कभी-कभी जब अपने ही अपने नहीं रहते तो इंसान के रगरग में सिर्फ दर्द पलता है। जब बेटा मां-बाप की ममता को भूलकर बस अपनी पत्नी की बातों में आकर रोज-रोज अपने ही मांबाप को तड़पाता है तो वो घाव कभी बाहर नहीं दिखते। लेकिन अंदर से इंसान हर रोज थोड़ा-थोड़ा टूटता चला जाता है और जब यह दर्द हद से गुजर जाता है तो कभी-कभी वही मां वही बाप कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसकी कीमत पूरी दुनिया को समझने में वक्त लग जाता है। दोस्तों, यह सच्ची कहानी दिल को झकझोर देने वाली है और आज के बेटे बहुओं के लिए एक आईना भी है। पूरी कहानी जानने के लिए वीडियो को आखिरी सेकंड तक जरूर
देखें। लेकिन उससे पहले वीडियो को लाइक करें। चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें। दोस्तों, उत्तराखंड के हरिद्वार शहर के एक घर में उस दिन सब बहुत खुश थे। बड़ी बहू रिया चाय की ट्रे सजाकर ला रही थी और छोटी बहू मेघा गरमागरम पकोड़े रखते हुए मुस्कुरा रही थी। दोनों के चेहरे पर बस एक ही खुशी थी। माम बाबूजी की मुस्कान। जब रिया ने चहकते हुए कहा माम बाबू जी गरमागरम नाश्ता तैयार है तो रामकिशोर जी ने हंसकर कहा अरे वाह तभी मैं सोचूं इतनी प्यारी खुशबू कहां से आ रही है राधा देवी प्यार से बोली बेटा सच में तुम दोनों ने
आज कमाल कर दिया मेघा ने चाय का कप बाबूजी के हाथ में रखते हुए मुस्कुरा कर कहा बाबूजी यह आपके लिए स्पेशल चाय अदरक इलायची वाली रामकिशोर जी ने चाय की चुस्की और आंखें बंद करते हुए बोले, वाह बेटी, यह तो जवानी की सुबह याद दिला दी। घर में हंसी, प्यार और सुकून का माहौल था। तभी बड़ा बेटा प्रदीप और छोटा बेटा नरेश भी आ गए। प्रदीप ने हंसकर कहा, आज तो बहुओं ने मोहब्बत ही घोल दी है। नरेश भी मुस्कुराते हुए बोला, माम बाबूजी, सच कहूं तो इस घर की सबसे बड़ी खुशी आप दोनों ही हो। सब खुश थे लेकिन शायद किस्मत ने उसी पल कोई और पन्ना पलटना तय कर लिया था। अचानक दरवाजे
पर दस्तक हुई। रिया ने दरवाजा खोला तो सामने मोहल्ले की ममता काकी खड़ी थी। आंखों में आंसू चेहरे पर थकान। रिया घबरा कर बोली अरे ममता काकी क्या हुआ? अंदर आइए ना। ममता काकी धीरे-धीरे अंदर आई। उनके कदमों में जैसे दर्द का बोझ लटक रहा था। राधा देवी और रामकिशोर जी भी तुरंत उठकर पास आ गए। ममता बहन यह क्या हाल बना रखा है आपने? ममता काकी की हिम्मत जैसे टूट ही गई। भाई साहब मकान मालिक आज फिर आया था। कह रहा था अगर आज किराया नहीं दिया तो घर खाली करवा देगा। आप तो जानते हो सोनू की नौकरी भी चली गई है। अब मैं पैसे कहां से लाऊं? राधा देवी ने तुरंत उन्हें सहारा
दिया। रो मत बहन सब ठीक होगा। भगवान सब देखता है। माहौल एक पल में भारी हो गया। हंसी थम सी गई थी। रामकिशोर जी ने प्रदीप की ओर देखा। बेटा यह लो चाबी। अंदर वाले लॉकर में एक पैकेट रखा है। वो ले आओ। प्रदीप बिना कुछ बोले चाबी लेकर अंदर चला गया। लेकिन जैसे ही उसने लॉकर खोला, उसकी आंखें चमक उठी। पैसों की गड्डियां, गहनों की चमक। प्रदीप कुछ पल के लिए चुपचाप खड़ा रह गया। उसके मन में एक सवाल घूमने लगा। इतने पैसे, इतने गहने। लेकिन अब बाबूजी हमेशा इतनी सादगी में क्यों जीते रहे? आखिर यह सब किसके लिए बचा कर रखा है इन्होंने? फिर धीरे से उसने वह पैकेट
