कभी-कभी जिंदगी इंसान को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहां से या तो रास्ते छूटते हैं या फिर इंसान टूट जाता है और उस दौराहे पर खड़ी थी पूजा एक जवान लड़की जो अपने बीमार पिता को अस्पताल लेकर आई थी माथे पर चिंता की लकीरें थी और आंखों में एक डर डर इस बात का कि कहीं कुछ देर ना हो जाए पिता सुरेश प्रसाद जो अब बिस्तर पर पड़े पड़े बस बेटी की आंखों में झांक रहे रहे थे। जैसे कह रहे हो बेटा जो बन पड़े करना मैं थक गया हूं। अब तेरी आंखों में ही उम्मीद बची है। पूजा ने कांपते कदमों से पर्ची कटवाई और जल्दी से पिता को लेकर

इमरजेंसी में भर्ती करवा दिया। थोड़ी देर बाद जांच पूरी होती है और फिर अस्पताल का सबसे बड़ा डॉक्टर जो उसी अस्पताल का मालिक भी था। उसने पूजा को अपने केबिन में बुलवाया। डॉक्टर की आंखें गंभीर थी और लहजा ऐसा जैसे एक बड़ा बोझ रखने जा रहे हो। देखिए आपके पिताजी की हालत बहुत नाजुक है। लिवर और किडनी दोनों खराब हो चुके हैं। अगर जल्द इलाज नहीं हुआ तो देर हो जाएगी। इलाज का खर्च लगभग ₹15 लाख आएगा। यह सुनते ही पूजा के चेहरे पर मानो बिजली गिर गई हो। उसने कांपते होठों से पूछा पर डॉक्टर साहब इतना पैसा इतनी जल्दी कहां से लाऊंगी मैं डॉक्टर ने कहा देखिए हमें रोज

ऐसे कई केस आते हैं आप तय कीजिए इलाज करवाना है या नहीं पूजा के कानों में अब कुछ सुनाई नहीं दे रहा था वो धीरे-धीरे बाहर आई अपने पिता की ओर देखा उनकी सांसे तेज थी और पूजा की रूह कांप रही थी पिता की आंखों में अब भी वही वही भरोसा था जो एक बाप को अपनी बेटी पर होता है। लेकिन पूजा के पास कुछ नहीं था। ना जमीन ना जेवर ना रिश्तेदार। सिर्फ कुछ अधूरे सपने और जिम्मेदारियों का पहाड़। वो सोच रही थी क्या इस बार भी एक बेटी हार जाएगी? क्या एक बेटी अपने बाप को नहीं बचा पाएगी? तभी एक वार्ड बॉय आया और बोला मैडम जूनियर डॉक्टर साहब ने आपको बुलाया है। वह आपसे

कुछ जरूरी बात करना चाहते हैं। पूजा भारी मन से जूनियर डॉक्टर के केबिन की ओर बढ़ी। केबिन खोला और सामने जो बैठा था जूनियर डॉक्टर आदित्य। एक जाना पहचाना चेहरा। लेकिन पूजा ने ध्यान नहीं दिया। डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, देखिए पूजा जी, मुझे पता है आप पैसों की व्यवस्था नहीं कर पा रही है। पर अगर आप चाहे तो मैं आपके पिताजी का इलाज कर सकता हूं। पूजा की आंखों में आशा की हल्की सी चमक आई। सच आप कर सकते हैं। डॉक्टर का चेहरा गंभीर हो गया। हां, बस इसके लिए आपको मेरे साथ आज शाम एक होटल में चलना होगा। बस एक रात और कोई आपसे सवाल नहीं करेगा। पूजा के चेहरे

