राम प्रसाद 62 साल का था। झुके कंधे, सफेद बाल और चेहरे पर गहरी झुर्रियां। उसने अपनी जिंदगी के पूरे 35 साल एक ही कंपनी में लगा दिए थे। सुबह से शाम तक मशीनों की आवाज, पसीने से भीगे कपड़े और मेहनत की थकान यही उसका संसार था। कारखाने में लोग उसे राम भैया कहते थे। सब उसे भरोसेमंद मानते। वह अक्सर अपने साथियों से कहता, बस अब पेंशन मिलनी शुरू हो जाएगी। उसी सहारे जिंदगी कट जाएगी। बेटा तू अब बड़ा आदमी बन गया है। मेरा सहारा वही है। लेकिन जिंदगी अक्सर वैसी नहीं निकलती जैसी इंसान सोचता है। राम प्रसाद का जीवन बहुत साधारण था।

सुबह मोहल्ले की चाय की दुकान पर बैठकर पुराने दोस्तों के साथ अदरक वाली चाय पीना और अखबार पढ़ना यही उसकी दिनचर्या थी। धोती और सादा कुर्ता, पैरों में पुरानी चप्पलें और कंधे पर एक चमड़े का झोला। यही उसकी पहचान थी। उसे सबसे ज्यादा सुकून अपने बेटे राहुल से था। राहुल 28 साल का था। एमबीए पास कर एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता था। अब उसकी जिंदगी में कार, ब्रांडेड कपड़े और वीकेंड पार्टियां थी। राम प्रसाद अक्सर गर्व से कहता मेरा बेटा वह सब कर रहा है जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। लेकिन घर के भीतर सब कुछ अलग था। राहुल की पत्नी निशा अमीर परिवार

से आई थी और हमेशा दिखावे वाली जिंदगी छहाती थी। वह अक्सर राहुल से कहती, “आपके पिताजी अब किसी काम के नहीं रहे।” रिटायर होकर बस यूं ही पड़े रहते हैं। उनकी कोई जरूरत नहीं है। राहुल भी कभी-कभी इन बातों में आकर कह देता, पापा, आपको अब समझना चाहिए जमाना बदल गया है। जिंदगी सिर्फ इमोशन से नहीं चलती। राम प्रसाद यह सब सुनकर मुस्कुराता और चुपचाप कह देता बेटा मैंने तो अपना खून पसीना तुम्हारी पढ़ाई पर खर्च कर दिया। अब तुम्हारी खुशी ही मेरी खुशी है। लेकिन बेटे को यह खुशी अब बोझ लगने लगी थी। दृश्य बेहद अलग था। एक तरफ राम प्रसाद अपनी सादगी में सुबह की

चाय और अखबार से संतुष्ट था। दूसरी ओर राहुल और निशा हाथों में महंगे कॉफी, मग लिए कार में घूमते और पार्टियों में जाते थे। पड़ोसी भी कहते राम प्रसाद का बेटा तो खूब तरक्की कर गया लेकिन बूढ़ा अब भी पुराने ढर्रे पर जी रहा है। राहुल को यह बातें चुभती थी। उसे लगता कि उसके पिता की सादगी उसकी आधुनिक जिंदगी पर दाग है। निशा भी यही कहती पापा का समय निकल गया है। वे सिर्फ बोझ है। कंपनी में उस दिन एक बड़ी मीटिंग बुलाई गई थी। मशीनों की आवाज थम गई और सारे कर्मचारी हॉल में इकट्ठे हो गए। राम प्रसाद सबसे आगे की कुर्सी पर बैठा था। मन में हल्की बेचैनी थी लेकिन उम्मीद

थी कि शायद उसकी मेहनत के लिए कोई सम्मान मिलेगा। मैनेजमेंट के बड़े अधिकारी मंच पर आए और ठंडी आवाज में बोले कंपनी को इस साल भारी नुकसान हुआ है। हमें खर्च कम करने होंगे। इसलिए आज से कई कर्मचारियों को रिटायर किया जा रहा है। इसमें एक नाम है राम प्रसाद। उनके कानों में यह शब्द हथौड़े की तरह गूंज गए। 35 साल की वफादारी एक मिनट में खत्म कर दी गई। कोई तालियां नहीं, कोई धन्यवाद नहीं। बस एक कागज का नोटिस और आदेश। अब आपको घर जाना होगा। राम प्रसाद का दिल बैठ गया। उसने खाली निगाहों से मैनेजमेंट को देखा। फिर अपने हाथ में उस रिटायरमेंट का कागज पकड़ा और चुपचाप बाहर

निकल आया। शाम को घर पहुंचा तो राहुल सोफे पर बैठा मोबाइल चला रहा था। उसने कागज बढ़ाते हुए कहा, बेटा आज कंपनी ने मुझे रिटायर कर दिया। अब घर पर रहूंगा। राहुल अचानक भड़क उठा। मतलब अब आप हमेशा हमारे ऊपर बोझ बने रहेंगे। पहले ही हमारी जिंदगी मुश्किल है। अब हमें आपकी देखभाल भी करनी होगी। रामप्रसाद ने कांपती आवाज में कहा, बेटा मैंने तो हमेशा सोचा था कि अब मैं तुम्हारे साथ रहकर सुकून से बुढ़ापा गुजारूंगा। लेकिन राहुल ने बीच में ही काट दिया। बस अब आप खुद को संभालिए। मैं और निशा आपको खिलाने पिलाने के लिए जिम्मेदार नहीं है।

