देखो राजकुमारी मुझे और मत सताओ। मेरी बात मान लो। नहीं अभी नहीं। मैं तुम्हें वो सब नहीं करने दूंगी। तुम मेरे नौकर हो मेरे नौकर। मुझे आज ठंड लग रही है। इसलिए वो मौका मैं तुम्हें दे रही हूं जो तुम चाहते थे। ये आज की रात तुम्हारे नाम है। जो चाहो करो अपनी राजकुमारी के साथ और ये सोच कर कि जो तुमने रात किया वो पल मैं अपनी जिंदगी में कभी नहीं भूल पाऊंगी। मैं चाहती हूं कि हम हमेशा यहीं फंसे रहे। हम जब वापस जाएंगे तुम यह सब बोल तो नहीं जाओगी। स्वीकार तुम्हें शर्म नहीं आई। अपने ही नौकर से मुन काला करवाते हुए। उसने मुझे उसने मुझे वो सब कुछ दिया जो तुम मुझे कभी

नहीं दे पाए। अगर आप जानना चाहते हैं कि मैं अपने नौकर पर आशिक क्यों हो गई तो पूरी कहानी सुनिए। राजस्थान के एक अमीर घराने में जन्मी अन्वेशा देव एक ऐसी रईसजादी थी जिसे अपनी दौलत, शानो शौकत और खानदानी रुतबे पर बेहिसब गुरूर था। उसे यकीन था कि दुनिया की हर चीज उसके कदमों में है। यहां तक कि लोग भी आम इंसान उसके लिए बस नौकर, खिदमतगार या परश्त भूमि के किरदार थे। घर के मुलाजिम उसके गस्से और तकब्बुर से हमेशा कांपते रहते। उनमें एक खामोश सीधा साधा नौजवान भी था। रोबीनाथ। अन्वेशा अक्सर उसे जलील करके खुश होती। कभी मामूली सी गलती पर उस पर चिल्ला उठती। कभी उसके

काम में नुक्स निकालकर उसे नीचा दिखाती। जिंदगी अपनी उसी रफ्तार से चल रही थी जब एक दिन किस्मत ने ऐसा पलटा खाया कि सब कुछ बदल गया। अन्वेशा अपने शौहर अर्जुन देव जो एक बड़े उद्योगपति थे और अपने दो अमीर दोस्तों के साथ एक लग्जरी वेकेशन पर केरल के साहिलों की तरफ रवाना हुई। वो लोग अपने प्राइवेट जहाज से वहां पहुंचे। और फिर समुंदर की सैर के लिए एक कश्ती किराए पर ली। जब वह कश्ती पर सवार हुए तो कप्तान बृजेश नायर ने मुस्कुराते हुए सबका खैरमकदम किया। बाकी सब ने खुशी से उसका हाथ मिलाया। मगर अन्वेशा ने हमेशा की तरह गुरूर से नजरें फेर ली और बगैर हाथ मिलाए

आगे बढ़ गई। कश्ती का अमला एक दूसरे को देखने लगा। जैसे वह उस औरत की बदतमीजी पर हैरान हो। उसी कश्ती पर काम करने वाला रोवी भी मौजूद था। अन्वेशा का रवैया उसे बहुत नागवार गुजरा मगर वह खामोश रहा। वह सबके सामान को उनके केबिन तक पहुंचाता रहा। अन्वेशा को कुछ भी पसंद नहीं आया। ना कश्ती की सादगी, ना कमरा, ना खाना। हर चीज में उसे कमी नजर आती थी। उसने हिकारत से पूछा, यहां कोई जिम तो होगा ना? रोवी ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ एक पुरानी एक्सरसाइज वाली साइकिल उसके सामने रखी और बोला, “यह लीजिए मैडम, शायद आपका काम चल जाए।” यह तंज सुनकर अन्वेशा का चेहरा गुस्से से

