जिस बेटे को कभी सीने से लगाकर चलना सिखाया था। आज उसी ने अपने बाप को धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया। यह सुनकर अगर किसी का दिल ना कांपे तो समझिए इंसानियत से भरोसा उठ गया है। बिहार के एक छोटे कस्बे दरियापुर में रहने वाले हरिओम जी और उनकी पत्नी कावेरी देवी उस दिन रात के खाने के लिए जैसे ही बैठने ही वाले थे। तभी उनका बेटा राहुल तेजी से दरवाजा खोलता हुआ अंदर आया और गुस्से से बड़बड़ाता हुआ चिल्ला पड़ा। तुम दोनों को शर्म नहीं आती? मेरी बीवी की तरफ आंख उठाकर देखते हो। मेरी बीवी ने तुम्हारे खिलाफ जो कहा वह झूठ नहीं है। हरि ओम जी उस वक्त थाली में
दाल चावल परोस रहे थे। उनका हाथ रुक गया और गले से आवाज ही नहीं निकली। कावेरी देवी भी सन्न रह गई। जैसे उनकी आत्मा किसी ने झिंझोर दी हो। बेटा हरि ओम जी ने कांपती आवाज में कहा, क्या तू सोच भी सकता है कि तेरा बाप जो तुझे जन्म दिया? तेरी बीवी पर गंदी नजर डालेगा? क्या तेरे अंदर इतना भी यकीन नहीं बचा? लेकिन राहुल का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। उसने अपने बाप को जोर का धक्का दिया। हरिओम जी का शरीर दीवार से टकराया और वो गिर पड़े। कावेरी देवी फौरन दौड़ी। राहुल, क्या तू अपने मां-बाप से अब जानवरों की तरह व्यवहार करेगा? चुप रह बूढ़ी। दो वक्त की
रोटी दे रहे हैं। अब तू भाषण देगी। उसने मां की ओर देखकर घिन से कहा और फिर दोनों का सामान दरवाजे के बाहर फेंक दिया। बिना चप्पल के वह दोनों अब दरवाजे के बाहर थे। उनके शरीर पर सिर्फ वही कपड़े थे जो पहने हुए थे। आंखों में आंसू और आत्मा में छाले। मोहल्ले के लोग बालकनी से झांक रहे थे। कोई अफसोस जताकर मुंह फेर लेता। कोई हंसकर चल देता। क्योंकि यह नजारा अब उनके लिए नया नहीं था। कभी कोई चुपचाप समझाने आया भी था। लेकिन जब राहुल ने गालियां देकर मोहल्ले के बुजुर्गों तक को भगा दिया। तब से किसी ने पलट कर भी नहीं देखा। हरि ओम जी ने कावेरी का कांपता हाथ पकड़ा।
चलो कावेरी। अब इस घर में रहना पाप है। कावेरी ने अपनी टूटी चश्मा उठाई जो बेटे ने जमीन पर फेंक दी थी और अपनी धुंधली आंखों से पति का चेहरा ढूंढा। मत घबराओ जो कुछ भी होता है भगवान की मर्जी से होता है। चलो शायद अब हमारी असली परीक्षा शुरू हो रही है। हरि ओम जी ने उसकी बात सुनकर चुपचाप सिर हिलाया और दोनों सड़क पर उतर आए। चारों तरफ सन्नाटा था। उम्र के इस मोड़ पर जब शरीर साथ नहीं देता तब आत्मा भी हार मानने लगती है। कुछ रिक्शा वाले उनके पास आए। बाबूजी कहां जाना है? लेकिन हरि ओम जी ने हाथ जोड़ लिए। बेटा पैसा नहीं है हमारे पास। वो चुपचाप आगे बढ़ गए।