पर अब रंग नहीं था। सिर्फ सन्नाटा था। उसकी आंखों से आंसू नहीं सवाल टपक रहे थे। आपने यह कैसे सोच लिया? मैं मजबूर हूं। बेबस हूं। लेकिन इतनी भी नहीं कि अपने पिता को बचाने के लिए खुद को गिरवी रख दूं। डॉक्टर आदित्य की आंखों में अजीब सी चमक थी। वो बोला मैं तुम्हें मजबूर नहीं कर रहा। यह तुम्हारा फैसला है। अगर चाहो तो जाओ। पर याद रखना अगर तुम्हारे पिताजी की जान चली गई तो तुम्हारा घमंड, तुम्हारा जमीर, तुम्हारी जिंदगी सब उसी के साथ खत्म हो जाएगा। पूजा वहां से निकली नहीं। उसके कदम वहीं रुक गए। कंधे ढीले पड़ गए। हाथ कांपने लगे। पिता की हर सांस उसे आवाज दे

रही थी। बेटी वो कुछ देर तक आंखें मूंद कर खड़ी रही। फिर धीरे से बोली, ठीक है, मैं चलूंगी आपके साथ। लेकिन मेरे पापा को बचा लीजिए। डॉक्टर आदित्य मुस्कुराया। कल सुबह गाड़ी तुम्हें लेने आएगी। होटल का नाम और जगह यह रही। पूजा ने कांपते हाथों से कागज लिया। पढ़ा भी नहीं। बस आंखें बंद कर ली। और मन ही मन बुदबुदाई। हे भगवान अगर यह मेरी परीक्षा है तो मुझे इतना मजबूत बनाना कि मैं खुद से नजरें मिला सकूं। अगले दिन सुबह का उजाला अभी पूरी तरह फैला भी नहीं था और पूजा की आंखों से नींद जैसे रूठ गई थी। वो खामोशी से बैठी थी। पिता अस्पताल

के बिस्तर पर थे और वो उनके चेहरे को देख रही थी। जैसे हर सांस गिन रही हो। जैसे सोच रही हो। अगर मैंने आज हार मान ली तो यह आंखें हमेशा के लिए बंद हो जाएंगी। भीतर एक तूफान चल रहा था। पसीने से भीगे माथे को वो बार-बार पोंछती लेकिन मन के अंदर जो बर्फ जमी थी वो नहीं पिघल रही थी। सुबह 10:00 बजे हॉस्पिटल की पार्किंग में एक महंगी एसयूवी आकर रुकती है। ड्राइवर बाहर आकर पूछता है। मैडम पूजा है क्या? पूजा कुछ नहीं कहती। बस एक नजर पिता पर डालती है। फिर अपने छोटे भाई बहन को हिदायत देती है। पापा का ध्यान रखना। मैं अभी आती हूं। ड्राइवर के साथ बैठते समय

दिल जोरजोर से धड़क रहा था। गाड़ी की खिड़की से बाहर देखती पूजा को हर मोड़, हर पेड़, हर साइन बोर्ड एक सवाल की तरह लग रहा था। क्या तुम सही कर रही हो? कुछ ही देर में गाड़ी शहर के एक बड़े होटल के सामने जाकर रुकती है। होटल के गेट पर रेड कारपेट बिछा था। सामने रिसेप्शन पर चमकते चेहरे और भीतर की चकाचौंध बिल्कुल अलग दुनिया लग रही थी। ड्राइवर उसे ऊपर एक कमरे तक ले जाता है। कमरा नंबर 804 एक आलीशान कमरा जहां अंदर पहले से ही डॉक्टर आदित्य बैठा था। आदित्य ने पूजा को देखा और मुस्कुराकर कहा, “मैं जानता हूं यह आसान नहीं था तुम्हारे लिए। लेकिन तुम आई।

यही बहुत बड़ी बात है। पूजा ने कुछ नहीं कहा। बस एक कोना देखा और जाकर वहां बैठ गई। हाथ कांप रहे थे। होठ सूख गए थे। कमरे की घड़ी की टिक टिक उसकी धड़कनों से टकरा रही थी। आदित्य ने एक कप चाय मंगवाई। चाय की ट्रेप पूजा के सामने रख दी। फिर बोला डरो मत। मैं पहले तुमसे कुछ जरूरी बात करना चाहता हूं। बिना किसी जबरदस्ती के। पूजा ने उसकी तरफ देखा। चेहरे पर घृणा, लाचारी और शंका तीनों एक साथ थे। आपने जो कहा था उसके बाद अब किस बात की बातें बची है? डॉक्टर आदित्य ने गहरी सांस ली। फिर धीरे से बोला पूजा मुझे आज भी वह लड़का याद है। करीब 8 साल पहले की बात है। उसे