लाल हो गया। तुम्हें पता है तुम किससे बात कर रहे हो? मैं तुम्हें तुम्हारी नौकरी से निकलवा सकती हूं। रोवी ने नजरें झुका ली। मगर दिल ही दिल में सोचा। कभी वक ने पलटा खाया तो यही गरूर जमीन पर गिरेगा। अगले दिन सब लोग छोटी कश्तियों में ड्राइविंग के लिए समुंदर में निकले। बाकी सब समुंदर में कूदकर खुशियां मनाने लगे। मगर अन्वेशा एक चट्टान पर बैठी मुंह बिचकाती रही। उसे पानी से डर लगता था। रोवी तुम यहां मेरे साथ रहो। उसने हुक्म भरे लहजे में कहा। रोवी मजबूरन कश्ती में रुक गया। कुछ देर बाद बोला मैडम कभी-कभी डर का सामना करना

ही सबसे बड़ा हौसला होता है। आप भी पानी में जाए तो शायद अच्छा लगे। अन्वेशा ने तीखे लहजे में कहा। अब तुम मुझे सिखाओगे कि मुझे क्या करना है। रोवि चुप हो गया। समुंदर की लहरें हल्के-हल्के कश्ती के पहलू से टकरा रही थी। मगर उन दोनों के दरमियान एक अजीब सी खामोशी छा गई। अगली सुबह जब अन्वेशा साहिल पर एक्सरसाइज कर रही थी तो रोवी करीब ही सफाई में मशरूफ था। वो पसीने में तर-ब-बतर होकर काम कर रहा था। मगर अन्वेशा के चेहरे पर हमेशा की तरह नफरत की मुस्कान थी। तुम जैसे लोग हमेशा इसी मिट्टी में लथड़े रहते हो। यह कहकर वह पानी पीने लगी। जैसे किसी मामूली

इंसान से बात करने से भी उसकी शान घट जाए। रोवी ने सर झुकाया मगर दिल के अंदर कुछ जलने लगा था। शायद वही लम्हा था जब कस्मत अन्वेशा देव के गुरूर को तोड़ने की तैयारी कर रही थी। रोवी ने जब अन्वेशा की बदतमीजी सुनी तो चुपचाप वहां से हट गया। दिल में एक आग सी जलने लगी थी। मगर चेहरे पर अब भी वही खामोशी थी। दोपहर के वक्त सब लोग कश्ती के डेक पर लंच के लिए जमा हुए। समुंदर के नीले पानी के बीच धूप नरम थी। हवा हल्की चल रही थी। सब लोग खुशी-खुशी खाना खा रहे थे। लेकिन अन्वेशा की आदत थी। किसी चीज में खुशी ना ढूंढना। यह खाना ठंडा है। वो तीखे लहजे में बोली, रोवी,

तुम्हें समझ नहीं। आता इसे अभी गर्म करके लाओ। रोवी ने जब्त से अपने हाथ की मुट्ठी बांध ली। कुछ पल के लिए उसके चेहरे पर गुस्से की एक झलक उभरी। मगर उसने फौरन खुद को काबू में कर लिया। एक पल को उसे ख्याल आया। काश वो इस गुरूर भरी औरत पर यहीं खाना उढेल दे जैसे वह हर रोज उस पर झर उगलती है। मगर वह जानता था। ऐसा बस सोचा जा सकता है। किया नहीं। वो चुपचाप किचन में गया जहां कप्तान बृजेश और दूसरे अमले के लोग खाना तैयार कर रहे थे। भाई यह औरत तो हर वक्त जहर उगलती रहती है। रोवी बोला बृजेश ने मुस्कुराते हुए कहा बेटा यह अमीर लोग ऐसे ही होते हैं। हमें मुस्कुराते हुए

इनके नखरे बर्दाश्त करने पड़ते हैं। इनका इलाज वक करता है। कोई इंसान नहीं। रोवी ने गहरा सांस लिया और चुप हो गया। अन्वेशा के तेवर हर गुजरते दिन के साथ बदतर होते जा रहे थे। वो कप्तान बृजेश तक से बदतमीजी से बात करती। इन नौकरों से मुझे घिन आती है। इन्हें बोलिए मेरे सामने ज्यादा ना आए। पूरी कश्ती पर एक अजीब सा बोझ छा गया था। सब लोग उस औरत से दूर रहने की कोशिश करते मगर रोवी की मजबूरी थी। उसे तो हर वक्त उसके आसपास रहना पड़ता था। दो दिन गुजर गए। अन्वेशा का तकबुर उसकी चीखें, उसकी तेज आवाज सब कुछ रोवी के जब्त को तोड़ने