भूख ने पेट में दर्द करना शुरू कर दिया था। सामने एक छोटा सा ढाबा दिखा। लोहे की चारपाई बिछी थी। हरि ओम जी ने कांपते हाथों से ढाबे वाले को बुलाया। भैया भूख बहुत लगी है। अगर कुछ खाना दे दो तो हम बदले में तुम्हारे सारे बर्तन धो देंगे। मेरी बीवी को दवा लेनी है। अगर भूख से दवा ना ली तो हालत बिगड़ जाएगी। यह कहते हुए उनकी आंखें भर आई और आवाज गले में अटक गई। ढाबे का मैनेजर उनकी हालत देखकर चौंक गया। उसने कहा बाबूजी बर्तन मत धोइए। बैठिए मैं खाना लाता हूं। हरि ओम जी ने गहरा सांस लिया और कावेरी जी को ले जाकर एक चारपाई पर बैठाया। कावेरी जी ने धीरे से पूछा,
तुम्हारे पास कुछ पैसे हैं? हरिओम जी ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया। कावेरी जी को एहसास भी नहीं होने दिया कि यह खाना भीख में मिला है। उसे यह नहीं मालूम था कि उसका पति अपने सम्मान को बचाने के लिए अंदर ही अंदर टूट रहा है। लेकिन खाना खाते हुए भी हरिओम जी के दिमाग में वह दृश्य घूम रहा था। जब उनका बेटा राहुल पहली बार स्कूल से ट्रॉफी लेकर आया था। जब हार्ट अटैक के बाद वह उनके पास बैठकर रोता रहा था। पिताजी मुझे छोड़कर मत जाइए। और आज वही राहुल उस रात ढाबे के एक कोने में बैठकर हरि ओम जी और कावेरी देवी ने जिंदगी का सबसे कड़वा खाना खाया था। क्योंकि उस
खाने में स्वाद नहीं केवल अपमान की चुपचाप घुलती हुई परछाई थी। और हर निवाले के साथ बेटे की यादें कलेजे में कांटे की तरह चुभ रही थी। खाने के बाद जब दोनों ढाबे से उठे तो उन्होंने एक बार फिर एक दूसरे की आंखों में देखा। कोई उम्मीद नहीं थी। सिर्फ एक सवाल था। अब कहां जाए? सड़क सुनसान थी। पर अजनबियों की नजरें अब भी उन पर टिकी थी। जैसे कोई तमाशा देख रहा हो। उसी वक्त एक दुबला पतला उलझे बालों वाला आदमी उनके पास आया। उसके चेहरे पर दाढ़ी फैली थी। आंखें लाल थी। बाबूजी आप लोग सुबह से देख रहा हूं। परेशान हो। अगर कहो तो छोड़ देता
हूं। मैं रिक्शा चलाता हूं। आपसे कोई पैसा नहीं लूंगा। हरि ओम जी और कावेरी देवी दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा। मन में डर था। वो आदमी अजीब सा देख रहा था। जैसे कोई शरारती या शातिर हो। अगर आपको मुझ पर भरोसा नहीं है तो कोई बात नहीं। मैं चला जाता हूं। वो पलटा ही था कि कावेरी देवी ने धीमे स्वर में कहा। हम एक वृद्ध आश्रम जाना चाहते हैं। क्या वहां छोड़ दोगे? उस रिक्शा वाले की आंखें चमक उठी। बिल्कुल। बैठिए मैं पहुंचा देता हूं। हरि ओम जी की आंखें नम थी। वृद्ध आश्रम यह शब्द उनके सीने में किसी पत्थर की तरह बैठ गया था। लेकिन उनके पास कोई और रास्ता नहीं था।
रिक्शा चलता रहा। लेकिन कुछ ही देर बाद वो एक सुनसान जगह पर रुका। वहां ना कोई वृद्धाश्रम था। ना कोई बोर्ड, ना कोई इंसानियत। बस एक बड़ा सा डेरा था। और उसके अंदर कुछ टूटे फूटे कमरे। वहां कई और बूढ़े और औरतें बैठी थी। कुछ जमीन पर चितड़ों में लिपटे। कुछ खांसते हुए हरि ओम जी समझ गए कि यह जगह कोई आश्रम नहीं बल्कि भीख मंगवाने वाला गैंग है। वह कुछ बोलने ही वाले थे कि उस आदमी ने उनकी बात को ताड़ लिया और तेजी से कावेरी देवी को महिलाओं के हॉल में और हरिओम जी को मर्दों के हॉल में अलग कर दिया। हरिओम जी चुपचाप बैठ गए। लेकिन उनका दिल जोर से धड़क रहा