निकाला और वापस आकर बाबूजी को थमा दिया। यह लीजिए बाबूजी। रामकिशोर जी ने पैकेट ममता काकी को पकड़ाते हुए कहा, जाओ बहन किराया भर दो। चिंता मत करो। ममता काकी रोती हुई उनका धन्यवाद करती हुई चली गई। लेकिन उस दिन प्रदीप के मन में कुछ टूट भी गया और कुछ जुड़ भी गया। शाम को जब प्रदीप ऑफिस के लिए निकला तो उसकी आंखों के सामने वही लॉकर बार-बार घूम रहा था। पैसों की चमक, गहनों की चमक उसके होठों पर एक सवाल अब भी ठहरा था। इतना सब कुछ होते हुए भी मां बाबूजी हमेशा खुद क्यों भूल जाते हैं? प्रदीप का मन बेचैन था। ऑफिस में बैठा भी
था तो उसकी नजरें बार-बार शून्य में खो जाती थी। दिमाग में बस वही पैसों की गड्डियां और लॉकर का दरवाजा घूम रहा था। घर लौटते वक्त उसने तय कर लिया था। अब मां बाबूजी की बेवकूफी को और नहीं सऊंगा। अब जो है वो हमारे लिए है। किसी और को देने का हक उन्हें नहीं। शाम को घर पहुंचते ही उसने रिया से धीरे से कहा। मुझे नरेश से बात करनी है। अभी रिया समझ चुकी थी कि प्रदीप के मन में कुछ चल रहा है। ठीक है चलो। दोनों सीधे नरेश के कमरे में पहुंचे। मेघा ने दरवाजा खोला। अरे दीदी क्या हुआ? रात में भी मिलने आ गई। रिया ने कहा छोटी मजाक छोड़। हमें तुझसे और नरेश से जरूरी
बात करनी है। नरेश भी मुस्कुराता हुआ बोला। क्या हुआ भैया? आज बड़े परेशान लग रहे हो। प्रदीप अंदर आया और सीधा कह दिया मां बाबूजी ममता काकी को हमारा पुराना घर देना चाहते हैं। मैंने खुद रिया से सुना है। नरेश थोड़ा चौका। हां भैया मेघा ने भी कुछ दिनों पहले बताया था। लेकिन क्या कर सकते हैं? मां बाबूजी का फैसला है। प्रदीप का गुस्सा जैसे अब उबल रहा था। छोटे तुझे पता भी है। आज बाबूजी ने ममता काकी को जो पैकेज दिया उसमें कितने पैसे थे? मैंने खुद देखे हैं ₹00 थे और वह लॉकर उसमें गहनों की ढेर सारी गड्डियां पड़ी है। पता नहीं उन्होंने कब और कैसे यह सब जोड़
लिया। लेकिन मुझे आज तक एक रुपया भी नहीं दिया। नरेश भी चौंक गया। इतना पैसा हां छोटे और सोचो वो मकान भी देने वाले हैं किसी और को। और जो घर और पैसे हमारे लिए संभाले थे वो यूं ही बांट देंगे। अगर हमने अब भी चुप रहे तो कल को हमारे पास कुछ नहीं बचेगा। रिया और मेघा ने भी चिंता से एक दूसरे को देखा। रिया बोली लेकिन भैया मां बाबूजी सीधे मना कर देंगे अगर हमने उन्हें रोकने की कोशिश की तो। प्रदीप बोला सीधे-सीधे कुछ नहीं कहना है। बात घुमा फिरा कर समझानी होगी। ऐसा बोलना होगा कि उन्हें खुद एहसास हो कि वो गलत कर रहे हैं। नरेश ने भी हामी भरी। ठीक है भैया।
मैं भी साथ हूं। अब चुप नहीं रहेंगे। अगले दिन सुबह रामकिशोर जी आंगन में बैठकर अखबार पढ़ रहे थे। राधा देवी तुलसी में पानी डाल रही थी। तभी प्रदीप और नरेश दोनों धीरे-धीरे चलकर उनके पास आए। पीछे से रिया और मेघा भी आ गई। माहौल में अजीब सी खामोशी थी। मां बाबूजी हमें आपसे कुछ जरूरी बात करनी है। प्रदीप ने धीमे स्वर में कहा। रामकिशोर जी ने अखबार मोड़ा। कहो बेटा क्या बात है? नरेश बोला पिताजी हम आपकी दरियादिली समझते हैं। लेकिन किसी की मदद करना सबकी सलाह से होना चाहिए। आप अकेले इतना बड़ा फैसला कैसे ले सकते हैं? रिया बोली मां आप ममता काकी को मकान दे
