था। घर में सभी उसे सोनू के नाम से ही जानते थे। राजेश ने तान्या के पहले जन्मदिन पर उसके लिए एक खास चांदी की पायल बनवाई थी। उस पायल पर तान्या का नाम और जन्म की तारीख खुदी ही हुई थी। यह पायल बहुत ही सुंदर और महंगी थी। राजेश ने खुद तान्या के नन्हे पैरों में यह पायल पहनाई थी। वो दुर्भाग्यपूर्ण दिन 15 अगस्त 2016 का था। स्वतंत्रता दिवस का दिन था और पूरे शहर में उत्सव का माहौल था। मीरा ने सोचा कि तान्या को लेकर लाल किले के पास के मेले में घूमने चलें। राजेश उस दिन एक जरूरी मीटिंग में व्यस्त थे। इसलिए वह साथ नहीं जा सके। मीरा ने
तान्या को सुंदर सा गुलाबी फ्रॉक पहनाया। उसके बालों में रिबन लगाया और वह दोनों मेले की तरफ निकल गई। तान्या बहुत खुश थी क्योंकि उसे मेले-ठेले बहुत पसंद थे। मेले में भारी भीड़ थी। हर तरफ लोग रंग बिरंगे झूले, खिलौनों की दुकानें और खाने-पीने के स्टॉल लगे हुए थे। तान्या खुशी से इधर-उधर देख रही थी और मीरा का हाथ कसकर पकड़े हुए थी। अचानक भीड़ में धक्कामुक्की हुई। कोई बड़ा हादसा हो गया था और लोग भागने लगे। मीरा ने तान्या का हाथ और भी कसकर पकड़ने की कोशिश की। लेकिन भीड़ के धक्कों में उसका हाथ छूट गया। तान्या तान्या मीरा
चीखने लगी लेकिन भीड़ के शोर में उसकी आवाज दब गई। जब तक भीड़ कम हुई तान्या कहीं गायब हो चुकी थी। मीरा पागलों की तरह तान्या को ढूंढने लगी। वो रोते चिल्लाते हुए हर दुकान पर गई। हर व्यक्ति से पूछा लेकिन तान्या का कोई पता नहीं चला। तुरंत पुलिस को इत्तला दी गई। जब राजेश को इस हादसे की जानकारी मिली तो उनकी दुनिया हिल गई। वो तुरंत मेले की जगह पहुंचे। पुलिस ने केस दर्ज किया। पूरे शहर में तान्या की तस्वीरें लगवाई गई लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। महीनों तक राजेश और मीरा ने तान्या को ढूंढने की कोशिश की। वो प्राइवेट डिटेक्टिव लगाए। इनाम की घोषणा की। टीवी
चैनलों पर अपील की लेकिन कुछ भी फायदा नहीं हुआ। तानिया जैसे धरती निगल गई हो। इस हादसे ने राजेश और मीरा के रिश्ते पर भी गहरा असर डाला। मीरा को लगता था कि वह तान्या की सुरक्षा नहीं कर पाई। राजेश को लगता था कि अगर वह साथ होते तो यह हादसा नहीं होता। दोनों एक दूसरे को दोष देने लगे। धीरे-धीरे यह दूरी इतनी बढ़ गई कि मीरा ने घर छोड़ने का फैसला किया। उसने कहा कि वह तान्या को ढूंढने के लिए दूसरे शहरों में जाएगी। राजेश ने उसे रोकने की कोशिश की। लेकिन मीरा का फैसला पक्का था। आखिरकार मीरा घर छोड़कर चली गई। अब राजेश बिल्कुल अकेले हो गए। उनके पास दौलत थी,
बड़ा कारोबार था लेकिन दिल में एक गहरा सुराग था जो कभी नहीं भरा। राजेश हर दिन तान्या की तस्वीर देखते और रोते। उन्होंने अपने कारोबार में भी पूरा मन नहीं लगाया। उनके भाई और रिश्तेदार उन्हें समझाते कि जिंदगी आगे बढ़ानी चाहिए। लेकिन राजेश किसी की बात नहीं सुनते थे। राजेश ने कई बार सोचा कि वह सब कुछ छोड़कर सिर्फ तान्या को ढूंढने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दें। लेकिन उनके कारोबारी सांझीदार और वकील उन्हें समझाते कि इससे कुछ नहीं होगा। साल दर साल बीतते गए। राजेश ने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। वो अब भी जासूसी एजेंसियों को पैसे देते रहते। मिसिंग