लगा था। वो अब अक्सर उसकी नजरों से बचने की कोशिश करता। मगर किस्मत जैसे दोनों को बार-बार आमने-सामने ले आती। एक रात जब चांद अपनी चांदी समुंदर पर बिखेर रहा था। अन्वेशा शराब के नशे में लड़खड़ाती हुई डेक पर आई। इत्तेफाक से सामने से रोवी आ रहा था। वो उससे टकरा गई और बदमजा लहजे में बोली। देखकर नहीं चल सकते तुम। रोवी के अंदर पहले से ही बदले की एक चिंगारी जल रही थी। मगर उसने खुद पर काबू रखा। अन्वेशा हंसी। एक ऐसी हंसी जो तजलील की महक लिए थी जैसे वह उसे छेड़ना चाहती हो। रोवी ने ठंडे लहजे में कहा मैं तुम जैसी औरत के साथ एक लम्हा भी नहीं गुजारना

चाहता और वो वहां से चला गया मगर दिल के अंदर गुस्से और दर्द का तूफान उठ रहा था। अगली सुबह अन्वेशा ने अपनी जिद दिखाई। मैं आज फिशिंग पर जाना चाहती हूं। रोवी ने उसे समझाने की कोशिश की। मैडम मौसम खराब होने वाला है। अभी जाना खतरनाक होगा। मगर अन्वेशा कब किसी की सुनती थी? मैंने कहा जाना है तो जाना है। रोवी ने हार मान ली और एक मोटर बोट में उसे बिठाकर समुंदर की गहराइयों की तरफ निकल गया। कुछ देर सब ठीक रहा। लेकिन फिर अचानक इंजन बंद हो गया। रोवी ने बार-बार कोशिश की मगर बोट दोबारा नहीं चली। जब फयूल चेक किया तो मालूम हुआ

कि पेट्रोल ही खत्म है। क्या मतलब बोट बंद हो गई? इसे फौरन स्टार्ट करो। अन्वेशा चीखी। मैंने पहले ही कहा था मत चलो। मगर तुम्हारी जिद के आगे मैं भी यहां फंस गया हूं। अब बस इंतजार करो। रोवी ने जवाब दिया। अन्वेशा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। मुझे यहां से जल्दी निकालो। वरना तुम्हें देख लूंगी। समुंदर बेरहम था। लहरें धीरे-धीरे उनके चारों ओर गरज रही थी। दिन ढलने लगा। फिर रात आ गई। अंधेरा छा गया और उनके पास अब ना खाने का कुछ बचा था ना पानी। दूसरे दिन सूरज तप रहा था। अन्वेशा के चेहरे से गुरूर की चमक मध्यम पड़ने लगी। भूख, प्यास और डर तीनों उसके

लहजे से तकबुर चूस रहे थे। उसी वक्त उसकी नजर एक बॉक्स में बंद गन पर पड़ी। “ये लाओ, हम इससे सिग्नल दे सकते हैं।” वो चिल्लाई। रोविरन कहा, “ये फलेयर गन है मैड।” इसे एहतियात से इस्तेमाल करना। एक गलती में सब कुछ खत्म हो सकता है। दोनों समुंदर के बीच फंसे थे। जहां आसमान हद से नीचे झुकता महसूस हो रहा था। झुका महसूस हो रहा था। शायद यही वो लम्हा था जब कौदत ने अन्वेशा देव को पहली बार उसके अपने गुरूर के मुकाबिल ला खड़ा किया। वक जैसे थम गया था। सूरज उनके सिरों पर तप रहा था। प्यास होठों को चीर रही थी और भूख पेट में आग लगा रही थी। रोवी ने हिम्मत करके जाल

का एक टुकड़ा समेटा और बड़ी मुश्किल से एक छोटी सी मछली पकड़ ली। अन्वेशा की तरफ बढ़ाकर बोला, “यह खा लीजिए। कुछ तो दवाना ही मिलेगी। मगर अन्वेशा के चेहरे पर अब भी गुरूर की लकीर थी। यह गंदा है। मैं ऐसी चीजें नहीं खाती और उसने वह मछली फेंक दी। रोवी ने एक लम्हे के लिए नजरें नीची की। पता नहीं तुम्हारे जैसे लोग भूख और जिल्लत में भी खुद को ऊंचा समझते हैं या नहीं। वो बड़बड़ाया। अचानक अन्वेशा ने समुंदर की तरफ इशारा किया। वो देखो एक कश थी। उम्मीद की चमक उनकी आंखों में लौट आई। अन्वेशा ने फौरन फ्लेयर गन उठाई और आसमान की तरफ

