क्या आपने कभी एक मां को अपने बेटे के सामने हाथ जोड़ते देखा है? वह मां जिसने अपनी कोख से जन्म दिया, जिसे चलना सिखाया, बोलना सिखाया। एक दिन उसी बेटे के आगे सिर्फ दो प्यार भरे शब्दों की भीख मांग रही थी। ना कोई गुनाह, ना कोई गलती, बस उम्र हो गई थी। बूढ़ी हो गई थी। फिर भी अपने बेटे के लिए गर्भवती बहू की सेवा करने गांव से आई थी। लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिससे मां बाप की दुनिया ही उजड़ गई। उन्होंने जो सुना वो एक जहर से भी ज्यादा खौफनाक था और उसी दिन उन्होंने फैसला लिया कि अब वे किसी को कुछ नहीं कहेंगे और चुपचाप हमेशा के लिए इस घर को छोड़ देंगे।
लेकिन कहानी यही खत्म नहीं होती। जो मांबाप एक दिन दो प्यार भरे शब्दों और खाने की थाली के लिए तरसते थे। वक्त ने ऐसी करवट ली, किस्मत ने ऐसा खेल खेला और भगवान की ऐसी लीला हुई जो शायद आजकल के समाज के बेटे बहू कभी सोच भी नहीं सकते क्योंकि यह सिर्फ एक कहानी नहीं है। यह एक सच्चाई है जो हर घर में छिपी होती है। अब आगे जो आप सुनने जा रहे हैं, वह वास्तव में आपको झकझोर कर रख देगा। तो कृपया इस वीडियो को आखिर तक जरूर सुनिए क्योंकि यह कहानी है उस मां की जिसकी आ से वक्त भी कांप उठा। लेकिन कहानी में आगे बढ़ने से पहले वीडियो पर लाइक करें। हमारे चैनल
स्टोरी बाय बीके को सब्सक्राइब करें और कमेंट में अपना और अपने शहर का नाम जरूर लिखें। यह सच्ची कहानी झारखंड के धनबाद की है। जहां एक घर के बरामदे में एक बूढ़ी मां बैठी थी। नाम था कमला देवी जी। चुपचाप दीवार की ओर देखती आंखें, कांपते हाथ और पास में रखी अपनी थाली जिसमें बस दो सूखी रोटियां थी। थोड़ा नमक और प्याज का टुकड़ा। उसी वक्त उनका बेटा विकास गुस्से से बाहर आया और बिना कुछ कहे उनकी थाली उनके हाथों से छीन लिया। कमला देवी जी हक्की बक्की रह गई। लेकिन उन्होंने गुस्सा नहीं किया। वो मां थी। बस धीमे से बोली बेटा जानवर भी अपने सामने से किसी की थाली
नहीं छीनते और मैं तो तेरी मां हूं। उनकी आंखों से आंसू ब निकले। क्या मैंने तुझे इसलिए पाला इतना बड़ा किया पढ़ाया लिखाया ताकि तू एक दिन अपनी मां को जाहिल और बोझ समझे? बेटा मुझे तीन दिन से बुखार है। कई बार कहा तुझसे कि डॉक्टर के पास ले चल या कोई दवा ही ला दे। लेकिन तूने तो मानो मुझे देखा ही नहीं। बहू से भी कहा लेकिन उसने तो मुझसे बात तक नहीं की। खाना नहीं दिया, दवा नहीं दी। आज थोड़ी तबीयत ठीक लगी तो बरामदे में बैठ गई। पर बहू ने बर्तन मांझने को कह दिया। जब मना किया तो ना जाने क्या शिकायत कर दी। तुझसे कि तू इस तरह मुझ पर बरस पड़ा। कमला देवी जी की
