दोस्तों जिंदगी में कुछ पल ऐसे आते हैं जो हमें अंदर तक हिला देते हैं। वह लम्हा जब हम भीड़ के बीच अचानक किसी ऐसे चेहरे से टकरा जाते हैं जिसे हम सालों पहले हमेशा के लिए खो चुके होते हैं और फिर जिंदगी जैसे ठहर सी जाती है। ऐसा ही एक पल आया संध्या शर्मा की जिंदगी में। वह अपने बेटे अपने माता-पिता और भाई जैसे राजीव के साथ एक शादी में पहुंची थी। माहौल चारों तरफ खुशी से भरा था। ढोलन गाड़ों की आवाज, हंसी ठोली करते लोग और खाने की मेजों पर लगी भीड़। संध्या भी बाकी मेहमानों की तरह खाने की मेज पर बैठी थी। बेटे को पास बिठाकर लेकिन तभी राजीव की नजर अचानक एक
वेटर पर पड़ी। वो वेटर लोगों को प्लेटें परोस रहा था। झुकाझुका सा चेहरे पर थकान और आंखों में एक गहरी उदासी। राजीव कुछ पल उसे देखता रहा। फिर धीरे से संध्या के कानों में फुसफुसया। दीदी जरा गौर से देखो। यह आदमी कहीं जाना बचाना तो नहीं लग रहा? संध्या ने सिर उठाकर देखा। और जैसे ही उसकी नजर उस वेटर पर पड़ी। उसका दिल एक पल को धड़कना भूल गया। थालियां उठाता हुआ वो शख्स कोई और नहीं बल्कि उसका पति अरुण था। वही अरुण जिसने उसे सालों पहले धोखा देकर बदनाम किया था और हमेशा के लिए छोड़ दिया था। संध्या का पूरा बदन कांप उठा। उसकी आंखों में आंसू तैर गए। जिस आदमी को
कभी उसने ऊंची कुर्सी पर बैठे देखा था। जो कभी घर का सहारा हुआ करता था। आज वही भीड़ में झुका हुआ। वेटर की वर्दी पहने थालियां उठा रहा था। अरुण ने भी उसे देख लिया। पहले उसने चेहरा घुमा लिया। लेकिन जब नजरें मिली तो उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उसके हाथ से ट्रे गिर गई। प्लेटें जमीन पर बिखर गई और पूरी भीड़ ने उसकी तरफ पलट कर देखा। संध्या का दिल जैसे टूट कर बिखर गया। वो बेटा राजीव को थमाकर धीरे-धीरे अरुण की तरफ बढ़ी। लोगों की नजरें उन दोनों पर टिक गई। लेकिन उस पल संध्या को किसी की परवाह नहीं थी। अरुण के सामने खड़ी होकर उसकी कापती आवाज निकली।
अरुण यह हालत क्यों है तुम्हारी? तुम यहां वेटर बनकर प्लेटें उठाने पर क्यों मजबूर हो गए? अरुण की आंखें झुक गई। उसके होंठ कांपने लगे और अगले ही पल वो फूट-फूट कर रो पड़ा। उसकी आवाज भर आ गई। संध्या मुझे मेरे गुनाहों की सजा मिल चुकी है। मैंने तुम्हें खो दिया। तुम्हारा भरोसा खो दिया और आज सब कुछ खो बैठा हूं। अब मेरे पास सिर्फ पछतावा है और आंसू है। संध्या का दिल बैठ गया। वो एक्टक अरुण को देखती रही जैसे उसके दिल में सवालों का तूफान उठ रहा हो। संध्या का दिल धड़क रहा था। आंखों में आंसू थे और मन में हजार सवाल। उसने अरुण
का कांपता हुआ हाथ पकड़ा और उसे धीरे से भीड़ से दूर ले गई। दोनों शादी हॉल के एक कोने में जाकर खड़े हो गए। चारों ओर शोरशराबा, संगीत और हंसी की गूंज थी। लेकिन उस पल संध्या और अरुण की दुनिया बिल्कुल खामोश हो चुकी थी। संध्या ने भारी आवाज में कहा, “अरुण, सच-सच बताओ। यह हालत क्यों है तुम्हारी? तुम तो कभी बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर काम करते थे। आज इस हाल में वेटर बनकर प्लेटें उठाने पर क्यों मजबूर हो गए? आखिर जिंदगी ने तुम्हें इस मोड़ पर कैसे ला दिया? अरुण ने सिर झुका लिया। उसकी आंखों से आंसू बहते रहे और हंठ कांपते रहे। काफी देर तक चुप रहा और फिर