था। कावेरी देवी को कुछ भी मालूम नहीं था। वह तो अभी यही सोच रही थी कि यह कोई सरकारी वृद्धाश्रम है। सुबह होते ही सच्चाई का चेहरा सामने आ गया। उन्हें शहर के सबसे व्यस्त चौराहे पर ले जाकर बैठा दिया गया और कहा गया अब भीख मांगो नहीं तो आज खाना नहीं मिलेगा। हरि ओम जी ने धीरे से विरोध किया। हम ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन वह आदमी दूर खड़ा घूरता रहा और बाकी बुजुर्गों ने भी फुसफुसाकर कहा अगर तू हाथ नहीं फैलाएगा तो वह तुझे भूखा रखेगा, मारेगा जैसे हम सबको मारता है। हरि ओम जी की आंखें भर आई। लेकिन तभी एक काली गाड़ी उनके सामने आकर रुकी। हरिओम जी को लगा
शायद कोई पैसे देने आया है क्योंकि अगर बिना मांगे भी भीख मिल जाए। तो उस दरिंदे की मार से तो बचा जा सकता है। पर वह आदमी गाड़ी से उतरा और सीधे हरि ओम जी के पास आया। बाबूजी आप यहां क्या आप मुझे पहचानते नहीं? हरि ओम जी ने उसकी ओर देखा। उसकी आंखों में आंसू थे और उसकी आवाज कांप रही थी। मैंने बहुत ढूंढा आपको। बहुत लेकिन जब पता चला कि आप कहीं नहीं है तो मैं टूट गया। लेकिन आप दोनों को इस हालत में देखकर। दिल कांप उठा है बाबूजी। आपको याद है आप मुझे गौरव बुलाते थे। हरि ओम जी चौंक गए क्योंकि गौरव नाम लेते ही अतीत की किताब फड़फड़ाने लगी। उसी वक्त पीछे से
कावेरी देवी की आवाज आई। यह कौन है जी? कहीं फिर से कोई धोखा देने तो नहीं आया लेकिन गौरव अब खुद को रोक नहीं पाया। वो सीधे उनके पैरों में बैठ गया। पिताजी मैं आपका वही बेटा हूं जिसे आपने 15 साल पहले एक झूठे इल्जाम में घर से निकाल दिया था। हरि ओम जी की आंखें खुली की खुली रह गई। उन्होंने गौरव को ध्यान से देखा और जैसे वक्त ठहर गया हो। एक-एक दृश्य आंखों के सामने घूमने लगा। वही गौरव जिसे उन्होंने अपने सबसे करीबी दोस्त की मौत के बाद उसकी विधवा पत्नी के साथ अपनाया था। जिसे बचपन में कंधे पर बैठाकर मेला घुमाया था। जिसे देखकर कभी कहा करते थे तू मेरा बेटा नहीं
भाग्य है मेरा। पर फिर जब उनका खुद का बेटा राहुल पैदा हुआ तो वही गौरव उन्हें पराया लगने लगा। मोहल्ले वालों की फूटी जुबाने जो तंज कसते थे कावेरी अपने पहले पति का बेटा दहेज में लाई है। उन शब्दों ने हरि ओम जी की सोच को जहर बना दिया था। और फिर जब घर की हालत बिगड़ी, रोजगार छूटा, कर्ज बढ़ा तो हरि ओम जी की झुंझुलाहट, गुस्सा, अपमान सबका जहर वो उस मासूम गौरव पर निकालने लगे। और एक दिन एक झूठा इल्जाम घर से पैसे गायब है। तुझ पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यह कहकर गौरव को घर से धक्के मारकर निकाल दिया गया। उस दिन गौरव की आंखों में आंसू थे। उसके हाथ में