चाइल्ड ऑर्गेनाइजेशन के साथ संपर्क में रहते और हर महीने नई जगहों पर तान्या को ढूंढने जाते। राजेश का मानना था कि तान्या कहीं ना कहीं जिंदा है। वो रोज रात को भगवान से प्रार्थना करते हे भगवान मेरी बेटी को वापस लौटा दो। मैं अपनी सारी दौलत भी दे दूंगा लेकिन मेरी तान्या को वापस कर दो। राजेश के दोस्त और परिवार वाले उन्हें दूसरी शादी करने की सलाह देते। लेकिन वह हमेशा इंकार कर देते। उनका कहना था कि जब तक तान्या नहीं मिलती वो कुछ भी नहीं सोच सकते। अपनी तन्हाई में राजेश अक्सर सोचते कि कैसा होगा तान्या का चेहरा अब वो तो अब
13 साल की हो गई होगी। कैसी दिखती होगी? क्या वो उन्हें पहचान पाएगी? क्या वो अभी भी उन्हें याद करती होगी? एक सामान्य बुधवार की सुबह थी। दिल्ली में हल्की ठंड थी और धुंध के कारण विजिबिलिटी कम थी। राजेश अग्रवाल को कोलकाता से एक जरूरी बिजनेस मीटिंग के लिए आना पड़ा था। वो हमेशा फ्लाइट से ट्रैवल करते थे। लेकिन उस दिन मौसम खराब होने की वजह से सभी फ्लाइट्स कैंसिल हो गई थी। उनके सेक्रेटरी रोहित ने सुझाव दिया कि वह ट्रेन से दिल्ली जाएं। राजेश को ट्रेन से जाना बिल्कुल पसंद नहीं था क्योंकि उन्हें भीड़भाड़ से परेशानी होती थी। लेकिन
मीटिंग बहुत जरूरी थी इसलिए उन्होंने ट्रेन से जाने का फैसला किया। राजेश अपनी Mercedes कार से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे। उन्होंने महंगी सूट पहनी हुई थी। हाथ में लेदर का ब्रीफ केस था और चेहरे पर डिजाइनर चश्मा लगा हुआ था। जैसे ही वह स्टेशन पर उतरे, लोगों की नजरें उन पर पड़ी। स्टेशन पर हमेशा की तरह भीड़भाड़ थी। राजेश को इस माहौल में बहुत असहजता हो रही थी। वो जल्दी-जल्दी प्लेटफार्म की तरफ बढ़ रहे थे कि अचानक उनकी नजर एक छोटी सी लड़की पर पड़ी। प्रिया उस वक्त एक यात्री के जूते पॉलिश कर रही थी। उसके फटे पुराने कपड़े, धूल से भरे बाल और छोटे-छोटे हाथ
देखकर राजेश का दिल भर आया। लेकिन जैसे ही प्रिया ने अपना चेहरा उठाकर राजेश की तरफ देखा, राजेश की सांस अटक गई। वो आंखें, वो मासूम चेहरा, वो मुस्कान, सब कुछ बिल्कुल तान्या जैसा था। राजेश एक पल के लिए सन्न रह गए। उन्हें लगा जैसे वह कोई सपना देख रहे हो। प्रिया ने राजेश को देखा तो उसे लगा कि यह कोई बड़ा साहब है। महंगे कपड़े, अच्छी कार जरूर इनके पास पैसे होंगे। उसने हिम्मत करके राजेश के पास जाकर कहा साहब जूते पॉलिश का करा लीजिए। बस ₹10 लगेंगे। राजेश ने जब उसकी आवाज सुनी तो उनके रोंगटे खड़े हो गए। यह आवाज, यह अंदाज सब
कुछ तान्या जैसा था। वो झुकर प्रिया के चेहरे को गौर से देखने लगे। प्रिया को राजेश का व्यवहार अजीब लगा। वो पीछे हटकर बोली साहब जूते पॉलिश कराएंगे या नहीं? राजेश की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने धीमी आवाज में पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या है? प्रिया ने मासूमियत से जवाब दिया। ये प्रिया लेकिन सब मुझे सोनू बुलाते हैं। सोनू नाम सुनते ही राजेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। वो लड़खड़ाते हुए प्रिया के सामने घुटनों के बल बैठ गए। तान्या मेरी तान्या राजेश की आवाज कांप रही थी। प्रिया घबरा गई। उसे समझ नहीं आ