राम प्रसाद ने बेटे की आंखों में देखा। वहां कोई प्यार नहीं था। बस गुस्सा और दूरी थी। उस रात 10:00 बजे तेज बारिश हो रही थी। बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक माहौल को और डरावना बना रही थी। अचानक राहुल ने अपने पिता का पुराना झोला उठाया और बाहर फेंक दिया। अब्बा आप ही कहते थे ना कि मर्द को अपना बोझ खुद उठाना चाहिए। अब आप भी वही कीजिए। यहां रहने की कोई जगह नहीं है। रामप्रसाद दरवाजे पर खड़े रहे। बारिश की बूंदे उनके चेहरे से बह रही थी। जैसे आसमान भी उनके साथ रो रहा हो। उन्होंने चुपचाप अपना झोला उठाया। सिर झुकाया और धीरे-धीरे सड़क पर चल पड़े।

बरसते पानी में उनके कदम भारी हो गए थे। राहगीर उन्हें देख तो रहे थे लेकिन कोई पास नहीं आया। कोई बोला यह तो वही पुराने राम प्रसाद हैं। शायद बेटे ने निकाल दिया। किसी ने ताना मारा। अब बूढ़े का क्या काम? सब बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं। रामप्रसाद का दिल टूट चुका था। पार्क की एक खाली बेंच पर जाकर बैठ गए। कपड़े पूरी तरह भीग चुके थे। थैले से पत्नी की पुरानी फोटो निकाली और कांपती आवाज में बोले देखो आज मैं अकेला हूं। जिस बेटे के लिए सब किया उसी ने घर से निकाल दिया। आंखों से आंसू झरझर बहते रहे। पेट भूखा था। दिल और भी ज्यादा खाली। उस रात उन्होंने कुछ नहीं

खाया। आसमान की ओर देखते हुए बस यही सोचा। अब मेरा कोई नहीं। सुबह का उजाला धीरे-धीरे शहर पर फैल रहा था। बारिश थम चुकी थी लेकिन सड़कें अब भी गीली थी। पार्क की उसी बेंच पर राम प्रसाद बैठे थे। उनके कपड़े अब भी गीले थे। आंखें सूझी हुई और चेहरा थका हुआ। पास से गुजरते लोग उन्हें देखकर नजरें फेर लेते। कुछ हंसकर फुसफुसाते। लगता है बूढ़ा रात भर यहीं पड़ा रहा। राम प्रसाद ने बस अपनी पत्नी की पुरानी फोटो सीने से लगाई और आह भर दी। तभी अचानक सड़क पर हलचल मच गई। काले रंग की एसयूवीस का लंबा काफिला उसी ओर बढ़ रहा था। गाड़ियों पर कंपनी के झंडे लगे थे।

मीडिया की वैन भी पीछेछे आ रही थी। लोग हैरान होकर रुक गए। यह कौन आ रहा है? इतनी बड़ी गाड़ियां जरूर कोई बड़ा आदमी होगा। गाड़ियां पार्क के बाहर रुक गई। सुरक्षाकर्मी तुरंत उतर कर चारों तरफ खड़े हो गए। मीडिया वाले माइक और कैमरे लेकर भागते हुए आगे आए। राम प्रसाद ने यह सब देखा। लेकिन उन्हें लगा शायद किसी मंत्री या बड़े अफसर का दौरा है। उन्होंने चुपचाप सिर झुका लिया। लेकिन तभी कंपनी के एक बड़े अफसर सीधे बेंच की ओर बढ़े। उनके पीछे बाकी अधिकारी भी थे। उन्होंने राम प्रसाद को देखा और पल भर के लिए रुक गए। फिर उनकी आंखों में चमक आ गई। सर हमें आप

ही की तलाश थी। भीड़ सन्न रह गई। पास खड़े लोग चौंक कर एक दूसरे को देखने लगे। क्या यह बूढ़े को सर कह रहे हैं? यह तो कल रात से पार्क की बेंच पर बैठे हैं। मीडिया कैमरों की फ्लैश लगातार चमक रही थी। सुरक्षाकर्मी तुरंत राम प्रसाद के चारों तरफ घेरा बनाकर खड़े हो गए। राम प्रसाद हैरानी से अफसर की ओर देखने लगे। मुझे लेकिन मैं तो बस एक रिटायर्ड कर्मचारी हूं। अफसर ने आदर से सिर झुकाया और कहा नहीं सर अब आप सिर्फ रिटायर्ड कर्मचारी नहीं। कंपनी के नए सीईओ आप ही हैं। कल रात बोर्ड ने फैसला लिया कि 35 साल की ईमानदारी और मेहनत का सम्मान करने का यही