चलाने की कोशिश की। मगर उसका हाथ कांप रहा था। गोली ठीक से नहीं चली और अगले ही लम्हे वो सीधी उनकी रबर बोट पर जा लगी। एक तेज सी आवाज आई। बोट की हवा निकलने लगी। यह तुमने क्या कर दिया? रूबी चिल्लाया मगर अब देर हो चुकी थी। बोट डोलने लगी। पानी अंदर आने लगा। दोनों ने किसी तरह आधे बचे हुए हिस्से को पकड़ा और तैरने लगे। रात छा गई। आसमान पर बादल गरज रहे थे। बिजली चमक रही थी और समुंदर पागल हो चुका था। बारिश ने सब कुछ धो डाला। गुरूर डर आवाज सब अन्वेशा चीखती रही। मगर पानी के शोर में उसकी आवाज गुम हो गई। रोवी ने दोनों हाथों से बोट के

किनारे को थाम रखा था। हिम्मत रखो सुबह हो जाएगी। वो चिल्लाया। पूरी रात वह तूफान से लड़ते रहे। बिल्कुल तन्हा। जब सुबह सूरज की हल्की किरण उनके चेहरों पर पड़ी तो उन्हें दूर एक छोटा सा टापू दिखाई दिया। एक नई उम्मीद की लकीर जैसे किस्मत ने फिर एक मौका दिया हो। किसी तरह वो वहां तक पहुंच गए। जमीन पर कदम रखते ही अन्वेशा ने रेत में लेट कर सांस ली। मगर अगले ही पल वह फिर वहीं पुरानी थी। गुरूर की मूरत। मेरा वकील तुमसे जरूर मिलेगा। समझे तुम? तुमने मुझे यहां मरने के लिए छोड़ दिया। तुम्हें जेल में सड़ना पड़ेगा। अन्वेशा ने गुस्से से चिल्लाकर कहा। रोवी ने थके हुए

लहजे में जवाब दिया। जो दिल चाहे कर लो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। और वैसे भी तुम्हारी जैसी औरत से दूर रहना ही बेहतर है। दोनों अपनी-अपनी दिशा में चल पड़े। वो टापू सुनसान था। ना कोई परिंदा ना इंसान। बस हवा की सरसराहट। रोवी पहाड़ी की एक तरफ गया तो उसे एक पुरानी झोपड़ी मिली। लगता था कोई बरसों पहले यहां रह चुका था। उसने झोपड़ी को साफ किया। पत्तों से छत ढकी और झरने से पानी भर लाया। फिर लकड़ियों से मछली पकाने का जुगाड़ बनाया। उधर अनवेषा जंगल में घूमती रही। चारों तरफ सन्नाटा था। आखिरकार वह थक कर एक पेड़ के पीछे छिप गई और वहीं से रोवी को देखने लगी। वह

देखती रही वही नौकर जिसे वह हमेशा कमतर समझती थी। अब इत्मीनान से मछली भून रहा था और तन्हाई में चैन से खा रहा था। भूख ने आखिरकार उसके गौरूर को चाटना शुरू कर दिया। वो धीरे-धीरे रोवी के पास आई। मुझे थोड़ा सा दे दो। उसने धीमी आवाज में कहा। रोवी ने हाथ रोका। फिर नजरें उठाई। नहीं। तुमने हमेशा मेरा मजाक उड़ाया। आज तुम्हें अपनी भूख से खुद लड़ना होगा। मैं तुमसे यह खरीद लूंगी। अन्वेशा ने गुस्से से कहा, ₹1000 दूंगी या यह लो मेरी सोने की चूड़ी। रोवी ने चूड़ी हाथ में ली। फिर मुस्कुरा कर जमीन पर फेंक दी। यहां तुम्हारी दौलत नहीं चलेगी मैडम। यहां

