टीचर पति के सामने झुक गई तलाकशुदा आईएएस पत्नी। वजह जानकर हर कोई हैरान रह गया। दोस्तों, यह सच्ची कहानी उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात की है। जहां सरकारी स्कूल का एक साधारण टीचर मनोज जिसकी पोस्टिंग फर्रूखाबाद जिले में थी। उसकी सबसे बड़ी संपत्ति, सच्चाई, सादगी और शांत स्वभाव था। और इसी सादगी ने एक बड़े सपने वाली लड़की आराध्या को उसकी जिंदगी से जोड़ दिया था। आराध्या यूपीएससी की तैयारी कर रही थी। मेंस निकाल चुकी थी। बस इंटरव्यू का इंतजार था। उसके माता पिता को मनोज इसलिए पसंद आया क्योंकि टीचर पति बेटी के सपनों को रोकेगा नहीं। उसे आगे बढ़ाएगा।

यह सोचकर शादी तय कर दी गई। शादी के बाद मनोज ने खुद को पति से ज्यादा एक सपनों का साथी साबित किया। वो सुबह चाय बनाता। आराध्या को पढ़ने बैठाता घर का सारा काम खुद करता ताकि आराध्या का ध्यान कभी भटके नहीं कभी कहता आरू तुम आईएएस बनोगी मैं तुम्हारे नाम से जाना जाऊंगा और उस पर हंसते हुए आराध्या कहती तुम्हारी वजह से ही बनूंगी मनोज लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था इंटरव्यू का दिन आया आराध्या ने पूरी तैयारी से हर सवाल का जवाब किया। मनोज बाहर बैठा। हर पल बस उसकी सफलता की दुआ कर रहा था। लेकिन जब रिजल्ट आया वो फेल थी। जिस लड़की की आंखों में

आईज बनने की चमक थी। उसकी आंखों में अचानक धुंधलापन उतर आया। समाज के दाने आराध्या के दिल में धीरे-धीरे जहर बनकर जमने लगे। शादी कर ली। दिमाग कहां लगेगा? पति टीचर है। भाग्य भी वही का होगा। और इंसान का मन जब टूटने लगता है तो वह दोष सबसे पहले अपने सबसे पास वाले को देता है। आराध्या बदलने लगी। मनोज की हर बात उसे चुभने लगी। कभी कहती तुम मनहूस हो मनोज। तुमसे शादी करके ही मेरा ध्यान भटका। कभी कहती अगर तुम मेरे सपनों का रास्ता नहीं बन सके तो कम से कम बाधा भी मत बनो। मनोज हर बार चुप रहता। वह जानता था यह उसकी पत्नी नहीं बोल

रही। यह उसकी असफलता का दर्द बोल रहा है। लेकिन दर्द भी एक हद तक सह जाता है। एक दिन आराध्या ने साफ कहा। मैं तलाक चाहती हूं। मुझे अपनी जिंदगी दोबारा शुरू करनी है। मनोज ने उसे बहुत देर तक देखा। आंखों में आंसू थे लेकिन होठों पर सिर्फ एक वाक्य खुश रहना यही मेरी दुआ है तुम्हारे लिए तलाक हो गया आराध्या शहर चली गई और मनोज वो अपनी टूटी हुई दुनिया में सिर्फ एक बात समझता रहा प्यार और त्याग में कभी शोर नहीं होता बस दर्द की धीमी गूंद होती है आखिरकार 3 साल बाद वही आराध्या आईएएस बन गई और किस्मत को देखिए उसकी पहली पोस्टिंग उसी जिले में हुई जहां

मनोज सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाता था। आराध्या जिस दिन नई-नई आईएएस के रूप में जिले में पहुंची उसके चेहरे पर वही तेज था। वही आत्मविश्वास वही ऊंची उड़ान का सपना लेकिन उसके दिल के किसी कोने में मनोज नाम का एक शांत सा धब्बा था। जिसे वह भूलना तो चाहती थी पर मिटा नहीं पा रही थी। जिला अधिकारी ने उसे सरकारी स्कूलों में शिक्षा सुधार अभियान की जिम्मेदारी सौंपी और उसी अभियान का पहला दौरा मनोज के स्कूल में होना था। जब गाड़ी स्कूल के गेट पर रुकी भीड़ में हलचल मच गई। बच्चे फुसफुसाने लगे। नई आईएस मैडम आई है। बहुत सख्त है सुना है। आराध्या

