फुटपाथ पर सोते बुजुर्ग पर पुलिस ने चिल्लाया..लेकिन उसके एक कॉल से पूरी थाने की लाइन लग
लखनऊ शहर की एक हल्की ठंडी रात थी सड़कों पर ट्रैफिक कम हो चला था लेकिन पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ियों की आवाजें अब भी सुनाई दे रही थी एक पुराने पुलिस स्टेशन के ठीक सामने फुटपाथ पर एक दुबला पतला बुजुर्ग आदमी चादर ओढ़े लेटा था उसके पास ना बिस्तर था ना कोई सामान बस एक झोला एक पुराना मोबाइल और एक जोड़ी फटी हुई चप्पलें नाम था शिव शंकर चौधरी उम्र लगभग 75 साल झुर्रियों से भरा चेहरा लेकिन आंखों में आज भी वही तेज जो किसी जमाने में पूरे महकमे को सीधा कर दिया करता था लेकिन आज वह चुप था थका हुआ शायद बीमार या शायद कुछ सोच रहा था थोड़ी देर में एक
पुलिस जीप वहां से गुजरी उसमें से एक हेड कास्टेबल उतरा नाम था मनोज तिवारी वो बोला ओए उठो बाबा यह होटल नहीं है समझे चल चल कहीं और जाकर सो शिव शंकर ने धीरे से चादर हटाई आंखें खोली और बैठ गए उन्होंने कुछ नहीं कहा बस शांति से मनोज की ओर देखा मनोज झल्लाया क्या देख रहा है बहरा है क्या चल उठ वरना लॉकअप में डाल दूंगा वही चैन से सुना पास ही दो सिपाही और खड़े थे वो हंसने लगे लगता है कोई पगला बाबा है बड़े आराम से पड़ा था साहब के सामने शिव शंकर कुछ नहीं बोले उन्होंने बस अपनी चप्पल पहनी झोला उठाया और बड़े शांत स्वर में बोले तुम्हारी बात मान लेता हूं बेटा
लेकिन एक कॉल कर ले लूं मनोज ने व्यंग से कहा हां हां कर ले शाम को बुला ले लेकिन 2 मिनट में यहां से निकल जा शिव शंकर ने अपना पुराना मोबाइल निकाला नो जैसा बटन वाला फोन मिलाया और सिर्फ दो शब्द बोले समय हो गया है पुलिस स्टेशन नंबर 19 और फोन बंद कर मनोज हंसते हुए बोला क्या बाबा किसे बुला रहे हो स्वर्ग से कोई उतरने वाला है क्या लेकिन 5 मिनट के भीतर एक एसयूवी तेजी से रुकी फिर एक और गाड़ी फिर एक लाल बत्ती वाली इनोवा फिर सायरन अब तक हंस रहे सिपाही सन्न हो गए दो मिनट बाद पुलिस स्टेशन का पूरा स्टाफ बाहर खड़ा था एसपी डीएसपी क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर सब
पहुंचे और उन सबके बीच में एक नाम गूंजा सर हम माफी चाहते हैं आपको पहचान नहीं पाए मनोज तिवारी के हाथ से उसकी लाठी गिर चुकी थी वो कांपते हुए शिव शंकर चौधरी के पैरों में गिर पड़ा सर मुझे माफ कर दीजिए मुझे नहीं पता था आप पूरा पुलिस स्टेशन अब सन्न था जिस बुजुर्ग को सबने एक फालतू बेसहारा फुटपाथ पर सोने वाला आदमी समझा वह अब सर बन चुका था शिव शंकर चौधरी पूर्व डीजीपी बिहार पुलिस वो नाम जिसे सुनकर दशकों तक अपराधी भी थरथर कांपते थे अब वही आदमी थाने के बाहर बैठा था चप्पलों में झोले के साथ और जिन पुलिस वालों ने कुछ मिनट पहले
तक उसे अपमानित किया वह अब घुटनों के बल उसके सामने थे डीएसपी राजीव कुमार सबसे पहले आगे आए सर हमने आपको पहचाना नहीं इतनी साधारण वेशभूषा में यह हमारी चूक थी हमारी सोच की गलती थी शिव शंकर ने उसकी आंखों में देखा फिर धीरे से बोले यही तो मैं देखना चाहता था एसपी आरती सिंह ने झुककर कहा “सर क्या हम जान सकते हैं आपने यह सब क्यों किया?” शिव शंकर मुस्कुराए उनकी मुस्कान में गुस्सा नहीं था सिर्फ एक सवाल था क्या हमने इंसान को इंसान समझना बंद कर दिया है फ्लैशबैक शुरू होता है अब वापस वर्तमान में शिव शंकर बोले मैं कोई तमाशा देखने नहीं आया था मैं सिर्फ यह
