दिल्ली शहर रात की चादर ओढ़े सो रहा था। रात के 12 बज रहे थे, और मूसलाधार बारिश हो रही थी। रवि, एक टैक्सी ड्राइवर, अपनी पुरानी टैक्सी को सड़क किनारे खड़ा करके उसी के अंदर आराम कर रहा था। वह अभी-अभी शहर के बाहर एक सवारी छोड़कर लौटा था और घर जाने का मन नहीं था।

उसका घर, एक गरीब बस्ती का छोटा सा कमरा, अब खाली था। माता-पिता गुजर चुके थे। इकलौती बहन नेहा की शादी हो चुकी थी। वह अक्सर देर रात तक टैक्सी चलाता, इसलिए नहीं कि उसे काम का लालच था, बल्कि इसलिए कि वह घर के अकेलेपन से डरता था। यह टैक्सी उसके पिता की विरासत थी, उसकी रोजी-रोटी और उसका इकलौता साथी।

“खट… खट… खट!”

अचानक खिड़की पर एक कमजोर लेकिन घबराई हुई दस्तक ने रवि की तंद्रा तोड़ी। उसने चौंककर देखा। बारिश के धुंधलके में एक साया था। एक लड़की, जिसके बाल बिखरे हुए थे, कपड़े अस्त-व्यस्त थे और चेहरे पर खौफ था।

लड़की हाथ जोड़कर दरवाजा खोलने का इशारा कर रही थी।

रवि एक पल के लिए हिचकिचाया। आधी रात, बारिश, एक अकेली खूबसूरत लड़की… कहीं यह कोई जाल तो नहीं? लेकिन फिर जब उसने लड़की की आँखों में बेबसी और डर देखा, तो उसका दिल पसीज गया। उसने पिछली सीट का दरवाजा खोल दिया।

लड़की तुरंत अंदर घुसी और डर के मारे फर्श पर ही दुबक गई।

“कहाँ जाना है, मैडम?” रवि ने पूछा।

“कहीं भी ले चलो! प्लीज… बस गाड़ी चलाओ! जल्दी!” लड़की की आवाज़ रोने में डूब गई थी।

जैसे ही रवि ने इंजन स्टार्ट किया, एक काले रंग की स्पोर्ट्स कार ने ज़ोर से हॉर्न बजाते हुए उसकी टैक्सी के आगे आकर रास्ता रोक दिया। दो हट्टे-कट्टे आदमी उतरे और रवि की खिड़की पर ज़ोर से हाथ मारने लगे।

“ए! दरवाज़ा खोल! तूने किसी लड़की को यहाँ से भागते हुए देखा है?”

रवि ने खुद को शांत रखने की कोशिश की। उसने महसूस किया कि पिछली सीट पर बैठी लड़की ने अपनी सांस रोक ली है।

“नहीं… नहीं साहब,” उसने कांपती आवाज़ में कहा। “मैं तो बस… यहाँ आराम कर रहा था।”

“धत् तेरे की! वह ज़रूर उस गली में भागी होगी। चल!” दोनों आदमी वापस अपनी कार में बैठे और तेज़ी से निकल गए।

रवि ने राहत की साँस ली। उसने पीछे मुड़कर लड़की से पूछना चाहा, लेकिन वह तब तक बेहोश हो चुकी थी।

अध्याय 2: इंसानियत का फैसला

रवि घबरा गया। अब वह क्या करे? उसे अस्पताल ले जाए? लेकिन अगर वे लोग वापस आ गए? वह लड़की कौन थी, क्या हुआ था, वह कुछ नहीं जानता था।

लड़की के मासूम, बेसुध चेहरे को देखकर रवि उसे अकेला नहीं छोड़ सका। “इसे अस्पताल में छोड़ना ठीक नहीं होगा। वे लोग इसे ढूँढ लेंगे,” उसने मन ही मन सोचा।

उसने फैसला किया – वह उसे अपने घर ले जाएगा। यही एकमात्र सुरक्षित जगह थी जो उसके दिमाग में आई।