आंखों में सिर्फ ममता थी। और थाली की ओर देखती हुई धीमे से बोली यह खाना तो मैंने खुद लिया है बेटा बहुत थोड़ा है अगर खा लूंगी तो तेरा कुछ नहीं घटेगा अपनी बूढ़ी मां पर थोड़ी सी दया रख उसी वक्त पड़ोस से उनकी पुरानी सहेली शांता जी आ गई वे तेज कदमों से आई और सामने का दृश्य देखकर ठिठक गई विकास हाथ में थाली खड़ा था और कमला देवी जी झुकी आंखों से उसे देख रही थी जैसे कुछ कहे बिना भी सब कह रही हूं। विकास ने माहौल संभालते हुए बोला, मां आप तो नाराज हो जाती है। देखिए आपने जो सब्जी मंगाई थी ना वो ले आया हूं। और बताइए कैसी बनी है आज की सब्जी? इतना कहकर उसने शांता
जी को अंदर आने को कहा और खुद अपने कमरे में चला गया। शांता जी सब समझ रही थी। वे सिर्फ पड़ोसी नहीं बल्कि कमला देवी जी की छाया थी। जब भी उन्हें लगता कि कमला पर कोई जुल्म हो रहा है। वे बहाने से ही सही उनके घर आ जाया करती थी। असल में कमला देवी जी को शहर बुलाया गया था। जब विकास की पत्नी स्वरा की डिलीवरी होने वाली थी। कमला का पति भीष्मलाल जी गांव में ही रहते थे और बागवानी का काम देखते थे। उनके पास आम, अमरूद और मौसमी फलों का एक बड़ा बगीचा था। जिससे ठीक-ठाक आमदनी हो जाती थी। भीष्मलाल जी बेटे विकास की हर जरूरत पर पैसे भेजते रहते थे और विकास भी जब जैसे
चाहा बहाने बनाकर उनसे मदद मांगता रहा। कभी किराए का बहाना कभी दवा का कभी नौकरी छूटने का। लेकिन ना विकास को कभी अपने पिता की मेहनत का मान रहा और ना मां के त्याग का। उसे लगता मां-बाप का फर्ज है सब कुछ करना। फिर एक दिन ऐसा भी आया जब स्वरा ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया। कमला देवी जी मंदिर में दिया जला रही थी। जब खबर आई उन्होंने खुशी से कहा हमारे घर दीपक आया है। इसका नाम दीप ही रखेंगे। घर में रौनक छा गई। रंगोली बनी आंगन में दिए जले। मिठाइयां बंटी जैसे दिवाली आ गई हो। स्वरा ने भी सब देखकर मन ही मन खुशी महसूस की। लेकिन जब कमला जी ने पूछा बहू बताओ
तुम्हें स्वागत कैसा लगा? स्वरा ने नाक सिकोड़ते हुए कहा ठीक ही था लेकिन हमारे घर में तो इससे भी ज्यादा होता है। कमला जी का चेहरा जैसे बुझ गया। उन्होंने कुछ नहीं कहा और धीरे से रसोई में चली गई। थोड़ी देर बाद स्वरा बोली मम्मी जी अस्पताल का खाना तो बेसवाद था। आज कुछ मसालेदार बना दीजिए ना। कुछ चटपटा खाने का मन है। कमला जी बोली बहू अभी डिलीवरी के तुरंत बाद सादा खाना ही ठीक होता है। बच्चा भी तो दूध पीता है ना। चटपटा खाना ठीक नहीं रहेगा। लेकिन स्वरा हंस दी। अरे मम्मी जी आप तो गांव वाली हो। आपको क्या पता अब क्या खाना चाहिए। मैं जैसा कह रही
हूं वैसा ही बनाइए। वरना मैं विकास से कह दूंगी कि आप मेरा ख्याल नहीं रख रही हैं। कमला जी जानती थी। विकास बिना सच जाने बहू की हर बात मान लेता है। इसलिए उन्होंने चुपचाप बहू की पसंद का खाना बना दिया। उस दिन स्वरा ने जी भर कर खाया और उंगलियां चाटती रही। बोली मम्मी जी पेट तो भर गया लेकिन मन नहीं भरा लेकिन वही रात एक नई मुसीबत लेकर आई। दीप का रोना शुरू हो गया। बार-बार पोटी करने लगा और स्वरा को भी उल्टी दस्त शुरू हो गए। पेट में जलन, थकान, बेचैनी। अब उसे समझ आने लगा कि मसालेदार खाने से उसने गलती की। लेकिन अपनी गलती मानने के बजाय वो कमला देवी जी