गाड़ी से उतरी। कड़क चाल तेज निगाहें। लेकिन दिल में अजीब सी घबराहट। भला यह किस्मत भी क्या खेल खेलती है। जिस आदमी से वह भागना चाहती थी। उसी तक रास्ते खुद उसे ले आए थे। स्कूल के मुख्य कमरे में मनोज ब्लैक बोर्ड पर गणित समझा रहा था। बच्चे उसके शब्दों को ऐसे पकड़ कर सुन रहे थे जैसे कोई पिता अपने बच्चों को जीवन के सबक दे रहा हो। कौन सा भाग यहां कठिन लग रहा है? मनोज ने झुककर एक बच्चे से पूछा। सर यह वाला बच्चे ने डरते हुए कहा। मनोज मुस्कुराया। डर नहीं। समझो गणित नहीं कोई भी मुश्किल। धीरे-धीरे आसान होती है और तभी कमरे के बाहर किसी ने धीमे से कहा

महोदया यही है मनोज सर पूरी क्लास पलट कर देख रही थी मनोज ने भी मुड़कर देखा दरवाजे पर आईएएस का बैज साफ साड़ी और 3 साल पहले छोड़ी गई पत्नी आराध्या खड़ी थी एक पल को मनोज जैसे पत्थर का हो गया चेहरा सख्त नहीं हुआ बस शांत हो जैसे खुद को भीतर से संभाल लिया हो। आराध्या ने कागजों में देखकर कहा, “आप मनोज कुमार?” स्कूल के वरिष्ठ शिक्षक। मनोज ने वही पुरानी विनम्र आवाज में कहा, “जी मैडम, यह मैडम शब्द आराध्या के दिल पर हथौड़े की तरह लगा। कभी वही मनोज उसे आरू कहता था। आज पद और दूरी दोनों। उनकी आवाज में उतर आए थे। निरीक्षण शुरू हुआ।

आराध्या हर फाइल, हर रजिस्टर, हर नोटबुक देख रही थी। बच्चे और स्टाफ आईएएस के सामने सधे हुए खड़े थे। लेकिन आराध्या का ध्यान फाइलों से ज्यादा मनोज के स्वभाव पर था। कितनी सहजता से वो बच्चों को संभाल रहा था। कितने प्यार से पढ़ा रहा था। एक बच्चे ने हिम्मत करके कहा मैडम मनोज सर हमारे हीरो हैं। अगर वह ना होते तो हम पढ़ ही नहीं पाते। आराध्या एक पल के लिए ठहर गई। बच्चे की आवाज में इतना भरोसा इतनी श्रद्धा वो भी उसके मनहूस पति के लिए। जांच के अंत में आराध्या ने पूछा। स्कूल का स्टाफ कम है। सुविधाएं भी खराब है। फिर भी आप शिकायत क्यों नहीं करते? मनोज ने

धीरे से कहा मैडम शिकायत करने से समय जाता है। बच्चों को पढ़ाने से भविष्य बनता है। इस एक वाक्य ने आराध्या के अंदर कुछ तोड़ दिया। वो बाहर चली गई। पर मनोज को पढ़ाते देख उसके मन में एक आवाज गूंज रही थी। क्या मैंने इसी आदमी को मनहूस कहा था? उस दिन रात को आयस बंगले में बैठे-बैठे आराध्या देर तक सोचती रही। बाहर से वह कड़क अफसर थी। पर भीतर एक टूटी हुई इंसान बनी बैठी थी। और शायद पहली बार उसका अहंकार उसकी सफलता से बड़ा नहीं था। वो खुद से कहने लगी जिस आदमी ने मेरी हर सुबह संभाली जिन्होंने मुझे हौसला दिया। मैंने उसी को मनहूस कह दिया। उसका दिल भारी हो