रही है। कल को कोई और आ जाएगा तो क्या तभी आप यूं ही घर बांध देंगी? रामकिशोर जी का चेहरा सख्त हो गया। उन्होंने अखबार एक तरफ रखा। तो तुम लोग चाहते हो कि हम किसी की मदद ना करें। पैसे पड़े रहे चाहे किसी का घर उजड़ जाए। प्रदीप बोला हम यह नहीं कह रहे बाबूजी लेकिन यह घर सिर्फ आपका नहीं है। यह हम सबका है। अगर आप यूं ही सब बांट देंगे तो हमारे लिए क्या बचेगा? राधा देवी की आंखें नम हो गई। बेटा तुम भी ऐसा सोचते हो। प्रदीप ने सिर झुका लिया। मां अब जमाना बदल गया है। भावनाओं से ज्यादा व्यवहारिकता जरूरी है। आपने तो हमें कभी
कुछ नहीं दिया लेकिन बाहर वालों के लिए सब कुछ दे रहे हैं। अब तो डर लगने लगा है कि आप हमारी छत भी किसी और को ना दे दे। रिया ने तंज कसा। सच में मां आज समझ में आया कि इस घर में हम सिर्फ रहने वाले हैं। मालिक तो आप ही हैं। मेघा ने भी झुझुलाते हुए कहा मां बाबूजी आपके इस फैसले से हमारा भरोसा टूट गया है। रामकिशोर जी की आंखें लाल हो गई। गुस्से में कांपती आवाज में बोले बहुत सुन लिया तुम लोगों की बातें। लानत है ऐसे बेटों पर जो पैसों के लिए अपने मां-बाप से लड़ते हैं। तुम्हें क्या याद है? किसने अपने हिस्से की रोटियां छोड़ी थी तुम्हारे लिए? किसने सर्दी में
अपना कंबल दिया था? किसने तुम्हारी किताबों के लिए खुद नए कपड़े नहीं खरीदे थे? आज जब हम बूढ़े हो गए तो हमारे फैसले भी बोझ लगने लगे हैं। तो सुन लो अब जाओ। निकल जाओ मेरे घर से। हमें तुम जैसे बेटों की कोई जरूरत नहीं है। उनकी आंखों में आंसू आ गए। राधा देवी दौड़ कर आई। गुस्सा मत कीजिए जी। आपकी तबीयत बिगड़ जाएगी। रामकिशोर जी सोफे पर बैठ गए। उन्होंने थकान भरे हाथों से सिर पकड़ लिया। जैसे जिंदगी की सबसे बड़ी हार उन्होंने आज देख ली हो। घर में सन्नाटा छा गया था। बेटे बहुए चुपचाप अपने कमरों में चले गए और उन्हें कोई पछतावा भी नहीं था। रात में
राधा देवी ने जैसे तैसे उन्हें सुला तो दिया। लेकिन उनके भीतर जो ज्वाला जल रही थी। वह अब चैन से सोने नहीं दे रही थी। रात के करीब 2:00 बजे राधा देवी उठी तो देखा। रामकिशोर जी बेचैनी से करवटें बदल रहे थे। पसीने से लथपथ थे। अचानक उन्होंने अपना सीना पकड़ लिया। राधा सीने में बहुत तेज दर्द हो रहा है। राधा देवी बदवास होकर चिल्लाई। सुनिए जी क्या हो रहा है आपको? नरेश प्रदीप जल्दी आओ। तेज आवाज सुनकर दोनों बेटे दौड़े। क्या हुआ मां? तुम्हारे बाबूजी को सीने में दर्द हो रहा है। प्रदीप ने तुरंत एंबुलेंस को फोन किया। दोनों बहुएं भी भाग कर आ गई। राधा देवी
बाबूजी का सिर अपनी गोद में रखे रोती जा रही थी। कुछ नहीं होगा आपको। उठिए जी। तभी एंबुलेंस आ गई। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर ने सिर्फ इतना कहा माफ कीजिए। बहुत देर हो चुकी है। बेटों की दुनिया जैसे उसी पल उजड़ गई थी। प्रदीप चीख पड़ा। बाबूजी नरेश भी रो रहा था। राधा देवी का दिल जैसे टूट कर बिखर गया था। वो बुरी तरह बिलख रही थी। नहीं जी आप ऐसे नहीं जा सकते। देखिए आपके बच्चे हैं। मैं हूं लेकिन अब कुछ बदल नहीं सकता था। घर जो कभी खुशियों से गूंजता था। आज बस सन्नाटे की चादर ओढ़े पड़ा था। रामकिशोर जी की चिता की आग तो बुझ चुकी