पर ही भड़क गई। आपने धूप में बाल सफेद किए हैं क्या? मुझे ही चटपटा खिला दिया। मना भी कर सकती थी ना। कैसी मां है आप? बस गमवार हो एकदम। विकास को भी बहू ने भड़का दिया। मम्मी ने ध्यान नहीं रखा। आप कुछ बोलते क्यों नहीं? और विकास बिना कुछ समझे बिना एक बार मां की आंखों में देखे मां की थाली उठाकर छीन लाया। कमला देवी ने कुछ नहीं कहा। उनके चेहरे पर बस चुप्पी थी। वो चुप्पी जो एक मां तब ओढ़ लेती है जब उसे अपने ही बच्चे से तिरस्कार मिलता है। आंखों से आंसू बहते रहे। लेकिन मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। रात बीत गई। सुबह हुई
स्वरा ने जैसे ही आंखें खोली। उसने करवट बदलते हुए सिर पकड़ लिया। उसकी तबीयत और भी बिगड़ गई थी। उल्टियों से शरीर थका हुआ और बच्चा दीप गोद में आते ही फिर से रोने लगा। कमला देवी जी पास ही बैठी थी। उन्होंने बच्चे को गोद में लिया। उसकी पीठ सहलाई और फिर से धीरे-धीरे सुलाने की कोशिश करने लगी। उधर विकास अपने ऑफिस जाने की तैयारी में था। तभी फिर से उसी बात के लिए स्वरा चिलाई। मम्मी जी आप जानती थी कि मसालेदार खाना नुकसान करेगा। फिर भी आपने मुझे खिलाया। अब देखिए मेरी और बच्चे की हालत। विकास वहीं से सुन रहा था। उसने भी बिना कुछ पूछे झल्लाते हुए कहा। मां आपको
समझ नहीं आता क्या? बहू नई मां बनी है। उसका ख्याल रखना आपकी जिम्मेदारी थी। और आप उल्टा उसे ही बीमार कर दिया। कमला देवी जी सब सुनती रही। और बस एक ही बात कहती रही। बेटा मैंने वही बनाया जो तुम दोनों ने कहा। मुझे डर था कि अगर मना कर दूं तो तुम मुझ पर ही चिल्लाओगे। लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। उसी दिन दोपहर के वक्त गांव से एक गाड़ी आकर घर के सामने रुकी। भीष्मलाल जी कमला देवी के पति एक बड़ी बोरी और दो थैले लेकर भारीभरकम सामान के साथ उतरे। उनके चेहरे पर खुशी थी। पोते को पहली बार देखने की उमंग बेटे भू से मिलने की उम्मीद कमला देवी जी ने जब
उन्हें देखा तो उनकी आंखें भर आई आप आ गए भीष्मलाल जी मुस्कुराए हां कमला पोते की किलकारी सुने बिना रहा नहीं गया सोचा कुछ फल फ्रूट और गांव की बनी चीजें लेकर आ जाऊं विकास दरवाजे पर आया तो उसे पिता के हाथ में थैले और बोरी देखकर आंखें चमक उठी उसके लहजे में भी एकाएक नरमी आ गई। अरे पापा आप तो खुद आ गए। इतनी सारी चीजें लाने की क्या जरूरत थी? मम्मी तो कह रही थी कि आप आराम कर रहे हैं। अब सामान अंदर रखिए और मम्मी पापा के लिए चाय बनाइए। कमला देवी चुपचाप रसोई में चली गई। भीष्मलाल जी ने पास आकर पूछा। सब ठीक तो है ना कमला? तुम्हारा चेहरा बुझा बुझा लग