रहा था कि यह आदमी क्यों रो रहा है। उसने डरते हुए कहा साहब मैं तान्या नहीं हूं। मैं तो प्रिया हूं। राजेश ने उसके पैरों की तरफ देखा। वहां चांदी की एक पायल चमक रही थी। राजेश की आंखें फट कर रह गई। यह वही पायल थी जो उन्होंने तान्या को पहनाई थी। यह पायल यह पायल कहां से मिली तुम्हें? राजेश की आवाज में बेचैनी साफ छलक रही थी। प्रिया ने अपना पैर छुपाते हुए कहा, “यह तो बचपन से मेरे पास है।” काका जी कहते हैं कि जब मैं छोटी थी, तो यह मेरे पैर में थी। राजेश का दिल तेजी से धड़कने लगा। उन्होंने प्रिया का हाथ पकड़ने की कोशिश की। लेकिन प्रिया पीछे हट
गई। बेटा मैं तुम्हारे पापा हूं। तुम मेरी तान्या हो। 8 साल पहले तुम मेले में खो गई थी। मैंने तुम्हें बहुत ढूंढा है। साहब और अपाइक राजेश रोते हुए बोले प्रिया को यकीन नहीं हो रहा था। उसने कहा नहीं साहब आप गलत कह रहे हैं। मेरे मां पापा कोई नहीं है। मैं तो यहीं रहती हूं। तब तक आसपास भीड़ इकट्ठी हो गई थी। लोग इस नजारे को देखकर फुसफुसा रहे थे। अरे यह तो अग्रवाल साहब हैं। करोड़पति आदमी हैं। क्या बात है? इतना क्यों रो रहे हैं? लगता है यह बच्ची इनकी बेटी है। राजेश ने प्रिया से कहा बेटा अगर तुम्हें यकीन नहीं है तो हम टेस्ट करा सकते हैं। डीएनए टेस्ट से सब
साफ हो जाएगा। प्रिया अभी भी संशय में थी। उसने जिंदगी में बहुत धोखे देखे थे। कई लोगों ने उसे बहकाने की कोशिश की थी। वो डरी हुई थी कि कहीं यह आदमी भी उसे धोखा ना दे। अगर आप झूठे निकले तो? प्रिया ने डरते हुए पूछा। राजेश ने हाथ जोड़कर कहा, बेटा अगर मैं झूठा निकला तो तुम चाहो तो मुझे पुलिस के हवाले कर देना। लेकिन मैं भगवान की कसम खाकर कहता हूं कि तुम मेरी बेटी हो। प्रिया के दिल में एक अजीब सी हलचल हो रही थी। जिंदगी भर जिसने माता-पिता का प्यार नहीं देखा था। वो आज किसी को अपना पापा कहते हुए देख रही थी। आखिरकार प्रिया मान गई। राजेश उसे अपनी
कार में बिठाकर अस्पताल ले गए। रास्ते भर राजेश उसे देखते रहे। उन्हें यकीन हो रहा था कि यही उनकी तानिया है। अस्पताल में डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल लिए गए। राजेश का दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था। प्रिया भी घबराई हुई थी। डॉक्टर ने कहा कि रिपोर्ट आने में दो दिन लगेंगे। राजेश ने प्रिया से कहा बेटा तुम इन दो दिन मेरे घर रहोगी। प्रिया ने कहा नहीं साहब मैं अपने काका जी के घर जाऊंगी। अगर टेस्ट में साबित हो गया कि मैं आपकी बेटी हूं तब मैं आपके साथ आऊंगी। राजेश को प्रिया की यह बात अच्छी लगी। उन्होंने सोचा कि उनकी बेटी बहुत समझदार हो गई है। राजेश ने
प्रिया को रामलाल काका के घर छोड़ा। जब रामलाल को पूरी कहानी पता चली तो वह हैरान रह गए। उन्होंने कहा आ सकता कयाम आ रहा अगर सच में प्रिया करोड़पति की बेटी है तो उसकी किस्मत बदल जाएगी। उन दो दिनों में राजेश को चैन नहीं आया। वो बार-बार अस्पताल फोन करके पूछते रहे कि रिपोर्ट आई या नहीं। प्रिया भी बेचैन थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या सच है। अगर वह सच में करोड़पति की बेटी निकली तो उसकी पूरी जिंदगी बदल जाएगी। दो दिन बाद राजेश और प्रिया सुदर्शन दोनों अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर के चेहरे पर मुस्कान थी। उन्होंने फाइल खोली और कहा मिस्टर राजेश अग्रवाल