सिर्फ भूख बोलती है। गुरूर नहीं। अन्वेशा का चेहरा लाल हो गया। उसने मिट्टी उठाई और उस पर फेंकी। बेदब रोवी का सब्र टूट गया। उसने एक जोरदार थप्पड़ मारा। अब सुन लो आज से तुम मेरी नौकर हो। मैं मालिक हूं इस टापू पर और तुम्हें मेरी हर बात माननी होगी। अगर खाना चाहती हो तो मुझे मालिक कहो और जाओ मेरे कपड़े धो सुखाओ फिर पानी भर लाओ। शायद तब तुम्हें कुछ खाने को दूं। अन्वेशा ने दांत भी। मगर अब उसके पास कोई रास्ता नहीं था। वह झरने के किनारे गई। कपड़े धोए, पत्थरों पर फैलाए और शाम होने से पहले रोवी के सामने रख दिए। रोवी ने गहरी सांस ली। अब जाकर पानी लाओ। फिर शायद

तुम्हें खाना मिले। और पहली बार वो रईस आजादी जो कभी हाथ ना उठाती थी। अब एक मामूली नौकरानी की तरह एक बाल्टी लिए जंगल में जा रही थी। उसके गुरूर की जड़े अब धीरे-धीरे कमजोर होने लगी थी। अन्वेशा ने रोवी की बात मानी और खामोशी से उसके कहे हुए सारे काम करने लगी। पहले वह उसके कपड़े धोती रही। फिर झरने से पानी भर लाई और तकब्बुर का मजस्मा थी। आज पहली बार इंसान बन रही थी। उसके गाने में दर्द, नरमी और थकन की वो आमेजिश थी जो शायद बरसों के गरूर को बहा ले जाने के लिए काफी थी। रवि ने मछली के टुकड़े आग पर पलटे और बोला, पता है जब तुम मुझे जलील करती थी

ना, तब भी मैं सोचता था शायद एक दिन तुम्हें समझ आए कि इंसान की पहचान उसकी दौलत से नहीं उसके दिल से होती है। अन्वेशा ने नजरें झुका ली। उसके होंठ कांपे मगर वह खामोश रही। रात फिर गहरी होने लगी। समंदर की लहरें किनारे से टकरा कर लौट रही थी। अन्वेशा आग के करीब बैठी अपने हाथ सेक रही थी। रवि ने हल्की आवाज में कहा। कल हम इस टापू के दूसरे हिस्से में चलेंगे। शायद वहां कुछ खानेपीने का और सामान मिल जाए। अन्वेशा ने सर हिलाया। ठीक है। मैं साथ चलूंगी। सुबह हुई तो दोनों ने साथ सफर शुरू किया। रास्ते में कांटे, झाड़ियां और गर्म पत्थरों ने उनके पांव

जख्मी कर दिए। मगर अब अन्वेशा ने एक बार भी शिकायत नहीं की। रवि ने उसकी तरफ देखा। तुम बदल गई हो। अन्वेशा ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा। शायद भूख और तन्हाई इंसान से वह सब कुछ सिखा देती है जो दौलत कभी नहीं सिखा पाती। दोनों एक चट्टान पर बैठ गए। नीचे समंदर नीला और खामोश था। रवि ने कहा अगर कभी हम वापस गए तो क्या तुम फिर वही अन्वेशा बनोगी जो सबको नीचा दिखाती थी। अन्वेशा ने धीरे से कहा नहीं अब शायद मैं सिर्फ वो औरत बनना चाहूंगी जो इंसानों की कदर जानती है। उस लम्हे एक दूर जाती कश्ती के सायरन की आवाज सुनाई दी। दोनों चौंक कर खड़े हुए। यह तो

रेस्क्यू टीम है। रवि ने चीख कर कहा। अन्वेशा ने फ्लेयर गन उठाने की कोशिश की। मगर इस बार रवि ने खुद फायर किया। आसमान पर लाल रोशनी फैल गई। कश्ती करीब आती गई। अन्वेशा की आंखों से आंसू बहने लगे। मगर अब यह कमजोरी के नहीं। नरमी के आंसू थे। जब वह दोनों बचा लिए गए। अन्वेशा ने रेत पर झुककर जमीन को चूमा। इख्तताम पर। महीनों बाद जब रवि अपने गांव वापस आया तो एक दिन उसके दरवाजे पर गाड़ी रुकी। दरवाजा खोला तो सामने अन्वेशा खड़ी थी। सादा कपड़ों में मुस्कुराती हुई। मैं तुम्हें बताने आई हूं रवि कि तुमने मुझे जिंदगी का असल मतलब सिखाया। रवि ने हल्की सी

