सुबह की हल्की धूप बाजार की गलियों में फैल रही थी। लोग अपनी-अपनी दुकानों को खोलने में व्यस्त थे। इसी बीच, दरोगा पांडे अपनी दो सिपाहियों के साथ बाजार में घूम रहा था। उसकी चाल में एक अजीब सी अकड़ थी, और आवाज़ में दबंगई झलक रही थी। वह हर दुकान पर रुकता, दुकानदारों से जबरन पैसे वसूलता और आगे बढ़ जाता। दुकानदार डर के मारे चुपचाप उसके सामने झुक जाते और उसे पांडे साहब कहकर संबोधित करते।
लेकिन आज का दिन दरोगा पांडे के लिए कुछ अलग था। बाजार के एक कोने में एक सादे सलवार सूट में महिला बैठी थी, जो मोमोज खा रही थी। बाल पीछे बंधे और चेहरे पर मासूमियत के साथ-साथ आत्मविश्वास की चमक थी। कोई नहीं जानता था कि वह महिला जिले की सबसे तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी नेहा चौहान थी। वह अक्सर बिना वर्दी के इलाके का जायजा लेने आती थी ताकि पता चल सके कि पुलिस अधिकारी अपनी ड्यूटी सही तरीके से कर रहे हैं या नहीं।
दरोगा पांडे ने उसी समय एक सब्जी की दुकान पर जाकर दुकानदार से कहा, “चल, हफ्ता निकाल, जल्दी कर।” नेहा ने उसे देखा और अपने मोबाइल से चुपके से वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया। वह सोच रही थी कि अब इस दरोगा पांडे को सबक सिखाना जरूरी है।
अगले दिन नेहा ने उसी जगह पर पानी पूरी का ठेला लगाया। उसने अपने चेहरे पर दुपट्टा ओढ़ रखा था ताकि कोई उसे पहचान न सके। उसने ग्राहकों को पानी पूरी खिलाई और मुस्कुराई, लेकिन उसके मन में एक योजना थी। जब दरोगा पांडे बाजार पहुंचा, तो उसने नेहा के ठेले की ओर देखा और मुस्कुराते हुए बोला, “अरे, नई दुकान लगी है। अब तुमसे भी हफ्ता लेना पड़ेगा।” नेहा ने सख्ती से जवाब दिया, “कौन सा हफ्ता साहब? मैं कोई पैसा नहीं दूंगी।”
पांडे ने ठेले पर हाथ मारा, जिससे सारी प्लेटें गिर गईं। नेहा ने गहरी सांस ली, लेकिन चुप रही। पांडे ने गुस्से में आकर नेहा के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया। आसपास खड़े लोग डर के मारे चुप थे। नेहा ने कहा, “दरोगा साहब, इस थप्पड़ का हिसाब तो होगा ही।” पांडे ने हँसते हुए कहा, “जा जा, जो करना है कर ले।” फिर वह वहाँ से चला गया।
नेहा तुरंत थाने पहुंची, लेकिन एसएओ ने उससे रिश्वत मांगी और रिपोर्ट दर्ज करने से मना कर दिया। नेहा ने ₹5000 देकर रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश की, लेकिन एसएओ ने साफ कह दिया कि वह दरोगा पांडे की रिपोर्ट नहीं लिख सकता क्योंकि पांडे उसके आदमी हैं। नेहा ने कानून के बराबरी के सिद्धांत की बात की, लेकिन एसएओ ने उसे धमकाया।
नेहा ने हार नहीं मानी। उसने अपने भाई, मंत्री विक्रम चौहान को फोन किया और पूरी स्थिति बताई। मंत्री जी ने कहा कि वे शाम को बाजार में आ जाएंगे। जब वे आए, तो थाने का माहौल पूरी तरह बदल गया। मंत्री जी ने एसएओ और दरोगा पांडे को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि कानून सबके लिए बराबर है। लेकिन जैसे ही मंत्री जी बाजार से वापस जा रहे थे, दरोगा पांडे ने उन्हें बाइक रोककर अपमानित किया और थप्पड़ मार दिया। मंत्री जी ने भी जवाब दिया, और दोनों के बीच झड़प हो गई।

नेहा ने अरविंद शर्मा नाम के एक इंस्पेक्टर की मदद ली, जो बाजार में कैमरे से सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा था। उन्होंने सबूत जुटाए और डीजीपी के पास शिकायत की। डीजीपी ने तुरंत कार्रवाई करते हुए दरोगा पांडे और एसएओ को सस्पेंड कर दिया।
कहानी का अंत इस बात पर होता है कि नेहा और विक्रम ने मिलकर भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कानून की रक्षा के लिए साहस और सही सबूत दोनों जरूरी हैं, और न्याय पाने के लिए कभी हार नहीं माननी चाहिए।
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