रहा था। सांसे बोझल थी। और मन पहली बार अपनी ही गलती के बोझ तले धीरे-धीरे टूटने लगा था। अगली सुबह जिले की सभागार में जिले के स्कूलों की समीक्षा बैठक थी। आराध्या सामने बैठी थी और मनोज उसी सभागार तीन चुपचाप नोट्स बना रहा था। उसने मनोज की तरफ देखा। एकदम सामान्य जैसे उसके जीवन में किसी आईएएस का नहीं किसी पुराने रिश्ते का नहीं बल्कि सिर्फ फर्ज और बच्चों का स्थान था। बैठक खत्म हुई। सभी स्टाफ बाहर निकल गए। मनोज भी लेकिन आराध्या के दिल ने उसे रोकने पर मजबूर कर दिया। मनोज एक मिनट। उसने धीमे स्वर में कहा। मनोज रुक गया। जी मैडम। आराध्या ने

बेहद औपचारिक लहजे में कहा, कल का निरीक्षण ठीक था। आप अच्छा काम कर रहे हैं। मनोज ने बस सिर झुका दिया। धन्यवाद मैडम। वो पल आराध्या को चुभ गया। कभी यह आदमी उसे हंसाकर समझाता था। आज वही आदमी सिर्फ एक सरकारी अफसर की तरह उसके सामने खड़ा था। अगले दिन आराध्या मनोज के स्कूल का बिना सूचना दौरा करने निकल पड़ी। स्कूल के बाहर कुछ महिलाएं बैठी थी। उन्होंने आराध्या को पहचान लिया। मैडम अंदर जाइए। मनोज बाबू बच्चों को क्लास के बाद भी ट्यूशन दे रहे हैं। वह भी बिना पैसे। एक महिला ने कहा बिना पैसे? आराध्या चौकी। दूसरी बोली जी मैडम। गई बच्चों के लिए तो

अपने पैसे से कॉपियां भी लाते हैं। बहुत नेक है। आराध्या अंदर गई। मनोज फर्श पर बैठकर चार बच्चों को पढ़ा रहा था। उनमें से एक बच्ची ने कहा, “सर, आप नहीं होंगे तो हम आगे कैसे बढ़ेंगे? मनोज मुस्कुराया। तुम आगे बढ़ोगी। तो मैं भी आगे बढ़ा समझूंगा। आराध्या के गले में कुछ अटक गया। यह वही मनोज था जिसे उसने मनहूज कहा था। क्लास खत्म हुई। बच्चे चले गए। मनोज उठने ही वाला था कि आराध्या आगे बढ़ी। आप यह सब क्यों करते हैं? उसकी आवाज में कठोरता नहीं। सिर्फ बेचैनी थी। मनोज ने शांत स्वर में कहा क्योंकि बच्चों को जरूरत है। मैडम मेरी कमाई कम है पर विश्वास बड़ा है कि

शिक्षा किसी की किस्मत बदल सकती है। आराध्या का गला रंध गया। वह चाहती थी मनोज कुछ तो बोले कुछ तो शिकायत करें कुछ तो कहे कि तुम गलत थी लेकिन मनोज के चेहरे पर एक भी सवाल नहीं था एक भी नाराजगी नहीं थी बस वही पुरानी सादगी वो चुपचाप बाहर चली गई उस दिन आए इस बंगले में सब कुछ मौजूद था सुविधाएं स्टाफ सुरक्षा लेकिन भीतर एक अजीब सा खालीपन था आरा आराध्या खुद को आईने में देखकर बोली मनोज की सादगी से मैं इतनी दूर कैसे चली गई मैंने उसे दोष क्यों दिया जबकि गलती मेरी अधीरता की थी आंखें भर आई वो पहली बार टूटी थी आईएएस बनने से नहीं एक अच्छे इंसान को खो देने से कुछ