उसने टैक्सी बस्ती की तंग गलियों की ओर मोड़ दी। रात के 1 बज रहे थे, सब सो रहे थे। उसने धीरे से लड़की को अपनी गोद में उठाया, उसे अपनी माँ की पुरानी शॉल से ढका और चुपके से अपने छोटे से घर में ले आया।

घर में एक ही कमरा था। उसने लड़की को अपने इकलौते बिस्तर पर लिटा दिया और खुद एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठकर रात भर उसकी रखवाली करता रहा।

सुबह जब रवि की आँख खुली, उसने देखा कि लड़की जाग चुकी है और डरी-सहमी नज़रों से उसे घूर रही है।

“मैं… मैं कहाँ हूँ? तुम कौन हो?” वह घबराकर चिल्लाई।

“डरिए मत! आप सुरक्षित हैं,” रवि ने उसे शांत करने की कोशिश की। “यह मेरा घर है। कल रात आप मेरी टैक्सी में बेहोश हो गई थीं, इसलिए मैं आपको यहाँ ले आया।”

उसने लड़की को एक कप गर्म चाय और कुछ बिस्किट दिए। “पहले आप यह पी लीजिए।”

लड़की ने उसे देखा, उसकी आँखों का डर धीरे-धीरे भरोसे में बदल रहा था। “शुक्रिया… तुमने मेरी जान बचाई।”

लड़की का नाम काव्या था। वह एक कॉल सेंटर में नाईट शिफ्ट करती थी। कल रात, बस स्टॉप पर इंतज़ार करते हुए, दो शराबी लड़कों ने उसे छेड़ा और ज़बरदस्ती कार में बिठाने की कोशिश की। वह किसी तरह वहाँ से भाग निकली।

“मेरे घरवाले परेशान हो रहे होंगे,” काव्या ने कहा। “मेरा पर्स, फोन सब वहीं गिर गया।”

“कोई बात नहीं, आप मेरे फोन से बात कर लीजिए,” रवि ने अपना पुराना सा फोन उसे दिया।

काव्या के घरवालों को सूचित करने के बाद, रवि उसे उसके घर छोड़ने गया। वह एक अच्छे इलाके में रहती थी, जो रवि की दुनिया से बिलकुल अलग था। काव्या के माता-पिता ने रवि का बहुत शुक्रिया अदा किया।

रवि अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लौट आया। लेकिन उस खूबसूरत, बहादुर लड़की का चेहरा बार-बार उसकी आँखों के सामने घूमने लगा। वह खुद पर हँसा: “तू बस एक गरीब टैक्सी वाला है, और वह एक राजकुमारी जैसी है। सपने देखना छोड़ दे।”

अध्याय 3: एक नई शुरुआत

कुछ दिनों बाद, जब रवि अपनी टैक्सी घर के बाहर खड़ी कर रहा था, उसने देखा कि काव्या अपने माता-पिता के साथ उसका इंतज़ार कर रही है।

“हम तुम्हारा शुक्रिया अदा करने आए हैं बेटा,” काव्या के पिता ने कहा, जो एक सज्जन सरकारी कर्मचारी थे। “अगर तुम न होते, तो पता नहीं हमारी बेटी का क्या होता।”

रवि झिझकते हुए उन्हें अंदर ले आया। काव्या मुस्कुराई और सीधे रसोई में चली गई। “मैं सबके लिए चाय बनाती हूँ।”

जब उसके माता-पिता रवि से बात कर रहे थे, काव्या रसोई में ऐसे काम कर रही थी जैसे वह उसका अपना घर हो।

रवि को पता चला कि काव्या आत्मनिर्भर बनना चाहती है, इसलिए परिवार के मना करने के बावजूद वह कॉल सेंटर में काम करती थी, लेकिन उस हादसे के बाद उसने नौकरी छोड़ दी थी।

 