टूटी हुई आवाज में बोला, संध्या मैं गुनहगार हूं। मैंने तुम्हारा भरोसा तोड़ा, तुम्हें बदनाम किया और उस औरत के लिए तुम्हें छोड़ दिया जो कभी मेरी मालकिन थी। कंपनी के मालिक की मौत के बाद मैंने उसकी विधवा पत्नी से रिश्ता बनाने की कोशिश की। सोचा कि उससे शादी करके मैं और बड़ा आदमी बन जाऊंगा। और इसी लालच में मैंने तुम्हें तलाक देने की चाल चली। इतना कहते ही अरुण वही दीवार से टिक कर बैठ गया। उसकी आंखें लाल थी और आवाज कांप रही थी। संध्या याद है जब कॉलेज में तुम्हें लोगों ने निकालने की धमकी दी थी। जब तुम्हारे ऊपर झूठे इल्जाम लगे थे। वो इल्जाम मैंने ही लगाए
थे। मैंने ही सबको कहा कि तुम्हारा रिश्ता उस लाइब्रेरी वाले राजीव से ठीक नहीं है क्योंकि मुझे तुमसे छुटकारा चाहिए था। मैं तुम्हें तोड़ना चाहता था ताकि तुम खुद ही मुझे छोड़ दो और मैं दूसरी शादी कर लूं। संध्या ने यह सुना तो उसका दिल छलनी हो गया। जिस बात को वह सालों से गलतफहमी मानती रही थी। आज उसी का सच उसके पति की जुबान से सुनकर उसका कलेजा चीर गया। उसकी आंखों से आंसू धार बनकर बह निकले। अरुण हिचकियों में रोता रहा और कहता गया लेकिन संध्या जब उसने सच्चाई जानी तो उसने साफ मना कर दिया। उसने कहा जो आदमी अपनी पत्नी और बच्चे का नहीं हो सका वो मेरा क्या
होगा और उसी दिन मुझे कंपनी से बाहर निकाल दिया गया। फिर पूरी दुनिया में मेरी बदनामी फैल गई। परिवार ने मुझे धक्के मारकर घर से निकाल दिया। दूसरी कंपनियां मुझे लेने से डरने लगी और मैं सड़क पर आ गया। उसने जमीन की तरफ देखा और बुरी तरह रोते हुए बोला पेट भरने के लिए छोटी-मोटी नौकरियां की। शराब का सहारा लिया और और भी बर्बाद हो गया। आज देख लो उसी लालच और गुनाह का नतीजा है कि मैं यहां लोगों की प्लेटें उठाने पर मजबूर हूं। संध्या का दिल उस पल पत्थर बन गया। आंखों में आंसू थे। लेकिन भीतर से गुस्सा और दर्द दोनों उमड़ रहे थे। जिस आदमी के लिए उसने सब कुछ
सहा, जिसने उसके बेटे से पिता का नाम छीन लिया, वही आदमी आज टूट कर खुद उसके सामने गिड़गिड़ा रहा था। संध्या की आंखें नम थी। दिल जैसे भारी पत्थर बन गया था। वो कुछ देर तक अरुण को देखती रही। लेकिन बिना कुछ कहे वहां से उठी और धीरे-धीरे अपने परिवार के पास लौट आई। उसके कदम डगमगा रहे थे। लेकिन चेहरे पर गहरी चुप्पी थी। राजीव ने देखते ही पूछ लिया, दीदी, वह आदमी कौन था? आपने उससे क्या बात की? आपकी आंखें बता रही है कि यह मामला साधारण नहीं है। संध्या ने बेटे को गोद में लिया, सीने से लगाया और आंसुओं को रोकने की कोशिश करती रही। लेकिन उसकी मजबूरी अब टूट चुकी थी।