थी। लेकिन घर की दीवारों पर उनके शब्दों की गूंज अब भी बाकी थी। कई दिन बीत चुके थे। राधा देवी पूजा में लगी थी। लेकिन उनकी आंखें अब पहले जैसी मासूम नहीं रही। उनकी मुस्कान अब कहीं खो चुकी थी और उधर बेटों और बहू के मन में अब बस एक ही चीज घूम रही थी। लॉकर की चाबी। रिया ने धीरे से मेघा को पास बुलाया। छोटी इधर आ। देख मेरे पास क्या है? रिया ने अपनी मुट्ठी खोली। चमकती हुई लॉकर की वही चाबी उसके हाथ में थी। मेघा चौंक गई। दीदी यह तो बाबूजी के लॉकर की चाबी है। आपके पास कैसे आई? रिया ने हल्की मुस्कान दी। अरे वह सब छोड़ अब काम की बात सुन जो हम दोनों
चाहती थी वो मौका अब आ चुका है। तभी दोनों बहुएं राधा देवी के पास गई। उनके चेहरे पर नकली करोना। लेकिन आंखों में अपनी चालाकी साफ झलक रही थी। कई दिनों तक सब ऐसे ही चलता रहा। राधा देवी जैसे चुप हो गई थी। पूजा में ज्यादा वक्त देने लगी थी। कभी-कभी बस रामकिशोर जी की फोटो के सामने बैठकर चुपचाप रो लिया करती थी। एक दिन उन्होंने सोचा आज मंदिर जाऊंगी। बहुत दिनों से मन भारी है। अपनी अलमारी खोली। पर्स निकाला लेकिन चाबी नहीं दिखी। उन्होंने आवाज लगाई। मेघा बहूं। मेरे लॉकर की चाबी दिख रही है क्या? हमेशा पर्स में रखती थी। अब नहीं मिल रही। मेघा ने एक नजर
रिया की तरफ देखा। फिर बोलने ही वाली थी कि तभी रिया झट से अंदर आई। मां जी यह देखिए। बरामदे में गिरी मिली थी। मुझे नहीं पता था यह आपकी है। राधा देवी ने चाबी ले ली। एक पल के लिए उन्हें कुछ अजीब सा लगा। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। जब लॉकर खोला तो वह ठिटक गई। उनकी आंखें बस लॉकर के अंदर ही ठहर गई। लॉकर पूरी तरह खाली था। ना एक भी जेवर ना एक भी नोट। बस एक पुराना बीज का नोट पड़ा था। उनके हाथ कांप उठे। उनका दिल एक पल को जैसे थम गया। पीछे खड़ी दोनों बहुएं एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रही थी। वो मुस्कान राधा देवी की नजरों से छुप नहीं पाई थी। उन्होंने बिना
आंसू बहाए बस चुपचाप चाबी अपनी मुट्ठी में कसकर दबा ली। यह गहने और पैसे कहां गए? रिया झट से बोली हमें क्या पता मां जी हमने तो कुछ नहीं लिया मेघा तुरंत बोली मां जी शायद आपने कहीं और रख दिए होंगे आपकी उम्र हो गई है भूल गई होंगी राधा देवी का चेहरा सख्त हो गया मुझे सब याद है यही लॉकर था मैंने और तुम्हारे बाबूजी ने एक-एक पैसा जोड़ कर रखा था रिया हंसकर बोली शायद किसी काम वाली ने ले लिया होगा आप क्यों हमें शक की नजर से देख रही राधा देवी ने गुस्से में दरवाजा खोला और जोर से चिल्लाई। प्रदीप नरेश जरा इधर आओ। दोनों बेटे कमरे में आ गए जैसे मां ने किसी
छोटे-मोटे काम के लिए बुलाया हो। क्या हुआ मां? प्रदीप ने पूछा तुम्हारे बाबूजी और मैंने जो गहने और पैसे इस लॉकर में रखे थे, वह सब गायब है। और यह चाबी तुम्हारी बीवी कह रही है कि बरामदे में मिली। प्रदीप ने झुंझुलाकर कहा मां हर बार हम पर ही शक क्यों करते हो? नरेश ने भी कहा मां आप शायद भूल गई होंगी। अब उम्र हो रही है ना राधा देवी की आंखों में आंसू आ गए। भूल गई अपने ही घर में अब मुझे यह भी याद रखने की जरूरत है कि कौन सी चीज कहां रखी थी। मेघा ने ताली बजाकर कहा मां जी अगर आपको हम पर भरोसा नहीं है तो ताले लगा कर रखिए।