सही तरीका है और इस फैसले की घोषणा हम सबको आपके सामने करनी थी। भीड़ में सनसनी फैल गई। क्या यह बूढ़ा अब सीईओ है। अरे यह तो वही राम प्रसाद है जिनको कल रिटायर कर दिया गया था। अब देखो किस्मत का खेल कल निकाल दिया। आज कुर्सी पर बिठा दिया। राम प्रसाद की आंखों में आंसू छलक आए। उनके दिल में कल रात का दर्द अब भी ताजा था। लेकिन आज किस्मत उन्हें उसी दर्द से उठाकर आसमान पर ले आई थी। इसी बीच मीडिया वालों ने लाइव रिपोर्ट शुरू कर दी। एक्स वजी इंडस्ट्रीज ने इतिहास रच दिया है। पहली बार किसी साधारण कर्मचारी को उसकी ईमानदारी और 35 साल की निष्ठा के लिए सीईओ

बनाया गया है। और वह शख्स है राम प्रसाद। पड़ोसियों के घरों में टीवी की आवाज गूंज रही थी। राहुल और निशा भी अपने ड्राइंग रूम में बैठे टीवी देख रहे थे। जैसे ही स्क्रीन पर राम प्रसाद का नाम और चेहरा आया दोनों के चेहरे पीले पड़ गए। निशा के हाथ से कॉफी का मग गिर पड़ा। ये ये तो आपके पापा हैं। राहुल का गला सूख गया। कल रात जिसे उसने घर से निकाल दिया था। वही आज पूरे शहर की खबर बन गया था। उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे अपनी करनी याद आने लगी और तभी उसे एहसास हुआ कि असली बोझ तो उसका लालच और अहंकार था। पिता नहीं। कंपनी के मुख्यालय के बाहर भीड़ जमा

हो चुकी थी। मीडिया के कैमरे चमक रहे थे। सुरक्षाकर्मी व्यवस्था संभाल रहे थे। हर कोई उस आदमी को देखने को बेताब था। जिसे कल तक एक साधारण कर्मचारी और एक उपेक्षित बूढ़ा समझा जा रहा था। और आज उसी को सीईओ की कुर्सी मिली थी। राम प्रसाद सफेद कुर्ता पायजामा पहनकर सीधा लेकिन विनम्र चाल में वहां पहुंचे। उनके कदम धीरे थे पर आंखों में गरिमा थी। जैसे ही उन्होंने दहलीज पर कदम रखा स्टाफ की तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। पत्रकारों ने माइक बढ़ाए। सर आपको कैसा लग रहा है? इतने साल मेहनत के बाद आज यह मुकाम क्या कहना चाहेंगे? राम प्रसाद रुके गहरी

सांस ली और बोले मैं वही राम प्रसाद हूं जिसे कल इस कंपनी ने रिटायर कर दिया था और वही जिसे अपने बेटे ने रात के अंधेरे में घर से बाहर निकाल दिया। लेकिन दोस्तों आज मैं यह कहना चाहता हूं कि इंसान की इज्जत उसके पद से नहीं उसकी नियत से बनती है। पैसा और कुर्सी किसी की नहीं होती लेकिन इंसानियत हमेशा साथ रहती है। उनकी बात सुनते ही पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। उसी समय भीड़ के पीछे से राहुल और निशा भागते हुए आए। राहुल के चेहरे पर ग्लानी थी। आंखें आंसुओं से भरी हुई। वह सीधा पिता के सामने आ गिरा और उनके पैर पकड़ कर रोने लगा। अब्बा मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे

बहुत बड़ी गलती हो गई। जिस पिता ने मेरी पढ़ाई पर अपनी पूरी जिंदगी लुटा दी उसी को मैंने कल रात बेघर कर दिया। मैं शर्मिंदा हूं। निशा भी सिर झुका कर रो रही थी। राम प्रसाद की आंखों में आंसू थे। लेकिन होठों पर हल्की मुस्कान आई। उन्होंने बेटे के सिर पर हाथ रखते हुए कहा। बेटा मैं तुम्हें सजा नहीं देता। लेकिन याद रखना मां-बाप कभी बोझ नहीं होते। वह तो नींव होते हैं। अगर नीव को गिरा दोगे तो घर कभी खड़ा नहीं रह पाएगा। भीड़ की आंखें नम हो गई। कुछ लोग सिसक रहे थे। कुछ ताली बजा रहे थे। फिर उन्होंने मंच से सबको संबोधित करते हुए कहा। मैं आज सीईओ बना हूं।

लेकिन इस कुर्सी की सबसे बड़ी ताकत मेरे वे 35 साल है जो मैंने मजदूर की तरह काम करते हुए बिताए और यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं हर उस इंसान का है जो ईमानदारी से अपने परिवार और समाज के लिए जीता है। तालियों की आवाज थमने का नाम नहीं ले रही थी। राहुल और निशा अब तक पिता के पैरों में गिरे थे। राम प्रसाद ने उन्हें उठाकर गले लगाया। लेकिन इस बार गले लगाना एक पिता का नहीं बल्कि एक गुरु का था जिसने अपने बेटे को जिंदगी का सबसे बड़ा सबक