मुस्कुराहट के साथ कहा और तुमने मुझे यह सिखाया कि कभी-कभी गरूर टूटने से ही इंसान बनता है। समझता है कि वह गलत था और तुमने आज वह समझ लिया है। अन्वेशा अन्वेशा की आंखों से आंसू बह निकले। मगर अब यह शर्म के नहीं सुकून के आंसू थे। उसने धीरे से कहा रवि अगर मैं यहां मर भी जाऊं तो अब मुझे अफसोस नहीं होगा क्योंकि अब मैं जान चुकी हूं जिंदगी सिर्फ लेने का नहीं देने का नाम है। रवि ने उसकी तरफ देखा। नहीं अन्वेशा अब हमें जीना है ताकि यह कहानी यहीं खत्म ना हो। वक्त धीरे-धीरे गुजरने लगा। टापू पर दिन और रातें अब उतनी तनह नहीं लगती थी। कभी दोनों साथ मछलियां

पकड़ते, कभी आग के पास बैठकर बातें करते। कभी वह खामोशी में हंसी ढूंढते तो कभी हंसी में पुरानी तकलीफों का बोझ उतारते। रवि अब अक्सर उसे देखकर मुस्कुरा देता। देखो वो अन्वेशा कहां चली गई जो हर चीज पर हुक्म चलाती थी। अन्वेशा मुस्कुरा कर जवाब देती। शायद उसे यही समंदर निगल गया। और अब जो बची हूं वह बस एक औरत है जो जिंदा रहना चाहती है। एक दिन जब दोनों झरने के पास बैठे थे रवि ने कहा जानती हो जब पहली बार तुम्हें देखा था तो लगा था तुम सिर्फ घमंड का पुतला हो लेकिन अब लगता है इंसान के अंदर अच्छाई भी छुपी होती है। बस वक्त चाहिए उसे बाहर आने के लिए। अन्वेशा ने

उसकी आंखों में देखा। वहां अब कोई नफरत नहीं थी। बस सुकून और अपनापन था। हवा में समंदर की खुशबू थी। सूरज ढल रहा था और उस सुनहरी रोशनी में दोनों के साएं एक दूसरे में घुलते जा रहे थे। उस रात अन्वेशा ने पहली बार नींद में मुस्कुराया। रवि ने दूर आसमान की तरफ देखा। शुक्र है मालिक। तूने हमें दोबारा इंसान बना दिया। उसने बुदबुदाया। सुबह हुई तो आसमान पर धुएं की एक पतली लकीर दिखी। रवि दौड़ा। अन्वेशा देखो शायद कोई जहाज है। अन्वेशा भाग कर बाहर आई। आंखों में हैरानी और उम्मीद एक साथ थी। रवि ने जल्दी से कुछ लकड़ियां जलाई। धुआं आसमान में उठने लगा। दूर से

आवाज आई। हमने किसी को देखा है वहां। अन्वेशा की आंखों से आंसू बह निकले। हम बच गए रवि। हम सच में बच गए। रवि ने मुस्कुरा कर कहा। हां। मगर असली बचना तो अब हुआ है जब हम अपने अंदर से जिंदा हुए हैं। को पहचानता है तुमने वह कदम उठा लिया है। मैं तुम्हें माफ करता हूं। उस लम्हे में दोनों के दरमियान कुछ बदल गया। अब वह सिर्फ मालिक और नौकर नहीं रहे बल्कि दो ऐसे इंसान बन गए जिनको एक दूसरे की जरूरत थी। अब वह दोनों साथ काम करने लगे। मछलियां पकड़ते, पानी भरते, झोपड़ी को बेहतर बनाते और जिंदगी कुछ आसान लगने लगी। रफ्ता रफ्ता उनके दरमियान एक नरम सा एहसास जन्म लेने