उसने राजीव और अपने माता-पिता के सामने सारा सच उगल दिया। कैसे अरुण ने उसे धोखा दिया। कैसे झूठे इल्जाम लगाकर उसे बदनाम किया और कैसे आज उसी धोखे का फल भोगते हुए भीड़ में वेटर बनकर खड़ा था। राजीव ने गुस्से से मुट्ठी भी ली और उसकी आवाज भररा कर निकली। दीदी ऐसे आदमी को तो मुंह लगाना भी गुनाह है। जिसने आपको चरित्रहीन कहकर सबके सामने गिराया। जिसने आपके बेटे से पिता का हक छीन लिया। वो कभी बदल नहीं सकता। आज वह रो रहा है। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके पास कोई और सहारा नहीं बचा। आप उसके आंसुओं पर मत पिघलिए। वरना वो फिर वही गलती करेगा। संध्या चुपचाप सुनती रही।
लेकिन उसके दिल में कुछ और ही चल रहा था। उसके पिता ने धीरे से कहा, बेटी हमें कोई आपत्ति नहीं। अगर तू चाहे तो उसे अपना ले और अगर चाहे तो हमेशा के लिए नाता तोड़ दे। लेकिन सोच समझ कर फैसला करना। क्योंकि टूटा हुआ विश्वास दोबारा जोड़ना आसान नहीं होता। संध्या की मां ने भी आह भरते हुए कहा, बेटी एक बार जो धोखा देता है वह बार-बार दे सकता है। लेकिन मां होने के नाते मैं तेरे बेटे का चेहरा भी देख रही हूं। उसे पिता का सहारा चाहिए। वो बड़ा होकर पूछेगा तो तू क्या कहेगी? यह सुनते ही संध्या के दिल में हलचल मच गई। उसके कानों में बेटे की मासूम आवाज गूंज उठी।
मां पापा कहां है? सबके तो पापा होते हैं। मेरे क्यों नहीं? उस रात संध्या बिस्तर पर करवटें बदलती रही। उसकी आंखों से आंसू बहते रहे और मन में एक ही सवाल बार-बार उठता रहा। क्या अरुण को दोबारा मौका देना सही होगा? या यह सिर्फ मेरे बेटे की खातिर एक मजबूरी होगी? अगले दिन सुबह संध्या की आंखों में नींद तो आई थी। लेकिन चैन एक पल का भी नहीं था। पूरी रात उसने अपने अतीत और वर्तमान को एक-एक करके देखा था। जब उसने अरुण से शादी की थी तब उसका सपना यही था कि पति पत्नी मिलकर एक छोटा सा परिवार बनाएंगे। बेटे को अच्छे संस्कार देंगे और
जिंदगी भर एक दूसरे का सहारा बनेंगे। लेकिन उसी अरुण ने उसे जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा दिया था। उसके दिल में गुस्सा भी था, दर्द भी था और सबसे ज्यादा एक मां की मजबूरी थी। वह जानती थी कि बेटा अब बड़ा हो रहा है और जल्द ही पूछेगा मां मेरे पापा कहां है? सबके तो पापा होते हैं। मेरे क्यों नहीं? और यही सवाल संध्या को चैन से बैठने नहीं दे रहा था। आखिरकार उसने तय किया आज अरुण से आखिरी बार बात करनी ही होगी। अगर उसे माफ करना है तो एक शर्त पर। और अगर उसे छोड़ना है तो हमेशा के लिए। शाम होते-होते संध्या उसी जगह गई जहां अरुण काम कर रहा था। अरुण थकाहारा,
बिखरा हुआ, प्लेटें समेट रहा था। उसकी आंखें लाल थी। चेहरा ढला हुआ और कदम कांप रहे थे। वो जैसे खुद से भी लड़ रहा था। संध्या उसके सामने खड़ी हो गई। अरुण ने उसे देखा और जैसे ही आंखें मिली, उसकी हिम्मत टूट गई। वो काती आवाज में बोला संध्या मैं जानता हूं कि मुझे देखने लायक भी नहीं हूं। लेकिन तुम्हारी आंखों में अब भी वही सवाल देख रहा हूं। और शायद आज मुझे सच-सच सब बताना ही होगा। संध्या ने गहरी सांस ली और कहा अरुण मैं सच जान चुकी हूं। तुमने मुझे बदनाम किया। झूठे इल्जाम लगाए और अपने लालच में मुझे और बेटे को छोड़ दिया। लेकिन आज मैं यह जानना चाहती हूं कि