हर बार हम पर ही इल्जाम मत लगाइए। रिया ने भी कहा आपके बाबूजी भी ममता काकी को घर दे गए। अब किसी ने पैसे ले लिए तो सीधा हम पर उंगली उठा रही है। नरेश ने झुझुलाकर कहा मां अब आप हर वक्त की शिकायतें करोगी तो हम कैसे सहेंगे? हम अब बच्चे नहीं है। राधा देवी की आंखें भर आई। लेकिन अब उनकी आंखों में आंसू नहीं थे। बस गुस्से का ताप था। तुम्हारे बाबूजी हमेशा कहते थे हमने घर बनाए। लेकिन शायद बेटे नहीं बना पाए। कमरे में सन्नाटा छा गया था। लेकिन अब इस घर में जैसे कुछ पल के लिए सन्नाटा भी थक चुका था। अब उस घर में दिन तो गुजरते थे।
लेकिन जैसे हर दीवार हर कोना अब राधा देवी से सवाल करने लगा था। क्या यही वह घर था? जिसमें कभी रामकिशोर जी का सपना बसा था? क्या यही वह बेटे थे जिनके लिए उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी सादगी में काट दी थी? घर अब बदल चुका था। बहुएं अब खुलेआम घर में पार्टियां करती। तेज म्यूजिक चलता, शराब की बोतलें टेबल पर बिखरी होती। वो रसोई जिसमें कभी हलवे की खुशबू से दिल महकता था। अब उसमें धुएं और नशे की गंध भर गई थी। एक शाम राधा देवी पूजा करके बाहर आई। और देखा मेघा शराब का गिलास हाथ में लेकर हंस रही थी। रिया भी चिप्स खाते हुए तेज म्यूजिक पर झूम रही थी। राधा देवी का
गुस्सा फट पड़ा। बहू यह घर है या कोई बाजार? क्या यही संस्कार है तुम्हारे? मेघा ठका मार कर बोली मां जी अब यह घर हमारा है। अब क्या चलेगा और क्या नहीं? यह हम तय करेंगे। आपको अगर तकलीफ है तो आप अपने कमरे में रहिए। तभी नरेश बाहर आया। क्या हो रहा है मां? क्यों परेशान कर रही हो सबको? अब हम बच्चे नहीं है जो आपके इशारों पर नाचे। राधा देवी ने कांपती आवाज में कहा, तुम्हारी बीवी शराब पी रही है। यह घर अब बाजार बन चुका है। यही सिखाया था हमने। नरेश लड़खड़ाते हुए बोला, मां, अब बस कीजिए। हर वक्त की शिकायतें अब बर्दाश्त नहीं होती। और उसने गुस्से में
हाथ उठाया। हां, उठाया ही था। राधा देवी ने कांपती आंखों से उसकी तरफ देखा। मारो। रुक क्यों गए? यही देखना बाकी था। मेघा ने ताली बजाकर कहा, “वाह रे संस्कार। एक थप्पड़ से डर गई मां जी। अभी तो बहुत कुछ बाकी है। राधा देवी चुपचाप अपने कमरे में चली गई। लेकिन उनके चेहरे पर वो खामोशी थी जो किसी तूफान के पहले आती है। अगली सुबह राधा देवी अपने कमरे से निकली। चेहरे पर वह दृढ़ता थी। जो कभी रामकिशोर जी की आंखों में होती थी। वह सीधे स्टोर रूम में गई। एक पुराना टिन का डिब्बा निकाला जिसमें पुराने ताले और चाबियां पड़ी थी। उन्होंने धीरे-धीरे घर के हर कमरे का
मुआयना किया और फिर एक-एक करके सारे कमरों पर ताले जड़ दिए। रिया ने देखा तो चीख पड़ी। मां जी यह क्या कर रही है? आपने मेरा कमरा क्यों बंद किया? राधा देवी का चेहरा बिल्कुल शांत था। अब यह घर बाजार नहीं बनेगा। हूं। जिसको मंजूर है वह रहे वरना जा सकता है। मेघा भी चिल्लाई। मां जी आपको यह करने का कोई हक नहीं है। राधा देवी ने कहा हक तुम लोगों ने तो सब छीन ही लिया था। अब जो मैं कर रही हूं वो एक मां नहीं। एक मालिक कर रही है। बेटे सामने आ गए। मां यह क्या तमाशा कर रही हो? राधा देवी की आवाज में लोहे जैसी सख्ती थी। अब तक मैं मां थी। इसलिए सहती रही। अब सिर्फ