सिर्फ इसलिए नीचा दिखाया गया था क्योंकि वह गरीब था। उसने बस इतना ही किया था कि एक अमीर लड़की से सच्चा प्यार कर बैठा था और उस दिन उस लड़के ने मन में ठान लिया था कि एक दिन वह इतना कुछ हासिल करेगा कि लोग उसे देखकर अफसोस करेंगे और शायद शर्मिंदा भी होंगे। पूजा की आंखें अब हैरान थी। उसने धीरे से पूछा तुम मुकेश डॉक्टर आदित्य मुस्कुराया। हां वही मुकेश जो पटना की गलियों में मजदूरी करता था। कोचिंग सेंटर के बाहर किताबें बेचता था और रात को होटल में झूठे बर्तन धोता था ताकि नीट की फीस भर सके। पूजा की आंखों से आंसू छलकने लगे। तो तुम बदला लेने आए हो? मुकेश धीरे

से बोला नहीं पूजा मैं तुम्हें नीचा दिखाने नहीं आया। मैं सिर्फ यह जानना चाहता था क्या वो लड़की जिसने कभी मुझे काबिल नहीं कहा था। वो अपने पिता को बचाने के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगा सकती है। पूजा का चेहरा लाल हो गया। वो फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं मजबूर थी मुकेश। बहुत मजबूर। अगर मेरे पापा को कुछ हो जाता तो मैं शून्य जीते जी मर जाती। मुकेश उसके पास आया। एक चादर उसके कांपते कंधों पर रखी और बोला मैं जानता हूं और इसीलिए मैंने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत नहीं किया। मैं बस तुम्हारी आंखों की सच्चाई देखना चाहता था और मैंने देख ली। अब मैं चाहता हूं कि

हम दोनों की जिंदगी एक नई शुरुआत करें। बिना नफरत बिना हिसाब सिर्फ भरोसे पर पूजा कुछ नहीं बोल सकी। बस चुपचाप उठी और कमरे से निकल गई। लेकिन उसके पीछे जो आंसू गिर रहे थे वह सिर्फ शर्म के नहीं वह उन एहसासों के थे जो सालों बाद किसी ने छू दिए थे। उस दिन होटल से लौटने के बाद पूजा एकदम खामोश हो गई थी। ना उसके चेहरे पर डर था। ना शर्म बस एक गहरी सोच। एक ऐसी चुप्पी जो उसके भीतर बहुत कुछ कह रही थी। उसकी आंखें अब भी भीगी थी। लेकिन उन आंसुओं में अब वह बेब्स नहीं थी जो कल थी। अब उनमें एक सुकून था क्योंकि जिसने कभी उसे झुका हुआ देखा था। आज उसी ने उसे

टूटने से बचा लिया था। लगभग 10 दिन बाद हॉस्पिटल से उसके पिता को छुट्टी मिल गई। इलाज पूरा हो चुका था। और शरीर अब थोड़ा थोड़ा साथ देने लगा था। पूजा ने अस्पताल का बिल देखा। सिर्फ एक पंक्ति में लिखा था। पेड बाय डॉक्टर आदित्य मुकेश। पूजा ने बिल देखा। फिर अपने पापा को पापा उसकी आंखों में झांके और बोले बेटा यह तो लाखों का खर्च है। कहां से आई इतनी बड़ी रकम? पूजा कुछ देर चुप रही। फिर मुस्कुरा दी। पापा मेरे ऑफिस के मालिक ने मदद की। उन्होंने कहा, बेटी, पिता के इलाज में कोई कसर नहीं होनी चाहिए। पिता ने आंखें बंद कर ली। तेरे जैसे बच्चों के लिए ही तो