रहा है। तबीयत तो ठीक है। कमला देवी की आंखें फिर से भर आई। लेकिन उन्होंने सिर झुका लिया। कुछ नहीं बस थोड़ा बुखार था। अब ठीक हूं। लेकिन भीष्मलाल जी सब समझ गए थे। उन्होंने उनकी हथेली थामी और बोले कमला तुम आंखें झुका सकती हो पर सच नहीं छुपा सकती। क्या हुआ है यहां? सब साफ-साफ बताओ। कमला देवी जी फफक पड़ी। और फिर उन्होंने धीरे-धीरे बेटे बहू का सारा व्यवहार बता दिया। भीष्मलाल जी सुनते रहे और उनका चेहरा तमतमाता रहा। जब कमला देवी ने सब कह दिया तो उन्होंने गुस्से में आवाज उठाई। विकास स्वरा जरा इधर आइए। दोनों आ गए। भीष्मलाल जी गरजते
हुए बोले तुम दोनों कान खोलकर सुन लो। कमला तुम्हारी मां है। इस घर की लक्ष्मी है और जिस दिन तुमने इनका अपमान किया उस दिन तुमने अपनी ही नींव खोद ली। तुम जिस आलीशान मकान में रहते हो, उसकी एक-एक ईंट में हमारे खून पसीने की कमाई लगी है। और तुम हमसे ही यह कह रहे हो कि गांव के लोग गवार होते हैं। अरे जिस दिन तुम पैदा हुए थे, उस दिन इसी मां ने पूरे गांव में लड्डू बांटे थे। और आज तुम इसी मां को बर्तन मांझने को कह रहे हो। स्वरा ने झुकी नजरों से माफी मांगी। पापा जी, मम्मी जी, माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। भीष्मलाल जी बोले माफी मुझसे नहीं
कमला से मांगो अगर वह माफ कर दे तो समझो मैं भी कर दूंगा। दोनों कमला देवी के पैरों में गिर पड़े। कमला ने तुरंत ही दोनों को उठाया और गले लगा लिया। बच्चों मां कभी अपने बच्चों से ज्यादा देर नाराज नहीं रह सकती। बस अब और मत दुख देना। लग रहा था जैसे घर में शांति लौट आए हो। लेकिन नहीं। खैर अब सब ठीक लग रहा था। कमला देवी जी ने सोचा था कि अब शायद बहू बदल गई है। बेटे को भी गलती का एहसास हो गया है। लेकिन शायद यह उनकी ममता का भ्रम था। अगले ही दिन स्वरा रसोई में थी। कमला देवी जी ने मुस्कुराते हुए कहा। बहू चाय मैं बना देती हूं। तुम आराम करो। अब
तुम्हें धीरे-धीरे काम शुरू करना है। स्वरा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया। नहीं मम्मी जी आप पापा जी के पास बैठिए मैं बना देती हूं। कमला देवी जी को अच्छा लगा। वे चली गई भीष्म लाल जी के पास और बातें करने लगी। थोड़ी देर बाद भीष्म लाल जी बोले कमला जरा एक गिलास गर्म पानी लाओ। कुछ भारीपन सा लग रहा है। कमला देवी जी रसोई की ओर गई। उन्होंने देखा स्वरा चाय के कप में चम्मच चला रही थी। और वह किसी दवा जैसी चीज मिला रही थी। कमला देवी जी रुक गई। कुछ समझ नहीं आया। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। पानी लिया और वापस चली गई। चाय आई। दोनों ने चाय पी और फिर बस कुछ ही
मिनटों में उनके शरीर भारी होने लगे। पलकें झुकने लगी। और देखते ही देखते वे वही बेंच पर सो गए। शाम को विकास घर लौटा। जैसे ही अंदर आया देखा कि मां-बाप वही सोफे पर बेसुध पड़े हैं। घबरा गया मम्मी पापा क्या हुआ आपको? स्वरा बाहर आई और बोली पता नहीं जी कब से सोए हुए हैं। शायद थक गए होंगे। विकास ने उन्हें कमरे में सुलाया। लेकिन दोनों बस सोते ही रहे। रात बीत गई। सुबह होने तक दोनों को थोड़ा होश आया। लेकिन कुछ अजीब सा था। शरीर ढीला था। दिमाग सुस्त और जीभ पर भारीपन। कमला देवी जी को कुछ याद आया। वो आवाज, वो दवा सी कोई चीज, वो मिलाई गई चाय। और तभी जैसे ही