दिनों बाद जिले में एक बड़ा कार्यक्रम था सर्वश्रेष्ठ शिक्षक सम्मान जिला अधिकारी ने कहा नई आईएएस मैडम निर्णय लेंगी। कौन शिक्षक सम्मान के योग्य है? नामों की सूची सामने थी। दर्जनों शिक्षक लेकिन आराध्या की आंखें बस एक नाम पर अटक गई। मनोज कुमार उसका हाथ कांप गया। दिल धड़कने लगा। यह निर्णय सिर्फ प्रशासनिक नहीं था। यह उसके टूटे हुए अतीत और वर्तमान के बीच की पहली कड़ी थी। उस रात आराध्या देर तक निर्णय नहीं ले पा रही थी। मनोज को सम्मान देना केवल एक पुरस्कार नहीं था। यह मानना था कि वह गलत थी। बहुत गलत। लेकिन सच से कब तक

भागा जा सकता है। उसने धीमे से फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए। उस एक हस्ताक्षर के साथ मानो आराध्या के दिल पर। 3 साल से जमा हुआ बोझ हल्का होने लगा। कागजों में यह बस एक सम्मान का निर्णय था। लेकिन उसकी आत्मा में यह एक स्वीकार था। हां, मैं गलत थी। कार्यक्रम का दिन आ गया। जिला मुख्यालय का बड़ा सभागार फूलों से सजाया गया था। हर तरफ शिक्षक, अधिकारी, बच्चे और मीडिया मौजूद थे। स्टेज पर आईएएस आराध्या मुख्य अतिथि थी। सफेद नेहरू जैकेट, हल्की साड़ी और चेहरे पर वह तेज जो एक अफसर की पहचान होता है। लेकिन भीतर एक तूफान गूंज रहा था। मंच संचालक ने घोषणा की। इस वर्ष

सर्वश्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार फर्रूखाबाद के सरकारी स्कूल के सम्मानित शिक्षक मनोज कुमार को दिया जा रहा है। हॉल तालियों से गूंज उठा। लेकिन तालियों की आवाज आराध्या के दिल की धड़कनों से कम तेज थी। मनोज शांत कदमों से स्टेज की ओर बढ़ रहे थे। सफेद साफ धुले कपड़े हाथ में फाइल और वही सादगी जो सालों पहले भी उनके पास थी। उनकी चाल में ना तो कोई घमंड था ना कोई उलाहना ही कोई अतीत की परछाई बस एक शिक्षक की गरिमा थी। जैसे सम्मान उनका हक था पर दावा कभी किया नहीं। स्टेज पर पहुंचकर मनोज ने हल्का सा सिर झुकाकर आराध्या को प्रणाम किया। आराध्या ने भी हाथ जोड़कर नमस्कार

किया। पर उसकी उंगलियां हल्के से कांप रही थी। मंच संचालक ने कहा मैडम आप सम्मान प्रदान करें। आराध्या ने ट्रॉफी उठाई। उसकी नजर पहली बार मनोज की आंखों से मिली। वही आंखें जो कभी उसे सुकून देती थी। जो कभी उसे उसके सपनों पर यकीन दिलाती थी। वही अब शांत थी। इतनी शांत कि उनमें शिकायत की एक लकीर भी नहीं थी। आराध्या ने ट्रॉफी मनोज को दी। मनोज ने धीरे से कहा। धन्यवाद मैडम। यह मैडम उसे भीतर तक चीर गया। उसने चाहा मनोज एक बार कह दे आरु लेकिन अब यह संभव नहीं था। पद, परिस्थितियां, समय सब कुछ बदल चुका था। तालियां थमते ही मनोज भाषण देने के लिए

आगे आए। माइक पकड़ा। हल्की मुस्कान दी और बोले शिक्षा सम्मान से नहीं। विश्वास से चलती है। मैंने जीवन में सीखा है कि अगर एक शिक्षक बच्चों पर भरोसा कर ले तो बच्चे अपना भविष्य खुद बना लेते हैं। मैं अपने छात्रों का आभारी हूं। क्योंकि उन्होंने मुझे शिक्षक नहीं एक अभिभावक बनाया है। हर कोई तालियां बजा रहा था। आईएएस, डीएम, विभाग के अफसर लेकिन आराध्या की आंखें नम हो गई। मनोज ने कहीं उसका नाम नहीं लिया। कहीं अतीत का जिक्र नहीं किया। वह आगे बढ़ चुका था। गर्व के साथ, सम्मान के साथ और वो मनोज नहीं। शायद खुद को ही खो चुकी थी।