क्या तुम सच में पछता रहे हो या सिर्फ मजबूरी में आंसू बहा रहे हो। अरुण की आंखों से आंसू फिर छलक पड़े। वो वही जमीन पर बैठ गया और सिर पकड़ कर रोने लगा। हिचकियों के बीच बोला, संध्या मैं जानता हूं मैंने गुनाह किया। मैंने तुम्हें पत्नी नहीं एक बोझ समझा। मैंने लालच में आकर तुम्हारे चरित्र पर सवाल उठाए ताकि लोग तुम्हें ही दोषी माने और मैं आसानी से तुम्हें छोड़ सकूं। लेकिन जब उस औरत ने जिससे मैं शादी करना चाहता था मुझे ठुकरा दिया। तब समझ आया कि मैंने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है उसने मुझे कहा अरुण जो आदमी अपनी बीवी और बच्चे का नहीं हो
सका वो मेरा क्या होगा? और उसी दिन मैं सब खो बैठा। नौकरी चली गई। इस मिट्टी में मिल गई और मेरा परिवार भी मुझे धक्के मारकर घर से निकाल चुका है। मैंने शराब में खुद को डुबोना चाहा लेकिन वहां भी मुझे राहत नहीं मिली। आज मैं सिर्फ एक टूटा हुआ बिखरा हुआ आदमी हूं। जिसके पास ना पैसा है, ना घर, ना अपनापन। बस पछतावा है। और एक सवाल है। क्या मैं फिर कभी अपने बेटे का पिता कहलाने लायक हो पाऊंगा? संध्या का दिल कांप गया। उसके सामने वही आदमी था जिसने कभी उसे बदनाम करके रुलाया था। लेकिन आज वह खुद आंसुओं में डूबा हुआ था। वह सोच रही थी क्या यह पछतावा असली है या यह भी
उसकी मजबूरी का एक नाटक है? उसने कांपती आवाज में कहा, अरुध अगर मैं तुम्हें एक मौका दूं तो क्या तुम यकीन दिला सकते हो कि दोबारा कभी मुझे धोखा नहीं दोगे? क्या तुम सिर्फ अपने बेटे की खातिर ही सही? लेकिन इस रिश्ते को निभा सकोगे या फिर कुछ समय बाद वही गलती दोहराओगे। अरुण ने जमीन से सिर उठाया। उसकी आंखें आंसुओं से भरी थी। लेकिन उनमें पहली बार सच्चाई की चमक थी। वो फूट-फूट कर बोला, संध्या मैं कसम खाता हूं। अब जिंदगी का हर पल सिर्फ तुम्हारे और अपने बेटे के लिए जिऊंगा। मैंने सब खोकर समझा है कि सबसे बड़ी दौलत पैसा नहीं बल्कि परिवार होता है। अगर तुम
मुझे अपनाओगी तो मैं इसे भगवान का दूसरा मौका मानूंगा और अगर तुम मुझे ठुकरा दोगी तो भी मैं यही सोच कर मरते दम तक जी लूंगा कि तुम कम से कम खुश तो हो। उस पल संध्या की आंखें भर आई। वो चुपचाप खड़ी रही। उसके दिल में जंग चल रही थी। एक तरफ धोखे की कड़वी यादें थी और दूसरी तरफ बेटे का भविष्य। क्या वह बेटे की खातिर इस आदमी को माफ कर दे या हमेशा के लिए नाता तोड़ दे? उसके मन में गूंज रहा था। एक पत्नी की तरह मैं इसे कभी माफ नहीं कर सकती। लेकिन एक मां की तरह शायद मुझे बेटे के लिए इसे एक और मौका देना पड़ेगा। संध्या चुपचाप खड़ी
थी। उसके सामने अरुण फूट-फूट कर रो रहा था। और उसके दिल में हजारों सवाल गूंज रहे थे। उसके जेहन में एक तरफ वो रातें थी जब अरुण देर से घर आता और बहाने बनाता। जब उसने खुद पर झूठे इल्जाम सुने और पूरी दुनिया के सामने शर्मिंदगीगी झेली और दूसरी तरफ उसके बेटे की मासूम सूरत थी। वो बच्चा जो हर बार पूछता मां सबके पापा होते हैं। मेरे पापा कहां है? संध्या की आंखों में आंसू भर आए। उसने बेटे का चेहरा याद किया और मन में सोचा क्या मैं अपने बेटे को पिता का नाम दिए बिना बड़ा कर दूं? क्या वह कभी मुझे माफ कर पाएगा कि मैंने अपने अहंकार की वजह से उसे पिता के साए से