एक फोटो थी जिसमें वह हरिओम जी और कावेरी एक साथ थे। वह बार-बार मुड़कर देख रहा था। शायद इस उम्मीद में कि पिताजी हमेशा की तरह उसे बुला लेंगे, गले लगा लेंगे। लेकिन हरि ओम जी ने उस दिन उसे जाते हुए देखना स्वीकार किया था। और अब 15 साल बाद वही गौरव उनके सामने था। नतमस्तक रोता हुआ हरि ओम जी की आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने कावेरी के कान में धीरे से कहा यह गौरव है वही बेटा जिसे हमने ठुकरा दिया था। कावेरी देवी स्तब्ध रह गई। उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। और अगले ही पल वो गौरव से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी। बेटा जिस दिन तुझे घर से निकाला
गया उस दिन मजबूरी में मैं भी चुप थी। पर मैंने तुझसे ज्यादा किसी को नहीं चाहा और देख मैंने भी तुझे खो दिया। गौरव के आंसू अब थम नहीं रहे थे। तभी दूर खड़ा वो आदमी वो रिक्शा वाला जिसने उन्हें इस नरक में पहुंचाया था। वो तेजी से भागता हुआ आया और गौरव की कॉलर पकड़ ली। तू मेरे मां-बाप को हाथ कैसे लगा रहा है? यह मेरे हैं। मैं इन्हें लेकर आया था। गौरव हैरान रह गया। कौन हो तुम? उसने गुस्से से कहा, मैं इनका अपना बेटा। हरिओम जी ने बीच में आकर कड़क आवाज में कहा, नहीं तू हमारा बेटा नहीं। बेटा वो होता है जो मां बाप के साथ खड़ा
हो। हमने तुम पर भरोसा करके तेरे साथ आया और तू हम लोगों से भीख मंगवाने के लिए सड़क पर छोड़ दिया। यह सुनते ही गौरव ने आगे बढ़कर उस आदमी को दो थप्पड़ जड़ दिए। लोग इकट्ठा हो गए। पुलिस बुला ली गई और बिना देर किए पुलिस उसे गिरफ्तार करके ले गई। गौरव के चेहरे पर अफसोस था। पर उसकी आंखों में वही प्यार था। वही आदर, वही इंतजार। पिताजी वो फटी हुई आवाज में बोला, अब मेरे साथ चलिए। प्लीज मैं हर गलती की माफी नहीं मांग रहा। क्योंकि गलती आपकी थी और माफ मैंने आपको उसी दिन कर दिया था। जब आप मुझे घर से निकाल रहे थे। हरि ओम जी की
आंखें झुकी थी। बेटा कैसे चलूं तेरे साथ? मैं तो अपराधी हूं। तेरा हक छीन लिया मैंने। अपने गुस्से, अपने डर और समाज की जुबानों के आगे मैं हार गया था। बेटा गौरव उसके पैरों में बैठ गया। पिताजी मैं आज भी वही बेटा हूं जो 10 साल का था। जो आपकी हर डांट को प्यार समझता था। जो दरवाजे पर खड़े होकर आपकी ओर देखता रहा। शायद एक बार फिर आप बुला लेंगे। भीड़ अब तालियों में बदल गई थी। कई लोगों की आंखें भर आई थी और हरि ओम जी ने गौरव को गले लगा लिया। हरि ओम जी और कावेरी देवी दोनों गौरव की गाड़ी में बैठ गए। गाड़ी के शीशों से बाहर बीतता
शहर अब उनके लिए कोई मायने नहीं रखता था। क्योंकि आज पहली बार किसी ने उन्हें सहारा नहीं सम्मान दिया था। रास्ते में हरि ओम जी ने जेब से वह टूटा हुआ चश्मा निकाला जिसे उनके बेटे ने जमीन पर फेंक दिया था और गौरव की ओर बढ़ाते हुए बोले बेटा तुम्हारी मां इस चश्मे के बिना ठीक से देख नहीं पाती सबसे पहले इसे ठीक करवा दो गौरव ने झट से गाड़ी रुकवाई और कुछ ही देर में नया चश्मा लेकर लौटा जब उसने वो चश्मा कावेरी को पहनाया तो उनकी धुंधली आंखों में जैसे साफ तस्वीर आ गई अब सब कुछ साफ-साफ दिख रहा है। कावेरी ने कहा, लेकिन वह सिर्फ चश्मे की बात नहीं थी। अब उन्हें