कार्यक्रम खत्म हुआ। सब लोग बाहर जा रहे थे। लेकिन आराध्या को लगा। कहानी यूं ही खत्म नहीं हो सकती। मन के किसी कोने से आवाज आई। उसे रोक लो। कम से कम एक बार बात होनी चाहिए। वह तेजी से मंच के पीछे गई। मनोज अपनी फाइलें समेट रहे थे। आराध्या कुछ पल चुपचाप उन्हें देखती रही। फिर धीमे से कहा, मनोज एक बात कर सकती हूं? मनोज मुड़े जैसे यह आवाज पहचानी हो। लेकिन भावनाओं को चेहरे पर आने से रोक लिया गया हो। जी मैडम कहिए। आराध्या को यह मैडम एक दीवार की तरह लगा जिसे वह तोड़ना चाहती थी लेकिन हाथ कांप रहे थे। मनोज मैंने मैं गलत थी। उसकी आवाज टूट गई। मनोज कुछ पल

चुप रहे। फिर शांत स्वर में बोले। गलतियां इंसान से ही होती है। मैडम मैंने कभी किसी को दोष नहीं दिया। आराध्या की आंखें भर आई। मनोज मैंने तुम्हें मनहूस कहा। तुम्हें छोड़ दिया और तुमने कभी गुस्सा तक नहीं किया। मनोज ने हल्की मुस्कान दी। असफलता किसी को भी कड़वा बना सकती है। आप उस समय बहुत टूट चुकी थी। मैं कैसे आप पर गुस्सा हो सकता था? आराध्या फफक पड़ी। तुमने तुम्हें तो मुझसे नफरत होनी चाहिए थी। मनोज ने सिर हिलाया। नफरत बहुत भारी बोझ होता है आराध्या। और मैं इतना मजबूत कभी था ही नहीं कि नफरत उठा सकूं। मैंने बस जिंदगी को आगे बढ़ जाने दिया। यह पहली

बार था जब उसने मैडम नहीं कहा। उसने आराध्या कहा और यह शब्द उसकी टूटती हुई आत्मा को। जैसे थोड़ी राहत दे गया। आराध्या ने धीमी आवाज में कहा। क्या हमारे बीच? कुछ भी नहीं बचा। मनोज ने गहरी सांस ली। कुछ भी नहीं यह कहना ठीक नहीं होगा। हम दोनों के बीच एक समय था, प्यार था, सपने थे। लेकिन अब जिंदगी हमें अलग राहों पर ले आई है। आप आयज है। आपकी दुनिया बड़ी है। मैं एक शिक्षक हूं। मेरी दुनिया सरल है। पलकों से आंसू लुढ़क गया। आराध्या को महसूस हुआ। सफलता ने उसे ऊंचाई दी। लेकिन ऊंचाई ने उससे बहुत कुछ छीन लिया। फिर मनोज ने कहा आराध्या मैं आपको एक बात दिल

से कहना चाहता हूं। आप बहुत आगे बढ़ चुकी है। आपकी जिम्मेदारियां बढ़ी है। मैं नहीं चाहता कि मेरा अतीत आपकी आज की दुनिया पर बोझ बने। इसके बाद मनोज ने धीरे से कदम पीछे किया। सम्मान के साथ दूरी के साथ। लेकिन बिना किसी शिकायत के आपका भविष्य सुंदर है। उसे जिए। मैं अपनी दुनिया में खुश हूं। मनोज वहां से चले गए। आराध्या उन्हें जाते हुए देखती रह गई। उसके पैरों में जैसे जान ही नहीं बची थी। धड़कन तेज आंखें धुंधली और आत्मा पहली बार इतना भारी। वो बुदबुदाई। मनोज मैंने तुम्हें खो दिया। मैंने ही खो दिया। उसका दिल चिल्ला रहा था। ठहरो लेकिन होठों से आवाज नहीं