बधाई हो। डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। यह बच्ची सच में आपकी बेटी है। यह सुनते ही राजेश की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे। उन्होंने प्रिया को कसकर गले से लगा लिया। दान्या मेरी बच्ची सब परेगी है तुम ना में मेरी बेटी हो। प्रिया भी रो रही थी। 13 साल की उम्र में पहली बार उसे अपने असली पिता का प्यार मिला था। वो राजेश के सीने से लिपट कर बोली पापा सच में आप मेरे पापा हैं। हां बेटा बेटा मैं तुम्हारा पापा हूं। अब तुम कभी अकेली नहीं रहोगी। राजेश ने उसके माथे पर चुंबन दिया। राजेश ने सबसे पहले मीरा को फोन किया। फोन की घंटी बजने पर मीरा ने
आवाज में परेशानी लिए हुए कहा हेलो मीरा काया अनि तान्या मिल गई है हमारी बेटी मिल गई है राजेश की आवाज में खुशी साफ छलक रही थी फोन की दूसरी तरफ से चुप्पी छाई रही फिर मीरा की सिसकी की आवाज आई सच में तान्या मिल गई हां मीरा सच में डीएनए टेस्ट भी हो गया है तुम जल्दी दिल्ली आ जाओ मीरा तुरंत अगली फ्लाइट से दिल्ली के लिए निकल गई राजेश प्रिया को लेकर कर घर आए। जब प्रिया ने राजेश का बंगला देखा तो वह हैरान रह गई। पापा यह आपका घर है। प्रिया की आंखें चौड़ी हो गई। हां बेटा और अब यह तुम्हारा भी घर है। राजेश मुस्कुराए। घर के नौकरों
ने जब सुना कि साहब की खोई हुई बेटी मिल गई है तो सभी बहुत खुश हुए। घर में खुशी का माहौल था। राजेश ने प्रिया को घर का हर कमरा दिखाया। जब वह तान्या के पुराने कमरे में पहुंचे तो प्रिया को अजीब सा लगा। कमरे में बच्चों के खिलौने, कपड़े और तस्वीरें थी। यह तुम्हारा कमरा था बेटा। मैंने इसमें कुछ भी नहीं बदला है। मुझे उम्मीद थी कि तुम वापस आओगी। राजेश की आवाज भावुक थी। प्रिया ने कमरे की तस्वीरें देखी। एक छोटी सी बच्ची की तस्वीरें थी जो उसी जैसी दिखती थी। धीरे-धीरे उसे कुछ याद आने लगा। पापा, मुझे यह कमरा थोड़ा सा पहचाना सा लग रहा
है। प्रिया ने कहा, राजेश खुश हो गए। हां बेटा, यादें धीरे-धीरे वापस आएंगी। शाम को मीरा पहुंची। जब उसने प्रिया को देखा तो वह पागलों की तरह दौड़कर उसके पास गई। तान्या आशा बीन अन मेरी बच्ची मां बेटी का मिलना देखकर सभी की आंखें भर आई। मीरा ने प्रिया को कसकर गले से लगाया और रोते हुए कहा मैंने तुम्हें बहुत ढूंढा है बेटा। मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है। प्रिया ने कहा, मम्मा अब सब ठीक है। हम फिर से साथ हैं। उस रात पूरा परिवार एक साथ खाना खाया। प्रिया को अच्छा खाना, साफ कपड़े और प्यार से बातें करने वाले लोग मिले। उसे लग रहा था जैसे वो सपना देख रही हो।
राजेश ने प्रिया से पूछा, बेटा तुम इतने साल कहां थी? बीता तुम्हारे साथ क्या हुआ था? प्रिया ने अपनी पूरी कहानी बताई। कैसे वह मेले में खो गई थी। कैसे रामलाल काका और सुमित्रा काकी ने उसे पाला था और कैसे उसे जूता पॉलिश का काम करना पड़ा था। यह सब सुनकर राजेश और मीरा का दिल टूट गया। उन्हें एहसास हुआ कि उनकी छोटी सी बेटी ने कितनी मुश्किलें झेली हैं। बेटा, अब तुम्हें कभी कोई तकलीफ नहीं होगी। हम तुम्हारा खूब ख्याल रखेंगे। मीरा ने प्रिया के बाल सहलाए। अगले दिन राजेश प्रिया को लेकर रामलाल काका के घर गए। वो रामलाल और सुमित्रा का शुक्रिया