लगा। जब वह हंसती तो रोवी मुस्कुराता। जब वह थकती तो वह खामोशी से उसके लिए पानी भर लाता। वक्त गुजरता गया और एक रात जब हवा में नमी और सुकून दोनों थे। दोनों ने अपने दिलों के दरवाजे एक दूसरे के सामने खोल दिए। शायद वह मोहब्बत नहीं थी बल्कि दो टूटे हुए दिलों का सुकून ढूंढने का लम्हा था। अब वह झोपड़ी अन्वेशा के लिए घर बन गई थी। रफी कहता यह देखो यही जिंदगी है ना शान ना शौकत बस एक सादा सा दिल और उसके साथ सुकून एक दिन रफी ने पूछा तुम इतनी सख्त क्यों थी हर किसी से नफरत क्यों करती थी अन्वेशा ने गहरी सांस ली क्योंकि मेरी

जिंदगी में कभी किसी ने मुझे समझा ही नहीं अर्जुन मेरा शौहर सिर्फ दौलत के पीछे था मैं अकेली थी मगर यह अकेलापन किसी ने देखा नहीं मैं गुस्से में रहने लगी लोगों को धत्कारने लगी। शायद खुद से नफरत करने लगी। मगर तुमने मुझे वह एहसास दिलाया कि इंसान होना कैसा होता है। रफी ने उसकी आंखों में देखा। तुमने देर की मगर खुद को पहचान लिया। यही काफी है। वक जैसे ठहर गया था टापू पर। अब वह दोनों साथ रहने लगे। एक दूसरे के बगैर खामोशी भी अधूरी लगती। दिन में वह मछलियां पकड़ते शाम को आग के पास बैठकर बातें करते। कभी हंसते कभी अतीत की बातों पर चुप हो जाते। एक शाम जब सूरज

समुंदर में डूब रहा था। अन्वेशा लकड़ियां चुनने गई। अचानक उसने दूर समुंदर में एक जहाज देखा। रोशनियों से भरा शोर से लबरेज। एक पल के लिए उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। हम बच सकते हैं। वो बुदबुदाई। मगर अगले ही लम्हे उसने फ्लेयर गन की तरफ देखा और हाथ रोक लिया। कुछ पल वो चुप खड़ी रही। फिर खुद से कहा। अगर मैं गई तो उसे खो दूंगी और शायद यह सब कुछ बेईमानी हो जाएगा। रात को वह चुपचाप वापस झोपड़ी में आ गई। रोवी को कुछ नहीं बताया। अब उसके दिल में यह तमन्ना नहीं थी कि वह वापस अपनी दुनिया में जाए। वो दुनिया जहां सिर्फ खाली मुस्कुराहटें और दिखावा था। रात गहरी थी।

हवा में ठंडक थी। झोपड़ी में उन्हें एक पुरानी बोतल मिली। रोवी ने हंसते हुए कहा। यह शायद किसी मुसाफिर की याद होगी। दोनों ने वह बोतल खोली और हल्के-हल्के घूंट भरने लगे। हवा में कहकहे गूंजने लगे और समुंदर खामोशी से सुनने लगा। रात वो दोनों देर तक नाचते रहे जैसे जिंदगी की थकान को रक्स में बहा देना चाहते हो। अब वो एक दूसरे के इतने करीब आ चुके थे कि लफ्ज गैर जरूरी हो गए थे। उनके बीच सिर्फ सुकून था। ऐसा सुकून जो शायद दोनों ने अपनी जिंदगी में पहली बार महसूस किया था। रोवी अब भी उम्मीद रखता था कि एक दिन कोई आकर उन्हें बचा लेगा। मगर अन्वेशा चाहती थी कि वक

यहीं थम जाए। इसी टापू पर इसी झोपड़ी में जहां वो पहली बार खुद बन पाई थी। समुंदर के किनारे शाम ढल रही थी। हवा में नमी थी और अफक पर धीरे-धीरे सूरज डूब रहा था। अन्वेशा और रोवी किनारे बैठे थे। खामोश। मगर उनकी आंखें एक दूसरे से बहुत कुछ कह रही थी। अन्वेशा ने आहिस्ता से कहा अगर हम यहां से गए तो हम दोनों हमेशा के लिए अलग हो जाएंगे। रोबी मैं नहीं चाहती कि ऐसा हो। मैं तुमसे इश्क करने लगी हूं और चाहती हूं कि यह लम्हे कभी खत्म ना हो। उसकी आवाज में पहली बार एक सच्चाई थी जो शायद उसने जिंदगी में पहली बार महसूस की थी। रोवी ने उसका हाथ थामा। नरमी से