निकली क्योंकि कभी-कभी जिंदगी में कुछ रिश्ते वापस नहीं आते। वे बस दिल में एक कोमल जगह छोड़ जाते हैं और आराध्या ने उस शाम महसूस किया। आईएएस बनने से उसने दुनिया जीती। लेकिन मनोज को खोकर उसने खुद को हरा दिया। उस रात वह सोई नहीं। बस करवटें बदलती रही। आंसू तक थक कर सूख चुके थे। सुबह होते ही उसने एक फैसला लिया। वह मनोज से आखिरी बार दिल खोलकर बात करेगी। ना आईएएस की तरह, ना अफसर की तरह, बस एक इंसान की तरह, बस एक पत्नी की तरह जो गलती कर चुकी थी और सुधार का रास्ता ढूंढना चाहती थी। लेकिन किस्मत किसी की बात कब मानती है? अगली सुबह ऑफिस पहुंचते ही उसे

पता चला कि मनोज को एक दूरदराज गांव में अस्थाई रूप से ट्रांसफर कर दिया गया है। वही इलाका जहां शिक्षक नहीं जाते थे। कारण था वहां की शिक्षा व्यवस्था को सुधारना। किसी ने कहा यह सम्मान है। किसी ने कहा सजा है। लेकिन आराध्या जानती थी। यह पोस्टिंग उसे तोड़ देगी। उसका सीना जैसे धंजस गया। क्या वह फिर से मनोज को अपने से दूर होते हुए देखेगी? क्या उसकी गलती की कीमत मनोज को चुकानी पड़ेगी? तुरंत उसने गाड़ी निकाली और मनोज के घर पहुंची। दरवाजा आधा खुला था। सामान बंधा हुआ। कपड़े एक पुराने बैग में रखे हुए। दीवार पर बच्चों के बनाए। कुछ चित्र टंगे थे।

जिनमें से एक पर लिखा था। सर आप जहां जाएंगे हमारा प्यार साथ जाएगा। उसे देखते ही आराध्या की आंखें भर आई। वो कमरे के बीचोंबीच खड़ी होकर धीरे से बोली मनोज तुम जा रहे हो मनोज ने उसकी ओर देखा लेकिन चेहरे पर वो पुरानी सादगी अब थोड़ी थकान के साथ थी हां आराध्या आदेश है कर्तव्य निभाना है आराध्या उसकी आंखों में अपने लिए वही प्यार ढूंढ रही थी जो कभी हुआ करता था लेकिन वहां सिर्फ कर्तव्य था और एक लंबा गहरा प्यारा सन्नाटा। मनोज मैं तुमसे बात करना चाहती हूं। उसने हिम्मत करके कहा। मनोज ने सिर हिलाया। कहिए मनोज मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती। उसके शब्द

कांप रहे थे। तुम मेरे लिए सिर्फ अतीत नहीं। तुम मेरी जिंदगी हो। मैंने गलतियां की। बहुत की लेकिन अब मैं उनसे भागना नहीं चाहती। मनोज चुप रहा। आराध्या उसके पास आई और पहली बार आईएस का हर अहंकार उसके पैरों में टूट गया। मनोज मैं तुमसे माफी मांग रही हूं। सच में दिल से तुम मेरे लिए मनहूस नहीं थे। तुम तो मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा हिस्सा थे। मनोज की आंखें भर आई। लेकिन उसने खुद को संभाला। आरू मैं तुम्हारी माफी को ठुकरा नहीं सकता। माफी कोई बोझ नहीं। एक राहत होती है। लेकिन जिंदगी अब बहुत आगे निकल चुकी है। मैं नहीं चाहता कि मेरा वापस आना तुम्हारे

निर्णयों को उलझा दे। आराध्या ने मनोज का हाथ पकड़ लिया। उलझन मेरे भीतर थी। मनोज तुम्हें नहीं। तुम तो हमेशा मेरे साथ थे। जब मैं पढ़ती थी, जब मैं रोती थी, जब मैं गिरती थी और जब मैं टूट कर बिखर गई थी, तब भी तुमने मुझे दोष नहीं दिया। कृपया मुझे एक मौका दो ताकि मैं अपनी गलतियों को सुधार सकूं। मनोज ने उसकी ओर देखा। 3 साल की दूरी उसकी आंखों में भर आई। वह भी कमजोर पड़ रहा था। लेकिन डर भी था। क्या यह रिश्ता फिर टूटेगा? क्या फिर कोई साया इनके बीच आएगा? कुछ पल बाद। उसने धीरे से कहा, आरु तुम आईएस हो। तुम्हारी दुनिया बड़ी है। मैं एक छोटा सा शिक्षक हूं। मेरी