वह पानी लेने रसोई में गई। उन्होंने अपने बेटे और बहू को बात करते हुए सुना। स्वरा कह रही थी, अब यह दोनों किसी काम के नहीं रहे। एक बाय रख लेंगे। खाना बना लेगी, झाड़ू पोछा कर देगी। इतने पैसे इन दो बूढ़ों पर खर्च करने से अच्छा है किसी बाहर वाली को पैसा दे दिया जाए। विकास बोला पर उन्हें घर से कैसे निकाले? सब जान जाएंगे। लोग बातें बनाएंगे। स्वरा बोली घर से तो नहीं निकाल सकते। लेकिन इस दुनिया से तो जा सकते हैं ना। कमला देवी जी वहीं रुक गई। पैरों तले से जमीन खिसक गई। उन्होंने धीरे से मुंह पर हाथ रखा। सांसे तेज हो गई और लड़खड़ाते कदमों से अपने
कमरे में लौट आई। कुछ देर बाद जब होश आया तो उन्होंने भीष्मलाल जी को धीरे से बताया। भीष्मलाल चौंक गए लेकिन शांत रहकर बोले कमला हम अब एक पल भी इस घर में नहीं रुकेंगे। अभी रात को ही निकल चलते हैं और अपने गांव लौट चलते हैं। बिना कुछ कहे कमला ने धीरे से सिर हिला दिया। उनका सामान पहले से पैक था और रात के सन्नाटे में दोनों चुपचाप निकल पड़े। रास्ते में एक ऑटो वाला मिल गया। उसने बताया कि वह अपनी बेटी के घर सामान देने आया था। लेकिन ससुराल वालों ने ताने मार दिए और वह लौट रहा है। भीष्मलाल जी ने उसे कुछ ज्यादा किराया दिया। लेकिन उसने झुककर हाथ जोड़ते
हुए कहा, आपने पैसे नहीं दिए। आपने मुझे इज्जत दी। मेरी बीवी को दमा है और मैं बहुत मजबूरी में था। लेकिन आपने मुझे अपनी औलाद समझा। भगवान आपको खुश रखे। कमला देवी जी की आंखें नम हो गई। उन्होंने कहा बेटा जब अपने ही पराए हो जाए तो पराए ही सहारा बनते हैं। और जब सुबह हुई तो दोनों अपने गांव की बस में चढ़ चुके थे। गांव लौटने के बाद भीष्मलाल और कमला देवी ने खुद से वादा किया था। अब कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे। लेकिन वक्त ने उनके पक्के इरादों को भी झकझोर डाला। बगीचा अब उतना फल नहीं दे रहा था और शरीर उतनी मेहनत नहीं सहपा
रहा था। पैसों की तंगी थी लेकिन इज्जत बची थी और वही सबसे बड़ा धन था उनके पास। एक दिन शहर के बाहर एक छोटे से होटल के सामने बोर्ड देखा। वर्कर चाहिए तुरंत संपर्क करें। भीष्मलाल जी बोले कमला जी क्यों ना यहां काम मांग ले तुम तो बहुत अच्छा खाना बनाती हो और मैं हिसाब किताब संभाल लूंगा। कमला ने धीमे से हामी भर दी। वह भी जानती थी मांबाप को जब बच्चे त्याग दें तब रोटियां खुद कमानी पड़ती है। होटल मालिक राजू जी ने दोनों की आंखों में झांक कर इंसानियत देख ली और बिना सवाल किए उन्हें काम पर रख लिया। कुछ ही महीनों में होटल का चेहरा बदल गया। जहां पहले सन्नाटा था,