दिख रहा था कौन उनका है और कौन सिर्फ नाम का बेटा था। गौरव उन्हें अपने घर ले आया। वो घर सरकार से मिला था। लेकिन एक नया बंगला बनवा रहा था। जहां वह चाहता था कि उसके माता-पिता सुकून से रहे। जैसे राजा रानी गौरव की पत्नी सोनिया जो खुद भी अनाथ थी। उनके पांव छूकर बोली मां बाबूजी अब आपके बेटे की जिंदगी पूरी हो गई। आपके बिना यह घर अधूरा था। वक्त बीतता गया। छ महीने गुजर गए। हरि ओम जी और कावेरी देवी को अब दिल में कोई चिंता नहीं होती थी। सुबह बगिया में टहलना, दोपहर को आराम, शाम को गौरव और सोनिया के साथ चाय की प्याली में हंसी के कुछ पल, जिंदगी अब थकान नहीं।
राहत बन गई थी। एक साल बाद गौरव का नया बंगला बनकर तैयार हो गया। लेकिन जब वह हरि ओम जी और नौकर सुभाष के साथ बंगले की रंगाई देखने पहुंचे तो अंदर काम करते मजदूरों के बीच उन्हें एक जाना पहचाना चेहरा दिखा। वो चेहरा उनके अपने बेटे राहुल का था। वो सीढ़ी पर खड़ा था। बाल बिखरे, आंखों के नीचे काले घेरे, कपड़े मैले और हाथ में ब्रश। हरि ओम जी ने नजदीक जाकर आवाज दी। राहुल बेटा राहुल चौंक गया। सीढ़ी से नीचे उतरा और सीधे अपने पिता के पैरों में गिर पड़ा। पिताजी मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपको घर से निकाला। आप पर झूठा इल्जाम लगाया। और आज देखिए मेरी
हालत। बीवी छोड़ गई। बच्चे संभाल नहीं पा रहा। नौकरी छूट गई। अब पेट भरने के लिए मजदूरी कर रहा हूं। हरि ओम जी की आंखें भर आई। उनका दिल टूट रहा था क्योंकि चाहे जैसा भी था। वह उनका ही खून था। तभी गौरव आगे बढ़ा। राहुल हम दोनों बचपन में झगड़ते थे। है ना? लेकिन आज मैं चाहता हूं कि हम फिर से भाई बन जाए। मुझे बच्चे बहुत पसंद है और मेरी पत्नी कभी मां नहीं बन सकती। अगर तुम चाहो तो क्या मैं तुम्हारे बच्चों को गोद ले सकता हूं? उन्हें वह प्यार दे सकता हूं जो उन्हें कभी कमी ना लगे। राहुल ने कांपते हुए सिर हिला दिया। वह जानता था
कि अब उनके लिए गौरव ही एकमात्र सहारा है। गौरव ने उसे गले लगाया और दूर खड़े हरिओम जी की आंखों से आंसुओं की लकीर बहती रही। उन्हें आज अपने सौतेले बेटे पर गर्व हो रहा था। जिसे कभी उन्होंने ठुकरा दिया था। आज वही उनके टूटे हुए घर को जोड़ रहा था। अब राहुल अपने बच्चों के साथ गौरव के घर में रहने लगा। दोनों भाइयों में प्यार था। सोनिया दोनों बच्चों को अपनी जान से ज्यादा चाहती थी और कावेरी देवी वो रोज सुबह भगवान से यही दुआ मांगती थी। हे प्रभु मेरा खोया हुआ सम्मान और परिवार लौटा दिया। अब मुझे कुछ और नहीं चाहिए। वक्त गुजरता गया और गौरव की पत्नी सोनिया