भगवान ऐसे लोग भेजता है बेटा। तू भाग्यशाली है। पूजा ने एक बार फिर उन झूठी बातों को सच की तरह कहा क्योंकि कभी-कभी सच्चाई से ज्यादा जरूरी होता है। किसी अपने का भरोसा बचा रहना। तीन दिन बीते एक सुबह जब पूजा घर के आंगन में कपड़े सुखा रही थी। तभी गली के बाहर एक काली चमचमाती कार आकर रुकी। पूजा ने दरवाजे से झांका। और जैसे ही कार का शीशा नीचे हुआ। दिल की धड़कन एक पल को थम गई। कार से उतरे वही डॉक्टर आदित्य पर आज मुकेश की तरह ना कि हॉस्पिटल के डॉक्टर की तरह उसके पीछे हाथ में मिठाई का डिब्बा था। चेहरे पर मुस्कान लेकिन आंखों में एक साफ इरादा। मुकेश ने

बिना हिचकिचाहट सीधे घर के अंदर कदम रखा। पूजा हैरान रह गई। मुकेश तुम यहां मुकेश ने उसके सवाल को अनसुना किया और सीधा उसके पापा के पास पहुंचा। नमस्ते चाचा जी। मैं डॉक्टर आदित्य पूजा के इलाज के समय से आपको जानता हूं। सुरेश प्रसाद जी ने उसे गौर से देखा। बेटा तुम ही हो जिसने मेरी जान बचाई? जी और अब मैं आपके सामने एक और फरियाद लेकर आया हूं। सभी की आंखें मुकेश पर टिक गई। उसने गहरी सांस ली और झुके हुए सिर से कहा। क्या आप अपनी बेटी की शादी मुझसे करने की इजाजत देंगे? यह सुनकर पूजा तो जैसे एकदम जड़ हो गई। पापा की आंखें भी

फटी की फटी रह गई। बेटा तू तो पढ़ा लिखा, डॉक्टर, अमीर और हम गरीब, छोटे लोग। हमारी बेटी के पास ना दहेज है ना रुतबा। मुकेश ने झट से कहा, “मुझे सिर्फ पूजा चाहिए चाचा जी। बाकी कुछ नहीं। और अगर आपने इजाजत दी तो मैं इसे दुनिया की सबसे खुशहाल लड़की बना दूंगा। पूजा अब भी अक थी। यह वही मुकेश था जिसे कभी उसने ठुकरा दिया था। जिसे जलील किया था और आज वो उसे जिंदगी भर के लिए अपनाना चाहता था। सुरेश जी की आंखों में आंसू थे। उन्होंने पूजा की तरफ देखा और धीरे से कहा, बेटी तू तैयार है। पूजा कुछ पल चुप रही। फिर उसने मुकेश की तरफ देखा। उसके चेहरे पर अब कोई

अहंकार नहीं था। सिर्फ एक इंसान था जिसने वक्त बदलने के बाद भी अपनी इंसानियत नहीं बदली थी। पूजा ने अपनी आंखों से हामी भर दी और शायद पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आई थी। उस दिन से घर में चूल्हा सिर्फ रोटियों के लिए नहीं सपनों के पकने के लिए भी जलने लगा। कुछ ही हफ्तों में सब कुछ बदल गया था। वह पूजा जो कभी किराए के मकान में अपने भाई बहनों के साथ संघर्षों की चादर ओढ़कर जी रही थी। आज वही पूजा लाल जोड़े में शर्म से झुकी पलकों में एक नई जिंदगी की दहलीज पर खड़ी थी। चारों तरफ शहनाइयों की गूंज थी। गांव की गलियों में मिठास घुली थी। किसी को