“रवि, चीनी कहाँ रखी है?” काव्या ने रसोई से आवाज़ दी।

रवि अंदर गया तो देखा कि चीनी का डिब्बा पहले ही उसके हाथ में था।

“मिल गया,” वह शरारत से मुस्कुराई। “आप बैठिए, मैं लाती हूँ।”

उस मुस्कान ने रवि का दिल चुरा लिया।

उस दिन के बाद, काव्या अक्सर रवि के घर आने लगी, कभी माता-पिता के साथ, कभी अकेले। वह खाना लाती, घर साफ करने में मदद करती, और उस सूने घर को अपनी हँसी से भर देती।

एक शाम, जब वे साथ में खाना बना रहे थे, काव्या अचानक रुकी और रवि की तरफ मुड़ी।

रवि… मैं… मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ। क्या तुम मुझसे शादी करोगे?”

रवि के हाथ से सब्जी की कटोरी छूट गई। वह सन्न रह गया।

 

काव्या… तुम मज़ाक कर रही हो? मैं… मैं सिर्फ एक गरीब टैक्सी ड्राइवर हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है…”

“मुझे कुछ नहीं चाहिए!” काव्या ने उसका हाथ थाम लिया, उसकी आँखें दृढ़ थीं। “मुझे एक अच्छा, बहादुर और भरोसेमंद इंसान चाहिए। मुझे तुमसे उसी रात प्यार हो गया था जब तुमने मेरी मदद की थी। तुम मुझे एक अकेली, बेहोश लड़की को अपने घर लाए, लेकिन तुमने मुझे छुआ तक नहीं। वह इज़्ज़त… वह सम्मान मेरे लिए किसी भी दौलत से बढ़कर है।”

रवि की आँखों में आँसू आ गए। “लेकिन तुम्हारे माता-पिता…”

“वे तुम्हें बहुत पसंद करते हैं। वे बस मेरी खुशी चाहते हैं।”

अध्याय 4: सपनों का सफर

उनकी शादी सादगी से, लेकिन बहुत धूमधाम से हुई। काव्या रवि के उस छोटे से घर में रहने आ गई। पत्नी का साथ पाकर रवि को जैसे नए पंख लग गए। वह और ज़्यादा मेहनत करने लगा।

उसे पता था कि काव्या ने कंप्यूटर की डिग्री ली है। रवि ने अपनी सारी बचत लगाकर उसे एक पुराना लैपटॉप खरीद दिया।

“तुम वह करो जो तुम्हें पसंद है,” उसने कहा। “अपने हुनर को बर्बाद मत होने दो।”

काव्या ने घर से ही छोटे-मोटे डिजाइनिंग और प्रोग्रामिंग के प्रोजेक्ट लेने शुरू कर दिए। उसका काम इतना अच्छा था कि धीरे-धीरे बढ़ता गया। रवि हमेशा उसका साथ देता। एक छोटे से काम से शुरू होकर, उन्होंने उसे एक छोटी सॉफ्टवेयर कंपनी में बदल दिया।

कुछ साल बाद, रवि टैक्सी नहीं चला रहा था। वह उस कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर था और काव्या टेक्निकल हेड। वे एक बेहतर घर में शिफ्ट हो गए थे।

एक दिन, रवि को युवा उद्यमियों के एक बड़े सम्मलेन में मुख्य वक्ता के तौर पर बुलाया गया। जब उससे उसकी सफलता का राज पूछा गया, तो उसने मुस्कुराते हुए अपनी पत्नी की ओर देखा, जो दर्शकों में बैठी थी।

“मेरी सफलता एक तूफानी रात को शुरू हुई थी,” उसने कहा। “जब मैंने एक लड़की की जान बचाई, लेकिन असल में, उसी ने मेरी अकेली ज़िंदगी को बचाया था। उसने मुझ पर तब भरोसा किया जब मेरे पास कुछ भी नहीं था, और मुझे एक बेहतर इंसान बनने की वजह दी।”

उनकी कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गई, यह साबित करते हुए कि सच्चा प्यार कहीं भी, कभी भी मिल सकता है, और नेकी का फल हमेशा मीठा होता है।