दुनिया बहुत सरल है। आराध्या ने उसके हाथ और कसकर थाम लिए। तो फिर मिलकर एक नई दुनिया बनाते हैं मनोज। सरल भी, सुंदर भी और सच्ची भी। उसके शब्दों में इतनी सच्चाई थी कि मनोज का दिल धीरे-धीरे पिघलने लगा। उसी समय बाहर से एक बच्चा दौड़ता हुआ आया। सर ट्रांसफर कैंसिल हो गया। ऊपर से नया आदेश आया है। आपको यहीं रहना है। मनोज चौका। क्या? लेकिन क्यों? बच्चा हंसते हुए बोला। कहते हैं मनोज सर जैसे शिक्षक मिलना मुश्किल है। उन्हें दूर नहीं भेजा जाएगा। मनोज ने कागज लिया। आराध्या ने भी पढ़ा। आदेश में साफ लिखा था। शिक्षण कार्य में

उत्कृष्ट योगदान के कारण श्री मनोज कुमार का तबादला स्थगित किया जाता है। मनोज ने बच्चा जाते ही आराध्या की ओर देखा। उसकी आंखों में अब डर नहीं था। बस एक गहरा मीठा अपनापन था। तुमने किया है ना? उसने पूछा। आराध्या मुस्कुराई। नहीं मनोज तुम्हारी अच्छाई ने किया है। मैंने सिर्फ सच को उसकी सही जगह दिलवाई है। मनोज के चेहरे पर पहली बार 3 साल बाद एक असली मुस्कान आई। आराध्या ने धीमे से कहा, मनोज क्या हम फिर से एक शुरुआत कर सकते हैं? इस बार मनोज ने मैडम नहीं कहा। उसने धीरे से आराध्या का हाथ थाम लिया और बोला हां आरु हम एक नई

शुरुआत करेंगे। इस बार डर नहीं होगा। गलतफहमी नहीं होगी और दूरी नहीं होगी। कुछ महीनों बाद दोनों की दोबारा शादी हुई। बहुत सरल बहुत सादगी भरी। लेकिन बेहद खूबसूरत। आईएसए दफ्तर के लोग आए। स्कूल के बच्चे आए। गांव की महिलाएं आई। हर कोई खुश था कि सच्चे प्यार ने एक लंबी लड़ाई के बाद अपना घर फिर से पा लिया। एक साल बाद उनके घर एक बेटी हुई। मनोज उसे गोद में लेकर कहता तुम्हारी मां आईएएस है। लेकिन तुम्हारे पिता बस एक शिक्षक नहीं। तुम दोनों का पहला विद्यार्थी भी है। आराध्या हंसकर कहती और मेरी दोनों दुनिया तुम और हमारी बेटी अब मेरे सपनों से भी ज्यादा

सुंदर है। आज मनोज फिर से बच्चों को पढ़ाता है। आराध्या जिले को संभालती है और शाम को दोनों अपनी नन्ही बेटी के साथ छत पर बैठकर चाय पीते हैं। किस्मत ने उन्हें दूर कर दिया था। लेकिन सच्चे प्यार ने फिर उन्हें मिला दिया और इस बार उनकी दुनिया टूटने नहीं वाली थी। क्योंकि दोनों ने सीख लिया था। अहंकार रिश्तों को तोड़ता है लेकिन सादगी और समझ उन्हें जोड़ देती है। दोस्तों रिश्ते टूटते नहीं। हमारे अहंकार से बिखर जाते हैं। अगर दिल साफ हो तो दूसरा मौका नई जिंदगी दे जाता है। लेकिन क्या आपको लगता है टूटे रिश्तों को? दूसरा मौका देना चाहिए या दूरी ही सही है? कमेंट

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