यकीन नहीं हो रहा था कि शहर का बड़ा डॉक्टर इस गरीब घर की बेटी को दुल्हन बना रहा है। लेकिन मुकेश के लिए यह कोई एहसान नहीं था। यह उसका फैसला था। जिसमें प्यार, इज्जत और उस लड़की की आंखों में देखी गई सच्चाई शामिल थी। शादी बिल्कुल सादगी से हुई। बिना किसी दिखावे, बिना किसी तामझाम के। बस घर के कुछ रिश्तेदार, गांव के लोग और ढेर सारी दुआएं। मुकेश के मां-बाप ने पूजा को उसी दिन बेटी मान लिया। क्योंकि जब मुकेश ने कहा था मुझे सिर्फ यह लड़की चाहिए। इसका अतीत नहीं इसका साथ चाहिए। तो फिर किसी और बात की गुंजाइश ही नहीं बची थी। शादी के बाद जब पहली बार पूजा अपने

ससुराल आई तो उसकी आंखों में डर नहीं था। वो अब किसी सवाल का जवाब देने नहीं आई थी। वो अब एक रिश्ते की शुरुआत करने आई थी। जिसे भरोसे और सम्मान की नींव पर टिकाया गया था। शादी के तीन दिन बाद एक शाम मुकेश और पूजा लिविंग रूम के सोफे पर बैठे थे। दोनों हाथों में चाय का कप लिए बाहर हल्कीहल्की बारिश हो रही थी और कमरे के अंदर एक अजीब सी खामोशी थी। फिर पूजा ने धीरे से कहा मुकेश मैं कुछ पूछूं? मुकेश ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा। पूछो ना। अब तो हग भी है और जगह भी। पूजा की आंखें थोड़ी झुकी हुई थी। उस दिन होटल में जब मैं आई थी तुमने सब कुछ कह दिया था। लेकिन

कुछ किया क्यों नहीं? यह सवाल पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी। शायद वह आज तक उस रात को अपनी सांसों में बंद करके रखे हुए थी। मुकेश ने चाय का कप मेज पर रखा। फिर पूजा के पास आया और एकदम पास बैठकर उसकी आंखों में झांकते हुए बोला क्योंकि उस दिन जब तुम कमरे में आई थी तो तुम्हारे चेहरे पर एक मजबूरी नहीं एक इज्जत की भीख थी। तुम्हारी आंखें मुझसे नहीं मिल रही थी। लेकिन तुम्हारे आंसू मेरे सीने में उतर रहे थे। मैंने देखा कि तुम सिर्फ एक बेटी नहीं एक ऐसी इंसान हो जो अपनी आत्मा बेचने को भी तैयार हो। सिर्फ अपने बाप को बचाने

के लिए। उसी वक्त मैंने सोच लिया था पूजा जिस लड़की में इतना हौसला हो उसे कभी टूटने नहीं दूंगा। मैं तुम्हें कभी किसी सौदे की तरह नहीं देख सकता था। मैं बस तुम्हें समझना चाहता था। तुम्हारे दिल को महसूस करना चाहता था। पूजा की आंखें अब भर आई थी। उसके हाथ कांप रहे थे और हंठ कांपते हुए बोले तो फिर तुमने मुझसे शादी क्यों की? मुकेश ने उसका हाथ थामा क्योंकि उस दिन जब तुम मेरे सामने आई थी तब मैंने अपने भीतर की नफरत को मरते देखा और एक इंसान को जंग लेते देखा जिसने हर हाल में अपनी अस्मिता को नहीं छोड़ा जिसने टूट कर भी झुकने से मना कर दिया। मुझे लगा अगर

मेरी जिंदगी में कोई हो सकता है तो वही लड़की जो वक्त से लड़ी खुद से लड़ी और फिर भी अपने पिता को बचाने के लिए होटल के दरवाजे तक चली आई। पूजा अब फूट-फूट कर रो रही थी। लेकिन इन आंसुओं में आज डर नहीं था। यह आंसू उस इंसान के लिए थे जिसने उसे उसके सबसे मुश्किल वक्त में टूटने नहीं दिया। मुकेश ने उसकी आंखों से आंसू पोंछे। अब कोई डर नहीं पूछा। अब हम एक दूसरे की ताकत है ना कोई मजबूरी ना कोई शर्त उस रात बारिश बाहर बरस रही थी और कमरे के भीतर एक रिश्ता आकार ले रहा था जो ना तो वक्त की मार से टूटा था ना नफरत की आग से जला था