देखना चाहता था क्या वर्दी पहनने वाला हर पुलिस वाला अब भी वही मूल मूल्य लेकर चल रहा है क्या अब सिर्फ पद देखकर सलाम किया जाता है उनकी आवाज धीमी थी लेकिन उसमें पत्थर काटने की ताकत थी तुम सब ने मेरा अपमान नहीं किया तुमने एक गरीब को एक इंसान को एक नागरिक को अपमानित किया और याद रखना हर बुजुर्ग भिखारी नहीं होता कुछ ऐसे होते हैं जो तुम्हारे पूरे विभाग को उठाकर खड़ा कर सकते हैं मनोज अब भी घुटनों पर था उसकी आंखों में आंसू थे सर मुझे माफ कर दीजिए मैं आपकी ट्रेनिंग में था तब नहीं पहचान पाया आज तो और भी अंधा हो गया शिव शंकर ने उसे देखा फिर पास आकर उसका
कंधा पकड़ कर उठाया सजा से ज्यादा जरूरी है सीख अगर तुम आज बदल जाओ तो यह मेरा सबसे बड़ा सम्मान होगा एसपी आरती ने कहा सर हम चाहते हैं कि आप विभाग के हर थाने में जाकर अपनी बात रखें ताकि यह गलती कोई और ना दोहराए शिव शंकर मुस्कुराए मैं फिर आऊंगा लेकिन बिना बताकर क्योंकि असली परीक्षा तब होती है जब तुम जानते नहीं कि कौन देख रहा है शिव शंकर चौधरी के शब्द सिर्फ थाने की चार दीवारों में नहीं गूंजे वह पुलिस वालों के मन में उतर चुके थे एसपी आरती डीएसपी राजीव और थाने के बाकी स्टाफ अब तक सिर्फ नियम रैंक और सैल्यूट में बंधे हुए थे लेकिन आज उन्होंने
इंसानियत को सिखाने वाले असली अफसर को देखा था जो बिना वर्दी के भी सबको झुका गया अगली सुबह पुलिस स्टेशन के बाहर एक छोटा बोर्ड लगाया गया मानव गरिमा दिवस हर महीने की पहली तारीख को इस दिन हर पुलिसकर्मी को बिना नाम पद और रैंक देखे आने वाले हर व्यक्ति से सम्मान और संवेदना से पेश आना अनिवार्य था और इस बदलाव की प्रेरणा बनी एक तस्वीर जिसमें शिव शंकर चौधरी फुटपाथ पर चादर ओढ़े सोए थे और नीचे लिखा था असली ताकत कभी शोर नहीं मचाती एक हफ्ते बाद पटना के पुलिस ट्रेनिंग अकादमी में एक विशेष सेशन हुआ सैकड़ों नए ट्रेनी पुलिसकर्मी बैठे थे और
मंच पर खड़े थे वही बुजुर्ग जो अब भी अपने पुराने पायजामे कुर्ते में थे शिव शंकर ने मंच से कहा वर्दी इज्जत दिला सकती है लेकिन इज्जत को बनाए रखने के लिए इंसानियत चाहिए अगर तुम्हारा सलाम सिर्फ ऊंची पोस्ट देखकर होता है तो याद रखो तुम सिर्फ वर्दी पहनने वाले बनोगे अवसर कभी नहीं पूरे हॉल में सन्नाटा था हर आंख सोच में डूबी थी पुलिस स्टेशन की दीवार पर एक और बोर्ड टंगा गया हर वह व्यक्ति जो दरवाजा खटखटाए उसे भिखारी नहीं नागरिक समझा जाए डीएसपी राजीव जिसने पहले ही इस बदलाव को अपनाया अब हर नई रपट से पहले एक सवाल पूछता था क्या हमने उसकी आवाज को
सुना एक ठंडी सुबह फिर वैसा ही दृश्य सामने आया एक बुजुर्ग अस्पताल के बाहर फटे कपड़ों में बैठा था भीड़ हंस रही थी कुछ लोग मोबाइल निकालकर वीडियो बना रहे थे एक ट्रेनी सिपाही पास गया चुपचाप झुका और पूछा बाबा कुछ चाहिए क्या अंदर चलें लोग चौंक गए बुजुर्ग ने उसकी पीठ थपथपाई अब उम्मीद जिंदा है बेटा उम्मीद जिंदा है कभी किसी की हालत देखकर उसे छोटा मत समझो क्योंकि कभी-कभी सबसे बड़ा आदमी सबसे सादगी भरे कपड़ों में आता है अगर यह कहानी आपको सच्चे सम्मान की अहमियत का एहसास दिला गई हो तो वीडियो को लाइक करें शेयर करें और चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट
में जरूर लिखें इंसानियत सबसे बड़ी वर्दी है
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