मुस्कुराया। अगर हमारा प्यार सच्चा है अन्वेशा तो चाहे हम कहीं भी रहें हम एक दूसरे से अलग नहीं होंगे। मोहब्बत जगहों से नहीं दिलों से जुड़ी रहती है। मुझे यकीन है तुम वापस जरूर आओगी जब मैं तुम्हें याद करूंगा। वो लम्हा समुंदर के शोर में कहीं खो गया। फिर रोवी ने आसमान की तरफ फ्लेयर चलाया। कुछ घंटों बाद एक कश्ती उनके करीब आ गई और उन्हें बचा लिया गया। कश्ती पर बैठे दोनों एक दूसरे की तरफ देखते रहे। जैसे दिल जानते हो कि यह सुकून यह खामोशी शायद अब कभी ना मिले। जब वह बंदरगाह पहुंचे तो अन्वेशा का शौहर अर्जुन देव वहां मौजूद था। वो भागकर अन्वेशा के

गले लगा। अन्वेशा तुम जिंदा हो। मुझे यकीन नहीं आता। रोवी पीछे खड़ा यह मंजर देख रहा था। अर्जुन ने आगे बढ़कर उससे हाथ मिलाया। तुमने मेरी बीवी की जान बचाई। मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा। यह लो तुम्हारे लिए मेरा शुक्रिया। रोवी ने नजरें झुका ली और बिना कुछ कहे वहां से चला गया। उसके चेहरे पर सुकून नहीं था। बस एक अजीब सा खालीपन। कुछ दिन बाद रोवी शहर के एक क्लब में अकेला बैठा था। क्लब ने उसे इनाम के तौर पर एक बैग भेजा और मेज पर रख दिया। रोवी ने बैग खोला। अंदर नोटों के बंडल थे। चेहरे पर हल्की सी तल्खी आई। मेरा जमीर बिकने के लिए नहीं है। वो बोला

और बैग वापस फेंक दिया। मगर बैग वहीं रह गया। जाते-जाते अचानक उसने रुक कर बैग देखा और चुपचाप उसे उठा लिया। रास्ते में चलते-चलते उसकी नजर एक ज्वेलरी शॉप पर पड़ी। कदम खुद ब खुद रुक गए। उसने बैग में से कुछ रकम निकाली और अंदर जाकर एक खूबसूरत अंगूठी खरीदी। चमकती हुई मगर सादा। बिल्कुल अन्वेशा जैसी जो अब गुरूर से खाली थी। अगली सुबह उसने उसे फोन किया। अन्वेशा मैं तुम्हें बहुत याद कर रहा हूं। काश हम दोनों टापू पर ही रह जाते। वहीं जहां सुकून था। दूसरी तरफ कुछ पल की खामोशी के बाद अन्वेशा की आवाज आई। मैं भी तुम्हें नहीं भूल सकी। रोबी। मैं तुम्हारे

फैसले का इंतजार करूंगी। कल मैं यहां से जा रही हूं। लेकिन अगर तुम सच में मुझसे प्यार करते हो तो एक खत लिखकर होटल के रिसेप्शन पर छोड़ देना। मैं जरूर उसे ले लूंगी। रोवी ने वहीं किया। एक रात पहले वह बैठा और एक खत लिखा। अन्वेशा मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। हम दोनों कहीं दूर जाकर एक नई जिंदगी शुरू करेंगे। जहां ना दुनिया होगी ना कोई नाम। बस तुम और वह सुकून जो हमें टापू पर मिला था। सुबह सूरज निकलने से पहले बंदरगाह आ जाना। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा हमेशा के लिए। उसने वह खत अंगूठी के साथ रिसेप्शन पर रख दिया। मगर किस्मत ने एक बार फिर दोनों के

बीच दीवार खड़ी कर दी। अगली सुबह वो खत सबसे पहले अर्जुन देव के हाथ लगा। उसने वो खत पढ़ा और हल्की सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आई। फिर उसने चुपचाप वो खत अन्वेशा तक पहुंचने ही नहीं दिया। अन्वेशा इंतजार करती रही। मगर कोई पैगाम नहीं आया। आखिरकार वह मजबूर होकर अर्जुन के साथ हेलीकॉप्टर में बैठ गई। उसकी आंखों में नमी थी। दिल में बेहिसब सवाल। दूसरी तरफ होटल के कमरे में।