बल्कि एक समझ एक इज्जत और एक नई शुरुआत से बन रहा था समय बीतता गया दिन महीने में बदला और महीने साल में मुकेश और पूजा की शादी शादी को आज पूरा एक साल हो चुका था। एक साल जिसमें ना कोई ताना था, ना कोई शिकवा, सिर्फ समझदारी, सुकून और रिश्तों की गहराई थी। अब पूजा सिर्फ किसी की बेटी, बहन या पत्नी नहीं थी। वो खुद के लिए जीने वाली एक मजबूत और समझदार औरत बन चुकी थी। जिसने रिश्तों के हर इम्तिहान को आंखों में आंखें डालकर झेला था। मुकेश ने वादा निभाया था। उसने पूजा के छोटे भाई को अच्छे कॉलेज में दाखिला दिलवाया। छोटी बहन को शहर के नामी स्कूल में पढ़ने भेजा और

सबसे बढ़कर सुरेश प्रसाद जी का इलाज, देखभाल और इज्जत से कोई समझौता नहीं होने दिया। अब सुरेश जी जब भी मंदिर से लौटते हैं तो मुकेश के सिर पर हाथ रखकर धीरे से कहते हैं बेटा अगर तू ना होता तो शायद मैं आज इस दुनिया में ना होता। यह सुनकर पूजा की आंखें भर आती है। क्योंकि वह जानती है मुकेश ने जो किया वह कोई आम इंसान नहीं कर सकता था। उसने बदला नहीं लिया बल्कि इंसानियत और प्यार से सब कुछ बदल दिया। एक शाम पूजा बालकनी में खड़ी थी। हाथ में गर्म चाय और आंखें आसमान की तरफ। उसकी निगाहें एक टुकड़ा बादल निहार रही थी। जैसे वह हर उस पल को सोच रही हो। जब उसकी

दुनिया बस बिखरने वाली थी। मुकेश पीछे से आया। धीरे से बोला आज सोचो में खोए हो पूजा मुस्कुरा दी बस कुछ पुरानी बातें याद आ गई अच्छा बताओ मुकेश बोला अगर उस दिन मैं तुम्हें होटल ना बुलाता सिर्फ पैसे भेज देता तभी तुम मुझसे शादी करती क्या पूजा ने उसकी तरफ देखा पता नहीं शायद नहीं शायद हां लेकिन एक बात जरूर जानती हूं मुकेश ने पूछा क्या कि उस दिन अगर तुमने मुझे छुआ होता तो शायद मैं टूट जाती लेकिन तुमने मुझे थामा और उसी दिन तुमने मेरे दिल में अपनी जगह बना ली थी। मुकेश चुप रहा उसकी आंखों में सच्चाई थी और पूजा की आंखों में सम्मान कभी-कभी किसी की ना किसी

की हद से ज्यादा असर छोड़ जाती है। अब वह दोनों एक साथ खड़े थे। कंधे से कंधा मिलाकर जिंदगी के हर मौसम को साथ काटने के लिए तैयार। कहते हैं ना प्यार वो नहीं जो सबको दिखे। प्यार वह होता है जो किसी की इज्जत बचा ले। तो दोस्तों यह थी पूजा और मुकेश की कहानी जहां बदले की आग को मोहब्बत के पानी ने बुझा दिया। जहां एक मजबूर लड़की को किसी ने सहारा नहीं सम्मान दिया। और जहां इंसानियत जीत गई। अब एक सवाल आपसे अगर आप पूजा की जगह होते तो क्या आप भी अपने पिता की जान बचाने के लिए वह कदम उठाते जो उसने उठाया? क्या किसी मजबूरी में लिया गया फैसला हमेशा गलत होता