वंचित कर दिया। उसने गहरी सांस ली और कांपते होठों से कहा अरुण सुनो एक पत्नी की तरह मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकती। तुमने मुझे बदनाम किया, धोखा दिया और मेरे भरोसे को तोड़कर मुझे जिंदा लाश बना दिया। लेकिन एक मां की तरह मैं अपने बेटे का भविष्य नहीं बिगाड़ सकती। उसके लिए उसे पिता का नाम चाहिए। उसका सहारा चाहिए। इसलिए मैं तुम्हें एक आखिरी मौका देती हूं। अगर तुमने दोबारा गलती की तो समझ लेना। यह रिश्ता यहीं खत्म हो जाएगा। लेकिन अगर तुम सच में बदल गए हो तो अपने बेटे की कसम खाकर कहो कि अब दोबारा वही गलती नहीं करोगे। अरुण ने कांपते हाथ
उठाकर अपने सीने पर मारा और बोला संध्या मैं कसम खाता हूं। अब मेरी जिंदगी का हर पल सिर्फ तुम्हारे और हमारे बेटे के लिए होगा। मुझे भगवान ने दूसरा मौका दिया है। और मैं उसे खोना नहीं चाहता। मैंने अपने गुनाहों की सजा भुगत ली है। अब अगर मुझे जीना है तो सिर्फ तुम्हारे साथ। इतना कहकर अरुण जमीन पर झुक गया और फूट-फूट कर रोने लगा। संध्या का दिल पसीज गया। उसने बेटे को बुलाया और कहा, बेटा देखो यह तुम्हारे पापा है। बच्चे की मासूम आंखों में चमक आ गई। वह दौड़कर अरुण से लिपट गया और बोला, पापा, अरुण ने बेटे को सीने से लगा लिया
और जोर-जोर से रो पड़ा। उस पल जैसे उसका टूटा हुआ दिल जुड़ गया था। लोगों की भीड़ दूर से यह दृश्य देख रही थी। किसी की आंखें नम हो गई। किसी ने आह भरी तो किसी ने कहा देखो जब जिंदगी सिखाती है तो सबसे बड़ा सबक सिखाती है। कुछ दिनों बाद संध्या और अरुण ने मंदिर में जाकर दोबारा शादी कर ली। ना ढोलन गाड़े ना शोरशराबा। बस बेटे के सामने सात फेरे लिए और भगवान से वादा किया कि अब यह रिश्ता कभी धोखे से नहीं टूटेगा। लोगों ने ताने दिए। यह औरत कितनी बड़ी गलती कर रही है। धोखेबाज को दोबारा क्यों अपनाया? लेकिन संध्या ने सबको एक ही जवाब दिया। गलती माफ नहीं की। लेकिन बेटे
को पिता दिया है। रिश्तों का असली धर्म यही है कि अगर कोई टूटे तो उसे जोड़ो। अगर कोई गिरे तो उसे उठाओ। दोस्तों, यह कहानी हमें यही सिखाती है कि पति पत्नी का रिश्ता केवल मोहब्बत पर नहीं बल्कि भरोसे पर टिका होता है। एक बार अगर भरोसा टूट जाए तो उसे जोड़ना सबसे कठिन काम है। अरुण ने अपने लालच और धोखे की वजह से सब कुछ खो दिया। लेकिन जब उसके पास सिर्फ पछतावा बचा तो जिंदगी ने उसे दूसरा मौका दिया। अब सवाल आपसे है अगर आपकी जगह संध्या होती तो क्या आप अरुण जैसे धोखेबाज पति को सिर्फ बेटे की खातिर दूसरा मौका देते या फिर हमेशा के लिए नाता तोड़ देते कमेंट में
जरूर लिखिएगा क्योंकि आपकी राय ही इस कहानी का सबसे बड़ा सच है और अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो वीडियो को लाइक और शेयर करना ना भूलें और हां हमारे चैनल स्टोरी बाय एसके को सब्सक्राइब जरूर करें फिर मिलेंगे एक नई दिल दिल को छू लेने वाली कहानी के साथ। तब तक अपने परिवार को संभालिए। रिश्तों को संजो कर रखिए। जय हिंद जय भारत।
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