इस घर की मालकिन हूं और मालिक अपना घर ऐसे ही बचाता है। बेटे गुस्से में बोले यह घर हमारा है। अब आप अकेले फैसले नहीं ले सकती। राधा देवी ने उनकी आंखों में देखते हुए कहा, “तुम सबने इस घर को नर्क बना दिया है। मैंने कभी इस घर को तुम्हारे लिए जिया था। लेकिन अब जीने का तरीका बदल चुका है। इस घर में अब वही रहेगा जो इस घर की इज्जत करेगा। चाहे बेटा हो या किराएदार। और सुन लो यह घर अब मेरे नाम है और मैंने इसकी वसीयत सेवा सदन के नाम कर दी है। मेरी मौत के बाद यह घर किसी बेटे या बहू को नहीं मिलेगा। यहां सिर्फ बुजुर्ग और बेसहारा महिलाएं सुकून से रहेंगी। बेटे
हक्का बक्का रह गए। मां आप क्या कह रही है? राधा देवी की आवाज में आग थी। मैं वही कह रही हूं जो तुम सबने सुनने से मना कर रखा था। और रही बात पैसों की। अब मुझे किसी के रहमोकरम पर नहीं जीना है। राधा देवी घर से निकल गई। बेटे और बहुएं एक दूसरे का चेहरा देखते रह गए। जैसे उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो। कुछ घंटों बाद राधा देवी घर वापस आई। उनके साथ एक युवक और एक महिला भी थी। रमन बेटा यही वो कमरा है जिसके बारे में मैंने तुमसे बात की थी। अब से तुम और तुम्हारी पत्नी यहीं रहोगे। किराया हर महीने पहली तारीख को सीधे मुझे देना। इस घर में अब सब
बराबरी से रहेंगे। बेटा हो या किराएदार लेकिन अब किसी को मुफ्त की रोटी नहीं मिलेगी। रमन ने सिर झुका कर कहा मां जी। राधा देवी ने भगवान के मंदिर में जाकर घंटी बजाई। वही भजन गाने लगी जो कभी रामकिशोर जी के साथ सुबह की शुरुआत होती थी। प्रदीप और नरेश कमरे के बाहर खड़े बस मां को देखते रह गए। अब उनके पास ना घर था ना हक। अब वह सिर्फ किराएदार थे। नरेश मां के पास आकर बोला मां हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई। माफ कर दो मां। प्रदीप भी सिर झुका कर बोला। मां हम पत्नियों के कहने में आ गए थे। हमें समझ नहीं आया। राधा देवी ने बस इतना कहा। बेटा मां का दिल बहुत बड़ा
होता है लेकिन सबसे ऐसा भी नहीं होता। माफी कर दूं तो क्या वो पल लौटेंगे? क्या बाबूजी की बातें मिट जाएंगी? पछतावा वक्त पर हो तो जीवन बदल जाता है। लेकिन जब देर हो जाए तो सिर्फ निशान छोड़ जाता है। अब इस घर में रिश्ते किराएदारों की तरह ही रहेंगे। पास रहकर भी दूर बेटों की आंखों से आंसू बह रहे थे। लेकिन अब समय गुजर चुका था। भरोसा टूट चुका था और राधा देवी का दिल अनुभव की आग में तप कर अब पत्थर बन चुका था। अब बेटा बहू इस घर में रहते तो थे लेकिन हर महीने किराया देते थे उस मां को जिसे कभी बोझ समझ बैठे थे। कभी-कभी जब किसी का त्याग और प्यार वक्त पर समझ ना आ
पाए तो जिंदगी भी इंसान को उसकी कीमत वक्त से ही वसूल करवा देती है। दोस्तों अब आप बताइए अगर आप राधा देवी की जगह होते तो क्या आप भी यही फैसला लेते या माफ कर देते? कमेंट में जरूर बताइएगा और अगर कहानी पसंद आई हो तो वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल स्टोरी बाय बीके को सब्सक्राइब जरूर करें। मिलते हैं अगले वीडियो में। तब तक खुश रहिए, अपनों के साथ रहिए और रिश्तों की कीमत समझिए।
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