अदा करना चाहते थे। काका जी आपने मेरी बेटी की बहुत देखभाल की है। मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा। राजेश ने रामलाल को प्रणाम किया। रामलाल ने कहा साहब प्रिया हमारी बेटी जैसी है। हमने अपना फर्ज निभाया है। राजेश ने रामलाल के परिवार की सारी जरूरतें पूरी करने का वादा किया। उन्होंने उनके लिए एक नया घर दिलवाया और रामलाल को अपने कारखाने में अच्छी नौकरी दी। प्रिया को नए जीवन की आदत डालने में वक्त लगा। पहले वह रोज सुबह उठकर स्टेशन जाने के लिए तैयार हो जाती थी। जब राजेश ने उससे कहा कि अब उसे काम नहीं करना है तो वह हैरान हो गई। पापा अगर
मैं काम नहीं करूंगी तो खाना कैसे मिलेगा? प्रिया ने मासूमियत से पूछा। राजेश की आंखें भर आई। बेटा अब तुम्हें कभी काम करने की जरूरत नहीं है। तुम पढ़ाई करोगी, खेलोगी और खुश रहोगी। राजेश ने प्रिया का दाखिला दिल्ली के सबसे अच्छे स्कूल में कराया। पहले प्रिया को स्कूल जाने में डर लगता था क्योंकि वह पढ़ाई में काफी पीछे थी। लेकिन राजेश ने उसके लिए अच्छे टटर रखे। धीरे-धीरे प्रिया की यादें वापस आने लगी। वो अपने बचपन के कुछ किस्से याद करके राजेश और मीरा को बताती। यह सुनकर राजेश और मीरा को बहुत खुशी होती। प्रिया की पायल का राज भी खुल गया। राजेश ने उसे
बताया कि यह पायल उन्होंने खुद बनवाकर उसके पहले जन्मदिन पर पहनाई थी। तो इसीलिए मैं इसे कभी उतारना नहीं चाहती थी। मेरे दिल में था कि यह बहुत बहुत खास है। प्रिया मुस्कुराई। 1 साल बाद प्रिया पूरी तरह से अपने नए जीवन में सेट हो गई। वह स्कूल में अच्छे नंबर लाने लगी। नए दोस्त बनाए और पूरी तरह से खुश थी। लेकिन प्रिया ने अपने संघर्ष के दिन कभी नहीं भुलाए। वो अक्सर राजेश से कहती पापा हम ही एमएईटी इन हम में गरीब बच्चों की मदद करनी चाहिए। राजेश को अपनी बेटी की यह बात बहुत अच्छी लगी। उन्होंने प्रिया के नाम पर एक चैरिटी ट्रस्ट खोला जो स्ट्रीट चिल्ड्रन की मदद
करता है। प्रिया अब रायल के स्टेशन पर वापस गई। लेकिन इस बार जूता पॉलिश करने के लिए नहीं सॉरी नहीं बल्कि वहां काम करने वाले बच्चों की मदद करने के लिए। उसने कई बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलवाया और उनके परिवारों की मदद की। राजेश, मीरा और प्रिया अब एक खुशहाल पारिवारिक जीवन जी रहे हैं। वह तीनों हर रोज भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्हें दोबारा मिलने का मौका मिला। प्रिया अब 16 साल की हो गई है। वो कॉलेज में पढ़ रही है और समाज सेवा में अपना योगदान दे रही है। उसका सपना है कि वह बड़ी होकर और भी ज्यादा गरीब बच्चों की मदद करें। राजेश
अक्सर कहते हैं, “मेरी बेटी ने मुझे जिंदगी की असली कीमत सिखाई है। पैसा और दौलत से कहीं ज्यादा अहमियत पारिवारिक रिश्तों और प्यार की है। यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आए, सच्चा प्यार और रिश्ते हमेशा जीत जाते हैं। प्रिया और राजेश की कहानी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा है कि कभी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।
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जब मेरे चाचा जेल से बाहर आए, तो पूरे परिवार ने उनसे मुंह मोड़ लिया, सिवाय मेरी मां के जिन्होंने खुले दिल से उनका स्वागत किया। जब हमारा परिवार मुश्किल में पड़ गया, तो मेरे चाचा ने बस इतना कहा: “मेरे साथ एक जगह चलो।”/hi
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मेरे पति के अंतिम संस्कार के बाद, मेरा बेटा मुझे शहर के किनारे ले गया और बोला, “माँ, यहाँ से…
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