को भी एक प्यार सा बेटा हुआ। और अब वह घर जो कभी अपमान और अकेलेपन की छाया में डूबा था। आज प्यार, अपनापन और रिश्तों की रोशनी से जगमगा रहा था। हरि ओम जी सुबह बगिया में टहलते। कभी बच्चों से कहानियां सुनाते तो कभी गौरव और राहुल के बीच की हंसी देखकर मुस्कुरा देते। पर एक दिन उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। कावेरी देवी ने गौरव को तुरंत पास बुलाया। गौरव भागता हुआ आया और उनके बिस्तर के पास बैठ गया। हरि ओम जी की सांसे धीमी हो चुकी थी। लेकिन उनकी आंखें अब भी जीवन की सबसे गहरी बात कहना चाहती थी। उन्होंने गौरव का हाथ थामा और बहुत धीमी आवाज में बोले बेटा एक बात
कान खोल कर सुन ले। जब कोई इंसान किसी मासूम के साथ नाइंसाफी करता है तो उसका हिसाब भगवान यही इसी धरती पर ले लेते हैं। मैंने तुझसे जो किया उसका फल मुझे मिल चुका है। अब तुझसे बस एक ही गुजारिश है। राहुल के बच्चों को कभी पराया मत बनने देना। उनमें वही मोहब्बत रखना जो तू अपने बच्चे में रखता। गौरव की आंखें भीग चुकी थी। पिताजी आपने जो कहा वो वचन बनकर मेरी रूह में उतर गया है। यह मेरे भाई के नहीं। मेरे अपने बच्चे हैं। जब तक मेरी सांस चलेगी, मैं इन्हें अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखूंगा। हरि ओम जी मुस्कुराए और बेटे के सिर पर कांपते हाथ से आशीर्वाद
रखते हुए अपनी आंखें बंद कर ली। कावेरी देवी और सोनिया फूट-फूट कर रोने लगी। गौरव और राहुल दोनों भाइयों ने मिलकर अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। हरिओम जी अब इस दुनिया में नहीं थे। लेकिन उनके बाद भी वह परिवार बिखरा नहीं बल्कि और मजबूत हो गया। गौरव ने अपने पिता से किया हुआ हर वादा निभाया। राहुल के बच्चों को कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि उनकी मां नहीं है या कि वह अपने सगे पिता के साथ नहीं रह रहे। सोनिया उन्हें उतना ही प्यार देती जैसे मां अपनी कोख से जन्मे बेटे को देती है। कावेरी देवी रोज उन बच्चों के लिए भगवान से दुआ मांगती कि उनका बचपन वैसा ना हो
जैसा गौरव का था। बल्कि वैसा हो जैसा हर बच्चा डिजर्व करता है। प्यार, सुरक्षा और सम्मान से भरा हुआ। समय बीतता गया। राहुल अब फिर से खुद को खड़ा कर रहा था। लेकिन अब वह भाई की तरह नहीं एक बेटे की तरह गौरव को देखता और गौरव उसने कभी अपने भीतर छुपे उस दर्द को किसी पर जाहिर नहीं होने दिया क्योंकि अब उसकी सबसे बड़ी दौलत थी एक पूरा हुआ परिवार तो दोस्तों कभी-कभी जिन रिश्तों को हम खून से जोड़ते हैं वह हमें धोखा दे जाते हैं और जिन रिश्तों को हम अपनाने से डरते हैं वही हमें संबल और सहारा बनकर जीवन भर साथ निभाते क्या आपने भी कभी किसी ऐसे इंसान से रिश्तों की
गर्माहट पाई है जो खून का नहीं लेकिन दिल से आपका था कमेंट करके जरूर बताइए और अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो वीडियो को लाइक करें शेयर करें और हमारे चैनल स्टोरी बाय बीके को सब्सक्राइब जरूर करें धन्यवाद जय हिंद जय भारत।
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