अब भीड़ थी। जहां पहले कमाई कम थी, अब रोज की गिनती भारी थी। राजू जी ने कहा, दादा जी, आप दोनों की वजह से होटल चल रहा है। क्यों ना अब एक और होटल खोलें आपके नाम पर? भीष्मलाल जी मुस्कुराए। नाम ही रखियो। मेहनत हमारी दोनों की है। तो यह हमारा होटल होगा। राजू जी ने हाथ जोड़ लिए। इसका नाम कमला भोजनालय होगा। और दुनिया देखेगी कि मांबाप को भुला देने वालों से बड़ा कोई गुनाहगार नहीं होता। कुछ ही समय में नया रेस्टोरेंट खुला। फूल बरसे लोग तालियां बजा रहे थे। पर कमला देवी जी की आंखें बस एक कोने की ओर देख रही थी। और उसी कोने में खड़ा था। विकास फटे कपड़े झुकी
निगाहें और बगल में स्वरा जिसकी आंखों में अब घमंड नहीं सिर्फ पछतावा था। और पीछे खड़ा दीप मासूम और डरा हुआ। अब उनके पास कुछ नहीं था। ना घर, ना गहने, ना जमीन, बस भूख, गलती और पछतावा। रात में जब कमला जी और भीष्मलाल जी गरीबों को खाना बांट रहे थे। तो उसी लाइन में खड़े थे। उनके अपने बेटे और बहू कमला जी के हाथ कांपे। लेकिन उन्होंने एक थाली भर दी। थाली आगे बढ़ाते हुए सिर्फ इतना कहा। खाइए। स्वरा ने कांपते हाथों से थाली ली और घुटनों पर गिर गई। मम्मी जी, पापा जी, हमने बहुत गलती की। अब सब खत्म हो गया है। लेकिन क्या आप हमें फिर से अपना सकते हैं? भीष्म लाल जी
की आवाज कांप रही थी। हमने तो कभी तुम्हें छोड़ा ही नहीं था। तुम ही थे जो हमें बीच रास्ते छोड़ गए थे। कमला जी चुप रही। उनकी आंखों में अब गुस्सा नहीं था। लेकिन भरोसा भी नहीं बचा था। क्योंकि जिस दिल को कई बार तोड़ा गया हो वह हर बार टूटने से डरता है। विकास कुछ कहना चाहता था लेकिन शब्द नहीं निकले। बस गर्दन झुकी रही और आंखें बरसती रही। बिना किसी जवाब के उनके बेटे बहू दोनों वहां से चले गए। लेकिन कुछ देर बाद उनका पोता दीप चुपचाप लौटा। धीरे-धीरे आया और कमला जी की के पास आकर बैठ गया और कमला देवी जी से बोला दादी क्या मैं आपके
पास रह सकता हूं? कमला जी ने उसे गले से लगा लिया। हां बेटा तू जहां चाहे वही हमारा घर है। दीप ने फिर धीमे से कहा दादी अब मैं कभी आपसे दूर नहीं जाऊंगा। और कमला जी की आंखों से आंसुओं की जगह सुकून टपकने लगा। भीष्मलाल ने खड़े होकर ईश्वर को देखा। और आंखें बंद कर ली। आज हमने सब कुछ पा लिया। हमारे पास सब कुछ है। रिश्ते, आदर और एक सच्चा पोता जो कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेगा। और उधर बेटा और बहू भीड़ से दूर एक कोने में बैठे चुपचाप रोते रहे। वो रोना अब किसी को बुलाने के लिए नहीं था। वो रोना सिर्फ इस पछतावे का था कि जिस मां-बाप को एक वक्त की रोटी तक नहीं दी।
आज उन्हीं के हाथ से खाना मांगना पड़ रहा है। दोस्तों मां-बाप को खो देना सबसे बड़ी गरीबी है। क्या आपने कभी किसी मां-बाप को अपने बच्चों से तिरस्कार सहते देखा है? क्या आपको लगता है वक्त हर जुल्म का हिसाब देता है? नीचे कमेंट करके जरूर बताइए और कहानी पसंद आई है तो वीडियो पर लाइक करें और हमारे चैनल स्टोरी बाय बीके को जरूर सब्सक्राइब करें। मिलते हैं अगले वीडियो में नई कहानी के साथ। राधे-राधे, जय हिंद।
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